त्रिपोलिया बाजार में हिन्द होटल के ठीक उत्तर में एक द्वार से प्रविष्ट होने के बाद एक बड़ा आयताकार चौक है जिसमें चारों ओर दुकानें बनी हुई हैं। यह बाजार वर्तमान में आतिश मार्केट कहलाता है। आतिश मार्केट को क्रॉस करके एक और द्वार गणगौरी बाजार और चांदनी चौक के चौहत्तर दरवाजा की ओर भी निकलता है। राजशाही के समय इस बाजार के स्थान पर पहले राजसी घुड़साल थी जिसमें महल के शाही लोगों, सेनापतियों और मंत्रियों के बेशकीमती घोड़े बंधे होते थे। घोड़ों के लिए यहां बाजार के चारों ओर खुले बरामदे, चारे और पानी के स्रोत बने हुए थे। राजाओं का शासन समाप्त होने के बाद इस चौक में बाजार विकसित कर दिया गया।
मुहर्रर और शाही ताजिया–
मुहर्रम के मौके पर राजपरिवार की ओर से शाही ताजिया आतिश मार्केट से ही निकाला जाता है। सोने चांदी से बना यह मशहूर ताजिया आतिश दरवाजे के गोखे पर ही रखा जाता है। शाही ताजिया निकालने की परंपरा जयपुर के राजाओं की धर्मनिरपेक्षता को बयान करती है। आज भी राजपरिवार के लोग शाही ताजिए को आतिश मार्केट से विदा करते हैं। यह शाही ताजिया आतिश मार्केट से त्रिपोलिया बाजार होते हुए बड़ी चौपड़, सिरहड्योढी बाजार, चांदी की टकसाल और सुभाष चौक होते हुए जलमहल के पास स्थित कर्बला तक ले जाया जाता है और बिना दफनाए वापस ले आया जाता है।
राजमहल से शाही ताजिया कर्बला तक ले जाने की यह शाही रस्म राजा सवाई रामसिंह ने शुरू की थी। इससे जुड़ी एक किंवदंति भी है। कहा जाता है कि एक बार राजा रामसिंह बीमार पड़े। बहुत जतन के बाद भी जब उनकी तबियत में सुधार नहीं हुआ तब एक शाही संगीतज्ञ उस्ताद रजब अली खां ने उन्हें ताजिए की डोरी बांधने की सलाह दी। राजा ने ताजिए की डोरी बांधी और उनकी तबियत में सुधार हो गया। तभी से उन्होंने राजमहल ताजिया निकालने की रस्म शुरू कर दी। एक अन्य ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार नवाब फैज अली खां के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजप्रासाद से ताजिया निकालने की जानकारी भी मिलती है।
आशीष मिश्रा
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