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आमेर महल : विश्व विरासत

आमेर महल : विश्व विरासत (Amber Fort : World Heritage)

जयपुर के जंतर मंतर को 2010 में वर्ल्ड हैरिटेज मान लिया गया है। आमेर महल भी इस दौड़ में काफी समय से था। अपने इतिहास, स्थापत्य, खूबसूरती और वर्तमान स्थिती को देखते हुए आमेर महल विश्व विरासत सूची में शामिल कर लिया गया। विश्व की प्रतिष्ठित यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शुक्रवार 21 जून को राजस्थान के छह पहाडी दुर्ग- आमेर, चित्तोडगढ, गागरोन, जैसलमेर, कुम्भलगढ और रणथम्भौर को शामिल कर लिया गया। पूरे देश में 30 विश्व हेरिटेज साईट्स हैं, जिसमें से राजस्थान में पहले घना एवं जन्तर मन्तर को मिला कर दो साईट्स थीं। जो कि अब इन 6 दुर्गों को मिलाकर 8 हो गई हैं। यूनेस्को की टीम और पैनल के समक्ष पुराविरासत विशेषज्ञों द्वारा देश व राज्य का अत्यन्त प्रभावशाली प्रजेन्टेशन किया गया। इस दौरान आमेर महल की विशेष रूप से चर्चा की गई और आमेर के साथ जयगढ को भी इसमें शामिल करने पर जोर दिया गया। किन्तु जयगढ के निजी स्वामित्व में होने के कारण यह संभव नहीं हो सका। फिर भी सरकार निजी सम्पतियों को भी विरासत के रूप में संरक्षित करने का कार्य कर रही है, इसमें पटवों की हवेली, जैसलमेर का कार्य प्रमुख है।

आमेर महल विश्व धरोहर होने के लिए पूरी तरह योग्य था। विश्व विरासत के लिए यूनेस्को द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार आमेर महल की वैश्विक स्तर पर आउट स्टैंडिंग वैल्यू है। इसके अलावा सरकार की ओर से यह संरक्षित भी है। पूरी दुनिया में आमेर महल की अलग पहचान है, वह मौलिक और पूरा बना हुआ है तथा सरकार ने उसका बफर जोन भी तय किया हुआ है। यहां वर्ष 2012 में 14 लाख पर्यटक विजिट कर चुके हैं जिससे 12 करोड तक की आमदनी हुई है।
आइये, जानते हैं कि आमेर महल की कौन सी ऐसी खूबियां हैं जो इसे वैली फोर्ट कैटेगिरी में विश्व विरासत का दर्जा दिलाने में महत्वपूर्ण रही।

इतिहास

आमेर महल का इतिहास शानदार है और इसने यूनेस्को की टीम को बहुत प्रभावित किया। यह महल 12 वीं सदी में पश्चिमी निचले हिस्से से बनना आरंभ हुआ था। आमेर के राजवंश कछवाहा शासक काकिलदेव ने इसकी शुरूआत की थी। जिससे इस महल को उस समय में काकिलगढ भी कहा जाने लगा था। राजपूत शैली से आरंभ हुआ यह महल बाद में यूरोपियन और मुगल स्थापत्य शैलियों से भी विकसित किया गया। आमेर महल के दक्षिणी हिस्से में बारादरी बनाकर यहां महल बनना आरंभ हुआ था। पहले यह महिला और पुरूष दोनों के निवास के लिए था। यह शुरूआत 16 वीं सदी में हुई और कार्य मानसिंह प्रथम ने आरंभ कराया। इसके बाद मिर्जा राजा जयसिंह के समय शीश महल और आसपास के भवनों का निर्माण हुआ। जयसिंह द्वितीय जिन्होंने जयपुर की स्थापना की, उनके समय में गणेश पोल बनाया गया। इसके बीच के राजाओं ने सुख निवास और दीवाने आम की रचना कराई। सवाई जयसिंह द्वितीय ने महल का विस्तार सबसे ज्यादा कराया। उन्होंने जलेब चौक, चांदपोल और गणेश पोल बनवाए। इसलिए उन्होंने इसका प्रयोग जयपुर में भी किया और यहां भी इसी तरह के निर्माण कराए। राजा रामसिंह ने कुछ हिस्सों का नवीनीकरण कराया।

आमेर महल का रक्षात्मक और वॉटर हार्वेवेस्टिंग सिस्टम आज भी कायम है। इन खूबियों ने आमेर महल को दौड़ में शामिल अन्य मॉन्यूमेंट्स से आगे कर दिया । यूनेस्को के सभी पैरामीटरों पर आमेर महल खरा उतरा । इससे जयपुर के पर्यटन पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा। महल का विजिट करने आई यूनेस्को की टीम इस महल के चारों ओर बने कई स्तर  के परकोटों की बनावट और मजबूती को देखकर हैरान थी। महल की निगरानी के लिए आसपास की पहाड़ियों पर बने वॉच टॉवर भी आमेर महल की खूबसूरती को बढ़ाते हैं। यहां मानवीय वैज्ञानिक विधी द्वारा राजपरिवार और सैनिकों के लिए रहट से पानी पहुंचाया जाना और पूरे महल में पाइप व्यवस्था भी चौंकाती है। महल का मिश्रित मुगल और राजपूत स्थापत्य भी इसे अन्य महलों से अलग करता है। महल के बीच खूबसूरत मुगल गार्डन भी टीम के लिए आकर्षण का केंद्र रहा। टीम ने 54 दुर्गों और पहाड़ी महलों की लिस्टिंग की गई थी। जिनमें से छह धरोहरों को नामांकित किया गया। अब तक दुनिया में 962 साइटों को वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में शामिल किया गया है।

बदलना पड़ेगा स्वरूप

प्रपोजल कमेटी के सदस्यों के मुताबिक आमेर महल के मूल स्वरूप में बदलाव का मामला समाने आया है। कुछ हिस्सों में जरूरत के हिसाब से संरक्षण कार्य हुए हैं। जो यूनेस्को की चयन समिति की जानकारी में हैं। फिलहाल उस पर गौर नहीं किया गया है। वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा मिलने के बाद हो सकता है कि फिर से सरकार को बदलाव करना पडे़। जलेब चौक में लगे पत्थर और बाहरी हिस्सों में लगाए गए पत्थर हटाने पड़ सकते हैं

ये होंगे लाभ

आमेर महल को कंबोडिया में यूनेस्को की मीटिंग में विश्व विरासत का दर्जा का दर्जा मिलने के बाद अब इसे पूरी दुनिया में इसे अलग तरह की पहचान मिल जाएगी। जयपुर में विदेशी पर्यटकों की संख्या भी बहुत बढेगी। सरकार पर मॉन्यूमेंट के संरक्षण का दायित्व बढ जाएगा। महल में काई भी निर्माण या बदलाव मनमर्जी से नहीं हो सकेगा। अगर सरकार इस महल के संरक्षण के लिए यूनेस्को से फंड मांगेगी तो समय समय पर फंड मिलता रहेगा। अगर यूनेस्को के पैरामीटर के हिसाब से विश्व विरासत का दर्जा दी गई जगह पर सब कुछ ठीक ठाक न रहा तो दर्जा छीना भी जा सकता है। दो साल पहले जर्मनी की एक साइट से विश्व विरासत का दर्जा छीना जा चुका है।

आमेर महल को रोजाना दस से बाहर हजार पर्यटक देखने आते हैं। वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा मिलने से अब पर्यटक संख्या भी बढेगा। प्रपोजल में पर्यटन विभाग ने पूरी भागीदारी जताई थी। राजस्थान के छह दुर्गों को भी विश्व विरासत का दर्जा मिल चुका है जिसका लाभ जयपुर पर्यटन को निश्चित तौर पर मिलेगा। रणथम्भौर, गागरोन, चित्तौडगढ, कुंभलगढ और जैसलमेर का दुर्ग सभी घाटी दुर्ग, रेगिस्तान और पहाड़ी दुर्ग, जल और पहाड़ी दुर्ग, वन दुर्ग और चोटी पर बने दुर्गों के बेहतरीन उदाहरण हैं।

अब आमेर महल ऑनलाइन

विश्व विरासत में शामिल होने के बाद अब आमेर महल की वेबसाइट बनेगी। यूनेस्को की ओर से आमेर महल को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल करने के बाद सरकार को इसे नेट के जरिए दुनियाभर में हाईलाइट करने की सुध आई है। प्रशासन टैक्नो फ्रेंडली होकर आमेर महल की वेबसाइट बनाने में जुट गया है। आर्ट एंड कल्चर विभाग राजस्थान की ओर से महल को ऑनलाइन करने की निर्देश जारी किए जा चुके हैं। पिछले कई वर्षों से विशेषज्ञों और पर्यटकों की ओर से आमेर महल की वेबसाइट बनाने की मांग की जा रही थी। विश्व विरासत में शामिल होने के बाद प्रशासन ने उदासीनता छोडते हएु साइट बनाने को हरी झंडी दिखा दी है। इससे पहले जयपुर के जंतर मंतर को वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल किए जाने के बाद प्रशासन ने इसकी वेबसाइदट बनवाई थी। वेबसाइट पर टूरिस्ट हाथी सवारी की ऑनइलाइन बुकिंग भी करवा सकेंगे। इसके लिए वेबसाइट में अलग से बुकिंग का विकल्प होगा। साइट में एंट्री टिकट के साथ कंपोजिट टिकट बुकिंग का विकल्प भी होगा। इस टिकट में टूरिस्ट जंतर मंतर, हवामहल, अल्बर्ट हॉल देख सकेंगे। जिसके बाद पर्यटकों को टिकट खरीदने में परेशानी नहीं होगी।

शीशमहल से दीवाने खास तक की जानकारी-

आमेर महल की साइट पर आमेर महल से जुडी कई सूचनाएं, चित्र और दृश्य सामग्री देखी जा सकेगी। आमेर महल स्थित शीशमहल, दीवाने खास, वास्तुशिल्प, भित्तिचित्रों के अलावा ऐतिहासिक सुरंग, बैराठी की हवेली, मावठा झील , हाथी सवारी आदि की पूरी जानकारी भी साइट पर देखने को मिलेगी। साइट में हिंदी और अंग्रेजी में पेज होंगे जो देशी विदेशी दूरिस्ट के लिए उपयोगी साबित होंगे। इसमें टूरिस्ट की सुविधा के लिए मैप भी डिजाइन होगा जिससे उसे होटल और एयरपोर्ट का लिंकअप जानने में मदद मिलेगी।


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