जयपुर Hindi

शीश महल – दीवान-ए-खास

Diwan-I-Khas

दीवान-ए-खास

Diwan-I-Khasजयपुर के राजाओं की पहली राजधानी आमेर थी। समृद्ध कछवाहा शासकों ने यहां विशाल क्षेत्र में विभिन्न महलों और सुख सुविधाओं से सम्पन्न भव्य दुर्ग बनवाया। अपने निर्माण के पांच सौ से भी अधिक वर्ष देख चुका आमेर का महल आज भी अपनी आभा से दुनियाभर के पर्यटकों को हतप्रभ कर देता है।

मिर्जा राजा जयसिंह का आमेर की रियासत पर शासन 1621 से 1667 तक रहा। इस दौरान महाराजा ने आमेर महल के खूबसूरत हिस्सों का निर्माण कराया जिनमें दीवान-ए-खास एक था।

आमेर महल में जलेब चौक से सीढि़यां चढ़कर दूसरे प्रस्तर पर पहुंचा जाता है जहां खुले चौक में दीवान-ए-आम स्थित है। यह वह जगह है जहां राजा महाराजा आम जनता से मिलते और उनसे बातचीत किया करते थे। इस चौक के दक्षिण में एक भव्य त्रिपोल है जिसे गणेश पोल कहा जाता है। गणेशपोल से होकर महल के भीतरी भाग में पहुंचा जा सकता है जहां दीवान-ए-खास स्थित है। दीवान-ए-खास का निर्माण राजा जयसिंह प्रथम ने कराया था इसलिए इसे जय मंदिर भी कहा

Video: दीवान-ए-खास

[jwplayer config=”myplayer” file=”http://player.vimeo.com/external/63492639.sd.mp4?s=dbb88a6ea9c16537b7841c0cbeeebe08″ image=”http://www.pinkcity.com/wp-content/uploads/2012/06/diwane-i-khas.jpg”%5Dदीवान-ए-खास

जाता है। सन 1592 में निर्मित यह खूबसूरत हॉल दीवान-ए-खास राजाओं की वह प्राईवेट जगह होती थी जहां वह अपने मंत्रियों अमात्यों और गुप्तचरों और विशिष्ट लोगों के साथ खास मंत्रणा किया करते थे। खास जगह होने के साथ साथ इस स्थल की खूबसूरती भी खास है। यह प्राइवेट जगह मंत्रियों और गुप्तचरों से मंत्रणा के अलावा महल में आने वाले खास मेहमानाओं और राजपरिवार के सदस्यों से बातचीत करने के लिए आरक्षित होती थी। गणेशपोल से प्रवेश करने पर दो इमारतें आमने सामने हैं। इन दोनो इमारतों के बीच खूबसूरत मुगल शैली का गार्डन है। गणेश पोल से प्रवेश करने पर बायें हाथ की ओर स्थित खूबसूरत इमारत ही जय मंदिर है। जय मंदिर में दीवारों और छतों पर शीशे का बहुत ही बारीक और खूबसूरत काम किया गया है। यह धातु पर की जाने वाली मीनाकरी की तरह सूक्ष्म और लाजवाब है।

आशीष मिश्रा
पिंकसिटी डॉट कॉम

For English: Diwan-I-Khas Amber

Diwan-I-Khas Amber Gallery

Diwan-I-Khas Amber in Jaipur, Rajasthan

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  • आर्ट चिल गैलरी बनी चितरों का स्वर्ग
    03 अप्रैल,
    जयपुर।

    आमेर महल स्थित आर्ट चिल गैलरी इन दिनों देश विदेश के चितेरों का स्वर्ग बनी हुई है। इस गैलरी में इन दिनों 12 देशों के 100 कलाकारों की 135 कलाकृतियां प्रदर्शित की गई हैं। खास बात यह है कि यहां जितने कलाकार हैं उतनी ही कला शैलियां दिखाई दे रही हैं। आर्ट चिल गैलरी और जुनेजा आर्ट गैलरी इन दिनों अपने संयुक्त सौ वें शो का जश्न मना रही है। कला की यह प्रदर्शनी इसी खास मौके पर आयोजित की गई है।

    दुनियाभर के कलाकार कैनवास पर

    यहां प्रदर्शित कृतियों में 17 कलाकार डेनमार्क, चाइना, कोरिया, इटली, सउदी अरब, लातविया, इंग्लैंड, फ्रांस और पाकिस्तान से हैं। साथ ही 83 कलाकार भारत के विभिन्न शहरों से हैं। खास बात यह है कि प्रदर्शनी में शामिल हर कलाकार की अपनी अलग शैली है। कोई भी कलाकार दूसरे का अनुसरण करता प्रतीन नहीं होता। जामिनी रॉय, अकबर पद्मसी, अपर्णा कौर, अबदुर्रहमान चुगताई, परितोष सेन, जतिन दास, शमशाद हुसैन के अलावा राजस्थान की आधुनिक कला के पायनियर पीएन चोयल, विद्यासागर उपाध्याय, सुरेन्द्र पाल जोशी, रामेश्वर सिंह, चिंतन उपाध्याय, विनय शर्मा, सुनीत घिल्डीयाल, आकाश चोयल, दीलीप शर्मा, गंगा सिंह, एम के शर्मा सुमहेंद्र, ललित शर्मा, डॉ नाथूलाल और मुकेश शर्मा सहित देश-विदेश के कलाकारों की कृतियां अपनी खूबसूरती, रंगों, शैली और ताजगी से दर्शकों को मुग्ध कर रही हैं।

    ऑयल में उभरा नारी रूप

    दुनिया में नारी की स्वतंत्रता को लेकर चाहे कितनी भी बातें हों लेकिन हकीकत यह है कि नारी आज भी मुखौटों में उलझी हुई है। उसके लिए यह तय कर पाना कठिन होता है कि उसका असली हितैषी कौन है। विजयेंद्र शर्मा की 2011 में बनाई गई ऑयल कलर पेंटिंग में कुछ ऐसे ही भाव उभर कर सामने आए हैं।

    बनारस के पार गंगा धार

    प्रदर्शनी में यशवंत श्रीवाडकर की बनारस शीर्षक से बनाई गई पेंटिंग बनारस का एक घाट दिखाया गया है जिसपर श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी है लोग गंगा में डुबकी लगाते नजर आ रहे हैं। साथ ही गंगा घाट पर किए जा रहे पुण्य कार्य भी साफ नजर आ रहे हैं। प्रदूषण की मार झेल रही गंगा का इतना सुंदर चित्रण देखकर सभी दर्शक सम्मोहित नजर आते हैं।

    मेट्रो बजरंगी

    प्रदर्शनी में अपनी कृति ’मेट्रो बजरंगी’ से संजय भट्टाचार्य आध्यात्म को आधुनिकता से भी ऊंचे पायदान पर रखने में सफल हुए हैं। उनकी पेंटिंग में मेट्रो के जालों में फंसे मानव को शक्तिशाली होने का गुमान करते दिखाया है साथ ही यह संदेश भी दिया है कि ईश्वर से ज्यादा शक्तिशाली कोई नहीं है।

    ऐक्रेलिक में वैदिक संस्कृति

    चित्रकार आनंद पांचाल ने ऐक्रेलिक रंगों से बनाई अपनी पेंटिंग में भारती की वैदिक संस्कृति को मुखर किया है। उन्होंने बच्चों को बेहद खूबसूरत अंदाज में पेश किया है। आनंद ने पेंटिंग के जरिये संदेश दिया है कि हमारा देश दिन प्रतिदिन पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगे जा रहा है और अपनी मूल संस्कृति का चेहरा ही भूल गया है, ऐसे में ये बच्चे संस्कृति के प्रतीक के रूप में चित्रित किए गए हैं।

  • आमेर में ‘गोपीचंद भृतहरि’ का तमाशा 10 अप्रैल को

    जयपुर की ढाई सौ वर्ष से पूर्व की लोकनाट्य तमाशा शैली का प्रदर्शन 10 अप्रैल को आमेर के अम्बिकेश्वर महादेव मन्दिर प्रागंण सागर रोड में दोपहर 1 बजे किया जाएगा। आमेर में होने वाला यह तमाशा ‘‘गोपीचंद भृतहरि’’ परम्परा नाट्य समिति के कलाकारों द्वारा गणगौर से पहले की अमावस्या को खेले जाने की परम्परा है। इसका प्रदर्शन हर वर्ष इसी दिन निश्चित है इसके लिए भट्ट परिवार के कलाकार जो तमाशे की तैयारी में जुट जाते है। तमाशा शैली के वयोवृद्ध कलाकार स्व. गोपीजी भट्ट के स्वर्गवास के बाद इस तमाशा परम्परा को उनके कनिष्ठ पुत्र दिलीप भट्ट ने इस तमाशे की बागडोर संभाली तथा गोपीजी भट्ट के निर्देशन में खेले जाने वाले इस तमाशे में दिलीप भट्ट सूत्रकार व राजा गोपीचंद की भूमिका निभायेंगे। संस्था परम्परा नाट्य समिति के सचिव दिलीप भट्ट ने बताया कि –
    ’इस मौके पर जयपुर की पारम्परिक तमाशा शैली के जनक व लेखक स्व. बंशीधर जी भट्ट है, जिन्होंने तमाशा ‘‘गोपीचंद भृतहरि’’ को लिखा जिसमें कई राग रागनिया पेश की जाती है। जैसे- राग-पहाडी, भूपाली, आसावरी, जौनपुरी, बिहाग, मालकौंस, केदार, भैरव, भैरवी, दरबारी, कालिगिडा, सिन्धकाफी, सारंग और भी कई रागों का समावेश इस तमाशे में भट्ट परिवार के तमाशा कलाकार पेश करते है।’
    तमाशा ‘‘गोपीचंद भृतहरि’’ एक आख्यान है इसमें त्याग, बलिदान, दीक्षा, भिक्षा, गुरू दक्षिणा, उपदेश, राजा गोपीचन्द का सारा राजपाठ छोडकर वन की ओर चले जाना, मां का दुलार, पुत्र का मां के प्रति बलिदान। यह सब इस तमाशे में मिलता है तमाशे के बाद मन्दिर प्रांगण खेला जायेगा। आमेर में तमाशा में गणगौर गाने की परम्परा पहले गोपीजी भट्ट निभाते थे लेकिन अब उनके पुत्र दिलीप भट्ट इस परम्परा को निभाते हैं जिसमें, ’रंगीला शम्भो गौरां ले पधारो प्यारा पावणा’ व ’आओ जी आ ज्योजी रंग लाजो जी, हठीला हठ छाणों छबीला म्हाने पूजण द्यो गणगौर’ आदि गणगौर गाकर गणगौर पूजने का आव्हान कलाकार दिलीप भट्ट द्वारा किया जाता है। इस तमाशे में दिलीप भट्ट के साथ भट्ट परिवार के सौरभ भट्ट, गोबिन्द नारायण भट्ट, ईश्वर दत्त माथुर, गोपेश भट्ट, विशाल भट्ट, कपिल, सचिन, प्रदीप, कुमकुम, हर्ष के अलावा इसमें सारंगी वादक फिरदौस व जोधपुर के सारंगी वादक सरदारा लंगा भी शिरकत करेंगे। तबले पर भट्ट परिवार के शैलेन्द्र शर्मा व हारमोनियम पर शरद भट्ट व विशाल भट्ट संगत करेंगे। यह तमाशा कई वर्षो से आमेर तमाशा प्रबनकारिणी द्वारा आयोजित होता है। आम सुधि व रसिक श्रोतागण इस प्रस्तुति में सादर आमंत्रित है।

  • आमेर महल सहित छह दुर्ग विश्व विरासत

    विश्व की प्रतिष्ठित यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शुक्रवार 21 जून को राजस्थान के छह पहाडी दुर्ग- आमेर, चित्तोडगढ, गागरोन, जैसलमेर, कुम्भलगढ और रणथम्भौर को शामिल कर लिया गया। आमेर महल में प्रेसवार्ता कर पर्यटन मंत्री बीना काक ने यह जानकारी दी। पूरे देश में 30 विश्व हेरिटेज साईट्स हैं, जिसमें से राजस्थान में पहले घना एवं जन्तर मन्तर को मिला कर दो साईट्स थीं। जो कि अब इन 6 दुर्गों को मिलाकर 8 हो गई हैं। इस घटनाक्रम को विश्व में लाईव देखा एवं सराहा गया। सभी देशों के प्रजेन्टेशन देखे और राजस्थान के प्रजेन्टेशन को विशेष रूप से सराहा गया। यह अपने आप में एक अद्भुत एवं असाधारण मनोनयन था। राजस्थान के दुर्ग, कला-संस्कृति, इतिहास एवं स्थापत्य कला के बेजोड नमूने हैं। जिसे पूरे विश्व मे सराहा जा रहा है।

  • आमेर महल की विशेष चर्चा

    यूनेस्को की टीम और पैनल के समक्ष पुराविरासत विशेषज्ञों द्वारा देश व राज्य का अत्यन्त प्रभावशाली प्रजेन्टेशन किया गया। इस दौरान आमेर महल की विशेष रूप से चर्चा की गई और आमेर के साथ जयगढ को भी इसमें शामिल करने पर जोर दिया गया। किन्तु जयगढ के निजी स्वामित्व में होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। फिर भी सरकार निजी सम्पतियों को भी विरासत के रूप में संरक्षित करने का कार्य कर रही है, इसमें पटवों की हवेली, जैसलमेर का कार्य प्रमुख है।

  • अब आमेर महल ऑनलाइन

    विश्व विरासत में शामिल होने के बाद अब आमेर महल की वेबसाइट बनेगी। यूनेस्को की ओर से आमेर महल को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने के बाद सरकार को इसे नेट के जरिए दुनियाभर में हाईलाइट करने की सुध आई है। प्रशासन टैक्नो फ्रेंडली होकर आमेर महल की वेबसाइट बनाने में जुट गया है। आर्ट एंड कल्चर विभाग राजस्थान की ओर से महल को ऑनलाइन करने की निर्देश जारी किए जा चुके हैं। पिछले कई वर्षों से विशेषज्ञों और पर्यटकों की ओर से आमेर महल की वेबसाइट बनाने की मांग की जा रही थी। विश्व विरासत में शामिल होने के बाद प्रशासन ने उदासीनता छोडते हएु साइट बनाने को हरी झंडी दिखा दी है। इससे पहले जयपुर के जंतर मंतर को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल किए जाने के बाद प्रशासन ने इसकी वेबसाइदट बनवाई थी। वेबसाइट पर टूरिस्ट हाथी सवारी की ऑनइलाइन बुकिंग भी करवा सकेंगे। इसके लिए वेबसाइट में अलग से बुकिंग का विकल्प होगा। साइट में एंट्री टिकट के साथ कंपोजिट टिकट बुकिंग का विकल्प भी होगा। इस टिकट में टूरिस्ट जंतर मंतर, हवामहल, अल्बर्ट हॉल देख सकेंगे। जिसके बाद पर्यटकों को टिकट खरीदने में परेशानी नहीं होगी।
    शीशमहल से दीवाने खास तक की जानकारी-
    आमेर महल की साइट पर आमेर महल से जुडी कई सूचनाएं, चित्र और दृश्य सामग्री देखी जा सकेगी। आमेर महल स्थित शीशमहल, दीवाने खास, वास्तुशिल्प, भित्तिचित्रों के अलावा ऐतिहासिक सुरंग, बैराठी की हवेली, मावठा झील , हाथी सवारी आदि की पूरी जानकारी भी साइट पर देखने को मिलेगी। साइट में हिंदी और अंग्रेजी में पेज होंगे जो देशी विदेशी दूरिस्ट के लिए उपयोगी साबित होंगे। इसमें टूरिस्ट की सुविधा के लिए मैप भी डिजाइन होगा जिससे उसे होटल और एयरपोर्ट का लिंकअप जानने में मदद मिलेगी।

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