जलमहल मामले में कोर्ट का एतिहासिक फैसला आने के बाद भी सरकारी अमला उदासीन है। वे कोर्ट के आदेशों की अनुपालना करते नहीं दिख रहे। अधिकारियों से लेकर खुद मुख्यमंत्री तक यह कहते बच रहे हैं कि कोर्ट का पूरा आदेश पढने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया देंगे। जलमहल स्मारक व मानसागर झील के बारे में कोर्ट का आदेश हाईकोर्ट की वेबसाइट पर भले ही गुरूवार दोपहर करीब दो बजे ही आ गया। लेकिन हकीकत यह है कि सम्बंघित महकमों के मुखियाओं ने वेबसाइट पर डाले गए इस आदेश को अभी तक देखा ही नहीं है। ऎसे में चाहे इसे सरकारी महकमों की कुम्भकर्णी नींद कहें या प्रतिक्रिया देने से बचने का बहाना कि वे शुक्रवार रात तक भी यही कहते रहे कि कोर्ट के आदेश की कॉपी मिलेगी तो ही कुछ प्रतिक्रिया दे पाएंगे। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरूण मिश्रा व न्यायाधीश महेश भगवती की खण्डपीठ ने मानसागर झील की भूमि को निजी मिल्कियत बनाने के उद्देश्य से दी गई लीज को निरस्त करने के आदेश दिए थे। यह भी हिदायत दी थी कि मानसागर को मूल स्वरूप में लौटाते हुए जलभराव क्षेत्र से अतिक्रमण हटाए जाएं।