आज की भाग दौड़ वाली जिन्दगी में माता-पिता दोनो ही अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते है। ऐसे में बच्चों के पास टी.वी. देखने, कम्प्यूटर पर गेम खेलने के अलावा दूसरा कोई काम नही रहता है। वो सारा दिन टी.वी. ही देखते रहते है। फिर माता-पिता द्वारा प्रताडित किये जाते है। ज्यादा टी.वी. मत देखो आँखे खराब हो जायेगी। ऐसे में बच्चों के पास एक ही जवाब होता हैं। और क्या करे। कहाँ जायें क्या खेलें। एक जगह बैठे-बैठे बच्चों के शरीर में चर्बी बढ़ने लगती है। और छोटी उम्र में ही बच्चे मोटापे का शिकार हो जाते है। उनका शरीरिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पाता। इसलिए बच्चों को ऐसे खेलो के प्रति प्रेरित करें जो शारीरिक विकास के लिए आवश्यक हो। कुछ ऐसे ही खेल है। जिससे बच्चो के शरीर में उर्जा का संचार होता है। और शरीर में खून का संचरण अच्छी प्रकार से होता रहता है।
रस्सी कूदना – रस्सी कूदना सबसे अच्छा शारीरिक खेल है। इससे शरीर की माँसपेशिया खुलती है। अंगो का विकास होता है। और शरीर की लम्बाई बढ़ाने में सहायक है। इससे शरीर को अतिरिक्त उर्जा मिलती है।
तीन टाँग की दौड़ – इस खेल में दो साथियों की जरूरत होती है। एक साथी का दाहिनां पैर और दूसरे का बांया पैर किसी रस्सी सें अच्छी तरह बांधा जाता है। फिर दोनों अपने-अपने हाथ को एक दूसरे की कमर से पकड़ लेते है। और दौड़ लगाते है। इससे संतुलन बनाये रखने की क्षमता बढ़ती है, और पैरो का व्यायाम होता है।
गिटटे खेलना – ये हाथों द्वारा खेले जाते है। इससे एकाग्रता बढ़ती है। गिटटे संगमरमर के बने हुए भी मिलते है, नही तो छोटे-छोटे पत्थर भी लेकर इसे खेला जाता है। पत्थरों की सख्ंया पाँच होती है। चार पत्थर जमीन पर रखने होते है, और एक पत्थर को हाथ में लेकर उछालकर एक-एक पत्थर को हाथ में लेना होता हैं। फिर दूसरी पारी में दो पत्थरों को एक साथ उठाना होता है, फिर तीन पत्थरों को, और अन्त में चारों को एक साथ एक ही पत्थर से उठाना होता है। इससे एकाग्रता बढ़ती है, फिर कोठी बनाकर, शेर बनाकर, कुत्ता बनाकर, हाथों से एक-एक पत्थर को इसके अन्दर डाला जाता है। ये खेल भी बहुत ही मजेदार और अच्छा है।
पहलदूज – इसे घर पर फर्श पर बनाकर भी खेला जाता हैं। और मिट्टी में हाथ से बनाकर भी खेला जाता है। इससे हाथों, पैरों और मस्तिश्क का विकास होता है। फर्श पर ईंट की सहायता से आयताकार लाइनें बनायी जाती है। फिर इनके अन्दर छ: खाने बनाते है। 1से 3 तक तो खाली बनाते है, और चौथा-पाँचवा, सातंवा-आठवां खाना दो भागों में बँटा होता है। छटा खाना भी खाली होता है। इसे प्लेन पत्थर से खेला जाता है। लाइन से बाहर खड़े होकर पहले खानें में पत्थर फेंका जाता है। जो किसी भी खानें में जाकर गिर सकता है। अगर पत्थर लाइन के ऊपर गिरता है, तो खिलाड़ी को आउट माना जाता है। इसे लगंड़ी टाँग द्वारा खेला जाता है। और लगंड़ी टाँग से ही खाने में से पत्थर उठाना पड़ता है। चौथे खाने में विश्राम के लिए दोनों पैर रख सकतें है। जो सबसे पहले सारे खाने को अच्छी तरह से पार कर लेता है। उसका वो घर बन जाता है। और उसमें वो अपना नाम लिख लेता है।