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भक्तवत्सल भगवान शिव सावन मास

#सावन का महीना सभी शिव भक्तों के लिए सबसे पावन पर्व माना जाता हैं.. ऐसा माना जाता हैं कि भक्तवत्सल भगवान शिव सावन मास में पृथ्वी पर निवास कSavan-month-most-sacred-shiva-devoteesरते है और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने का आशीर्वाद देते है.. वैसे तो मैं बचपन से ही भोले बाबा को अपना गुरु एवं इष्ट मानती आयी हूँ और उन्ही के मार्गदर्शन में अपने जीवन का संचालन सादगी से करती आयी हूँ.. पर वर्ष 2020 का कोरोना काल मेरी जिंदगी में विशेष महत्त्व रखने वाला हैं.. इस काल में भोले बाबा की असीम कृपा से #महाशिवपुराण को पड़ने एवं #शिव #शक्ति के विभिन्न रूपों को समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ.. जो पहले जिंदगी की उठा पटक में कभी प्राप्त ना हो पाया था और ऐसा लगता था कि शायद कभी हो भी नहीं पायेगा पर यहीं तो भगवान शिव की माया का परिचय होता हैं कि अगर उन्हें निश्छल भाव से मन में स्थान दिया जाये तो वो स्वमं ही आपके असंभव से लगने वाले कार्य को आसानी से पूरा करवा देते है… इसिलये तो वह #महादेव कहलाते हैं।

शिवपुराण को पड़ने से #प्रकृति के विभिन्न आयामों की जानकारी सहज रूप से ही हो जाती हैं… आम जीवन के लगभग सभी प्रश्नों के जवाब भी स्वतः ही मिल जाते हैं पर कुछ #ज्योतिर्लिंग के विशेष प्रसंग हैं जो हमारे दैनिक जीवन और घर गृहस्ती को सुचारू रूप से चलाने में मददगार हो सकते है उनका वर्णन मैं अपनी अदनी सी समझ अनुसार करने का जोख़िम उठा रही हूँ… उम्मीद है इससे आपको भी सहायता मिलेगी…

तो सबसे पहले बात प्रथम #ज्योतिर्लिंग श्री #सोमनाथ जी की.. महा शिवपुराण के श्री कोटि रूद्र संहिता में वर्णित प्रसंग अनुसार श्री ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा से किया था परंतु #चन्द्रमा को केवल अपनी पत्नी #रोहिणी से ही विशेष लगाव था जिसके कारण बाकि की पत्नियाँ अपनी उपेक्षा सहन नहीं कर पायीं और दुखी होकर अपने माता पिता से चंद्रमा के व्यवहार की शिकायत कर दी.. जाहिर है कि माता पिता अपनी पुत्रियों को दुखी नहीं देख सकते हैं.. इस कारण दक्ष प्रजापति ने भी चद्रमा को कांति विहीन होने का श्राप दे दिया… जब चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने भगवान् शिव के शिवलिंग की स्थापना करके कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप भोले बाबा ने उनके श्राप के प्रभाव को कम करते हुए माह के कृष्ण पक्ष में कलाएं घटने एवं शुक्ल पक्ष में कलाएं बढ़ने का वरदान प्रदान किया और उस शिवलिंग में ज्योति के रूप में सदा के लिए निवास करने लगे जिसे आज #सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से पूजा जाता है। यह प्रसंग हमें यह सिखाता हैं कि परिवार के सभी सदस्यों से एक सामान व्यवहार करना चाहिए ताकि कोई भी अपने आप को उपेक्षित या हीन महसूस ना करें.. क्योंकि यह #असमान #व्यवहार ही आगे जाकर #जलन, #द्वेष एवं #क्रोध में परिवर्तित हो जाता है जो आज हमें घर-घर में दिखाई देता हैं और यह दुर्भावनाएं व्यक्ति को गलत काम करने के लिए मजबूर कर देती है और खमियाजा सभी को उठाना पड़ता हैं।

दूसरा प्रसंग है श्री #मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का.. यह ज्योतिर्लिंग #अर्धनारीश्वर का स्वरुप है जिसमें भगवान शिव #अर्जुन है और माँ पार्वती #मल्लिका के नाम से जानी जाती हैं.. इस ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति आज के वातावरण में सबसे सटीक बैठती हैं.. जिसमे माँ बाप एवं उनके बच्चों के बीच में कैसे सामंजस्य स्थापित किया जा सकता हैं उसका प्रसंग इस प्रकार हैं कि जब भगवान् शिव और माँ पार्वती द्वारा अपने दोनों पुत्रों कुमार कार्तिकये एवं श्री गणेश को बह्मांड के तीन चक्कर लगाने का कार्य दिया गया था और यह शर्त रखी गयी थी की जो पहले वापस आएगा उसका विवाह पहले किया जायेगा.. कार्तिकये तो अपने वाहन मोर पर बैठ कर तुरंत उड़ गए परंतु गणेश जी ने अपनी बुद्धि एवं ज्ञान का प्रयोग करते हुए अपने माता पिता की ही पूजा वन्दना करके उनकी तीन बार परिक्रमा पूरी कर ली… वेदों के अनुसार माता पिता के चरणों में ही पूरा ब्रह्मांड होता हैं… इस प्रकार उन्होंने शर्त जीत ली और उनका विवाह रिद्धि एवं सिद्धि से हो गया.. परंतु जब कार्तिकये वापस आये तो वो इस बात से नाराज़ हो गए और उन्होंने सदा के लिए कुमार व्रत धारण करके कैलाश पर्वत का त्याग कर दिया और क्रोंच पर्वत पर तपस्या में लीन हो गए… इसीलिए अपने पुत्र प्रेम में उनको देखने के लिए भगवान शिव एवं माँ पार्वती क्रोंच पर्वत पर श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए और शिव पुराण के अनुसार प्रत्येक अमावस्या को भगवान् शिव एवं पूर्णिमा को माँ पार्वती इस ज्योतिर्लिंग में साक्षात् विराजते हैं… यह प्रसंग हमें पुनः यही याद कराता है कि माता पिता एवं बच्चों के सम्बन्ध स्पष्ठ एवं एकरूप होने चाहिए क्योंकि अगर किसी कारणवश कोई संतान ग़लतफहमी की शिकार हो जाये या अनजाने वश संतानों में भेदभाव हो जाता हैं तो फिर वो लाख प्रयत्न करने के बाद भी ठीक नहीं होते और दोनों ही पक्षों को निराशा एवं दुःख का सामना करना पड़ता हैं।

तीसरा और इस लेख का आखिरी प्रसंग श्री #बैधनाथ ज्योतिर्लिंग जी का हैं… शिवपुराण के अनुसार रावण ने कठोर तपस्या करके महादेव को प्रसन्न किया था और भगवान् शिव को लंका में निवास करने का वरदान मांगा था जिसके फलस्वरूप भोलेनाथ नें एक शिवलिंग रावण को इस शर्त के साथ प्रदान किया कि वो इसे लंका में पहुँच कर ही धरती पर रखे अन्यथा वो जिस स्थान पर इस शिवलिंग को सबसे पहले रख देगा तो फिर दोबारा कोई उसे उठा नहीं पायेगा.. रावण नें शर्त स्वीकार कर ली एवं शिवलिंग को अपने हाथ में उठा कर लंका के लिए रवाना हो गया परन्तु रास्ते में उसे लघुशंका जाने की तत्परता हुई और उसने वो शिवलिंग एक गड़रिये के हाथ में पकड़ा दिया इस निर्देश के साथ की इसे जमीन पर ना रखे पर जैसा सर्व विदित है कि जो जिसका काम है वो ही उसे पूरा करने के लिए जिम्मेदार है, रावण को वापस आने में देर होती देख गड़रिये ने शिवलिंग को वहीँ धरती पर रख दिया और चला गया… जब रावण वापस आया तो उसने शिवलिंग को धरती पर रखा हुआ देखा, बहुत प्रयास के उपरांत भी वह शिवलिंग को पुनः उठा नहीं पाया और निराश होकर वापस लंका लोट गया… जिस धरती पर शिवलिंग को रखा गया था वह स्थान बैध वन होने की वजह से #बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हो गये.. यह प्रसंग हमें बताता है कि जिस कार्य को शुरू किया गया है उसे पूरा करे बिना हमें निश्चिन्त नहीं होना चाहिए एवं समानान्तर कोई दूसरा कार्य भी शुरू नहीं करना चाहिए अन्यथा वो कार्य कभी पूरा नहीं होता हैं एवं अपने कार्य को सही तरीके से पूर्ण करने की पूरी जिम्मेदारी हमारी स्वमं की होती हैं अगर उसे किसी दूसरे के भरोसे छोड़ा गया तो उसका परिणाम कभी सही नहीं होगा बल्कि हमारा सारा परिश्रम भी व्यर्थ हो जाता हैं…

तो दोस्तों उम्मीद है कि इन #ज्योतिर्लिंगों की उत्त्पति एवं उसमें छुपे हुए जीवन सूत्र हम सबके जीवन को ख़ुशहाल बनाने में मददगार साबित होंगे🍀🌷🌻

भक्तवत्सल भगवान महादेव की कृपा आप पर हमेशा बनी रहें, इसी प्राथना के साथ, स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें 🙏🙏

प्रेरणा की कलम से ✍️✍️

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