जयपुर की उम्र 285 वर्ष हो चुकी है। इस दौरान जयपुर की सूरत भी बदली है और इस बदली हुई सूरत में रास्तों ने पड़ाव देखे है। जयपुर की स्थापना के समय इसके मुख्य मार्गो पर मिश्रित लाल मिट्टी की ठोस परत बिछाई गई थी। जन और वाहन के दबाव के चलते वक्त के साथ लाल मिट्टी के इन रास्तों का स्वरूप बदला और इसकी जगह ले ली कोलतार की काली सड़को ने। आज वक्त की रफ्तार इतनी तेज हो गई है कि वक्त इन कोलतार की सड़कों पर नहीं दौड़ सकता। वक्त के साथ कदमताल की जद्दोजहद् में कोलतार की सड़कें उधेड़ी जा रही है, और सीमेंट की सड़के गढ़ी जा रही है। हवामहल रोड़ पर चलने वाले लोग अब आहिस्ता-आहिस्ता इन नई सड़कों को आँखों के सोचो में ढालने की कोशिश कर रहे हैं।
इसी इलाके में बचपन और जवानी गुजार चुके बीएसएनएल के एक सेवानिवृत अधिकारी ब्रजमोहन शर्मा को कहना है कि ‘जरूरत के लिए धरोधरों के साथ मनमानी करना ठीक नहीं है। परकोटे में भारी वाहनों और बसों की एन्ट्री बंद कर देनी चाहिए। परकोटे का पूरा इलाका एक जीवंत म्यूजियम है। कोशिश ये की जानी चाहिए कि युगों तक जयपुर उसी खुबसूरत शक्ल में नजर आए जिए शक्ल में इसने जन्म लिया था।
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