जयपुर में विभिन्न धर्मों, समुदायों और जातियों का निवास है। जयपुर शहर को छोटे भारत के रूप में देखा जा सकता है। यहां रामगंज, ईदगाह और जालूपुरा इलाकों में मुस्लिम, राजापार्क, आदर्शनगर और कंवरपुरा में सिंधी और पंजाबी समुदाय, मालवीयनगर, सूर्यनगर और कीर्तिनगर में जैन समुदाय का बाहुल्ह है। लेकिन जब बात आती है उत्सव की तो यहां सारे समुदायों का एक रंग हो जाता है-भाईचारे, प्रेम और सहिष्णुता का रंग।
जयपुर में चेटीचंड
जयपुर में होली, दीवाली, बैसाखी, ईद, बड़ा दिन और चेटीचंड सभी उत्सव जयपुरवासी मिलकर धूमधाम से मनाते हैं। यही कारण है इस शांतिप्रिय शहर में अनेकता में भी एकता के दर्शन किए जाते हैं। हमारे लिये यह गर्व की बात है कि यहां सभी त्योंहारों को बड़े प्रेम और भाईचारे से मनाया जाता है।
सिंधी समाज और अमरापुर धाम
जयपुर में सिंधी समुदाय बड़ी संख्या में मौजूद है। अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर सिंधी समाज ने शासन, प्रशासन, कला और उद्योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण और अहम स्थान हासिल किए हैं। जयपुर के मालवीयनगर, आदर्शनगर, राजापार्क, कंवरनगर, ब्रह्पुरी इलाकों में सिंधी समुदाय का दबदबा है। जयपुर के केंद्रीय स्थल गवर्नमेंट हॉस्टल पर सिंधी समुदाय का सबसे बड़ा पूजनीय स्थल है अमरापुर धाम।
जल के देवता हैं भगवान झूलेलाल
सिंधी समुदाय की ओर से यह त्योंहार ’चेटीचंड’ देश भर में भगवान झूलेलाल के जन्म पर्व के रूप में हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है। चेटीचंड से जुड़ी कई किंवदंतियां भी कही जाती हैं। सिंधी समाज हमेशा से ही व्यापारिक वर्ग रहा है। व्यापार के लिए जब सिंधी लोग समुद्र से गुजरते थे तो उन्हें कई तरह की विपदाओं जैसे समुद्री तूफान, बवंडर, ज्वार भाटा, जलीय जीवों का आक्रमण, अंधकार, भटकाव, समुद्री शैलें और समुद्री डाकू आदि का समाना करना पड़ता था। समुद्री डाकू व्यापारियों के बेड़ों को घेर लिया करते थे और धावा बोलकर उनका सारा माल लूट लिया करते थे। भय के इस माहौल से बचने के लिए और सभी विपदाओं से अपने परिजनों की रक्षा के लिए सिंधी समाज की महिलाएं पुरुषों के यात्रा करने से पूर्व वरुण देवता की पूजा किया करती और मन्नतें मांगा करती थी। उल्लेखनीय है कि भगवान झूलेलाल जल देवता के रूप में भी पूजे जाते हैं इसलिए ये सिंधी समाज के आराध्य बन गए। विदेशों में व्यापार कार्य में सफल रहकर जब पुरुष सकुशल अपने घर लौट आता था तो भगवान झूलेलाल का धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए चेटीचंड उत्सव मनाया जाता था। इसी खुशी में मांगी गई मन्नतें पूरी की जाती थी और भंडारे का आयोजन किया जाता था।
बंटवारे के बाद बंटा समाज
सिंधी समाज के लोग भारत के पश्चिमोत्तर और सिंधी प्रान्त में बहुतायत से रहते थे। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो सिंधियों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा और यह समुदाय देश के अलग अलग हिस्सों में बंट गया। ज्यादातर सिंधी समाज के लोग दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के समृद्ध इलाकों में जा बसे। धीरे धीरे पुन: व्यापार को संगठित किया और आज महत्वपूर्ण पदों और उद्योगों में स्थापित हो गए। सिंधी समुदाय को आजादी के बाद भारत में संगठित करने का सघन प्रयास किया प्रोफेसर राम पंजवानी ने। उन्होंने 1952 में जहां जहां सिंधी समाज के लोग रह रहे थे वहां छोटे छोटे संगठन बनाकर सिंधियों को एकजुट किया। उन्हीं के प्रयासों को फल है कि भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव आज इतने धूमधाम से मनाया जाता है।
भगवान झूलेलाल की महिमा
चेटीचंड पर्व भगवान झूलेलाल की महिमा का गुणाख्यान करने के लिए मनाया जाता है। आज भी सम्रुद तटों पर रहने वाले लोग ’जल के देवता’ भगवान झूलेलाल को ही मानतें हैं। इन्हें अमरलाल और उडेरोलाल के नाम से भी जाना जाता है। भगवान झूलेलाल ने धर्म की रक्षार्थ अनेक साहसिक कार्य किए हैं जिसके लिए इनकी मान्यता को इतनी ऊंचाई मिली है। भगवान झूलेलाल का आव्हान कुछ मंत्रों से किया जाता है। इन मंत्रों को ’लाल साईं जा पंजिड़ा’ कहा जाता है। वर्ष में एक बार लगातार 40 दिनों तक इन मंत्रों से भगवान झूलेलाल की अर्चना की जाती है जिसे ’लाल साईजो चाली हो’ कहा जाता है। भगवान झूलेलाल को ज्योतिस्वरूप माना जाता है इसलिए झूलेलाल मंदिरों में अखंड ज्योति जलती है, सदियों से यह परंपरा चली आ रही है। ज्योत को जलाए रखने की जिम्मेदारी पुजारी की होती है। चेटी चंड के अवसर पर संपूर्ण सिंधी समुदाय आस्था और भक्ति की रसधार में डूब जाता है।
वर्तमान में ’सिंधीयत डे’ के रूप में मान्यता
वर्तमान में चेटीचंड का पर्व ’सिंधीयत डे’ के रूप में मनाया जाता है। अखिल भारतीय सिंधी बोली और साहित्य ने इसे इस रूप में घोषित किया है। सिंधी परिवारों में जब भगवान झूलेलाल की पूजा की जाती है तो एक नारे की गूंज प्राय: सुनाई देती है- ’आयोलाल झूलेलाल, बेड़ा ही पार’ अर्थात भगवान झूलेलाल का जयघोष करने से बेड़ा पार हो जाता है। तात्पर्य यह है कि उस दौर में जब सिंधी समुदाय के लोग बेड़ों यानि कि पानी के जहाज से व्यापार के लिए विदेश यात्राएं करते थे तब भगवान झूलेलाल से उनके बेड़े की रक्षा करने और सही सलामत पार लगाने की मिन्नतें की जाती थी। आज जीवन के समुद्र में कई संकट हैं, परिवार के बेड़े को भी सही सलामत इस जिंदगी की कठिनाईयों से बचाए रखने और पार लगाने की मन्नतें आज भी भगवान झूलेलाल से की जाती हैं। यह सोचकर कि जल के देवता भगवान झूलेलाल की आराधना से वे सारी मुश्किलों से पार पा जाएंगे।
मालवीयनगर में छेज नृत्य –
चेटीचंड सिंधी मेला समिति की ओर से मालवीयनगर के सेक्टर 9 स्थित अमित भारद्वाज पार्क में 8 अप्रैल को छेज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में जयपुर शहर की 25 से अधिक टीमों ने उत्साह से छेज नृत्य में भाग लिया। महिलाओं ने इस अवसर पर ’मुहिंजो खटी आयो खैर सां होजमालो’ की पारंपरिक धुनों पर नृत्य किया। प्रतिभागियों ने इस मौके पर सिंधी पोशाक टोपी, अजरख आदि पहन कर भाग लिया।
रथयात्रा 9 अप्रैल को –
जयपुर में मानसरोवर के अग्रवाल फार्म श्रीझूलेलाल शीश महल मंदिर से मंगलवार को दोपहर 3 बजे रथयात्रा आरंभ होगी। रथयात्रा मानसरोवर के वरुण पथ पर श्रीझूलेलाल मंदिर आकर सम्पन्न होगी।
भगवान झूलेलाल की रथयात्रा
जयपुर में चेटीचंड पखवाड़े के अंतर्गत भगवान झूलेलाल मनोकामना पूर्ण रथयात्रा मंगलवार 9 अप्रैल को अग्रवाल फार्म स्थित झूलेलाल शीशमहल मंदिर से निकाली गई। यात्रा में विशाल रथ को श्रद्धालुओं ने अपने हाथों से खींचा। बच्चों, महिलाओं और युवाओं ने इस यात्रा में उत्साह से भाग लिया। भगवान झूलेलाल की आरती कर रथयात्रा को रवाना किया गया। रथयात्रा में हाथी, घोड़े, ऊंटों का लवाजमा चल रहा था। वहीं बैंडबाजे की स्वर लहरियों के बीच वातावरण में ’आयोलाल झूलेलाल’ के स्वर गुंजायमान होते रहे। मार्ग में जगह जगह रथयात्रा का स्वागत किया गया। रथयात्रा मानसरोवर के वरुण पथ स्थित झूलेलाल मंदिर में पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित हुई।
’कौन बनेगा सिंधु सितारा’
जयपुर में चेटीचंड के अवसर पर 10 अप्रैल की तारीख को सिंधी भाषा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस अवसर पर पिंकसिटी प्रेस क्लब में शाम 6 बजे ’केर ठहन्दा सिंधु सितारा’ प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। जिसमें लेखक व चिंतक गोबिंद राम माया सिंधु सभ्यता और संस्कृति से संबंधित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का संचालन करेंगे।
जयपुर में चेटीचंड की शोभायात्रा
जयपुर शहर में चेटीचंड मेला समिति की ओर से गुरूवार को शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में सफेद कुर्ता पायजामा में सजे धजे भक्त, वातावरण में ’आयोलाल झूलेलाल’ के उद्घोष, भगवान झूलेलाल के जीवन चरित्र को साकार करती झांकियों, बैंड की स्वर लहरियों के बीच चौगान स्टेडियम से भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा आरंभ तो सिंधु संस्कृति साकार हो उठी।
शोभायात्रा में 17 फीट लंबी मछली पर सवार भगवान झूलेलाल की प्रमुख झांकी आकर्षण का केंद्र रही। वहीं झूलेलाल एक्सप्रेस चलाने की मांग को दर्शाती रेलगाडी की झांकी, कन्या भ्रूण हत्या रोकने का संदेश देती झांकी लोगों को आकर्षक लगी। इसके अलावा भगत कंवर राम, टेंऊराम, भगवान झूलेलाल और सिंधु घाटी सभ्यता का प्रतीक मोहन जोदडो की झांकी विशेष रही। इस दौरान शोभायात्रा के मार्गों पर व्यापार मंडलों ने सुखो सेसा वितरित किया। चौगान स्टेडियम से आरंभ होकर शोभायात्रा गणगौरी बाजार, छोटी चौपड़, चांदपोल बाजार, खजाने वालों का रास्ता, जौहरी बाजार, बड़ी चौपड होती हुई कंवर नगर स्थित झूलेलाल मंदिर पहुंचकर सम्पन्न हुई।