जयपुर को छोटी काशी के रूप में भी जाना जाता है। इसका कारण इस शहर के लोगों की आस्था है। यह आस्था यहां की संस्कृति का प्रमुख सरोकार है। जयपुर के शासक भी अपनी आस्था के कारण जाने जाते हैं। आमेर किले में शिला माता को आज भी राजपरिवार कुल देवी के रूप में पूजता है। वहीं मोती डूंगरी स्थित किले में शिव मंदिर भी शाही परिवार की आस्था को प्रकट करता है। चंद्रमहल के ठीक सामने गोविंददेवजी मंदिर बनवाने के पीछे भी यही प्रगाढ़ आस्था था। इसी आस्था के चलते जयपुर में इतने मंदिरों का निर्माण हुआ कि जयपुर को आज मंदिरों के शहर के रूप में भी जाना जाता है।
मोती डूंगरी गणेशजी मंदिर :
जयपुर शहर के परकोटा इलाके से बाहर जेएलएन मार्ग पर मोती डूंगरी पर के निचले भाग में गणेश का प्राचीन मंदिर है। गणेशमंदिर के ही दक्षिण में एक टीले पर लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर है जिसे बिरला मंदिर के नाम से जाना जाता है। हर बुधवार को यहां मोती डूंगरी गणेश का मेला भरता है और जेएलमार्ग पर दूर तक वाहनों की कतारें लग जाती हैं। मोती डूंगरी गणेश जी के प्रति भी यहां के लोगों में श्रद्धा है। जेएलमार्ग से एमडी रोड पर स्थित यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। दूसरे प्रस्तर पर निर्मित मंदिर भवन साधारण नागर शैली में बना है। मंदिर के सामने कुछ सीढियां और तीन द्वार हैं। दो मंजिला भवन के बीच का जगमोहन ऊपर छत तक है तथा जगमोहन के चारों ओर दो मंजिला बरामदे हैं। मंदिर का पिछला भाग पुजारी कैलाश शर्मा के रहवास से जुड़ा है। मंदिर में हर बुधवार को नए वाहनों की पूजा कराने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है। माना जाता है कि नए वाहन की पूजा मोती डूंगरी गणेश मंदिर में की जाए तो वाहन शुभ होता है। लोगों की ऐसी ही आस्था जयपुर की पहचान बन चुकी है। यहां दाहिनी सूंड वाले गणेशजी की विशाल प्रतिमा है जिसपर सिंदूर का चोला चढ़ाकर भव्य श्रंगार किया जाता है। मोती डूंगरी गणेश मंदिर के बाद भी अनेक मंदिर स्थित हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाख का आंकड़ा पार कर जाती है।
गोविंददेवजी मंदिर :
जयपुर शहर के परकोटा इलाके में सिटी पैलेस परिसर में गोविंददेवजी का मंदिर स्थित है। गोविंददेवजी जयपुर के आराध्य देव हैं। शहर के राजमहल सिटी पैलेस के उत्तर में स्थित गोविंद देवजी मंदिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। गोविंद देवजी राजपरिवार के भी दीवान अर्थात मुखिया स्वरूप हैं। जन्माष्टमी के अवसर पर यहां लाखों की संख्या में भक्त भगवान गोविंद के दर्शन करते हैं। गोविंददेवजी का मंदिर चंद्रमहल गार्डन से लेकर उत्तर में तालकटोरे तक विशाल परिसर में फैला हुआ है। इस मंदिर में अनेक देवी देवताओं के भी मंदिर हैं। साथ ही यहां हाल ही निर्मित सभाभवन को गिनीज बुक में भी स्थान मिला है। यह सबसे कम खंभों पर टिका सबसे बड़ा सभागार है। बड़ी चौपड़ से हवामहल रोड से सिरहड्योढी दरवाजे के अंदर स्थित जलेब चौक के उत्तरी दरवाजे से गोविंद देवजी मंदिर परिसर में प्रवेश होता है। इस दरवाजे से एक रास्ता कंवर नगर की ओर निकलता है। रास्ते के दांयी ओर गौडीय संप्रदाय के संत चैतन्य महाप्रभु का मंदिर है। बायें हाथ की ओर एक हनुमान, राम दरबार, शिवालय व माता के मंदिर के साथ एक मस्जिद भी है। बायें हाथ की ओर गोविंददेवजी मंदिर में प्रवेश करने के लिए विशाल दरवाजा है यहां मेटल डिक्टेटर स्थापित किए गए है। यहां से विशाल त्रिपोल गेट से मंदिर के मुख्य परिसर में जाने का रास्ता है। आगे चलने पर मंदिर कार्यालय ठिकाना गोविंददेवजी है। इसके साथ लगे कक्ष में गोविंद देवजी के प्रसिद्ध मोदक प्रसाद की सशुल्क व्यवस्था है। गोविंद देवजी को बाहरी वस्तुओं का भोग नहीं लगता। सिर्फ मंदिर में बने मोदकों का ही भोग लगता है। गोविंददेवजी के मंदिर का जगमोहन अपनी खूबसूरती के कारण प्रसिद्ध है। गोविंददेवजी के मंदिर में गौड़ीय संप्रदाय की पीढियों द्वारा ही सेवा पूजा की परंपरा रही है। वर्तमान में अंजनकुमार गोस्वामी मुख्य पुजारी हैं और उनके पुत्र मानस गोस्वामी भी सेवापूजा करते हैं। गोविंद देवजी के मंदिर से सात आरतियां होती है।
बिरला मंदिर :
मोती डूंगरी के पश्चिमी ढाल पर एक टीले पर स्थित भव्य लक्ष्मीनारायण मंदिर को बिरला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। बिरला परिवार की ओर से देशभर में लक्ष्मीनारायण मंदिरों के निर्माण की श्रंख्ला में यह मंदिर भी शामिल है। विशाल परिसर में बने इस संगमरमर के भव्य मंदिर की भवन निर्माण शैली अति विशिष्ट और मनमोहक है। परिसर की ऊंचाई नीचाई को निर्माण में खूबसूरती से प्रयोग किया गया है। दिन में जहां यह भव्य मंदिर श्वेत कमल की भांति खिला नजर आता है वहीं रात में रोशनी में नहाकर इसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। जेडीए सर्किल स्थित यह मंदिर जयपुर के प्रमुख भ्रमणीय स्थलों में से एक है। मंदिर में प्रवेश के दो रास्ते हैं। एक रास्ता मोती डूंगरी गणेशमंदिर की ओर से है। द्वार के दाहिनी ओर पार्किंग और सुविधाएं हैं। वहीं बायीं ओर हैण्डीक्राफ्ट की दुकानें हैं। यहां से बाग-बगीचों के बीच सीमेंट मार्ग से एक रास्ता मंदिर तक जाता है। मंदिर के मुख्य प्रवेश पर मेटलडिक्टेटर की सुरक्षा व्यवस्था है। मंदिर में भारी सामान ले जाने पर पाबंदी है। यह द्वार एक पुल की तरह है जिसके नीचे नाले में से बारसाती पानी का निकास होता है। मंदिर मुख्यरूप से दक्षिण शैली में बना है। मंदिर का शीर्षमुकुट भव्य है। पूरी तरह संगमरमर से निर्मित इस मंदिर में लक्ष्मीनारायण भी भव्य प्रतिमा मन मोह लेती है। गर्भग्रह के सामने बड़ा हॉल है। हॉल पर दीवारों पर बनी प्रतिमाएं और शीशे पर रंगीन कारीगरी मन मोह लेती है। वहीं मंदिर के बाहर परिक्रमा मार्ग और बाहरी परिसर भी खूबसूरत है। आगंतुक यहां बैठकर फोटो क्लिक करते हैं। मंदिर को भीतर से शूट करने की मनाही है। शाम के समय यहां विशेष भीड़ होती है। मंदिर के सामने चौपटी पर भी हर शाम खासी भीड़ दिखाई देती है।
p style=”text-align:justify;”>जयपुर में पहाडी की शिखा पर बने मंदिरों में सबसे मुख्य मंदिर गढ़ गणेश है। पूरे शहर से गढ गणेश मंदिर के दर्शन किये जा सकते हैं। छोटे दुर्ग की तर्ज पर बने इस मंदिर तक पहुंचने के लिए दो तरफा सीढी मार्ग ब्रहपुरी इलाके से है। गढ़ गणेश मंदिर की सीढियां गैटोर के पास से शुरू होती हैं। गढ गणेश के लिए रामगढ़ मोड से गैटोर तक पब्लिक ट्रांस्पोर्ट की व्यवस्था नहीं है। इसलिए यहां पहुंचने के लिए निजी वाहन या टैक्सी की जरूरत होती है। इस मार्ग में गैटोर के अलावा नहर के गणेशजी और राममंदिर आश्रम भी पड़ते हैं। गढ़ गणेश मंदिर तक प्राचीर के सहारे बनी सीढियों और मंदिर परिसर से जयपुर का विहंगम दृश्य मन मोह लेता है। वहीं शहर से भी मंदिर का नजारा देखा जा सकता है। विशेषकर रात के समय यह मंदिर खूबसूरत दिखाई देता है। मंदिर की दक्षिणी दीवार पर बना बड़ा स्वास्तिक चिन्ह आकर्षित करता है। मंदिर के निचले भाग में गार्डन भी विकसित किया गया है। यहां विशेष अवसरों पर गोठ आदि कार्यक्रम किए जाते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर यहां भव्य मेला भरता है।
शिला देवी :
शिला देवी जयपुर के कछवाहा वंशीय राजाओं की कुल देवी रही है। आमेर के महल में स्थित स्थित यह छोटा मंदिर शिला माता के लक्खी मेले के लिए प्रसिद्ध है। नवरात्र में यहां भक्तों के हुजूम के हुजूम दर्शन के लिए आता है। आमेर महल के जलेब चौक के दक्षिणी भाग में शिला माता का छोटा लेकिन ऐतिहासिक मंदिर है। शिला माता राजपरिवार की कुल देवी है। शिला माता का मंदिर जलेब चौक से दूसरे स्तर पर मौजूद है यहां से कुछ सीढिया मंदिर तक पहुंचती हैं। शिला देवी अम्बा माता का ही रूप हैं। कहा जाता है आमेर का नाम अम्बा माता के नाम पर ही आम्बेर पड़ा था। एक शिला पर माता की प्रतिमा उत्कीर्ण होने के कारण इसे शिला देवी कहा जाता है। यह प्रतिमा बंगाल में जैसोर के राजा ने जयपुर के महाराजा मानसिंह से पराजित होने के बाद उन्हें भेंट की थी। प्रतिमा का टेढ़ा चेहरा इसकी खासियत है। मंदिर में 1972 तक पशु बलि दी जाती थी लेकिन जैन धर्मावलंबियों के विरोध के चलते यह बंद कर दी गई।
गलता धाम :
शहर की पूर्वी अरावली पहाडियों में स्थित पवित्र तीर्थ गलता जयपुर की पहचान है। यह स्थान सात कुण्ड और अनेक मंदिरों के साथ प्राकृतिक खूबसूरती के लिए पहचाना जाता है। गलता तीर्थ ऋषि गालव की तपोस्थली थी। कहा जाता है कि यहां ऋषि गालव ने साठ हजार वर्षों तक तपस्या की थी। यहां एक प्राकृतिक जलधारा गौमुख से सूरज कुण्ड में गिरती है। इस पवित्र कुण्ड में स्नान करने के लिए दूर-दराज से लोग यहां आते है। अठारहवीं सदी में दीवान कृपाराम ने यहां अनेक निर्माण कराए और तीर्थस्थल पर अनेक मंदिरों कुंडों का निर्माण कराया। वर्तमान में यहां दो प्रमुख कुण्ड और हवेलीनुमा कई मंदिर आकर्षण का केंद्र हैं। मंदिर का एक रास्ता गलता गेट से है, यह लगभग दो किमी का पैदल रास्ता है। दूसरा मार्ग आगरा रोड से जामडोली होते हुए है, इस मार्ग पर वाहन से गलता पहुंचा जा सकता है। सावन और कार्तिक मास में यहां पवित्र कुण्डों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं।
शहर की पूर्वी अरावली पहाडियों में नेशनल हाईवे-8 से लगभग 5 किमी अंदर विशाल क्षेत्र में फैला भव्य दोमंजिला मंदिर खोले के हनुमान जी वर्तमान में जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। वर्ष 1960 में पंडित राधेलाल चौबे ने इस निर्जन स्थान में भगवान हनुमान की लेटी हुई विशाल प्रतिमा खोजी। यहां पहाडियों में एक खोला अर्थात बरसाती नाला बहता था। इसलिए इस स्थान का खोले के हनुमाजी नाम से जाना गया। वर्ष 1961 में पंडित राधेलाल ने नरवर आश्रम सेवा समिति बनाकर मंदिर का रखरखाव किया। वर्तमान में नेशनल हाईवे पर मंदिर का भव्य त्रिपोल है, यहां से डिवाईडर युक्त खूबसूरत मार्ग मंदिर तक जाता है जिसे जयपुर के परकोटा की तरह सजाया गया है। मंदिर के मुख्य द्वार के बाजार जयपुर परकोटा की तर्ज पर बाजार विकसित किया गया है। इसके अलावा मंदिर में कई मंजिला परिसर में श्रीराम मंदिर, गायत्री मंदिर, गणेश मंदिर, शिव मंदिर भी स्थित हैं। मंदिर का भवन निर्माण नई शैली में है और अब पहाडियों की गोद में बसा यह सुरम्य स्थल शहरवासियों के लिए श्रद्धा और पिकनिक का प्रमुख स्थल बन चुका है।
घाट के बालाजी :
जयपुर शहर से आगरा रोड पर लगभग 8 किमी की दूरी पर स्थित घाट के बालाजी का मंदिर गलता तीर्थ रास्ते में आता है। इसे जामडोली के बालाजी नाम से जाना जाता है। लगभग पांच सौ साल पुराने इस मंदिर की बनावट हवेलीनुमा है। मंदिर में हनुमानजी की विशाल मूर्ति है, इसके अलावा पंचगणेश और शिव-पंचायत के मंदिर भी इस मंदिर में स्थित हैं। चारों ओर हरी भरी पहाडियों से घिरे इस इलाके में सावन भादो के वर्षाकाल में सैंकड़ों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। यहां आस-पास गलता तीर्थ, श्रीराम आश्रम, चूलगिरी जैन तीर्थ और सिसोदिया रानी का बाग होने के कारण यह इलाका पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। मंदिर में समय-समय पर गोठ, सवामणि आदि कार्यक्रम होते रहते हैं। पौष के महिने में यहां लक्खी पौषबड़ा कार्यक्रम होता है, इसमें शहर के अलावा दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों से पदयात्राएं आती हैं। यह मंदिर गलता ट्रस्ट के अधीन है। भ्रमण की दृष्टि से भी यह उपयुक्त स्थान है।
जगत शिरोमणि मंदिर :
आमेर के प्रमुख प्राचीन मंदिरों में जगत शिरोमणि मंदिर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। यह मंदिर महाराजा मानसिंह प्रथम के पुत्र जगत सिंह की याद में बनवाया गया था। महाराजा मानसिंह प्रथम की पत्नी महारानी कनखावती ने पुत्र जगत की याद में इन भव्य मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर का निर्माण कार्य 1599 में आरंभ हुआ और 1608 में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ। कई मंजिला प्राचीन भवनों की श्रेणी में यह मंदिर प्रमुख पहचान रखता है। स्थानीय पीले पत्थर, सफेद और काले मार्बल से बने इस मंदिर में पुराण-कथाओं के आधार पर गढे गए शिल्प भी दर्शनयोग्य हैं। मंदिर का मंडप दुमंजिला और भव्य है। शिखर प्रारूप से बने भव्य मंदिरों में से यह एक है। महारानी की इच्छा थी कि इस मंदिर के द्वारा उनके पुत्र को सदियों तक याद रखा जाए। इसीलिए मंदिर का नाम जगत शिरोमणि रखा गया। जगत शिरोमणि भगवान विष्णु का ही एक नाम है। मंदिर के निर्माण में दक्षिण भारतीय शैली का प्रयोग किया गया है। मंदिर के तोरण, द्वारशाखाओं, स्तंभों आदि पर बारीक शिल्प गढ़ा गया है। मंदिर में कृष्ण भक्त मीरा बाई और कृष्ण के मंदिर भी हैं। साथ ही भगवान विष्णु के वाहन गरूड़ की भी भव्य प्रतिमा है। कहा जाता है उस समय इस मंदिर के निर्माण में 11 लाख रूपए खर्च किए गए।
ताड़केश्वरजी मंदिर :
जयपुर शहर के चौड़ा रास्ता में स्थित प्राचीन ताड़केश्वरजी मंदिर श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। यह शिव का प्रमुख मंदिर है। कहा जाता है कछवाह वंश के राजा वैष्णव भक्ति करते थे। लेकिन उनकी कुलदेवी शिला माता रही। इस तरह उन्हें शक्ति उपासक माना जाता है। उन्होंने चंद्रमहल के सामने गोविंददेवजी को विराजित किया और गोविंद को मुखिया घोषित किया। इस प्रकार उनकी वैष्णव भक्ति दिखाई देती है। साथ राज परिवार ने शिव की उपासना भी की। राजपरिवार के उपासना स्थलों में ताड़केश्वर मंदिर भी एक है। और राजपरिवार की शैव भक्ति का प्रतीक भी। मंदिर दो मंजिला भव्य हवेलीनुमा बनावट में है। जिसके बीच में चौक और चारों ओर गलियारों तिबारियों और भवनों में विभिन्न मंदिर बने हुए हैं। मंदिर में खास आकर्षण है चौक में शिव के वाहन नंदी की विशाल पीतल की प्रतिमा। इसी प्रतिमा के आसपास बैठकर भक्त रूद्र मंत्रों का जाप करते हैं। अहाते में शिव पंचायत पर जलाभिशेक के लिए सोमवार को लम्बी कतारें लगी होती है। श्रावण के महिने में यहां भव्य सजावट की जाती है और हजारों की संख्या में कावडिये गलता से जल लाकर शिव का अभिषेक करते हैं।
जयपुर में इतने मंदिर है कि कई बार लगता शहर के बीच मंदिर नहीं, मंदिरों के बीच शहर है। धर्म के प्रति लोगों की आस्था यहां जगह जगह दिखाई देती है। वर्षभर यहां मंदिरों में विभिन्न कार्यक्रम चलते रहते हैं। जिनमें पूरा शहर श्रद्धा से भाग लेता है। जयपुरवासियों की इसी श्रद्धा ने जयपुर को छोटी काशी के रूप में ख्याति दिलाई है।