राजस्थान विश्वविधालय शिक्षक के एक साधारण आग्रह पर मुख्यमंत्री ने तत्काल आवंटित कर दी निशुल्क 157 एकड़ भूमि |एक वह जमाना था जब राजस्थान मैं शिक्षकों विशेष रूप से राजस्थान विश्वविद्यालय के शिक्षकों का सम्मान ठीक उसी तरह से होता था, जैसे रामायण काल में भगवान श्री राम द्वारा अपने गुरु वशिष्ठ का सम्मान किया जाता था, जब शिक्षकों को न केवल राज्यपाल , मुख्यमंत्री, मंत्री वरन समाज का हर व्यक्ति शिक्षक नाम सुनकर ही अतिविशिष्ट सम्मान देता था, उनके समाज के प्रति समर्पण वह उनके विद्वतापूर्ण मार्गदर्शन को पाने के लिए न केवल सरकार वरन बड़े बड़े नीति निर्माता लालायित रहते थे.
ऐसे ही राजस्थान विश्वविद्यालय से जुड़े एक शिक्षक के अद्भुत सम्मान का प्रसंग मुझे उस समय जानने को मिला जब मेरे द्वारा वर्ष 2007 में राजस्थान विश्वविद्यालय की पवित्र भूमि पर तेजी से हो रहे अतिक्रमण के विरुद्ध अभियान प्रारंभ ही किया गया था, अखबारों में प्रमुखता से इस संबंध में छप रहे समाचारों को देखकर आई.ए.एस अधिकारी रहे के.एल. कोचर साहब जो की तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाडिया के निकटस्थ अधिकारीयों में से एक माने जाते थे, व आगे चलकर भैरों सिंह जी शेखावत के भी विश्वस्त अधिकारी बने, जिन पर इन दोनों राज्य के प्रमुख राजनेताओं नेताओं के जनसंपर्क कार्य का भी महत्वपूर्ण जिम्मा था,मेरे से पुत्र वत स्नेह रखते थे ,


अखबारों में समाचारों को पढ़ते हुए कोचर साहब ने मुझे बताया की, भूपेंद्र तुम्हे मालूम है कि राज.वि.वि. को 157 एकड़ भूमि किस तरह अलॉट हुई थी, वे मुझे बताने लगे की 1961 में राजस्थान विश्विधालय के कुलपति प्रो. मोहन सिंह मेहता विश्वविधालय के कुछ शिक्षकों के साथ विश्वविधालय से जुडी कुछ समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री निवास पहुंचे, इस वार्ता के लिए मुख्यमंत्री सहित अन्य वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भी बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे, शिक्षकों का स्वागत हुआ ,वार्ता प्रारंभ हुई व समस्याओं का मोके पर ही निदान के निर्देश दे दिए गए, वार्ता खत्म हुई व मोहनलाल सुखाडिया जी स्वयं कुलपति व शिक्षकों को दरवाजे तक छोड़ने आये, सामान्य शिष्टाचार से मुख्यमंत्री जी ने यह पूछ लिया की और कोई काम हो तो बताएं, इतने में एक शिक्षक ने मुख्यमंत्री जी से बड़े सामान्य रूप से यह आग्रह कर दिया कि मुख्यमंत्री जी, राजस्थान विश्वविधालय को भविष्य में इसके विस्तार के लिए और अधिक भूमि की आवश्यकता होगी,कृप्या इस पर भी ध्यान दीजिएगा ,|
मुख्यमंत्री जी ने यह सुनकर कुलपति एंव शिक्षकों को पुन: अंदर आने का आग्रह कर दिया | मुख्यमंत्री जी ने उपस्थित अधिकारीयों से पुछा की इस संबंध में क्या किया जा सकता है, अधिकारीयों ने जानकारी लेकर मुख्यमंत्री जी को यह बताया की विश्विधालय को 157 एकड़ भूमि आवंटित की जा सकती है , सुखाडिया जी ने मोके पर ही अधिकारीयों को यह निर्देश दे दिए ,की इसे आवंटित करने की कार्यवाही शुरू करें | एक महीने के अन्दर ही राजस्थान विश्वविधालय को 157 एकड़ भूमि आवंटित करने के आदेश जारी कर दिए गए |
मेरे अभियान में यह तथ्य स्पष्ट रूप से उबर कर आया की वर्ष 1961 में राजस्थान विश्वविधालय को यह 157 एकड़ भूमि तीन ब्लॉक A, B,C के रूप में आवंटित की गयी, बिड़ला मंदिर के शांति पथ, तिलक मार्ग से लगती सीमा पर A ब्लॉक, झालाना डूंगरी रोड से लगते एंव कोमर्स कॉलेज के पीछे B ब्लॉक में एंव टीचर हॉस्टल के पीछे C ब्लॉक में यह कुल 157 एकड़ भूमि निशुल्क रूप से विश्वविद्यालय को आवंटित की गई थी.
इसे विश्वविधालय का दुर्भाग्य माने की एक शिक्षक के आग्रह पर मुख्यमंत्री की उदारता से आवंटित हुई आज के बाजार मूल्य की अरबों रुपये की इस पवित्र 157एकङ भूमि को आगे चलकर विश्वविधालय पूरी तरह से बचा भी नही पाया, हालांकि वर्ष 2015 में विश्वविद्यालय की स्थापना की 70 साल बाद मुख्य परिसर का पट्टा जारी करवाया गया है शेष भूमि पर अतिक्रमण हटाए जाने की प्रक्रिया प्रगति पर हैराज्य कर्मचारियों वह शिक्षकों के नेता रहे मेरे स्वर्गीय पिता बिशन सिंह शेखावत के व्यक्तित्व उनकी ईमानदार छवि एवं शिक्षक स्वरूप का सुखाड़िया साहब पर विशेष प्रभाव था जिसका असर राज्य में हुए कर्मचारी एवं शिक्षकों के ऐतिहासिक आंदोलनों में भी देखने को मिलता है निश्चित रूप से राज्य की राजनीति में अब ऐसे राजनेताओं का अभाव तेजी से देखने को मिल रहा है राजस्थान विश्वविद्यालय की ओर से ऐसे महान राजनेता का सादर स्मृति स्मरण
डॉ. भूपेंद्र सिंह शेखावत
राजस्थान विश्वविधालय
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