जयपुर Hindi

जयपुर पोलो- शाही खेल

जयपुर पोलो ( Jaipur Polo ) : शाही खेल

Jaipur-Polo

जयपुर में पोलो सीजन इस साल 2 जनवरी से आरंभ हुआ है। सीजन में राजस्थान और देश  के अन्य शहरों के नामचीन खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं। पोलो घोड़े पर बैठकर खेले जाने वाला खेल है। इसकी तुलना हॉकी या फुटबॉल से की जाती है लेकिन इन खेलों में लोग पैदल होते हैं और बॉल को गोल में दागने की कोशिशें करते हैं जबकि पोलो में घोड़े पर सवार खिलाड़ी स्टिक के माध्यम से बॉल को गोल में दागता है। पोलो के लिए सबसे अच्छी स्टिक अर्जेन्टीना से पांच से दस हजार  के बीच खरीदी जाती है। अपने आप में विश्व का यह रोचक खेल जयपुर की देन भी कहा जा सकता है।

जयपुर का पोलो खेल दुनिया भर में मशहूर है और इस मशहूरियत का श्रेय जाता है जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह को। मानसिंह अंतर्राष्ट्रीय पोलो खिलाड़ी थे। अकबर भी उनके पोलो के दांव पेचों का लोहा मानते थे। 1950-60 में मानसिंह द्वितीय इस खेल को शिखर पर ले गए। उन्होंने इस खेल को इतनी ख्याति दिलाई कि आज भी पोलो को एक राजसी खेल माना जाता है और उसके आयोजन को फोर्मूला वन रेस की तरह देखा जाता है। जयपुर को भारतीय पोलो का घर भी कह सकते हैं। जयपुर में राजपूताना स्टेट के सहयोग से राजपूताना पोलो क्लब की शुरूआत की गई। बाद में क्लब इसी नाम से रजिस्टर्ड हुआ। एक खास बात यह भी जयपुर में ही पोलो में वल्र्ड कप की शुरूआत हुई थी। जिसे ‘द जयपुर वल्ड कप ट्रॉफी'  भी कहा जाता है।

भारत में सितंबर से अप्रैल माह तक पोलो आयोजन के मुख्य सेंटर जयपुर और जोधपुर होते हैं। शहर के पोलो खिलाड़ी हैदराबाद, दिल्ली, मुम्बई और बैंगलोर टूर्नामेंट्स में भी भाग लेते हैं। मई से अगस्त के सीजन में पोलो सैशन विदेशों में होता है और भारतीय पोलो खिलाड़ी साउथ अफ्रीका, अर्जेन्टीना, इंग्लैंड और अमेरिका में होने वाले टूर्नामेंट्स में हिस्सेदारी करते हैं।

पोलो खेल की सबसे मजबूत कड़ी खेल में प्रयुक्त होने वाले घोड़े हैं। ये घोड़े दुनियाभर में अच्छी नस्लों से सरोकार रखते हैं और अपने खिलाड़ी के साथ रहते रहते बहुत वफादार हो जाते हैं। अच्छी बात ये है कि ये घोड़े अपने मालिक की मनोदशा और खेल के तरीकों को भी समझ जाते हैं। पोलो खिलाड़ी विशाल सिंह राठौड़ का घोड़ा बीस साल से उनके साथ  है। इन घोड़ों का विशेष ख्याल रखा जाता है, इन्हें खाने में जौ, जई, चना, अंडे, गाजर के साथ साथ तेल और घी भी दिया जाता है। समय समय पर इनकी मसाज की जाती है और मेडिकल चेकअप भी। इन घोड़ों की  कीमत लाखों में होती है। इंग्लिश, आरबी और मारवाड़ी घोड़े खिलाडियों  के पसंदीदा हैं।

शहर के सिटी पैलेस के मुबारक महल में आप जयपुर राजपरिवार के सदस्यों की पोलो पोशाक और सामग्री संग्रहलाय में देख सकते हैं। पोलो के प्रति यहां के राजाओं और अकबर की दीवानगी का आलम ये था कि उन्होंने रात्रि में पोलो खेलने के लिए लोहे  की जालीदार गेंद बनवाई। इस गेंद में पलाश की जलती लकड़ी डाली जाती थी। इससे अंधेरे में भी गेंद साफ दिखाई देती थी और हाथी पर बैठकर शान से पोलो खेला जाता था।

पोलो के शाही घोड़े

दुनियाभर में जयपुर रॉयल खेल पोलो के लिए जाना जाता है। घोड़े की पीठ पर बैठकर खेले जाने वाले इस रोमांचक खेल में 70 प्रतिशत से अधिक भूमिका घोड़ों की होती है। जयपुर के इस खेल की दीवानगी दुनियाभर के राजपरिवारों में है। पूरी दुनिया में पोलो होर्स की मांग बढ़ी है। जयपुर में भी ऐसे ट्रेनर मौजूद हैं जो घोड़ों को प्रशिक्षित करते हैं। हालांकि कुछ प्लेयर अपने घोड़ों को खुद प्रशिक्षित करते हैं। अर्जेंटीना और न्यूजीलैंड के घोड़े भारत के घोड़ों से महंगे होते हैं और उन्हें वहां बड़ी संख्या में ट्रेन किया जाता है। घोड़ों के शौकीन वहां से भी घोड़े मंगाते हैं। आईये जानते हैं पोलो खेल को रोमांचक बनाने वाले इन शाही घोड़ों के बारे में-

घोड़ा स्वामिभक्त जानवर जाना जाता है। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा की जान बचाने के लिए एक घाटी में कूद गया था। इसके बाद उसकी जान चली गई। लेकिन महाराणा सकुशल थे। इतिहास घोड़ों की वफादारी के उल्लेख से भरा पड़ा है। घोड़े की नस्ल में ही वफादारी होती है। वह मालिक को खुश करने के लिए हमेशा तत्पर होता है।

होर्स राइडिंग

जयपुर में लोगों का लगाव सिर्फ पोलो तक सीमित नहीं है। लोग अब होर्स राइडिंग के लिए भी बेताब रहते हैं। जयपुर में फिलहाल होर्स राइडिंग नया कन्सेप्ट है। जिनके उदाहरण होर्स राइडिंग क्लबों में देखे जा सकते हैं। जयपुर में चार से पांच होर्स राईडिंग क्लब हैं। जहां घुड़सवारी की जा सकती है। राजस्थान पोलो क्लब राइडिंग स्कूल के अलावा राजपूताना राइडिंग क्लब घुड़सवारी के लिए खास है। इनके साथ ही कुछ अन्य राइडिंग क्लब भी हैं। जहां होर्स राइडिंग के शौकीन लोग हाथ आजमाते हैं।

पोलो के घोड़ों की ट्रेनिंग

भारत में पोलो के घोड़ों की ट्रेनिंग तीन से पांच साल की उम्र में शुरू की जाती है। घोड़े को कम से कम एक साल और अधिकतम तीन साल की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद उसे पोलो ट्रेनिंग मैच में उतारा जाता है। यहां खेल के दौरान भी ट्रेनिंग जारी रहती है। सबसे पहले चार से पांच साल के घोड़े का व्यवहार और प्रकृति समझना जरूरी होता है। प्रकृति के अनुरूप उसे प्रशिक्षण दिया जाता है। शुरूआत घोड़े को दौड सिखाने से होती है। इसके बाद उसे धीरे धीरे मूव करना सिखाया जाता है। फिर इशारों से उसे मैदान में यहां वहां घुमाया जाता है। अनुभवी और दोस्ताना ट्रेनर जल्द ही घोड़े को प्रशिक्षित करने में सक्षम होता है। एक पोलो होर्स अपने जीवन में छह से दस साल तक मैदान में दौडता है। पांच वर्ष से शुरू हुआ उसका यह सफर 13 की उम्र में थमता है। रेस कोर्स के घोडे भी पोलो मैचों में उपयोग में लिए जाते हैं। रेस का घोड़ो दौडने में तो उस्ताद होता ही है। बस पोलो खेल के लिए उसे अलग से ट्रेनिंग दी जाती है। इस घोड़े को ब्रेक लगाना, राइडर और सामने वाले घोड़े को समझना सिखाया जाता है। घोड़े का मैदान के अनुरूप ढलना भी ट्रेनिंग में शामिल होता है।

दुनिया के बेहतरीन पोलो घोड़े

पोलो का एक पूरी तरह प्रशिक्षत घोड़ा चार से बारह लाख तक का होता है। दुनिया के बेहतरीन पोलो घोड़े अर्जेन्टीना व न्यूजीलैंड के होते हैं। वहां के घोड़ों की कीमत दस से बारह लाख तक होती है। बाहर से घोड़े खरीदने पर भारत में इसकी कीमत बीस लाख तक पहुंच जाती है।  घोड़ों की अलग अलग नस्लें भी इन्हें खास बनाती हैं। काठियावाड़ी घोड़े सुंदर, सुडौल लेकिन कम गतिशील होते हैं। इसलिए इनका इस्तेमाल सजावट तक सीमित रहता है। अरबी नस्ल के घोडे कम आकर्षक और कद में छोटे होते हैं। लेकिन इनकी गति तेज होती है। अरबी घोड़े रेगिस्तान में तो काठियावाड़ी घोड़े पथरीली व मैदानी जमीन पर सरपट दौडते हैं। मालानी घोड़े की नस्ल बहुत खास है। यह देश के साथ साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। ये काठियावाड़ी घोड़ों की तरह दिखने में सुंदर और अरबी घोड़ों की तरह चाल में तेज होते हैं। इन घोड़ों की उत्पत्ति काठियावाड़ी और सिंधी नस्ल के मिलने से हुई है।

अश्व विकास कार्यक्रम

बाड़मेर के सिवाना तहसील में इनकी नस्ल सुधार के लिए पशुपालन विभाग की ओर से विशेष अश्व विकास कार्यक्रम चलाया जा रहा है। साथ ही राज्य के विभिन्न घोड़ा बहुल क्षेत्रों में अच्छे नर घोड़े उपलब्ध कराने के लिए बिलाड़ा जोधपुर, सिवाना बाडमेर, मनोहरपुरा थाना झालावाड़, बाली पाली, जालोर, चित्तोडगढ, बीकानेर, उदयपुर व जयपुर में ब्रीडिंग सेंटर भी हैं।

Tags

About the author

Pinkcity.com

Our company deals with "Managing Reputations." We develop and research on Online Communication systems to understand and support clients, as well as try to influence their opinion and behavior. We own, several websites, which includes:
Travel Portals: Jaipur.org, Pinkcity.com, RajasthanPlus.com and much more
Oline Visitor's Tracking and Communication System: Chatwoo.com
Hosting Review and Recommender Systems: SiteGeek.com
Technology Magazines: Ananova.com
Hosting Services: Cpwebhosting.com
We offer our services, to businesses and voluntary organizations.
Our core skills are in developing and maintaining goodwill and understanding between an organization and its public. We also conduct research to find out the concerns and expectations of an organization's stakeholders.

1 Comment

Click here to post a comment

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

  • महिलाओं के लिए ’पोलो कलेक्शन’

    शहर के कॉस्ट्यूम डिजाइनर हिम्मत सिंह ने गायत्री देवी के ’पोलो’ प्रेम के मद्देनजर महिलाओं के लिए पोलो कलेक्शन तैयार किया है। जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी को पोलो खेल और घुड़सवारी का खास शौक था। वे जिस टीम को सपोर्ट करती, उस टीम के खिलाड़ियों की स्पोर्ट कॉस्ट्यूम से मैच खाती साड़ी पहनकर मैदान में जाया करती थीं। हिम्मत सिंह महारानी के इस स्टाइल से प्रभावित हैं और उन्होंने महिलाओं के लिए पोलो कॉस्ट्यूम तैयार की है। उन्होंने महिला पोलो प्लेयर्स के लिए विभिन्न वैराइटी और स्टाइल के पोलो ड्रैस तैयार किए हैं। इसमें 70 के दशके के पोलो पैंट, जैकेट आदि शामिल हैं। इसके अलावा पहली बार स्पोर्ट वेयर को पार्टी वेयर और रॉयल कॉस्ट्यूम के कांबिनेशन के साथ तैयार किया गया है।

Discover more from

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading