60 के दशक में शहर की पूर्वी पहाडियों की खोह में बरसाती नाला खौलता था। पहाडों के बीच निर्जन में जंगली जानवरों के डर के कारण आम शहरवासी इस ओर रूख नहीं कर पाते थे। तब एक साहसी ब्राह्मण ने इस घोर निर्जन की ओर रूख किया और यहां पहाड़ में लेटे हुए हनुमानजी की विशाल मूर्ति खोज निकाली। भगवान को इस अंधे जंगल में देख ब्राह्मण उनकी सेवा पूजा में लग गया और ऐसा लगा, कि प्राणान्त होने तक उसने वह जगह नहीं छोड़ी। अपने जीवन में उन्होंने जो प्रयास इस निर्जन को पूजित बनाने में किया वह आज आपके सामने है-खोले के हनुमानजी वह स्थान है और वे साहसी ब्राह्मण थे पंडित राधेलाल चौबे। चौबे जी का देवलोकगमन जनवरी 2010 में हुआ लेकिन उनके भरसक प्रयासों और जीवनभर की अथक मेहनत का नतीजा है कि आज यही स्थल सुरम्य और दर्शनीय बन गया है। वह भी इतना भव्य कि यहां आने वाले श्रद्धालु और आगन्तुक इसकी विशालता और शिल्प देखकर दांतों तले अंगुलियां दबा लेते हैं।
खोले के हनुमानजी
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वर्षभर सावमणी जैसे कार्यक्रम भी आयोजित होते रहते हैं। 1961 में पंडित राधेलाल चौबे ने मंदिर के विकास के लिए नरवर आश्रम सेवा समिति की स्थापना की।आज उनके विश्वासपात्र लोग और पुत्र इसी समिति के सहयोग से मंदिर को विश्वस्तर का रमणीक स्थल बनाने में जुटे हैं। और भव्य निर्माण में सहयोग दे रहे हैं हनुमानजी के भक्त जिन्होंने पंडित राधेलाल से प्रेरणा ग्रहण की है। खोले के हनुमानजी का मंदिर रामगढ़ मोड के पास राष्ट्रीय राजमार्ग सं-8 से लगभग 2 किमी अंदर है।
कभी निर्जन रहे इस मंदिर में अब अन्नकूट के अवसर पर लक्खी मेला लगता है, जहां गोठ में लाखों की तादाद में भक्त प्रसाद ग्रहण करते हैं। साथ ही जब यह स्थान निर्जन था तब पहाड़ों की खोह से यहां बरसात का पानी खोले के रूप बहता था। इसीलिए मंदिर का नाम खोले के हनुमानजी पड़ा। आज भी यहां बारिश में खोला बहता है जिसके पानी के निकास की व्यवस्था की गई है। मंदिर का भव्य मुख्यद्वार राजमार्ग पर है। यह प्राचीन दुर्ग शैली में बनी नवीन इमारत है। द्वार का मॉडल सांगानेरी गेट जैसा है लेकिन ऊंचाई कम है। द्वार के दोनो ओर गोल बुर्ज भी बनाए गए हैं। यहां से चौड़ी डबल लेन सड़क मंदिर तक पहुंचती है। सड़क के दोनो ओर फुटपाथ और पेड़ पौधों की सवाजट है एवं नियमित अंतराल के बाद सुंदर रोड लाईटें भी लगी हैं। सड़क के बीच डिवाईडर पर लगी भव्य रोड लाईट जौहरी बाजार की सूरजमुखी रोडलाईटों का नवीनीकरण मालूम होती हैं। मेटल की ये खूबसूरत लाईटें दिन में ज्यादा प्रभावित करती हैं। मार्ग में बीच बीच में रेड स्टोन से छतरियां और बारादरियां भी बनाई गई हैं। आधा मार्ग तय करने के बाद यहां श्रीराम गौशाला है जिसका संचालन भी नरवर आश्रम सेवा समिति करती है और श्रद्धालु यहां आकर गायों को चारा, गुड इत्यादि अपने हाथों से खिलाते हैं। दानदाता समय समय पर गौशाला में चारे-पानी की व्यवस्था करते रहते हैं। यहां से मार्ग में एक घुमाव है जिसपर आगे बढ़ने से आप खोले के हनुमानजी मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार के सामने दोनो ओर बसे बाजार के चौक तक पहुंच जाएंगे। बाजार से पहले अवरोधक लगाए गए हैं। चौपहिया वाहनों की पार्किंग यहीं होती है। विशेष अनुमति से ही वाहन बाजार क्रॉस करके अंदर जा सकते हैं।
चारों ओर पहाडों की खोह और मिट्टी के टीलों से घिरे इस स्थल में लाल पत्थर और संगमरमर से जैसे एक छोटी और भव्य बस्ती ही बसा दी गई है। यहां का छोटा सा यह बाजार शहर के परकोटा बाजारों की याद दिलाता है। सामांतर दुकानों के साथ सामने सुंदर बरामदों का निर्माण किया गया है जिनकी कलात्मकता और शिल्प मन मोह लेता है। हर शनिवार और मंगलवार यहां आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ तो होती ही है साथ ही श्रावण मास में भी यहां स्थानीय पर्यटकों का हुजूम आता रहता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनो ओर कोठरियां बनी हैं जहां पदवेश रखे जा सकते हैं। यहां से तीन मंजिला इस मंदिर की भव्य इमारत देखते ही बनती है। बायीं ओर छोटा से बगीचा विकसित किया गया है और मंदिर के सामने बड़ा खुला चौक है। दरवाजे के ठीक दायीं ओर पंडित राधेलाल चौबे की संगमरमर की सुंदर समाधि बनी है। समाधि परिसर की सजावट और पंडितजी की आदमकद बैठी हुई मूर्ति सम्मोहन पैदा करती है। पूरा परिसर और छतरी उम्दा किस्म के सफेद संगमरमर पर बारीक शिल्प से गढ़े गए है।
मंदिर के दायीं ओर ही पार्किंग स्थल बनाया गया है जहां अन्नकूट के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है साथ ही शासन और प्रशासन के प्रतिष्ठित लोग भी इस कार्यक्रम में शिरकत करते हैं। यह स्थल कई वर्षों से गोठ आयोजित करने वाले श्रद्धालुओं का पसंदीदा स्थल बना हुआ है। इसके अलावा हनुमान जयंती पर भी यहां भव्य मेला भरता है।
नरवर आश्रम सेवा समिति के महामंत्री और पंडित राधेलाल के पुत्र अंशुमान चतुर्वेदी ने बताया कि श्रावण मास में मंदिर में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां शिवजी के मंदिर में रूद्राभिषेक का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें हजारों की तादाद में प्रतिदिन भक्त शामिल होते हैं।
तीन मंजिला इस भव्य मंदिर में भगवान हनुमानजी के अलावा ठाकुरजी, गणेशजी, ऋषि वाल्मीकि, गायत्री मां, श्रीराम दरबार के अलग अलग और भव्य मंदिर है। यहां श्रीराम दरबार में भगवान राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की आदमकद मूर्तियां हैं। इस मंदिर में चारों ओर दीवारों और शीशे पर की गई पेंटिंग आकर्षक है। मंदिर के ही परिसर में एक होम शाला भी है जहां समय समय पर यज्ञ हवन किये जाते हैं। मुख्य मंदिर के दाहिनी ओर धर्मशाला का निर्माण भी किया गया है। लाल पत्थरों से बनी यह ढाई मंजिला इमारत पुरा नागर शैली में बनी नई इमारत है और अपने शिल्प से आगंतुकों को बहुत प्रभावित करती है। धर्मशाला के परिसर में सुंदर गार्डन भी बनाया गया है। इमारत के मेहराब कंगूरे और बारादरियां जयपुर के ही प्राचीन शिल्प विधान को आगे बढ़ाती सी प्रतीत होती हैं।
मंदिर में प्रवेश निशुल्क है एवं नरवर आश्रम समिति कार्यालय से आज्ञा लेकर फोटोग्राफी एवं वीडियो शूट भी किए जा सकते हैं। मंदिर के लिए अपने वाहन, टैक्सी या ऑटो से आना सुविधाजनक रहता है। वैसे यहां आने के लिए यातायात प्रशासन ने जयपुर बस की व्यवस्था भी की है।
एक व्यक्ति के प्रयासों ने निर्जन पड़े इस स्थान को इतना अद्भुद बना दिया कि अन्नकूट के अवसर पर लाखों लोग यहां प्रसाद ग्रहण करने आते हैं। जयपुर की यही महिमा है। यह आराध्यों का शहर है लेकिन यहां के लोग भी आराध्यों से कम नहीं हैं।
आशीष मिश्रा
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रामनवमी पर कलश स्थापना
खोले के हनुमानजी मंदिर में शीर्ष पर स्थित सियाराम दरबार में दोहपर सवा 12 बजे 11 कलशों की स्थापना की गई। श्रीनरवर आश्रम सेवा समिति के महामंत्री ब्रजमोहन शर्मा ने बताया कि रामनवमी को सुबह 6 बजे 108 द्रव्य औषधियों से सियारामजी का महास्नान, सुबह 8 बजे षोडशोपचार पूजन, हवन तथा सुबह 11 बजे श्रंगार के बाद राजभोग अर्पित किया गया। इसके बाद महाआरती की गई।