जयपुर शहर के उत्तर में 11 किमी की दूरी पर अरावली की पहाड़ियों से तीन ओर से घिरा एक खूबसूरत उपनगर है आमेर। ऐतिहासिक स्थल आमेर छोटा लेकिन अनेक प्राचीन महलों, मंदिरों, बागों-जलाशयों-बावड़ियों और हवेलियों से घिरा उपनगर है। इसके 4 वर्ग किमी के दायरे में ही 18 प्राचीन धार्मिक स्थल हैं। अगर आमेर के इतिहास के पन्ने पलटें तो 1727 में बसा नया शहर जयपुर आमेर के सामने नवजात शिशु नजर आता है।
ऐतिहासिक तथ्यों से जानकारी मिलती है कि आमेर प्रदेश में कछवाहा वंश के राजाओं से पहले मीणा राजाओं का शासन था। आमेर को मीणा राजा आसन सिंह ने बसाया था। बाद में 11 वीं सदी में कछवाहा राजाओं ने मीणा शासकों की हकूमत का अंत कर वर्ष 1037 में अपना शासन स्थापित किया। हजार वर्ष से ज्यादा प्राचीन इस ऐतिहासिक नगर के किले, महल, मंदिर, हवेलियां, जलाशय और भवन अपनी शुद्ध हिन्दू राजपूत स्थापत्य शैली से विश्वभर में पर्यटकों और इतिहासकारों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आमेर के नाम पर इतिहासकारों में एकमत नहीं है। एक मत के अनुसार आमेर के मीणा शासक देवी अम्बा के भक्त थे, इसी कारण उन्होंने यह नगर का नाम अम्बेर के नाम से बसाया। कुछ विद्वान आमेर को अम्बकेश्वर महादेव के नाम पर भी बसा होना मानते हैं। इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के अनुसार जयपुर के कछवाहा शासक स्वयं को भगवान राम के छोटे पुत्र कुश के वंशज मानते हैं। राजा कुश के एक वंशज थे राजकुमार अंबरीश, जो अयोध्या के उत्तराधिकारी थे। कहा जाताहै कि अम्बरीश भक्त और दानी थे। अम्बरीश ने भक्ति के लिए अरावली की पहाड़ियों में बसे इस भाग को चुना और उन्हीं के नाम पर कालान्तर में इस क्षेत्र का नाम आम्बेर और फिर आमेर पड़ा। मीणा शासकों को पराजित कर कछवाहा शासकों ने आमेर पर 1037 से 1727 तक शासन किया। बाद में जलसंकट एवं बढती जनसंख्या के कारण राजधानी आमेर से जयपुर स्थानांतरित कर दी गई।
आमेर रियासत के जयपुर स्थानांतरित हो जाने के बाद यहां की अधिकतर आबादी नए शहर में जाकर बस गई लेकिन कुछ परिवार यहीं रह गए और आमेर बसा रहा। लेकिन फिर भी आमेर के ज्यादातर हवेलियां, भवन और मंदिर खण्डहर हालत में देखे जा सकते है। पर्यटन का से व्यावसायिक लाभ के ज्यादातर हवेलियों में निजी रिसोर्ट म्यूजियम या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुल गए हैं।
आमेर महल- विशाल, भव्य, अद्भुद
आमेर में पर्यटन का मुख्य केंद्र आमेर का किला और जयगढ़ है। आमेर कस्बे के दक्षिणी पश्चिमी पहाड़ी पर बने इस विशाल दुर्ग के नीचे कृत्रिम झील मावठा और केसर क्यारी बाग है। ऊपर महल में जाने के लिए दो रास्ते हैं, एक रास्ता महल के पूर्वी भाग में है जो मावठे के पास से घुमावदार रास्ते से महल के मुख्य द्वार सूरजपोल तक जाता है, दूसरा रास्ता महल के पश्चिम की ओर से है जो आमेर की गलियों से होता हुआ महल के जलेब चौक तक पहुंचता है। आमेर महल अपनी विशालता, भव्यता और सुंदरता के कारण दुनिया के गिने-चुने दुर्गों में से एक माना जाता है।
आमेर महल का इतिहास
आमेर महल का निर्माण महाराजा सवाई मानसिंह ने वर्ष 1592 में आरंभ कराया था। कई चरणों में कई पीढ़ियों ने कराया था। कहा जाता है कि कुछ निर्माण मीणा शासकों ने कराए थे। लेकिन आमेर महल का जयादातर हिस्सा राजा मानसिंह ने बनावाया था। राजा मानसिंह अकबर के सेनाधिपति थे और उनके बाद राजा जयसिंह प्रथम ने आमेर महल के अन्य हिस्सों का निर्माण कराया। आमेर महल के साथ सटी चील पहाड़ी पर बने महल जयगढ का निर्माण युद्ध में विजय के उपलक्ष में कराया गया था। यह महल 1726 में बनकर तैयार हुआ। लेकिन 1727 में नए शहर जयपुर का निर्माण आरंभ होने के कारण जयगढ शाही रौनक से आबाद नही हो सका। उल्लेखनीय है कि राजा जयसिंह द्वितीय ने नया शहर जयपुर बसाया था।
आमेर महल तीन स्तारों पर बना भव्य दुर्ग है। महल में निर्मित भवनों, प्रासादों के आधार पर इसे पांच मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है। इनमें दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, राजा का महल, रानियों के महल और पूजा स्थल शामिल है।
महल का मुख्य भाग पूर्व की ओर झांकता हुआ है जिसके तल में मावठा झील और केसर क्यारी है। महल के इस मुख्य द्वार को सूरज पोल कहा जाता है। इस भव्य द्वार से भीतर प्रवेश करने पर एक बड़ा खुला चौक है, जिसके पश्चिमी भाग पर एक बड़े द्वार से नीचे आमेर कस्बे तक पहुंचने का दूसरा मार्ग है। इस चौक को जलेब चौक कहा जाता है। महल की सुरक्षा के लिए यहां सैनिक टुकडि़यां तैनात होती थी। जिनकी कठिन व्यूह-रचना जलेबी के आकार की हुआ करती थी। जलेबी जैसा सुरक्षा तंत्र होने के कारण इस चौक को जलेब चौक के नाम से जाता था। जलेब चौक के दक्षिणी भाग में कुछ सीढियां महल के दूसरे स्तर पर ले जाती हैं जहां दीवान-ए-आम सभा तक पहुचा जा सकता है। इसी स्तर के एक ओर शिला माता का प्राचीन मंदिर भी है। दीवान-ए-आम खंभो और छत से ढका एक खुला सभागार है। यहां राजा जन-दरबार लगाते थे। आमजन की पहुंच में होने के कारण इसे दीवान-ए-आम कहा जाता था। दीवान-ए-आम के भीतरी खंभे संगमरमर और बाहरी लाल पत्थर से बने हुए हैं। इसके पूर्वी छोर पर गलियारानुमा बरामदा है जिसकी खिड़कियों से झांकने पर आमेर का नजारा, मावठा और केसर क्यारी नजर आती है।
दीवान-ए-आम एक बड़े खुले चौक में स्थित है जहां अक्सर कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन किया करते थे। इस चौक के एक ओर राजपरिवार के सदस्य और दूसरी ओर आम जनता बैठती थी। जबकि चौक की तरफ झांकती दूसरी मंजिल पर जालीनुमा गलियारे हैं जो रनिवासों से जुडे होते थे। यहां से महल की महिलाएं कार्यक्रम देख सकती थी। इन झरोखों में छोटी छोटी खिडकियों को आकाश पाताली कहा जाता है। इनकी विशेषता यह थी कि इनमें से रानियां नीचे चल रहे कार्यक्रम देख सकती थी लेकिन नीचे से कोई भी रानियों का चेहरा नहीं देख सकता था। पुराने बने घरों में आज भी आकाश पाताली खिड़कियां देखने को मिल जाती हैं। चौक के परिसर में भी एक भव्य द्वार है जिसे गणेश पोल कहा जाता है यह द्वार दीवान-ए-खास में जाने का रास्ता है। दीवान-ए-खास वह जगह होती थी जहां राजा अपने खास मंत्रियों, दूतों और गुप्तचरों के साथ मंत्रणा करते थे। दीवान-ए-खास के साथ ही राजा के महल हैं जिनका एक भाग शीश महल के नाम से विश्वविख्यात है।
आमेर महल- शीश महल की खूबसूरती
चालीस भव्य और कलात्मक खम्भों पर टिके शीशमहल में शीशे के टुकडों का दीवारों, अहातों और छतों पर उकेरे गए बेल-बूटों में खूबसूरती जड़ाई कर इस्तेमाल किया गया है। इस खूबसूरत शीश महल में रात्रि के समय माचिस की एक तीली भी जलाने पर दीपावली जैसी जगमग हो जाती हैं। शीश महल का यह हिस्सा सर्दियों के मौसम में राजा के निवास का स्थान होता था। शीश महल के ही पश्चिमी भाग में गर्मियों के मौसम राजा के निवास के लिए विशेष वातानुकूलित महल की भी व्यवस्था थी। वातानुकूलन के लिए प्राकृतिक रूप से जिस विधि का इस्तेमाल किया गया वह उस समय की वैज्ञानिक सोच व निर्माण की उन्नत कला का नमूना है। महल की छत पर पानी का टांका बनाकार उसमें गुलाबजल भरा जाता था। यहां से बड़ी खिडकियों में से हवा के बहाव को महल के अंदर छोटी खिड़कियों तक पहुंचाया जाता था। इन खिड़कियों से ठण्डी सुगंधित हवा महल में पहुंचकर एयरकंडीशन करने का कार्य करती थी। इस महल के सामने मुगल शैली में बना छोटा बगीचा भी है, जिसमें वातानुकूलन के बाद बचा हुआ पानी सिंचाई के लिए काम में लिया जाता था।
शीश महल की छत पर छोटा लेकिन भव्य प्रासाद बना हुआ है जिसमें राजा रानियों के लिए विशेष मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। इस महल को भी ठंडा रखने के लिए वातानुकूलन की शैली अपनाई जाती थी। इस महल के दक्षिण में रानियों के महल हैं। उल्लेखनीय है कि राजा मानसिंह के 12 रानियां थीं। इसीलिए राजा ने यहां एक चौक की चारों दिशाओं में तीन-तीन महल बनवाए, इस तरह चौक के चारों ओर बारह महलों का निर्माण किया गया। इन महलों के पीछे एक गलियारा है। राजा इसी गलियारे में से किसी भी कक्ष में प्रवेश कर सकता था। रानियों का एक दूसरे के कक्ष में जाना वर्जित था। इन महलो के मध्य में चौक के बीच एक बारहदरी है जहां रानियां आपस में मिल सकती थी। इन्हीं महलों के उत्तर में शाही रसोईघर और हमाम बने हुए हैं।
आमेर महल- शिला माता का मंदिर
आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर बना हुआ है। चौक से कुछ सीढियां महल के दूसरे स्तर पर बने मंदिर के अहाते में पहुंचाती हैं। शिला माता राजपरिवार की कुल देवी मानी जाती हैं। शिला देवी अम्बा का ही एक रूप है लेकिन एक शिला पर उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला माता कहा जाता है। कहा जाता है कि यह प्रतिमा बंगाल में जैसोर के राजा ने जयपुर के महाराजा मानसिंह को उनसे युद्ध में पराजित होने के बाद भेंट की थी। मूर्ति का चेहरा टेढा है, इसके पीछे भी कुछ किंवदंतियां हैं जिनके अनुसार मूर्ति के समक्ष नरबलि दी जाती थी। एक दिन राजा जब दर्शन करने मंदिर गए तो मूर्ति का चेहरा टेढा देखकर नरबलि बंद कराने का ऐलान कर दिया। इसी मंदिर में 1972 तक पशुओं की भी बलि दी जाती थी लेकिन बाद में जैन धर्मावलंबियों के विरोध के बाद इसे बंद कर दिया गया।
आमेर महल- हाथी सवारी का लुत्फ-
आमेर महल के विजिट में सबसे आकर्षक यात्रा होती है हाथी की सवारी। पर्यटन के क्षेत्र में हाथी की सवारी का विशेष महत्व है। सजे-धजे हाथियों पर बंधे डोलों पर बैठकर मंथर चाल से आमेर महल और नगर के नजारों का आनंद लेते हुए महल के मुख्य द्वार सूरज पोल पर पहुंचना अपने आप में खास अनुभव होता है। हाथी की सवारी के अलावा महल के पीछे से बने रास्ते पर जीपें भी चलती हैं जो कस्बे के चौक से लगती हैं और सागर के रास्ते से महल के पश्चिमी द्वार तक पहुंचती हैं। महल में ज्यादातर पर्यटक मावठे और केसर क्यारी बाग के बीच बने पैदल रास्ते से आमेर महल पहुंचते हैं। आमेर महल होली के अवसर पर बंद रहता है। इसके अलावा वर्ष भर यह सुबह 9.30 से शाम 4.30 तक पर्यटकों के लिए खुला होता है।
आशीष मिश्रा
09928651043
पिंकसिटी डॉट कॉम
Add Comment