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जयपुर – ऐतिहासिक शहर

ऐतिहासिक शहर के रूप में जयपुर की अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन डेस्टीनेशन छवि

जयपुर राजस्थान की सांस्कृतिक नगरी। अपने समय का यह सबसे योजनाबद्ध तरीके से बसा पहला शहर। जयपुर को महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1727 में बसाया था। जयपुर को नक्शे से बसाने की योजना विद्याधर भट्टाचार्य की थी। विद्याधर एक बंगाली वास्तुविज्ञ थे, उन्होंने जयपुर को एक ग्रिड प्रणाली से बसाने का विचार रखा था, इसके अनुसार शहर को नौ खण्डों में बांटा गया, मुख्या रास्तों के दोनो ओर बाजार विकसित किया गया और आम घरों के रास्ते गलियों की ओर निकालने का सुझाव दिया गया। मुख्य रास्तों पर सिर्फ दुकानों और सार्वजनिक इमारतों के रास्ते खुलने का ही प्रावधान था।

जयपुर अपने स्थापत्य और बनावट के कारण सारी दुनिया में अपना नाम रखता है। यहां पर्यटकों को लुभाते कई स्टोर्स, स्पापत्य की बेजोड़ उदाहरण कई इमारतें और गलियां तथा बाजार देखकर आप अपने आप को इतिहास के गलियारों में सांस लेता महसूस करेंगे। यहां के सुविधापूर्ण लग्जरी होटल, राजाओं के महल, पार्क, उद्यान और आसपास के आकर्षक दर्शनीय स्थल जयपुर को पर्यटन का स्वर्ग बनाते हैं। यहां परकोटे के दायरे मे सभी इमारतों बाजारों प्राचीरों का रंग गुलाबी है, इसीलिए इस शहर को ’गुलाबीनगरी’ के नाम से भी जाना जाता है। जयपुर यहां के संगीतकारों, लोककलाकारों, शिल्पशास्त्रियों और कारीगरों के कारण भी दुनियाभर में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। आज विश्व-बाजार में जयपुर की ज्वैलरी, वस्त्र और व्यंजन ऊंचा ओहदा रखते हैं।

राजस्थान की यह राजधानी अपने इतिहास और संस्कृति के कारण आगंतुकों को मोहपाश में बांध लेती है। यहां के किलों और महलों में आज भी इतिहास सांस लेते महसूस किया जा सकता है।  इन गुलाबी महलों में आज भी राजपरिवार की मौजूदगी इसे इतिहास के दरवाजे से झांकने का मौका देती है। हस्तकलाओं और नायाब कारीगरी से सुसज्जित वस्तुओं से भरे यहां के बाजार राजस्थानी ज्वैलरी, वस्त्र और मोजडियां और भी बहुत से उत्पाद दुकानदारों की निधियों जैसे हैं। यह शानदार शहर अपने रोमांटिक एहसास के साथ कब आपको अपनी परंपराओ से जोड़ लेता है, पता ही नहीं चलता।

आपके भीतर बैठा इतिहासप्रेमी बार बार यहां का सिटी पैलेस देखना चाहेगा, खासतौर पर सिटी पैलेस के वे हिस्से जिन्हें म्यूजियम के तौर पर कन्वर्ट कर दिया गया है। वे अमूल्य वस्तुएं जिनका इस्तेमाल कभी रोजमर्रा की आम जिंदगी के राजपरिवार द्वारा किया जाता था आज शीशों के पार से सिर्फ निहारने भर की दिव्य वस्तुएं बन गई हैं। सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है कि उस समय की रिहाइश के सामान इतने बहुमूल्य और खूबसूरत हैं। इसी तरह मुकुट के आकार के खूबसूरत महल हवामहल को देखकर अंदाजा लगाया जाता सकता है कि इनकी हर खिड़की से जब कोई राजकुमारी, रानी और खास शाही महिलाएं जब सिरहड्योढी से निकलती सवारियों को देखती होंगी तो कैसा नजारा होता होगा। जयपुर में कभी आमेर फोर्ट की चहलकदमी करते हुए जयगढ़, जयबाण तोप, मावठा, आमेर कस्बे, जलेब चौक, गणेश पोल और शीश महल को निहारना अपने आम में इतिहास के स्वर्ग की सैर करने जैसा अनुभव होता है।

जयपुर में स्मारक – विजिट का समय और शुल्क

स्मारक और संग्रहालय

मॉन्यूमेंट

फोन नं.
समय शुल्क
भारतीय विदेशी
आमेर महल 0141-2530293 8.00-17.30 25 200
सिटी पैलेस 0141-2408888 9.00-17.00 75 300
जंतर मंतर 0141-2610494 9.00-16.30 20 100
जयगढ फोर्ट 0141-2671848 9.00-16.30 25 75
नाहरगढ फोर्ट 0141-5182957 10.00-17.30 10 30
अल्बर्ट हॉल 0141-2570099 9.00-17.00 20 150
हवा महल 0141-2618862 9.00-16.30 10 50
डॉल म्यूजियम 0141-2619359 8.00-18.00 2 2
म्यूजियम ऑफ इंडोलॉजी 0141-2607455 8.00-17.00 20 40
संजय शर्मा म्यूजियम 0141-2323436 10.00-17.00 100 100

कंपोजिट टिकट-

जयपुर में पांच मॉन्यूमेंट्स जिनमें अल्बर्ट हॉल, हवामहल, जंतरमंतर, नाहरगढ़ और आमेर महल देखने के लिए एक कंपोजिट टिकट भी उपलब्ध है।

भारतीय पर्यटक- 50 रुपए               विदेशी पर्यटक-  300 रुपए
भारतीय छात्र-  20 रुपए                  विदेशी छात्र- 150 रुपए

किसी भी मॉन्यूमेंट की फोटाग्राफी या वीडियोग्राफी करने से पूर्व अधीक्षक या संबंधित अधिकारी से आज्ञा लेना जरूरी है। वैसे अधिकतम मान्यूमेंट पर इस संबंध में जानकारी दिशानिर्देशिकाओं पर पूर्व में ही दी जाती है।

मनोरंजन केंद्र

मनोरंजन केंद्र दूरभाष नं. समय प्रवेश शुल्क
भारतीय विदेशी
जवाहर कला केन्द्र (+91) 0141-2706560 कार्यक्रम अनुसार मुफ़्त मुफ़्त
बिरला तारामंडल
(+91) 0141-2385367 Show 11
13,15,17,18,19 (हिन्दी)
40 40
विज्ञान पार्क (+91) 0141-2304654 ग्रीष्मकालीन 8.30 – 11.30 & 16.30 – 20.30
शीतकालीन 9.00 – 12.30
10 10
रविन्द्र रंगमंच (+91) 0141-2619061 शीतकालीन 6.30 – 10.30
ग्रीष्मकालीन 6.30 – 10.30

 

गार्डन और पार्क

गार्डन और पार्क दूरभाष नं. समय  प्रवेश शुल्क 
भारतीय  विदेशी 
चिडियाघर (+91) 0141-2617319 9.00 – 17.00 10 100
सिसोदिया रानी गार्डन व महल (+91) 0141-2680494 8.00-17.00 10 10
17.00-20.00 20 20
विद्याधर गार्डन (+91) 0141-2680494 8.00 – 19.00 5 5
कनक वृंदावन (+91) 0141-2634596 9.00-19.00 8 8

 

ऐतिहासिक शहर के मंदिर-

मंदिरों की मौजूदगी और लोगों में आस्था का ज्वार जयपुर शहर को छोटी काशी के नाम भी जाना जाता है।

गलता जी : जयपुर की पूर्वी पहाडियों के बीच गलता को जयपुर का तीर्थ कहा जाता है। कुंडों, उद्यानों और मंदिरों के समूह के कारण गलताजी का अलग महत्व है। पवित्र सूरज कुंड में यहां के श्रद्धालु समय समय पर स्नान करते हैं। बंदरों की टोलियों की मौजूदगी के कारण गलताजी को वैश्विक स्तर पर मंकी टेंपल के नाम भी जाना जाता है। यहां पहाड़ी की शिखा पर सूर्यमंदिर भी है। यहां के ज्यादातर स्थापत्य का निर्माण दीवान कृपाराम ने कराया था।

गोविंददेव जी : चंद्रमहल के उत्तर में जयनिवास उद्यान के बीच बना कृष्ण भगवान का मंदिर गोंविददेवजी जयपुर के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में एक है। कछवाहा वंशजों ने गोविंद को अपना दीवान माना और प्रतिमा का महल के सामने प्रतिष्ठित कराया। आज गोविंददेवजी मंदिर जयपुर भर की आस्था का प्रमुख केंद्र है। शिखर विहीन इस मंदिर में रखी भगवान गोविंद की प्रतिमा वृंदावन से जयपुर पहुंची थी। जिसे पहले जयपुर में कनक वृंदावन में प्रतिष्ठापित किया गया और फिर नए शहर जयपुर का निर्माण होने के बाद राजमहल के सामने स्थापित किया गया।

बिड़ला मंदिर : जयपुर में जेएलएन मार्ग पर मोती डूंगरी के नीचे स्थित है लक्ष्मीनारायण मंदिर। मंदिर का निर्माण बिड़ला समूह ने कराया है इसलिए इसे बिड़ला मंदिर के नाम से ज्यादा जाना जाता है। सफेद संगमरमर से बना यह विशाल मंदिर शाम के समय पर्यटकों को आकर्षित करता है। मंदिर के परिसर में बाग-बगीचे भी भ्रमणीय हैं। विशाल मंदिर के अंदर मंडप या विग्रहों की फोटो खींचना मना है। जबकि मंदिर के बाहरी परिसर में फोटो खींचे जा सकते हैं।

मोती डूंगरी गणेश मंदिर : मोती डूंगरी जयपुर शहर के बीच स्थित एक छोटी सी पहाडी है जिसके शिखर पर किला और तलहट में दो फेमस मंदिर हैं। इनमें एक बिड़ला मंदिर है और मोती डूंगरी गणेश मंदिर। मोती डूंगरी गणेश मंदिर गोविंददेवजी मंदिर के बाद जयपुर में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले मंदिरों में शामिल है। यहां गणेश चतुर्थी पर लक्खी मेला भरता है और हर बुधवार को भी मेला भरता है। नए वाहन खरीदने वाले ज्यादातर आस्थावान लोग यहां आकर ही अपने वाहन की पूजा कराते हैं।

ऐतिहासिक शहर- मेले और त्योंहार

हाथी उत्सव : जयपुर में होली पर चौगान स्टेडियम में हाथी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर महावत हाथियों को रंगों और परिधानों से सजाते हैं, हाथी के कई करतब होते हैं और अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उत्सव में सबसे खूबसूरत हाथियों को पुरस्कृत भी किया जाता है।

गणगौर उत्सव : गणगौर जयपुर का प्रमुख त्योंहार है जो नवविहाहिताएं चाव से मनाती हैं। इस दिन शिव-पार्वती को ईसर गणगौर की तरह पूजा जाता है। कन्याएं भी इस दिन अच्छे वर की कामना से शिव और पार्वती की उपासना करती हैं। सखियां इस दिन भरपूर इंजॉय करती हैं और बागों में जाकर तरह तरह के खेल खेलती हैं।

तीज उत्सव : शिव और पार्वती की उपासना वाला यह दूसरा बड़ा त्योंहार है जो जयपुर की महिलाएं हर्षोल्लास से मनाती हैं। जयपुर में तीज माता की सवारी निकाली जाती है। यह सवारी राजमहल से निकलती है और तालकटोरा तक जाती है। इस सवारी में जयपुर की आन-बान और शान के दर्शन होते हैं, जयपुर के कल्चर भी तीज माता की सवारी के दौरान झलकती है जिसे शूट करने के लिए बड़ी संख्या में देशी विदेशी मेहमानों की मौजूदगी होती है। सवारी के बाद त्रिपोलिया और छोटी चौपड़ पर मेला भी भरता है।

मकर संक्राति : जयपुर के खास त्योंहारों में मकर संक्रांति का नाम शीर्ष पर है। इसे स्थानीय भाषा में संकरात भी कहा जाता है। मकर संक्राति के दिन जयपुरवासियों में पतंग उड़ाने की दीवानगी देखते ही बनती है। हर छत पर डोर पतंग और लाउड स्पीकर जरूर  दिखाई देता है। पूरा आसमान पतंगों से अट जाता है। इस दिन पतंगों के प्रति  क्रेज को देखते हुए इसे पतंगोत्सव कहा जाता है। जयपुर के चौगान स्टेडियम में पतंगों का दंगल भी लड़ाया जाता है।

ऐतिहासिक शहर- महल, स्मारक और भ्रमणीय स्थल

हवामहल : हवामहल को पैलेस ऑफ विंड्स के नाम भी जाना जाता है। यह जनाना महल की सड़क पर निकली हुई पृष्ठ दीवार भर है। इसे शाही महिलाओं के लिए निर्मित किया गया था ताकि महल की स्त्रियों बड़ी चौपड़ से निकलने वाली सवारियों, जुलूसों और यात्राओं का आनंद ले सकें। हवामहल में छोटी बड़ी सैंकड़ों खिडकियां हैं। यही कारण है कि इसे हवामहल कहा जाता है। हवामहल की इस खूबसूरत पांच मंजिला इमारत का निर्माण सवाई प्रतापसिंह ने कराया था।

आमेर महल : जयपुर से पहले कछवाहा वंश के राजाओं की राजधानी आमेर थी, पानी की कमी और जनसंख्या में बढ़ोतरी और अन्य सुरक्षा कारणों से राजधानी आमेर से कहीं अन्यत्र स्थानांतरित करने की आवश्यकता के चलते जयपुर का निर्माण हुआ। आमेर महल पूर्व राजमहल था इसलिए यह अपने आप में अनूठा और खूससूरत नजारों का शहंशाह है। आमेर महल एक मध्यम ऊंचाई वाली पहाड़ी पर स्थित है। यहां कई राजाओं ने शासन किया था। 1050 से पूर्व यहां मीणाओं का शासन था, उसके बाद कछवाहा वंश के राजाओं ने मीणा शासकों को हराकर आमेर पर कब्जा किया। तभी से यहां कछवाहा वंश का शासन रहा। यहां का शीश महल दीवाने खास कहलाता था। शीशे की कलात्मक कारीगरी देखने योग्य है। महल में मुगल गार्डन और गणेश पोल दरवाजा विशेष रूप से दर्शनीय है। हाल ही आमेर महल और जयगढ़ के बीच ऐतिहासिक सुरंग को आम पर्यटकों के लिए खोला गया है। अब जयगढ और आमेर महल के बीच की दूरी 12 किमी से घट कर कुछ मीटर रह गई है। महल के नीचे स्थित मावठा झील इन दिनो लबालब है, जो पर्यटकों को खास आकर्षित कर रही है। आमेर महल के नीचे से सूरज पोल तक हाथी सवारी का आनंद लिया जा सकता है। आमेर महल का दूसरा रास्ता आमेर टाउन होते हुए पश्चिमी रास्ते से जलेब चौक पहुंचता है। यहां शिला माता का प्राचीन मंदिर भी स्थित है जो राजपरिवार की कुल देवी मानी जाती हैं। महल से आमेर कस्बे का व्यू बहुत ही खूबसूरत नजर आता है।

सिटी पैलेस : राजधानी आमेर से जयपुर स्थानांतरित होने के बाद राजमहल भी आमेरमहल से सिटी पैलेस स्थानांतरित हो गया। वर्तमान में सिटी पैलेस जयपुर परकोटा के बीच बहुत सी राजकालीन शासनिक-प्रशासनिक इमारतों से घिरा राजप्रासाद है। जिसके चंद्रमहल हिस्से में आज भी शाही परिवार का निवास है। शेष भाग को म्यूजियम बनाकर आमजन के दर्शनार्थ खोल दिया गया है। सिटी पैलेस में कई मुख्यद्वार, कई चौक, कई इमारतें और उद्यान बने हैं। सिटी पैलेस में आम प्रवेश के दो द्वार हैं। जलेब चौक की ओर से वीरेन्द्र पोल और जंतर मंतर की तरफ से उदय पोल। सिटी पैलेस में उदयपोल से प्रविष्ट होने के बाद सामने दो मंजिला खूबसूरत इमारत नजर आती है जिसे मुबारक महल कहा जाता है, इस इसमारत में वर्तमान में संग्रहालय स्थित है। इससे जुड़े चौक में सर्वतोभद्र और दीवाने आम स्थित है। इसके अलावा प्रीतम निवास भी महल की शोभा है। सर्वतोभद्र में रखे चांदी के विशाल घड़े सभी के आकर्षण का केंद्र हैं। यहां रथखाना, बग्घीखाना और सिलहखाना भी देखने योग्य संग्रहालय हैं।

नाहरगढ़ फोर्ट : नाहरगढ़ फोर्ट या टाइगर फोर्ट के आसपास कभी बाघों की मौजूदगी हुआ करती थी। इसीलिए इस शहर की उत्तर-पश्चिमी पहाड़ी पर बने किले को नाहरगढ फोर्ट कहा जाता था। सारे शहर से पहाड़ पर टाइगर की तरह खडे इस किले को जयपुर की सुरक्षा मजबूत करने के लिए महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने बनवाया था। बाद में सवाई माधोसिंह और रामसिंह ने यहां अन्य निर्माण कराकर इसे आधुनिक रूप दिया। वर्तमान में यहां की लोकेशंस बॉलीवुड की पसंद में शीर्ष पर हैं। यहां से जयपुर का भव्य नजारा देखा जा सकता है। नाहरगढ विशाल क्षेत्र में फैला किला है , किला होने के साथ साथ यहां पड़ाव रेस्टोरेंट, कैफेटेरिया, बावड़ी, ओपन थिएटर और माधवेन्द्र महल प्रमुख आकर्षण हैं। यहां का माधवेंद्र महल देखने योग्य है। यह बारह रानियों के महल के रूप में विख्यात है।

जयगढ़ फोर्ट : देश के आलीशान दुर्गों में जयगढ फोर्ट का भी नाम लिया जाता है। आमेर और जयपुर की सुरक्षा के लिए त्रिस्तरीय सुरक्षाचक्र के रूप में आमेर महल, जयगढ और नाहरगढ की व्यूहरचना अभेद्य थी। जयगढ़ फोर्ट आमेर महल की सुरक्षा मे तैनात मजबूत पहरेदार की तरह है जो आमेर महल के पीछे वाली पहाड़ी पर खड़ा होकर आसपास के सारे इलाके पर नजर रख सकता हैं। जयगढ़ फोर्ट का निर्माण आमेर रियासत की सुरक्षा के लिए ही किया गया था। इसी मद्देनजर यहां जयबाण तोप रखी गई। जयबाण देश की सबसे बड़ी तोप है। इसके साथ इस विस्तृत किले में चारों ओर सुरक्षा प्राचीरें हैं, यहां कई मंदिर और एक वॉच टॉवर भी हैं है। हाल ही जयगढ और आमेर महल के बीच ऐतिहासिक सुरंग को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया।

सरगासूली : सरगासूली को ईसरलाट के नाम से भी जाना जाता है। यह सात खंडीय इमारत 18 वीं सदी के मध्य में महाराजा सवाई ईश्वरीसिंह ने युद्ध में विजय के प्रतीक के रूप में बनवाई थी। जयपुर के शत्रु सात राज्यों की संयुक्त सेनाओं को जयपुर के सेनापति हरगोविंद नाटाणी ने बगरू के मैदान में हराया था। शानदार जीत के  प्रतीक के रूप में ईश्वरीसिंहजी ने यह मीनार बनवाई।

अल्बर्ट हॉल : इस खूबसूरत इमारत का डिजाइन वास्तुविज्ञ कर्नल सर स्विंटन जैकब ने उस समय तैयार किया था जब 1876 में प्रिंस ऑफ वेल्स किंग एडवर्ड सप्तम भारत दौरे पर थे। 1886 में महाराजा सवाई रामसिंह ने लगभग चार लाख रुपए की लागत से इस खूबसूरत इमारत को तैयार कराया। इस खूबसूरत इमारत की बनावट राजपूत, मुगल और ब्रिटिश स्थापत्य के मिश्रित स्थापत्य का शानदार उदाहरण है। यह राज्य का सबसे पुराना संग्रहालय है जो जयपुर के फेमस रामनिवास बाग के बीचों बीच स्थित है।  इस संग्रहालय में दुनियाभर से दुर्लभ वस्तुओं को संग्रहीत किया गया जो अपने आप में बेजोड़ है। यहां ऐतिहासिक महत्व के फारसी कालीन, वस्त्र, पेंटिंग्स, धातु-लकड़ी-पत्थर के शिल्प, बर्तन, हथियार, खिलौने और सबसे खास मिश्र की दुर्लभ ममी।

जंतर-मंतर : जंतर-मंतर जयपुर का ऐसा मॉन्यूमेंट है जो अब विश्व धरोहर है। यूनेस्को ने 2010 में इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया। जयपुर के महाराजा वास्तु, ज्योतिष और अंकशास्त्र के ज्ञाता थे और उन्होंने देशभर पांच वेधशालाएं बनवाई। जयपुर का जंतरमंतर अपने मूल रूप में बचा होने के कारण विश्व धरोहर में शामिल हुआ। यहां खगोलीय घटनाओं का अध्ययन और खगोलीय परिस्थितियों के अंक और ज्योतिष ज्ञान के लिए विद्वान विभिन्न प्रयोग करते थे। आज भी यहां मानसून की जानकारी के लिए पवन का रुख देखकर विशेष गणनाएं की जाती हैं।

रामनिवास बाग ; 19 वीं सदी में तात्कालीन महाराजा सवाई रामसिंह ने अकाल राहत परियोजना के तहत शहर के दक्षिण ओर सुंदर गार्डन डवलप किया था। यह खूबसूरत गार्डन था रामनिवास बाग। यहां सुंदर बगीचे। चिडियाघर, वनस्पति संग्रहालय, पक्षीघर, अल्बर्ट हॉल, खेल परिसर, रवीन्द्र मंच और पार्किंग स्थल समय समय पर डवलप किए गए।

सिसोदिया रानी का बाग : सिसोदिया रानी का बाग शहर की पूर्वी पहाडियों में आगरा रोड पर स्थित है। बाग का निर्माण अठारहवीं सदी में महाराजा जयसिंह ने अपनी पटरानी सिसोदिया रानी के लिए किया था। घाट की गूणी के संकरे रास्ते से गुजरकर आगरा रोड के बायें हाथ की ओर यह सुंदर बाग है जो कई स्तरों पर बना हुआ है। यहां खूबसूरत बारादरियां हैं, बरामदे और कोरीडोर हैं। कई स्तरों पर बने इस सुंदर उद्यान में मूर्तियां और भित्तीचित्र बहुत खूबसूरत हैं।

विद्याधर का बाग : विद्याधर का बाग भी घाट की गूणी में ही स्थित है। यह बाग जयपुर के राजवास्तुकार विद्याधर की याद में बनाया गया था। घाटी में एक निचली पहाड़ी पर बने इस बगीचे का हाल ही पुनरोद्धार किया गया है। यह एक सुंदर सीढ़ीदार उद्यान है जिसमें जयपुर की कलात्मकता को बहुत खूबसूरती से संजोया गया है।
कनक वृंदावन जयपुर और आमेर के बीच घाटी में स्थित है। यहां भगवान कृष्ण का प्राचीन मंदिर है, किसी समय यहां दर्भावती नही का प्रवाह था। मुगल आततायी जब देशभर में मूर्ति-भंजन कर रहे थे तब वृंदावन से गोविंददेवजी की मूर्ति को यहीं लाकर स्थापित किया गया था। महाराजा जयसिंह भगवान गोविंद के लिए उसी तरह का माहौल तैयार करना चाहते थे जैसा वृंदावन में था। इसीलिए इस घाटी में वनों के झुरमुट उपवन और मंदिर विकसित किए गए। वर्तमान में यह युगलों के लिए पसंदीदा भ्रमणीय स्थल है। कनक वृंदावन में फिल्मों की शूटिंग भी होती रही है।

अमर जवान ज्योति : राजस्थान विधानसभा के सामने जनपथ पर राज्य के शूरवीर शहीद योद्धाओं की स्मृति दिलाता स्थल है अमर जवान ज्योति। इस स्थल को खूबसूरत बनाया गया है और यहां आकर शहीदों को नमन करना अपने आप में अलग और गहरी अनुभूति होती  है। शाम को यहां दीपक या कैंडल जलाना मन को बहुत सुकून देता है।

बीएम बिड़ला तारामंडल : बीएम बिड़ला सभागार और तारामंडल एक ही भवन परिसर के दो भाग हैं। यहां का सभागार बहुत विशाल और शानदार है और यहां कई यादगार कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसके साथ मुख्य भवन के पीछे तारामंडल भी अपने आप में अदभुत भवन है, विज्ञान और तकनीक से तारामंडल में सीट पर बैठकर ही अंतरिक्ष की सैर का अनुभव किया जा सकता है। यह कंप्यूटरीकृत प्रक्षेपण प्रणाली पर आधारित है और दृश्य श्रव्य माध्यमों से हमें खगोलीय घटनाओं का आकर्षक चित्रण पेश करता है।


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