जयपुर को कृत्रिम झीलों की नगरी भी कहा जा सकता है। आमेर का मावठा, आमेर का सागर, गोविंददेवजी का ताल कटोरा, जलमहल की मानसागर झील और रामगढ़ झील आदि सभी जयपुर की कृत्रिम झीलें हैं। आमेर रियसत के पेयजल के स्रोतों की कमी के कारण ही राजधानी को आमेर से नए शहर जयपुर में स्थानांतरित किया गया था। इसलिए इन कृत्रिम झीलों का महत्व पर्यटन के साथ साथ संसाधनों के रूप में भी पर्याप्त है।
पर्यटन की इस देव-नगरी में आपको हर कदम पर कोई न कोई पर्यटन स्थल देखने को मिल जाएगा। पर्यटन के क्षेत्र में जयपुर की झीलों का भी बहुत बड़ा योगदान है। यही कारण है कि राजा महाराजाओं से लेकर आधुनिक शासन प्रशासन तक इन झीलों का बड़ा ध्यान रखता है। विगत कुछ समय में आपने जलमहल को लीज पर देने, रामगढ़ झील पर लोगों के कब्जे, तालकटोरा की सफाई को लेकर अभियान और आमेर मावठे के रख-रखाव की खबरे अखबारों की सुर्खियां बनते देखी होंगी। शासन-प्रशासन के साथ कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी इन झीलों के संरक्षण के लिए तत्पर हैं।
आईये, अब जयपुर की सबसे बड़ी कृत्रिम झील और पुरा-महत्व के जलस्रोत के बारे में जानकारी प्राप्त करें-
स्थान – रामगढ़ झील
प्रसिद्ध – कृत्रिम झील के रूप में
दूरी – जयपुर से 35 किमी
रामगढ़ झील : पुरा जलस्रोत
रामगढ़ झील जयपुर में विशाल कृत्रिम झील के रूप में जानी जाती है। यह दिल्ली रोड पर जयपुर से लगभग 35 किमी की दूरी पर है। लगभग 16 वर्ग किमी के विशाल क्षेत्र में बनी इस कृत्रिम झील का निर्माण किसी समय जयपुर को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए किया गया था। उस समय यह झील जयपुर शहर का प्रमुख जलस्रोत थी। जयपुर के पास रामगढ़ नामक स्थान पर पहाड़ियों से घिरे भाग पर तटबंध बनाकर इस झील का निर्माण किया गया था। जयपुर में मानव निर्मित यह सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। बारिश के मौसम में झील लबालब हो जाती थी और हजारों की संख्या में देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती थी। आसपास के माहौल, विशाल भूक्षेत्र और नौकायन के कारण इलाके में चहल पहल होती थी। किसी समय इसी झील में नौका दौड प्रतियोगिताएं भी होती थी जिसमें बड़ी संख्या में जयपुर शहर, आसपास के ग्रामीण इलाकों के लोग और देशी विदेशी पर्यटक मौजूद होते थे।
मानसून के दौरान पानी जमा होने पर जयपुर में पेयजल संकट तो दूर होता ही था, इसी के साथ यह खूबसूरत प्राकृतिक क्षेत्र पक्षियों के लिए भी विहार का सुंदर स्थल बन गया था। यहां समय समय पर देशी और परदेसी पक्षी डेरा जमाए देखे जाते थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि 1982 में भारत सरकार ने रामगढ झील क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर दिया था। तब से लेकर दो दशकों तक यह स्थान पर्यटको के लिए वन्यजीव सफारी का आनंद भी देता रहा। पर्यटन की ऐसी चहल पहल रही कि यहां पोलो मैदान, जमवा माता का मंदिर, पुराना किला, संग्रहालय और शिकारगाह में हमेशा पर्यटकों का रूझान बना रहता था। कुछ स्थल यहां पहले से थे और कुछ इस झील के प्रति आकर्षण बढने के बाद विकसित किए गए।
वहीं पिकनिक मनाने वाले स्थानीय पर्यटकों के लिए भी यह एक अच्छा विकल्प बनकर उभरा। शहर के कोलाहल और भीड़भाड़ से दूर प्राचीन किलों के खंडहरों के बीच सुरम्य रामगढ़ झील का इलाका उन्हें अपूर्व आनंद और शांति से भर देता था।
झील का इतिहास
रामगढ़ इलाका यहां झील बनने से पहले जयपुर के राजा-महाराजाओं की शिकारगाह थी। वे मन बहलाने के लिए यहां आकर आखेट यानि शिकार खेला करते थे। महाराजाओं की शिकारगाह होने के कारण यह क्षेत्र जयपुर की विरासत के रूप में विकसित हुआ। रामगढ में कालान्तर में हैरिटेज होटल भी विकसित किया गया। यह होटल झील क्षेत्र के किनारे स्थित है। गौरतलब है कि वर्ष 2000 तक यह झील गुलाबी शहर जयपुर के लिए पेयजल का एक प्रमुख स्रोत थी। इससे पहले 1982 में यहां एशियाई खेलों का आयोजन भी किया गया और रोइंग की मेजबानी का ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी इस क्षेत्र ने बनाया। इसके तहत एशियाई नौकायन प्रतिस्पर्धा का आयोजन आज भी कई लोगों को याद होगा। किसी समय जंगल के रूप में पहचान रखने वाले इस क्षेत्र में नीलगाय, चीतल और शेर विचरण किया करते थे। इसीलिए 1982 में इस क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित किया गया था। रामगढ़ झील के आसपास आज भी सघन वृक्षों के झुरमुट, लम्बी घास के मैदान और यत्र-तत्र पानी के छोटे जलाशय देखने को मिलते हैं। आज यहां नीलगाय और अन्य वन्य जीव देखने को ही मिलते हैं।
क्षेत्र की विशेषताएं
चार किमी तक फैली इस सुरम्य झील का पानी आज सूख चुका है और पानी के बहाव क्षेत्र में लोगों ने अतिक्रमण कर लिए हैं। इसे इसके मूल स्वरूप में लाने के लिए अब सरकार, न्यायालय, प्रशासन, मीडिया और स्वयंसेवी संस्थाएं प्रयास में जुटे हैं। रामगढ को फिर से पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास हुए हैं। इसके तहत यहां अक्टूबर और जून के बारिश के मौसम में नौकाविहार से मनोरंजन उपलब्ध कराया गया। झील का पोलो मैदान आज भी भारत के सबसे अच्छे पोलो मैदानों में एक रहा है। यह मैदान रामगढ झील और अरावली की पहाड़ियों के बीच है। यहीं जमुवा माता का मंदिर भी स्थानीय पर्यटन की नजर से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर जयपुर के कच्छवाहा वंश के सरदार दूल्हेराव द्वारा बनाया गया था।
कैसे पहुंचें
रामगढ़ सड़क मार्ग से अच्छी तरह जयपुर से जुड़ा हुआ है। रामगढ पहुंचने के लिए राजस्थान पथ परिवहन निगम की बसों का नियमित संचालन किया जाता है। जयपुर शहर से रामगढ़ के लिए किराए पर कार अथवा टैक्सी भी की जा सकती है। यहां से नजदीकी हवाई अड्डा सांगानेर एयरपोर्ट लगभग पौन घंटे की दूरी पर है जबकि रेल्वे स्टेशन व बस स्टैण्ड 40 किमी की दूरी पर हैं।
मेज नदी से मिलेगा पानी
जयपुर का रामगढ़ बांध एक बार फिर पानी की रौनक से दमदमाता नजर आएगा। अब इस बांध को बूंदी की मेज नदी के पानी से भरने की तैयारी चल रही है। बूंदी की मेज नदी का पानी नहर द्वारा जयपुर के रामगढ़ बांध तक लाए जाने की तैयारियां चल रही हैं। इस 200 किमी लंबी नहर से रामगढ़ में पानी आएगा। पानी लाने के लिए जल संसाधन विभाग जल्दी ही सर्वे करेगा। योजना पर सही ढंग से काम हुआ तो तीन साल में मेज का पानी रामगढ़ तक आ जाएगा। रामगढ बांध की भराव क्षमता 75 मिलियन क्यूबिक जल की है, जबकि मेज से 183 मिलियन क्यूबिक जल मिलने की संभावना है। मेज के पानी से सिर्फ रामगढ में ही नहीं बल्कि टोंक के गलवा और दर्जनभर अन्य बांधों में भी पानी भरा जाएगा। शेष पानी सिंचाई के काम में लिया जाएगा। कैचमेंट एरिया और नदियों के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण हो जाने से रामगढ बांध में 2003 के बाद पानी नहीं आया है। 2012 में भारी बारिश के बावजूद रामगढ में पानी नहीं आने से हाईकोर्ट ने बहाव क्षेत्र के अतिक्रमण हटाने के निर्देश जारी किये थे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी बजट में रामगढ बांध में पानी के लिए व्यवस्था करने को प्रमुखता से उल्लेखित किया था। बूंदी के इंद्रगढ-लाखेरी से गुजरने वाली मेज नदी में मानसून के दौरान अत्यधिक मात्रा में पानी होता है। यह पानी चंबल के जरिए मध्यप्रदेश में चला जाता है। विभाग ने यह पानी रामगढ लाने के लिए 1068 करोड की योजना बनाई है। जलदाय विभाग व जनसंसाधन विभाग मिलकर इस योजना पर काम करेंगे। बूंदी के इंद्रगढ-लाखेरी से टोंक, चाकसू, कानोता के रास्ते यह पानी 200 किमी नहर के जरिए रामगढ तक पहुंचेगा। मेज नदी के रिजर्वर से पानी लिफ्ट नहर में आएगा।
अक्टूबर और मार्च का महिना इस खूबसूरत स्थल का भ्रमण करने के लिए सबसे अच्छे हैं। अपने मौलिक स्वरूप में लौटने के लिए प्रतिबद्ध यह स्थल आज भी कई प्रजातियों के वन्यजीवों का घर है। यहां कई प्रजातियों के पक्षियों का विहार देखा जा सकता है। साथ ही पोलो मैदान, जमवा माता मंदिर, शिकारगाह आदि सब चीजें मिलकर रामगढ को एक सुंदर पर्यटन स्थल बनाती हैं। आसपास के क्षेत्र के लोगों के लिए तो आज भी यह स्थल पिकनिक का सबसे शानदार स्थल है। यकीनन जयपुर आने वाले पर्यटकों को इस स्थल का दौरा करना चाहिए।
जयपुर के बीचों बीच से किसी समय एक मानसून प्रवाहिनी नदी निकलती थी। यह नदी दर्भावती अथवा द्रव्यावती नदी के नाम से भी जानी जाती थी। नदी के पानी को रोककर मानसागर झील का निर्माण किया गया था। आज यह नदी जयपुर के गंदे नाले यानि ’अमानीशाह के नाले’ में परिवर्तित हो चुकी है। इसी तरह जयपुर के उत्तर पूर्व में अरावली की पहाड़ियों से निकलने वाली धाराओं को रोककर रामगढ़ क्षेत्र में कृत्रिम झील विकसित की गई थी लेकिन यहां लगातार खनन और अतिक्रमण के कारण पिछले कुछ समय से इस झील का अस्तित्व भी खतरे में पड़ गया है।
रामगढ़ बांध क्षेत्र में खान आवंटन पर रोक
जयपुर में जमवारामगढ बांध के बहाव क्षेत्र में अब नए खनन पट्टे जारी नहीं किए जाएंगे। इस संबंध में राज्य सरकार ने खान विभाग को निर्देश दिए हैं। वर्तमान में इस क्षेत्र में करीब 200 खान संचालित हैं, जो चलती रहेंगी। जानकारों के मुताबिक बांध के बहाव क्षेत्र में नए खनन पट्टे जारी करने पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट की मॉनीटरिंग कमेटी की सिफारिश के आधार पर रोक लगाई है। बांध का बहाव क्षेत्र जमवा रामगढ तहसील के अलावा आमेर, शाहपुर और विराटनगर क्षेत्र में फैला हुआ है। खानविभाग के अधिकारियों के मुताबिक वर्तमान में चल रही खानों के लीज पट्टे के नवीनीकरण पर कोई रोक नहीं है। सिर्फ नए खनन पट्टे जारी नहीं किए जाएंगे। बांध के बहाव क्षेत्र में खान आवंटन के लिए कई लोगों ने आवेदन किया हुआ था। लेकिन पिछले दिनों ये आवेदन निरस्त हो गए थे। बहाव क्षेत्र के जेडीए सीमा में आने वाले हिस्से में जेडीए ने खनन पट्टे के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देने पर रोक लगा रखी है। हालांकि जेडीए सीमा से बाहर कुछ क्षेत्र खाली पड़ा है। यहां खान विभाग नए पट्टे जारी करने के लिए नई नीति के तहत आवेदन लेने कर तैयारी कर रहा था। अब इस क्षेत्र के लिए आवेदन नहीं लिए जाएंगे।
रामगढ़ से अतिक्रमण हटाएं-हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को रामगढ बांध में पानी लाने वाली तीन नदियों बाणगंगा, ताला व माधवेणी के बहाव क्षेत्र में आ रहे अवरोधकों को मानसून से पहले हटाने के निर्देश दिए हैं। सज्ञथ ही जयपुर कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि वे क्षेत्र से पहले हटाए गए अतिक्रमणों को पुन: नहीं होने दें और नए अतिक्रमण भी रोकें। बुधवार को स्वप्रेरित संज्ञान पर ये निर्देश दिए गए। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिंचाई विभाग तीनों नदियों के बहाव क्षेत्र में अवरोधक हटाने के लिए मॉनिटरिंग कमेटी का सहयोग ले।
रामगढ़ का रास्ता रोका रसूखदारों ने
आमेर तहसील के कूकस इलाके में सेटलमेंट विभाग की ओर से की गई जांच मिें सामने आया है कि एक निजी विश्वविद्यालय, होटल रिसोर्ट व फार्म हाउस सहित बीस इमारतों ने नदी नाले व सरकारी भूमि पर कब्जा करके रामगढ बांध में पानी पहुंचने के रास्तों पर अतिक्रमण कर लिया है। जिम्मेदार अधिकारियों की मिली भगत से इन रसूखदारों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि इन्होंने नदी नालों तक पर कब्जा कर इमारतें खड़ी कर ली हैं। यह तो तहसील के सिर्फ एक इलाके का उदाहरण है। विभाग की ओर से तीन और तहसीलों जमवारामगढ, शाहपुरा और विराटनगर में भी जांच की जानी है। रामगढ बांध सहित प्रदेश के अन्य जल स्रोतों के प्रवाह क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए हाईकोर्ट की ओर से गठित मॉनिटरिंग कमेटी ने विभाग की यह रिपोर्ट मुख्य सचिव सीके मैथ्यू को सौंपी है।