जयपुर के सबसे खूबसूरत और लोकप्रिय स्थलों में से सिटी पैलेस मुख्य स्मारक है। इस महल का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। नगर का मुख्य राजप्रासाद होने के कारण सिटी पैलेस कहलाया। हालांकि जयपुर शहर शाही हवेलियों, भव्य प्रासादों और शानदार शिल्प में गढ़े कई स्मारकों से सजा शहर है लेकिन सिटी पैलेस इनमें अलग खड़ा नजर आता है। सिटी पैलेस संगमरमर के बारीक काम, शाही साज सज्जा, दीवारों पर लाजवाब पेंटिंग्स और चित्रकारी तथा शिल्प के बेमिसाल नमूनों के कारण जाना जाता है।
राजपूत, मुगल और यूरोपियन शैली में बने इस शानदार महल का डिजाईन अंग्रेज वास्तुविज्ञ कर्नल जैकब ने तैयार किया था।
सिटी पैलेस में प्रवेश करने के लिए दो मार्ग हैं। एक जलेब चौक से दूसरा त्रिपोलिया गेट की ओर से। जब आप त्रिपोलिया गेट के पास आतिश दरवाजे से चांदनी चौक होकर सिटी पैलेस में प्रवेश करेंगे तो मुबारक महल चौक पहुंचेंगे। मुबारक का अर्थ शुभ और स्वागत होता है। शाहीकाल में महल में आए हुए मेहमानों का यहां स्वागत किया जाता था। चौक के बीच स्थित मुबारक महल एक तरह से रिसेप्शन स्थल था। वर्तमान में मुबारक महल सवाई मान सिंह संग्रहालय का एक हिस्सा है। यहां राजपरिवार के सदस्यों के वस्त्रों की प्रदर्शनी लगाई गई है। साथ ही राजा मानसिंह की पोलो की ड्रेस भी प्रदर्शित की गई है। मुबारक महल के पास महारानियों के महल में सिलहखाना भी बनाया गया है। सिलहखाना में शाही हथियारों का संग्रह किया गया है। इनमें देश विदेश के खूबसूरत और विभिन्न प्रकार के बेशकीमती हथियार प्रदर्शित किए गए है।
मुबारक महल से पीतलद्वार होकर सर्वतोभद्र में प्रवेश किया जा सकता है। सर्वतोभद्र वह स्थल है जहां महाराजा विशिष्ट जनों से मिला करते थे। इस स्थल का दीवाने खास भी कहा जाता है। दीवाने खास में रखे चांदी के दो बड़े खूबसूरत घड़े कौतुहल का विषय है। महाराजा सवाई माधोसिंह इनमें गंगाजल लेकर इंग्लैण्ड की यात्रा पर गए थे। वे पीने और पूजा-पाठ में गंगाजल का ही प्रयोग करते थे।
दीवाने खास चौक से एक दरवाजा दीवाने आम की ओर जाता है। यह भव्य खूबसूरत दरबार आमजन के लिए था। यहां दरबार में रखा तख्ते रावल जनसुनवाई के दौरान राजा के बैठने का सिंहासन होता था। दरबार को कालीनों, पेंटिंग्स और विभिन्न कलाओं से खूबसूरत बनाया गया है।
City Palace
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p style=”text-align:justify;”>सिटी पैलेस का केंद्र है चंद्रमहल। यही महल जयपुर के महाराजाओं का मुख्यवास था। आज भी यहां राजपरिवार के सदस्य निवास करते हैं। लेकिन आमजन के लिए इस महल में जाने की अनुभूति नहीं है। चंद्रमहल मुकुट के आकार का बना सात मंजिला महल है जिसमें हर फ्लोर को उसकी खूबी के अनुसार अलग नाम दिया गया है। जैसे-सुख निवास, छवि निवास, शोभा निवास, श्रीनिवास आदि।
सिटी पैलेस में गाईड के अलावा ऑडियो गाईड की व्यवस्था भी है इससे महल के बारे में सूक्ष्म जानकारियों रोचकता से प्रस्तुत की जाती है।
सिटी पैलेस को खूबसूरत बनाने के लिए राजशाही के दौरान ही यहां महल में हस्तकारीगरों, हस्तशिल्पकारों और कलाकारों को संरक्षण दिया गया था। आज भी यह परंपरा यहां दिखाई देती है। यहां महल में हस्तकलाओं से जुड़े लोगों द्वारा निर्मित सामान की दुकानें हैं और एक हॉल भी जहां कलाकारों के बुने वस्त्र व अन्य सामान प्रदर्शित भी हैं और उन्हें खरीदा भी जा सकता है।
आशीष मिश्रा
पिंकसिटी डॉट कॉम
बोनजूर इण्डिया-फेस्टीवल ऑफ फ्रान्स का आयोजन
जयपुर शहर के सिटी पैलेस में मंगलवार 19 मार्च को फेस्टीवल ऑफ फ्रांस का आयोजन किया गया। सिटी पैलेस के प्रीतम चौक में इस मनोहक कार्यक्रम की छटा बिखरी। ’बोनजूर इण्डिया-फेस्टीवल ऑफ फ्रान्स’ के नाम से हुए इस आयोजन में राजपरिवार के सदस्यों के अलावा कई गणमान्य हस्तियों ने शिरकत की। कार्यक्रम का आयोजन जयपुर के आलियांस फ्रेन्काईस और सिटी पैलेस की ओर से मंगलवार शाम को म्यूजिकल ग्रुप – आमरिल्लिस द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इस संगीतमय कार्यक्रम में वसैर्ल्स के दरबार में खुशी और गम की कहानी को पेश किया गया। सभी दर्शक कलाकारों की प्रस्तुती से मंत्रमुग्ध होकर कभी प्रसन्न और उदास हो रहे थे। कार्यक्रम में संगीतकारों – मैल्यस डे विल्लौत्रेय्स (सोप्रनो), हेलोइसे गैललार्ड (रिकॉर्डर), ऐलिस पिएरोट (वायलिन), विओलैने कोचार्ड (हर्पिसीकोर्ड) तथा ऐनाबेले लुइस ने अपने अपने वाद्य यंत्रों द्वारा मनमोहक प्रस्तुती दी। इस संगीत कार्यक्रम का विशेष आर्कशण हर्पिसकोर्ड वाद्ययंत्र था, जो कि भारत में दुर्लभ है। इस संगीत वाद्य का आविष्कार मध्य युग में किया गया था। इसे एक कुंजीपटल के माध्यम से बजाया जाता है और जब एक कुंजी दबायी जाती है जो एक स्ट्रिंग ध्वनि पैदा करती है। 18 वीं सदी के अन्त में धीरे धीरे पिआनो की संख्या बढने के साथ यह वाद्य लुप्त हो गया।
अमरिल्लिएस, संगीत कलाकारों की एक मंडली है तथा वर्तमान में यूरोप के सबसे अच्छे लोकबैंडों में से में से एक है। इसकी स्थापना वर्ष 1994 में कला निर्देशक, हेलोइसे गैललार्ड और विओलैने कोचार्ड के नेतृत्व हुई थी। जल्द ही अमरिल्लिएस ने अपनी ध्वनिक अन्वेषण और अपने उच्च वाद्य तकनीक से दर्शकों और श्रोताओं के दिलों में स्थान बना लिया। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त, अमरिल्लिएस द्वारा फ्रांस, इंग्लैंड, हॉलैंड, स्पेन, जर्मनी, लैटिन अमेरिका, कनाडा, आदि देशों में इस कार्यक्रम का प्रदर्शन किया जाता रहा है।
बरॉक संगीत
बरॉक पाश्चात्य संगीत की एक शैली है जो सन् 1600 से 1750 के बीच की अवधि में व्यापक रूप से गाई तथा सुनी जाती था। वर्तमान में यह वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक का हिस्सा है। बरॉक संगीत सुरीला और बहुत ही संगठित है।
संगीत कार्यक्रम में जयपुर राजपरिवार की सदस्या दीया कुमारी के अलावा मेहमानों में वंदना नादगर, मैक्स क्लाउज, आशा पांडे, एंगेस और अलीना मौजूद थे।