जयपुर के रामनिवास बाग के बीचों बीच स्थित म्यूजियम अल्बर्ट हॉल के उत्तरी प्रमुख हॉल में रखे ईरानी कालीन को ध्यान से देखिए। इस बेहद दुर्लभ कालीन में बाग बगीचों की चित्रावलियां उकेरी गई हैं। खास बात यह है कि ये डिजाइन बिल्कुल जयपुर के परकोटा शहर के नक्शे से मेल खाती हैं। इन कालीनों पर दरअसल नक्शे ही बनाए गए हैं। इन दुर्लभ कालीनों में छुपी रूपरेखाओं में एक पूरा शहर समाया हुआ है। इन कालीनों पर खूबसूरती से बने उद्यानों में आप अपने सपनों का जयपुर देख सकते हैं।
आइये, कल्पना करें। हमारा यह खूबसूरत शहर और भी खूबसूरत कैसे हो सकता है। क्या आज का जयपुर कल और खूबसूरत हो जाएगा। या फिर ये शहर भीड़ और वाहनों के निर्मम प्रहारों से टूटकर अपना वजूद खो देगा। ईरानी कालीन के चित्र कुछ प्रेरणा दे रहे हैं, वे शायद ऐसा जयपुर चाहते हैं-
परकोटे के दरवाजे होते बंद
जयपुर नौ खंडों में बसाया गया था। इस शहर की सुरक्षा के लिए चारों ओर प्राचीर बनाई गई थी और सात विशाल दरवाजे बनाए गए थे। ये दरवाजे रात को निश्चित समय पर बंद हो जाते थे और सुबह समय से ही खुलते थे। भारी वाहनों के लिए आज भी अगर इन दरवाजों को बंद कर दिया जाए तो शहर से काफी अतिरिक्त दबाव कम हो जाएगा। इससे शहर के परकोटा क्षेत्र में शांति और सुकून होगा। लोग सपरिवार घरों से निकल सकेंगे। चौपड़ों पर बैठेंगे बाजारों का आनंद लेंगे।
रामगंज से चांदपोल तक की सड़क होती जलाशय
जयपुर परकोटा को बीच से विभाजित करने वाले मुख्य मार्ग चांदपोल से सूरजपोल तक की सड़क एक जलाशय के रूप में होती। जिसमें साफ पानी भरा होता। उसमें जगह जगह फव्वारे होते। किनारों पर पौधे और वृक्ष लगे होते। नहर नुमा इस जलाशय के दोनो ओर पैदल चलने के लिए रास्ते होते। इसके बाद बरामदे। गलियां के चौराहों पर नजर पर पुल होता। इस पुल से राहगीर दूसरी ओर जा पाते। जलाशयों में जलीय पौधे और जीव होते। समय समय पर इस जलधारा की सफाई होती।
चौपड़ें होती मुख्य उद्यान
छोटी चौपड, बड़ी चौपड और रामगंज चौपड परकोटा शहर के प्रमुख उद्यान होते। इन उद्यानों में सघन वृक्षावली, फुलवारी, बगीचे, फव्वारे, बेंचें और खूबसूरत छतरियां होती। चौपड के विशाल भूभागों का पूरा उपयोग किया जाता। दुकानों और भवनों के पास एक प्लेटफार्म छोड़ा जाता। बीच के हिस्से में ये उद्यान होते जहां शहरवासी शाम को अच्छा वक्त बिता सकें।
जौहरी बाजार, चौड़ा रास्ता, किशनपोल होते खुल स्थल
जयपुर के प्रमुख बाजार जैसे जौहरी बाजार, चौड़ा रस्ता और किशनपोल बाजार खुले चौक की तरह होते जिनमें बुजुर्गो के बैठने के लिए बेंचें होती, वृक्ष होते। बच्चे यहां खेल सकते। शहरवासी सर्दियों में धूप सेक सकते और गर्मियों की शाम आकर मिलते, टहलते।
फिर चलते तांगे, बग्घी
खूबसूरत जयपुर की कल्पना तांगों और बग्घियों के बिना नहीं हो सकती। यहां बड़ी चौपड से आमेर तक, छोटी चौपड तक पुरानी बस्ती तक और घाटगेट, सांगानेरी गेट, न्यू गेट से तांगे और बग्घियां घरों तक पहुंचाने का काम करती। परकोटे में लोग ज्यादातर पैदल ही भ्रमण करते। परकोटा को चारों ओर से एक रिंगरोड जैसी चौड़ी सड़क घेरे रहती जिसपर यातायात के अन्य साधन होते।
वास्तव में कितनी खूबसूरत कल्पना है यह इस अनूठे जयपुर की। यदि ईरानी कालीनों के उद्यानों जैसा ही हमारा यह शहर होता तो इसकी खूबसूरती बहुत बढ़ जाती। लेकिन यह कल्पना साकार होना बहुत ही मुश्किल भी है। जयपुर पर लगातार आबादी का दबाव बढता जा रहा है। जयपुर की ऐतिहासिक इमारतें तोडकर नई इमारतें बनाई जा रही हैं। शहर की गुलाबी इमारतें वाहनों से निकला धुआं लगातार चाट रही हैं। सब कुछ व्यावसायिक हो गया है। ऐसे में भागते शहर को और ज्यादा गति देने के लिए मेट्रो आ पहुंची है। कुछ समय बाद सभी चौपड़ों के नीचे भूमिगत स्टेशन बन जाएंगे। जयपुर का कायाकल्प करते करते कहीं इसकी खूबसूरती को समूल नष्ट न कर दिया जाए।
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