-29 नवंबर तक चलेगा मेला
-सबसे बड़ा पशु मेला खास आकर्षण
पुष्कर में राज्य का सबसे बड़ा पशु मेला आरंभ हो गया। कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक मेला चरम पर होगा। पुष्कर मेले के कई रंग हैं। यह राजस्थान का प्रमुख पशु मेला है। मेले में दूर दराज से लोग अपने मवेशियों को बेचने आते हैं, इतनी ही बड़ी संख्या खरीददारों की भी होती है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं का आधार है। मेले में ऊंट, घोडों, भेड़ बकरियों और गाय-बैलों की खरीद-फरोख्त बड़े पैमाने पर होती है। इसके साथ ही मेले में हजारों स्टॉलों पर राजस्थान की पहचान और कला के नमूने, खाने पीने की चीजें बिकती हैं। मेले का सबसे अच्छा हिस्सा जो विदेशी सैलानियों को आकर्षित करता है, वह है मेहमानों के लिए किए जाने वाले कई कार्यक्रम।
मेले में विदेशी सैलानियों और देशी लोगों के बीच रोचक प्रतियोगिताएं होती हैं। जैसे रस्साकशी, मटकी फोड और दुल्हन प्रतियोगिता। कई बार देशी विदेशी लोगों के बीच क्रिकेट भी देखा जाता है, इन हंसाती-गुदगुदाती रोचक प्रतियोगिताओं से लोकल लोगों और विदेशी सैलानियों के बीच प्रेम और मैत्री के भाव पैदा होते हैं।
रात्रि में मिट्टी के धोरों में जलते अलाव के चारों ओर बैठकर लोक नृत्यों का आनंद भी सैलानी यहीं पुष्कर में ले सकते हैं, या फिर शाम को ऊंट पर बैठकर दूर रेतीले मैदान में सवारी का आनंद लेना भी यहीं संभव होता है। पुष्कर के स्थानीय लोगों और पशुओं ने भी एक सार्वभौमिक भाषा सीख ली है जिसमें जबान आडे नहीं आती, वह है प्रेम की भाषा। इसीलिए विेदेशी सैलानी यहां मेले के दौरान खुले आकाश में दूर तक फैले मैदानों में छोटे टैंट लगाकर रहना पसंद करते हैं, राजस्थान के लोग-गायन लोक-नर्तन का आनंद लेते हैं, पशुओं के हैरतअंगेज करतब और रेस देखते हैं, लोगों को पशुओं की खरीदारी के लिए मोल-भाव करते देखते हैं।
कुछ रोचक प्रतियोगिताएं और पुरस्कार
नरअश्व – प्रथम पुरस्कार 21000, द्वितीय पुरस्कार 11000, तृतीय 5100 रूपए
प्रजनन योग्य घोड़ी- प्रथम पुरस्कार 21000, द्वितीय पुरस्कार 11000, तृतीय 5100 रूपए
बछेरे दो दांत- प्रथम पुरस्कार 11000, द्वितीय 5100, तृतीय 2100 रूपए
बछेरिया दो दांत- प्रथम पुरस्कार 11000, द्वितीय 5100, तृतीय 2100 रूपए
बछेरे अदंत- प्रथम पुरस्कार 11000, द्वितीय 5100, तृतीय 2100 रूपए
बछेरिया अदंत- प्रथम पुरस्कार 11000, द्वितीय 5100, तृतीय 2100 रूपए
राजस्थान भारत की रंग-बिरंगी सांस्कृतिक धरोहर है। राजस्थान के तीज-त्योंहार, मेले-उत्सव, रहन-सहन, बोली भाषा और खान-पान सभी अनूठा और कई रंगों से सजा है। राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगरी भी हालांकि गुलाबी रंग की प्रधानता के कारण जानी जाती है लेकिन जयपुर भी संस्कृति के कई रंगों से सजा है। नवम्बर का महिना आधा बीत चुका है, दुनियाभर के सैलानियों के इस फेस्ट सीजन में जयपुर की दीवाली और पांच दिन के खास कार्यक्रम देखे। दीपावली के धूम-धड़ाके, भीड़-भाड़, बाजार और सजावट के बाद सैलानियों का रूझान पुष्कर की ओर हो चला है। राजस्थान विजिट करने आए पर्यटकों के लिए अलवर, जयपुर, सवाई माधोपुर और अजमेर खास तौर पर आकर्षण का केंद्र होते हैं। दीवाली के बाद सर्दी धीरे धीरे बढ़ने लगती है, ऐसे में कार्तिक मास की पूर्णिमा तक पुष्कर के खुले मैदानों में लगने वाला यह मेला और गुनगुनी धूप में होने वाले कई खेल और मेल के आयोजन विदेशी सैलानियों को पुष्कर की ओर खींच लाते हैं।
पुष्कर मेला यूं तो कार्तिक मास की एकादशी से आरंभ होकर पूर्णिमा तक चलता है। लेकिन विदेशी सैलानियों का आकर्षण बढ़ने से मेले से कुछ दिन पहले ही यहां सैलानियों का आना शुरू हो जाता है। दरअसल पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का मंदिर और पवित्र सरोवर हैं। हिन्दू आस्था के अनुसार कार्तिक मास में पवित्र सरोवर में स्नान करना भी महत्व रखता है।
कार्तिक मास में पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर में श्रद्धालुओं और दर्शनार्थियों की संख्या लाख से ऊपर निकल जाती है। सरोवर में भी स्नान और आचमन करने वालों में ऐसी आस्था है कि इस पवित्र सरोवर में स्नान करने से सारे रोगों को निवारण हो जाता है।
आस्थाओं, मान्यताओं, परंपराओं और कुल मिलाकर संस्कृति के सबसे सुंदर रंगों में नहाया है इन दिनों पुष्कर। कहा जा सकता है कि जयपुर की दीपावली देखने के बाद विदेशी सैलानियों का सबसे पसंदीदा उत्सव ’पुष्कर मेला’ ही है।
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