लोहागढ़ दुर्ग : भरतपुर (Lohagarh Fort : Bharatpur)
राजस्थान शौर्य और वीरता की गाथाओं से भरा हुआ है। राजपूतों के शौर्य और वीरता के आगे मुगलों और ब्रिटिशों ने घुटने टेक दिए। राजस्थान के राजपूतों के इसी शौर्य को यहां के दुर्गों ने एक असीम ताकत दी। भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग भी ऐसा ही दुर्ग है जिसने राजस्थान के जाट शासकों का वर्षों तक संरक्षण किया। छह बार इस दुर्ग को घेरा गया लेकिन आखिर शत्रु को हारकर पीछे हटना पड़ा। लोहे जैसे मजबूती के कारण ही इस दुर्ग को लोहागढ़ या आयरन फोर्ट कहा गया।
लोहागढ़ : राजस्थान का प्रवेशद्वार
लोहागढ़ दुर्ग राजस्थान के प्रवेशद्वार भरतपुर में स्थित है। यह लोहे जैसा मजबूत दुर्ग भरतपुर के जाट शासक सूरजमल द्वारा निर्मित कराया गया था। महाराजा सूरजमल एक शक्तिशाली और समृद्ध शासक थे। उन्होंने कई दुर्गों का निर्माण कराया। दुर्गों के इतिहास पर नजर डाली जाए तो लोहागढ़ सबसे मजबूत किला नजर आएगा। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने इस दुर्ग की चार बार घेराबंदी की लेकिन हर बार उन्हें घेरा उठाना पड़ा।
सन 1805 में ब्रिटिश जनरल लॉर्ड लेक ने बड़ी सेना लेकर इस दुर्ग पर हमला कर दिया था। यह उनका दूसरा प्रयास था लेकिन फिर भी वे दुर्ग हासिल नहीं कर सके और उन्हें 3000 सैनिक खोने के बाद राजा से समझौता कर पीछे हटना पड़ा। इस दमदार किले के दो दरवाजे हैं, उत्तर में आठ बुर्जों वाला दरवाजा अष्टबुर्जा कहलाता है, यह दरवाजा अष्टधातु से बना हुआ है। जबकि दक्षिणी छोर वाले दरवाजे को चारबुर्जा कहा जाता है। दुर्ग में कई स्मारक, महल, छतरियां और जलाशय हैं। इनमें किशोरी महल, महल खास और कोठी खास महत्वपूर्ण हैं। यहां का मोती महल और दो मीनारें जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज अंग्रेजों और मुगलों पर जीत के उपलक्ष में निर्मित की गई थी। दुर्ग के मुख्यद्वार पर पत्थर पर उकेरे गए विशाल हाथी आकर्षण का केंद्र हैं।
लोहे जैसी मजबूती
लोहागढ़ का निर्माण अठारहवीं सदी में कराया गया था। सुरक्षा को और अधिक पुख्ता करने के लिए लोहागढ़ के चारों ओर गहरी खाई खुदवाकर पानी भरवाया गया। आज भी इस दुर्ग के चारों ओर खाई और पानी मौजूद है। खास बात यह है कि यह किला दो ओर से मिट्टी की दीवारों से सुरक्षित किया गया था। इन मिट्टी की दीवारों पर तोप के गोलों और गोलियों का असर नहीं होता था और इनके अंदर छुपा दुर्ग सुरक्षित रहता था। मिट्टी की दीवारों से इतनी पुख्ता सुरक्षा के कारण एक कहावत घर घर में चल पड़ी थी कि जाट मिट्टी से भी सुरक्षा के उपाय खोज लेते हैं। दुर्ग के चारों ओर 150 फीट चौड़ी और 50 फीट गहरी खाई खोदकर भी उन्होंने दुर्ग की सुरक्षा को इतना मजबूत बना दिया था कि इस छोटे दुर्ग पर कब्जा करने का अवसर न मुगलों को मिला और न ब्रिटिश को। कहा जाता था कि दुर्ग के चारों ओर खाई में भरे पानी में सैंकड़ों मगरमच्छ छोड़े गए थे। अगर सेनाएं पानी में तैरकर दुर्ग तक पहुंचने की कोशिश करतीं तो ये मगरमच्छ उन्हें फाड़कर खा जाया करते थे। नौकाओं को पलट दिया करते थे और पानी में गिरे शख्स का बुरा हाल करते थे।
दुर्ग के मुख्यद्वार को खाई के ऊपर ईंट और पत्थर के एक कृत्रिम पुल से जोड़ा गया था। मुख्यद्वार पर बने हाथियों के विशाल और खूबसूरत भित्तिचित्र समय की धूल खाकर धुंधले पड़ गए हैं लेकिन लोहागढ़ आज भी अपनी मजबूती और गौरवशाली इतिहास पर इतराता शान से खड़ा है।
चित्तौड़ का द्वार
ऐसा विश्वास किया जाता हे कि भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग असल में चित्तौड़गढ़ दुर्ग का प्रवेशद्वार था। लेकिन दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने इसे हथिया लिया। सत्रहवीं सदी में जाट सेनाओं ने एकजुट होकर मुगलों से यह दुर्ग वापिस छीन लिया। यह दुर्ग राजस्थान के अन्य किलों से अलग है। स्थापत्य के लिहाज से भले यह चमत्कृत करने वाली खूबसूरती से ओत-प्रोत नहीं है लेकिन मजबूती में इस किले जैसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। अपनी मजबूत बनावट और शक्ति के बल पर यह असीम आभा से भरा हुआ दुर्ग प्रतीत होता है।
कैसे पहुंचें लोहागढ़ दुर्ग
भरतपुर जयपुर-आगरा हाइवे पर स्थित है इसलिए जयपुर, आगरा और दिल्ली से बस या कार द्वार सुलभता से लोहागढ़ पहुंचा जा सकता है। भरतपुर दिल्ली मुंबई ब्रॉड गेज लाइन और दिल्ली आगरा जयपुर अहमदाबाद लाइनों से भी जुड़ा है। इसलिए ट्रेन द्वारा पहुंचकर भी लोहागढ़ के दर्शन किए जा सकते हैं। जयपुर सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है, जयपुर एयरपोर्ट से पांच-छह घंटों का सफर कर भरतपुर पहुंचा जा सकता है।
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