ऑनेस्टी इज दी बेस्ट पॉलिसी
“#ईमानदारी“
बचपन में पड़ा था कि “ऑनेस्टी इज दी बेस्ट पॉलिसी” पर क्या सच में #ईमानदारी सबसे अच्छी नीति हैं?
ईमानदारी क्या होती है? इसका जवाब हर कोई अपनी समझ के अनुसार दे सकता हैं पर क्या ईमानदार होना अच्छा हैं या इसके दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं? अगर आज के सामाजिक वातावरण की बात करें तो इसके दुष्परिणाम ही ज्यादा देखने को मिल रहे हैं और इस वर्ष ने तो इसको प्रमुखता से सामने लाकर रख दिया हैं।
वर्ष 2020 ने दुनिया को कई रंग दिखाये हैं, यह वर्ष सभी मनुष्यों के लिए जीवनपर्यंत ना भूलने वाली विस्मयकारी घटना हैं। अब यह यक्ष प्रश्न की #ईमानदारी “अच्छी” हैं या इसके “दुष्परिणाम” ज्यादा हैं का जवाब कैसे दिया जाये??
चलिये इसके लिए हाल ही में घटी कुछ घटनाओं पर एक नज़र डालते हैं जैसे मशहूर अभिनेता #सुशांतसिंह एवं राजस्थान के इंस्पेक्टर विष्णुदत्त बिश्नोई की #आत्महत्या हो या #कोरोना काल में #लॉकडाउन के बाद #मध्यमवर्गी लोगों के लिए चुनोतियाँ.. अब आप सोच रहे होंगे की क्या समानता है इन सभी में??
समानता हैं ना! यह सभी ईमानदार हैं या थे.. अपने काम के प्रति, समाज के प्रति, देश के प्रति.. इन सभी ने अपने जीवन की कमियों एवं चुनोतियों से लड़ कर, डट कर उनका सामना करते हुए अपनी कर्तव्यनिष्ठा का परिचय देते हुए एक मुक़ाम हासिल करने की तरफ “ईमानदारी” से अपने कदम उठाए…
तो इनको आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाना पड़ा या आगे भी कुछ लोगों को उठाना पड़ सकता हैं?? इसका जवाब हमे “#महाभारत” युद्ध के एक प्रसंग से मिल सकता है.. #अभिमन्यु याद है आपको? अभिमन्यु, जो की स्वमं एक महान योद्धा और अर्जुन के पुत्र थे, जब वीरता से युद्ध में लड़ते हुए लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे तो दूसरे खेमे में एक हलचल मच गयी… दूसरे खेमे में सब बड़े बड़े राजा महाराजा थे .. तो वो यह कैसे बर्दाश्त करते की एक नवयुवक इतनी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और वीरता से उनके सामने लड़ रहा है, बस फिर क्या था सबने मिलकर एक #चक्रव्यूह की रचना की और अभिमन्यु को उसमें फँसा लिया.. बस यही एक गलती उस महान योद्धा ने कर दी की वो इस चक्रव्यूह को भेद नहीं पाया और उसे मृत्यु का वरण करना पड़ा।
आज भी समाज के हर क्षेत्र में ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोगों को उच्च पंक्ति में बैठे कुछ लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते और सब एक समूह बनाकर उनको चक्रव्यूह में फँसाने का काम लगातार अनवरत रूप से करते रहते हैं… कुछ साहसी लोग इस चक्रव्यूह को भेद कर अपना रास्ता बदलते हुए मंज़िल तक पहुँच जाते हैं परन्तु ज्यादातर इसमें फँस जाते है और या तो वो अपनी ईमानदारी को घुटनों पर रख देते हैं या फिर मृत्यु का दामन थाम लेते हैं.. सुशांत सिंह एवं विष्णु दत्त बिश्नोई के उदहारण हमारे सामने हैं।
आज इस लॉकडाउन के बाद अब ज्यादातर #मध्यमवर्गी लोगों के सामने भी यह संकट विकराल चक्रव्यूह का रूप ले चुका हैं…अगर हम आसपास नज़र दौड़ाये तो जो गरीब हैं और जो अमीर हैं.. दोनों ही के पास खोने को ज्यादा नहीं है पर हम मध्यमवर्गी तबके के लिए तो इधर खाई और उधर कुआँ हैं.. कहाँ जाये?? अब तक जो ईमानदारी से मेहनत करके एक अदद सी नोकरी या छोटा सा व्यवसाय खड़ा किया था वो तो कोरोना काल के भेंट चढ़ गया.. ईमानदारी का दुष्परिणाम यह हुआ की कोई ज़ायदाद भी नहीं जोड़ पाये.. सामाजिक रस्मों रिवाजों को निभाने के लिए मासिक बंधी के चक्रव्यूह में फँसे हुए हैं और सामने कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा जिसे भेद कर आगे बड़ा जाये… तो क्या इस ईमानदारी की सज़ा भुगतने के लिए तैयार रहा जाये??
इसका जवाब तो #काल की गति में छुपा हुआ हैं परंतु वर्ष 2020 की घटनाओं से समाज को एवं इस देश के लोगों को कुछ #सबक जरूर सीखने की आवश्यकता है.. जरुरत है उन समूह एवं ऐसी सामाजिक रस्मों रिवाजों को पहचानने की जो ईमानदार और कर्मठ लोगों को फँसाने के लिए चक्रव्यूह रचने का ही कार्य करते हैं…
#भविष्य के सुखद निर्माण के लिए इस चक्रव्यूह के रचनाकारों को प्रतिबंधित करना ही होगा… ताकि फिर किसी ईमानदार व्यक्ति को इसके दुष्परिणाम ना भुगतने पड़े।
आपके उज्जवल भविष्य की शुभकामना के साथ स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें!!🙏🙏
प्रेरणा की क़लम से ✍️✍️
Super