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मंशापूर्ण महादेव मन्दिर

हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति पूजा अर्चना के लिए प्रतिदिन सुबह किसी न किसी मंदिर में अवश्य जाता है। जहाँ उसे मानसिक शान्ति का अनुभव होता है, और वह अपने रोजमर्रा के कार्य शांति से करता है। जयपुर में यूँ तो बहुत से प्राचीन मंदिर है। पर आस-पास के मंदिरों में जयपुर के जवाहर नगर में स्थित मंशापूर्ण महादेव मंदिर प्राचीन मंदिर है, जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि मंशापूर्ण अर्थात् मन की इच्छा पूरी होना। यहाँ शिव पार्वती व गणेश की काँच में बनी प्रतिमा है। जो शिव परिवार की परिचायक है। गणेश की माता-पिता की गोद में बैठी प्रतिमा है। जो मंदिर के बाहर से देखने पर भी सामने की तरह साफ दिखाई देती है। मंदिर में प्रवेश करने पर सर्वप्रथम कीर्तिमुख बना हुआ है। मान्यतानुसार शंकर के दर्शन से पूर्व कीर्तिमुख के दर्शन करना शुभ माना जाता है। फिर आगे प्रांगण में अन्दर की तरफ शिव लिंग बना हुआ है और गणेश, पार्वती नन्दी की संगमरमर से निर्मित प्रतिमा बनी हुई है। अब गणेश प्रतिमा को पीतल से बनवा दिया गया है। दाहिनी तरफ गणेश की बड़ी प्रतिमा व बांयी तफर सिंह पर सवार माँ दुर्गा की मूर्ति बनी है। मूर्ति के पास ही एक हुण्डी बनी हुई है, जिसमें आने वाला कोई भी भक्त अपनी श्रद्धा अनुसार सोने, चांदी व अन्य जवाहरात की कोई भी चीज डाल सकता है और उसी के पास अखण्ड ज्योत जलती रहती है, थोड़ी आगे माँ संतोषी की मूर्ति है। और उसके ठीक सामने विष्णु व लक्ष्मी की मूर्ति बनी हुई है। मंदिर में सुबह व शाम भक्त दर्शन के लिए आते है। मुख्य सड़क पर कोने में होने के कारण यहाँ हमेशा चहल-पहल बनी रहती है। यह आस-पास के बने शिव मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ मंदिर है। यहाँ आने वाले प्रत्येक दर्शनार्थी को सुख-शान्ति का अनुभव होता है। धीरे-धीरे मंदिर का विकास होता गया और मंदिर में साइ बाबा की मूर्ति स्थापित की गई। यहाँ प्रत्येक गुरूवार को साई बाबा का कीर्तन होता है और साइ चालीसा, साइ भजनों को श्रेष्ठ कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक गुरूवार को गरीबों के लिए विशेष रूप से लंगर की व्यवस्था की जाती है। जिसमें 500 रू. की राशि ली जाती है, और उन्ही की तरफ से लंगर करवाया जाता है। महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी पर यहाँ विभिन्न झांकियों का प्रदर्शन भी किया जाता है। महाशिवरात्रि पर विशेष प्रसाद की व्यवस्था की जाती है और भोलेनाथ का मंत्रोच्चार से जलाभिषेक किया जाता है। नवरात्रों में माँ दुर्गा का विशेष श्रृंगार किया जाता है। भक्त अपनी श्रद्धानुसार माँ को साड़ी व चुनरी व अन्य सौन्दर्य सामग्री माँ को चढ़ाते है। और उनका आर्शीवाद प्राप्त करते है। पूरे नौ दिन तक माँ की उपासना पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है। यहाँ बीच-बीच में श्रीमद् भगवत् कथा का पाठ भी प्रसिद्ध संतों द्वारा करवाया जाता है। और शोभायात्रा भी निकाली जाती है। कलश यात्रा भी निकाली जाती है। जिसमें अधिक संख्या में स्त्रियाँ भाग लेती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए उन्हें विशेष रंग की साड़ी भी प्रदान की जाती हैं प्रत्येक माह की पूर्णिमा को यहाँ सत्यनारायण की कथा व प्रसाद का आयोजन किया जाता है। कार्तिक माह में यहाँ कार्तिक कथा भी की जाती है।
मन्दिर में पीछे की तरफ हनुमान मन्दिर, गणेश मन्दिर बना हुआ है। प्रत्येक मंगलवार को इस मन्दिर में कॉफी भीड़ दिखाई देती है। इस मन्दिर में हनुमान जी को लोग मन्नत माँगकर मोली बांधते है व नारियल भेंट करते है। और मन्नन पूरी होने की कामना करते है। इस मन्दिर में भी सुबह व शाम को आरती होती है व प्रसाद वितरण किया जाता है। इस मंदिर में अब ‘‘लक्ष्मीनारायण’’ की विशाल मूर्ति कुछ ही साल पहले स्थापित की गई है। जो देखने में साक्षात् सी लगती है। और लक्ष्मी की छवि बहुत ही सुन्दर प्रतीत होती है। मूर्तिकार ने बड़ी ही बारीकी व कलाकारी से मूर्ति का निर्माण किया है। इसी मन्दिर में माँ काली व माँ दुर्गा की मूर्तियां भी है।


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