रणथम्भौर राष्ट्रीय अभ्यारण्य (Ranthambhor National Park)
रणथम्भौर राष्ट्रीय अभ्यारण्य अपनी खूबसूरती, विशाल परिक्षेत्र और बाघों की मौजूदगी के कारण विश्व प्रसिद्ध है। अभ्यारण्य के साथ साथ यहां का ऐतिहासिक दुर्ग भी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। लंबे समय से यह नेशनल पार्क और इसके नजदीक स्थित रणथंभौर दुर्ग पर्यटकों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।
रणथम्भौर राष्ट्रीय अभ्यारण्य उत्तर भारत के सबसे बड़ा राष्ट्रीय अभ्यारण्यों में से एक है। इस अभ्यारण्य का निकटतम एयरपोर्ट कोटा है जो यहां से केवल 110 किमी की दूरी पर स्थित है जबकि जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट 130 किमी की दूरी पर है। राजस्थान के दक्षिण पूर्व में स्थित यह अभ्यारण्य सवाईमाधोपुर जिले में स्थित है जो मध्यप्रदेश की सीमा से लगता हुआ है। अभ्यारण सवाईमाधोपुर शहर से के रेल्वे स्टेशन से 11 किमी की दूरी पर है। सवाईमाधोपुर रेल्वे स्टेशन से नजदीकी जंक्शन कोटा है जहां से मेगा हाइवे के जरिए भी रणथंभौर तक पहुंचा जा सकता है।
रणथंभौर को भारत सरकार ने 1955 में सवाई माधोपुर खेल अभ्यारण्य के तौर पर स्थापित किया था। बाद में देशभर में बाघों की की घटती संख्या से चिंतित सरकार ने इसे 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर अभ्यारण्य घोषित किया और बाघों के संरक्षण की कवायद शुरू की। इस प्रोजेक्ट से अभ्यारण्य और राज्य को लाभ मिला और रणथंभौर एक सफारी पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन गया। इसके चलते 1984 में रणथंभौर को राष्ट्रीय अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया। 1984 के बाद से लगातार राज्य के अभ्यारण्यों और वन क्षेत्रों को संरक्षित किया गया। वर्ष 1984 में सवाई मानसिंह सेंचुरी और केवलादेव सेंचुरी की घोषणा भी की गई। बाद में इन दोनो नई सेंचुरी को भी बाघ संरक्षण परियोजना से जोड़ दिया गया।
बाघों की लगातार घटती संख्या ने सरकार की आंखें खोल दी और लम्बे समय से रणथंभौर अभ्यारण्य में चल रही शिकार की घटनाओं पर लगाम कसी गई। स्थानीय बस्तियों को भी संरक्षित वन क्षेत्र से धीरे धीरे बाहर किया जाने लगा। बाघों के लापता होने और उनकी चर्म के लिए बाघों का शिकार किए जाने के मामलों ने देश के चितंकों को झकझोर दिया था। कई संगठनों ने बाघों को बचाने की गुहार लगाई और वर्ष 1991 के बाद लगातार इस दिशा में प्रयास किए गए। बाघों की संख्या अब भी बहुत कम है और अभ्यारण्यों से अभी भी बाघ लापता हो रहे हैं। ऐसे में वन विभाग को चुस्त दुरूस्त को होना ही है, साथ ही हाईटेक होने की भी जरूरत है।
रणथंभौर वन्यजीव अभयारण्य दुनियाभर में बाघों की मौजूदगी के कारण जाना जाता है और भारत में इन जंगल के राजाओं को देखने के लिए भी यह अभ्यारण्य सबसे अच्छा स्थल माना जाता है। रणथम्भौर में दिन के समय भी बाघों को आसानी से देखा जा सकता है। रणथम्भौर अभ्यारण्य की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय नवंबर और मई के महीने हैं। इस शुष्क पतझड़ के मौसम में जंगल में विचरण करते बाघ आसानी से दिखाई देते हैं और उन्हें पानी के स्रोतों के आस पास देखा जा सकता है। रणथम्भौर के जंगल भारत के मध्यक्षेत्रीय शानदार जंगलों का एक हिस्सा थे। लेकिन बेलगाम वन कटाई के चलते भारत में जंगल तेजी से सीमित होते चले गए और यह जंगल मध्यप्रदेश के जंगलों से अलग हो गया।
रणथम्भौर राष्ट्रीय अभ्यारण्य हाड़ौती के पठार के किनारे पर स्थित है। यह चंबल नदी के उत्तर और बनास नदी के दक्षिण में विशाल मैदानी भूभाग पर फैला है। अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 392 वर्ग किमी है। इस विशाल अभ्यारण्य में कई झीलें हैं जो वन्यजीवों के लिए अनुकूल प्राकृतिक वातावरण और जलस्रोत उपलब्ध कराती हैं। रणथंभौर अभ्यारण्य का नाम यहां के प्रसिद्ध रणथम्भौर दुर्ग पर रखा गया है।
रणथम्भौर को बाघ संरक्षण परियोजना के तहत जाना जाता है और यहां बाघों की अच्छी खासी संख्या भी है। समय समय पर जब यहां बाघिनें शावकों को जन्म देती हैं। तो ऐसे अवसर यहां के वन विभाग ऑफिसरों और कर्मचारियों के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होते। खैर, इस अभ्यारण्य को बाघों को अभ्यारण्य कहा जाता है लेकिन यहां बड़ी संख्या में अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी भी है। इनमें तेंदुआ, नील गाय, जंगली सूअर, सांभर, हिरण, भालू और चीतल आदि शामिल हैं। यह अभ्यारण्य विविध प्रकार की वनस्पति, पेड पौधों, लताओं, छोटे जीवों और पक्षियों के लिए विविधताओं से भरा घर है। रणथम्भौर में भारत का सबसे बड़ा बरगद भी एक लोकप्रिय स्थल है।