परकोटा इलाके में प्राचीन और ऐतिहासिक इमारतों के टूटे हिस्सों का पुननिर्माण कार्य चल रहा है। एक सुखद बात यह है कि इस निर्माण कार्य को बहुत ही सावधानी से किया जा रहा है, स्थापत्य के जानकार कारीगर, लाल चूने का मसाला और गेरूएं रंग का इस्तेमाल कर इन मरती हुई इमारतों को नया जीवन दिया जा रहा है।
कुछ समय पूर्व लोगों की मनमानी और सरकार की ढिलाई के कारण परकोटा के मुख्य बाजारों में यत्र-तत्र सीमेंट से बेतरतीब निर्माण धड़ल्ले से किया गया। लेकिन अब किए जा रहे निर्माण में जयपुर की परंपरा और संस्कृति का खास ख्याल रखा जा रहा है। परकोटे की स्थापत्य कला इतनी मनमोहक और लोकप्रिय है कि परकोटे से बाहर सीमेंट नई गढ़ी जा रही कई इमारतों को भी पारंपरिक लुक देने की कोशिश की जाती रही है। कई होटलों को जयपुर की भित्तिशैली, चित्रकारी, पारंपरिक स्थापत्य से सजाने का प्रयास किया गया है। जयपुर रेल्वे जंक्शन की इमारत भी परकोटे की इमारतों की नकल नजर आती है। वहीं शिक्षा संकुल कार्यालय हो या उप रेल्वे का मालवीय नगर स्थित नया कार्यालय। जयपुर की छाप नजर आ ही जाती है।
परकोटे की ऐतिहासिक बनावट को फिर से उसी शक्ल में गढ़ते तल्लीन कारीगरों को देख न केवल आम शहरवासियों को सुकुन मिल रहा है, बल्कि यहां आने वाले पर्यटक भी इस कदम को सुखद और सराहनीय बता रहे है।