हिन्दी अनुरागिनी युवरानी सुर्यकुमारी
शाहपुरा जिला भीलवाड़ा
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की स्वतंत्र रियासत रहा शाहपुरा कला, साहित्य, एवं अध्यात्मिक क्षेत्र में देश में विशिष्ट स्थान रखता है। हिंदी व राजस्थानी भाषा के अनेकों साहित्यकारों ने भाषा के उत्थान के लिए अपना उल्लेखनीय योगदान दिया है। यहां रियासत काल में ही एक ऐसी विदूषी युवरानी श्रीमती सुर्यकुमारी जी का उल्लेख है। शाहपुरा नरेश श्रीउम्मेदसिंह द्वितीय की धर्मपत्नी सुर्यकुमारी का युवावस्था में ही 8 अगस्त 1913 को हो गया था। जयपुर राजयांर्तगत खेतड़ी ठिकाने के राजा अजीतसिंह की बड़ी पुत्री थी सुर्यकुमारी। उनके कोई संतान जीवित नहीं रहती थी। लंबी बिमारी के चलते मृत्यु के समय सुर्यकुमारी ने अपनी दो अंतिम इच्छाओं में एक हिन्दी भाषा को समृद्व बनाने की थी। उन्होंने कहा था हिंदी के लिए कुछ किया जाए। सुर्यकुमारी स्वामी विवेकानंद जी के ग्रंथो, व्याख्यानों और लेखो से बहुत अत्यधिक प्रभावित थी।
शाहपुरा नरेश उम्मेदसिंह ने युवरानी की अंतिम इच्छा के अनुरूप हिन्दी भाषा के उत्थान व उसकी समृद्वि के लिए आज से सौ वर्ष पूर्व एक लाख रू इस पुनित कार्य के लिए दिये थे। यहीं नहीं शाहपुरा नरेश ने प्रसिद्व कहानीकार पं. चंद्रधर शर्मा गुलेरी के परामर्श से 17 हजार रू काशी नगरी प्रचारीणी सभा को दिये। यहां से हिंदी भाषा में श्री सुर्यकुमारी पुस्तकमाला का प्रकाशन किया गया। स्वयं पं. शर्मा सुर्यकुमारी की विद्वता के कायल थे।
राजकुमारी का हिंदी भाषा के प्रति समर्पण का भाव देखते हुए इस पुस्तकमाला का संपादन भी स्वयं पं. गुलेरी ने ही किया। पुस्तकमाला के आरभिंक परिचय में पं. गुलेरी ने लिखा कि श्रीमती सुर्यकुमारी जी का अध्ययन बहुत विस्तृत था। उनका हिंदी पुस्तकालय भी परिपूर्ण था। वे हिंदी इतनी अच्छी लिखती थी और उनके अक्षर इतने सुंदर थे कि उसे देखने वाला चमत्कृत रह जाता।
ऐसा माना जाता है कि सुर्यकुमारी जी बाल्यकाल से ही स्वामी विवेकानंद के उपदेशों, व्याख्यानो, लेखों से प्रभावित थी। विशेषकर अद्वेत वेंदात में उनकी गहरी रूचि थी। अपने स्वर्गवास से कुछ समय पूर्व उन्होंने कहा था कि स्वामी विवेकानंद जी के सब ग्रंथों, व्याख्यान व लेखों का प्रमाणिक हिंदी अनुवाद में छपवाउंगी।
शाहपुरा के इतिहास काल सौरभ में इस बात का स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि काशी प्रचारिणी सभा ने सुर्यकुमारी पुस्तकमाला श्रृंखला में स्वामी विवेकानंद जी के ग्रंथो का अनुवाद वर्षो तक प्रकाशित हुआ। तथा प्रकाशित ग्रंथो को देश विदेश में रूचि से पढ़ा जाता था। इस पुस्तकमाला की आज क्या स्थिति है किसी को पता नहीं है। कितने व कौनसे गंथ उसके बाद प्रकाशित हुए, कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं हो पायी है।
राजा उम्मेदसिंह के राज में हिन्दी भाषा के उन्नयन के लिए निरंतर प्रयास किया जाता रहा। उन्होंने इस कार्य के लिए विश्व विख्यात गुरूकुल विश्वविद्यालय कांगड़ी को 30 हजार रू की आर्थिक सहायता भी दी। वहां श्री सुर्यकुमारी चेयर की स्थापना की गई तथा पांच हजार रू की अतिरिक्त राशि से श्री सुर्यकुमारी ग्रंथमाला प्रकाशन की व्यवस्था की गई। इस ग्रंथमाला में प्रथम ग्रंथ योगेश्वर कृष्ण प्रकाशित हुआ। इसके बाद प्रकाशित हुए ग्रंथ भी सार्वजनिक नहीं हो सके है। शाहपुरा के दरबार हायर सैंकडरी स्कूल में भी उस समय श्री सुर्यकुमारी विज्ञान सभा भवन की स्थापना की गई थी परंतु वो भी शायद अब नजर नहीं आता है।
स्वतंत्र रियासत रही शाहपुरा की धरा पर ऐसी विदुषी युवरानी जिसका जीवन हिंदी भाषा को समर्पित था, आज उनके निधन के 100 वर्ष पूर्ण होने पर संपूर्ण देश हिंदी भाषा उन्नयन हेतु उनके द्वारा किये गये प्रयासों के प्रति नतमस्तक है। उस महान विदूषी की निर्वाण शताब्दी वर्ष इन उनके द्वारा हिंदी उन्नयन के लिए कार्यो को याद करने व उनके नाम से संचालित कार्यो को पुन: प्रांरभ करने की महत्ती आवश्यकता है तभी उनको सच्ची श्रृद्धांजलि दी जा सकती है। उनकी स्मृति को भी अक्षुण्य बनाये रखने की महत्ती आवश्यकता है।
मूलचंद पेसवानी
68 गांधीपुरी शाहपुरा जिला भीलवाड़ा
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