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ईसरलाट- जयपुर का विजयस्तंभ

ईसरलाट यानि सरगासूली जयपुर की विजय का प्रतीक है। यह सात मंजिला अष्टकोणीय मीनार त्रिपोलिया बाजार में दिखाई देती है, लेकिन इसका प्रवेश द्वार आतिश बाजार में से है। इस खूबसूरत मीनार को वर्ष 1749 में राजा ईश्वरीसिंह ने बनवाया था। अपने समय की इस अजूबा इमारत का निर्माण राजशिल्पी गणेश खोवान ने किया था। ईसरलाट के छोटे प्रवेश द्वार में प्रविष्ट होने के बाद एक संकरी गोलाकार गैलरी घूमती हुई उपर की ओर बढ़ती है। हर मंजिल पर एक द्वार बना है जो मीनार की बालकनी में निकलता है। लाट के शिखर पर एक खुली छतरी है जिसपर से जयपुर शहर के चारों ओर का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। अपनी उंचाई से स्वर्ग तक पहुंचने का आभास देने के कारण इस इमारत को ’सरगासूली’ भी कहा गया। जयपुर के इतिहास में ऐसा वर्णित है कि 1743 में महाराजा सवाई जयसिंह की मृत्यू के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र ईश्वरीसिंह ने शासन संभाला। लेकिन उनका सौतेला भाई माधोसिंह गद्दी पर बैठना चाहता था। माधोसिंह ने अपने मामा, उदयपुर के महाराणा और कोटा व बूंदी नरेशों के साथ मिलकर 1744 में जयपुर पर हमला कर दिया। लेकिन ईश्वरी सिंह के प्रधानमंत्री राजामल खत्री और धूला के राव ने करारा जवाब देते हुए हमला विफल कर दिया। लगभग चार साल बाद 1748 में माधोसिंह ने उदयपुर के महाराणा, मल्हार राव होल्कर व कोटा, बूंदी, जोधपुर और शाहपुरा के नरेशों के साथ मिलकर फिर जयपुर पर हमला बोला। जयपुर से 20 मील दूर बगरू में घमासान हुआ। जयपुर की सेना का नेतृत्व सेनापति हरगोविंद नाटाणी ने किया। युद्ध में एक बार फिर जयपुर की जीत हुई। इसी जीत के उपलक्ष में राजा ईश्वरीसिंह ने 1749 में सात खण्डों की इस भव्य मीनार का निर्माण कराया। जयपुर के इतिहास से जुडे कुछ साहित्यों में इस मीनार के निर्माण से संबंधित कुछ किंवदंतियां भी मिलती हैं। कहा जाता है कि राजा ईश्वरीसिंह सेनापति हरगोविंद नाटाणी की पुत्री पर मोहित हो गए थे। उसे देखने के लिए उन्होंने ईसरलाट का निर्माण कराया था।


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