राजस्थान विश्वविद्यालय का स्थापना दिवस इस गौरवमयी, उच्च शिक्षण संसथान से जुड़े तपस्वी, अपने शिक्षण कर्म के लिए समर्पित, त्याग से सराबोर अपनी विलक्षण शोध पूर्ण विद्वता से पूरे विश्व में अपने ज्ञान का परचम फैराने वाले हजारों मनीषी शिक्षकों व उनके इस पुण्य कर्म में कर्मठता से सहयोगी रहे अशेक्षानिक कर्मियों का श्रृद्धापूर्वक अभिनन्दन पूर्ण स्मरण करने का सूअवसर है |
जिनकी प्रेरणा अपने परिजनों तुल्य प्रदान किये गए मार्गदर्शन से इस विश्वविध्यालय से जुड़े लाखों विद्यार्थी समाज के प्रत्येक क्षेत्र चाहे विज्ञानं, वाणिज्य, प्रशासन, कला, संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता या भारतीय सेना जैसे मुख्य क्षेत्र हो, में समाज की सेवा करने के सुयोग्य बन सके व् न केवल राजस्थान अपितु पूरे विश्व में अपनी बेहतर सेवाएँ देकर इसके द्वारा प्रदान किये गए अमूल्य शिक्षा धन का वास्तविक ऋण अदा कर रहे हैं, इन सभी का इस अवसर पर हार्दिक अभिनंदन |

अपनी 75 वर्ष की लम्बी यात्रा में अनेक उतार चड़ाव इसके इतिहास के पन्नों में दर्ज है, यहाँ तक की इसकी स्थापना के समय इसके संस्थापकों जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई मान सिंह जी व एक साधारण शिक्षक के आग्रह पर पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल जी सुखाडिया जैसे दूरदर्शी राजनीतिज्ञ द्वारा इसे उदारतापूर्वक दो चरणों में कुल 500 एकड़ से अधिक भूमि प्रदान करने के किस्से भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं ,साथ ही यह भी इतिहास का विचित्र हिस्सा है की प्रशासनिक अकर्मण्यता से इस उदारतापूर्वक प्रदान की गयी इस पवित्र भूमि को 73 साल की लम्बी अवधि के बाद भी इसका औपचारिक स्वामित्व प्राप्त न करने से उसे सुरक्षित न रख सका, जिससे ये वर्तमान में अरबों रुपए बाजार मूल्य की पवित्र भूमि अनेक भूमाफियाओं व अतिक्रमियों के शिकंजे में आ गयी |
इस कारण वर्तमान में भी लगभग 07 दशक पूर्व नियमानुसार आवंटित इस पवित्र भूमि के अस्तित्व को बचाने का भी संघर्ष करना पड़ रहा है |मुझे यह कतई अहसास नहीं था की मेरे जैसे छोटे से विश्वविद्यालय के जनसंपर्क कर्मी द्वारा आज से लगभग 15 वर्ष पूर्व इस भूमि को अतिक्रमियों से मुक्त कराने के दुष्कर वह चुनौतीपूर्ण प्रारंभ किए गए अभियान में इस विश्वविध्यालय के प्रति अगाध स्नेह रखने वाले कुछ शिक्षकों, कर्मचारियों व अनेक पत्रकार मित्रों विधि से जुड़े वरिष्ठ विशेषज्ञों व वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा स्वैच्छिक आधार पर बढ चढ़कर दिए गए मार्गदर्शन व सहयोग से यह एक ऐतिहासिक अभियान का रूप ले लेगा| सघनता पूर्वक चले इस अभियान का परिणाम रहा की 70 वर्ष की लम्बी अवधि के बाद वर्ष 2015में इसे मुख्य परिसर की 207 एकड़ भूमि का औपचारिक रूप से स्वामित्व मिल सका है |
इस अभियान की निरंतरता का ही परिणाम है, की पिछले एक वर्ष के दौरान इस विश्वविध्यालय से अगाध स्नेह रखने वाले इसके ही एक छात्र रहे जिले के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ,श्री इकबाल खान जो की हाल ही राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदोन्नत हो चुके हैं, के गंभीर व्यक्तिगत ईमानदार प्रयासों से इस विश्वविध्यालय से जुडी लगभग 466 बीघा भूमि जिसका बाजार मूल्य आज अरबों रुपए में है, इसके स्वामित्व में दर्ज होने में सफलता मिली है, हालाँकि वर्तमान में भी इस पवित्र भूमि का एक 14 बीघा से बड़ा भू भाग, जिसका बाज़ार मूल्य आज लगभग 450 करोड़ रुपये से भी अधिक है ,एक सरकारी संस्था के कब्जे में है, इसके अतिरिक्त इस पवित्र भूमि पर अतिक्रमण हटाने वाली राजस्थान पुलिस द्वारा ही इसके बड़े भूभाग पर निर्मित किए गए भवनों पर अवैध अतिक्रमणों से मुक्त करवाने की दुष्कर प्रक्रिया शेष है |
राज्य के सबसे बड़े इस ज्ञान के पवित्र मंदिर के संस्थापक जयपुर राजपरिवार, विशेष रूप से इस परिवार की वर्तमान सदस्य दिया कुमारी जो इस आवंटित भूमि को अतिक्रमणों से मुक्त करवाने में इससे जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों को उपलब्ध करवाने एंव अन्य आवश्यक सहयोग में बढ चढ़ कर इस अभियान में सहयोग दे रहीं हैं, के साथ ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी परम सम्मानीय श्री इकबाल खान साहब जिनके व्यक्तिगत प्रयासों से अरबों रुपए बाजार मूल्य की लगभग 466 बीघा भूमि का विधिवत स्वामित्व पिछले लगभग एक साल में विश्वविध्यालय को मिला है, का इस 76 वें स्थापना दिवस पर पूरे विश्वविध्यालय परिवार की और से हार्दिक अभिनन्दन
डॉ.भूपेंद्र सिंह शेखावत,
राजस्थान विश्वविध्यालय