जयपुर, 15 नवंबर। नई दिल्ली के बीकानेर हाउस में मुख्य सचिव श्री डी बी गुप्ता की अध्यक्षता में हितधारकों की पहली परामर्श बैठक आयोजित की गई जिसमें राजस्थान के खान सचिव, डीएमजी राजस्थान,एम.डी.आर.एस.एम.एम.एल, सी.एम.डी, एम.ई.सी.एल, जीएसआई तथा विभिन्न सी.पी.एस.ई, कारपोरेट और कंसलटेंसी कंपनियों के वरिष्ठ प्रतिनिधियों सहित टाटा केमिकल्स, एफ.सी.आई, इफको, एच.जेड.एल और एफ.ए.जी.एम.आई.एल. आदि के प्रतिनिधि शामिल थे।

बैठक में डीएमजी, जीएसआई और एमईसीएल ने पोटाश और नमक के भंडार के दोहन से संबंधित विभिन्न तकनीकी पहलुओं पर विस्तृत प्रस्तुति दी।
मुख्य सचिव श्री डी.बी.गुप्ता ने बैठक में बताया कि राज्य स्तरीय उच्चाधिकार समिति के अध्यक्ष होने के नाते वह नियमित रूप से प्रस्तावों का समयबद्ध कार्यान्वयन की निगरानी करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि देश वर्ष 2013-14 से 2018-19 तक प्रति वर्ष 3 से 5 मिलियन टन पोटाश का आयात कर रहा है और पोटाश की मांग 6-7 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है, जिससे आयात बिल में वृद्धि होगी ।
उन्होंने कहा कि राजस्थान में पोटाश के भंडार के विकास और दोहन को देखने से पता चलता है कि उसमें पोटाश के निर्यात परिदृश्य को बदलने की क्षमता है। मुख्य सचिव ने बताया कि वर्तमान में भारत द्वारा आवश्यक संपूर्ण पोटाश आयातित आपूर्ति पर आधारित है। विदेशी मुद्रा पर भारी व्यय के अलावा केंद्र सरकार सब्सिडी पर 10,000-15,000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष की दर से सब्सिडी पर एक बड़ा भाग खर्च करती है। इस मुद्दे को हल करने और पोटाश की स्वदेशी सॉल्यूशन माइनिंग तकनीक उत्पन्न करने की दृष्टि से राजस्थान सरकार ने देश की पोटाश आवश्यकताओं के संबंध में एक आत्मनिर्भरता के स्तर तक पहुँचने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।
उन्होंने कहा कि भूगर्भीय अध्ययन के अनुसार, राजस्थान के नागोर-गंगानगर बेसिन में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिलों के कुछ हिस्सों में लगभग 2400 मिलियन टन पोटाश के भंडार हैं।
श्री डी.बी. गुप्ता ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा की जा रही जांच के आधार पर राजस्थान सरकार ने विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान में पोटाश भंडार का दोहन करने के लिए एक राज्य स्तरीय उच्चाधिकार समिति का गठन किया है। राजस्थान सरकार ने एमईसीएल को विस्तृत व्यवहार्यता रिपोर्ट के लिए एक कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में नियुक्त किया है।
मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि राजस्थान सरकार ने समयबद्ध कार्य योजना के लिए निर्णय लिया है जो आरएसएमएमएल, एमईसीएल और डीएमजीआर के बीच प्रस्तावित एमओयू के 6 महीने के भीतर पूरा हो जाएगा। उन्होंने आगे बताया कि सचिव खान और पेट्रोलियम के मार्गदर्शन में एक राज्य खनिज अन्वेषण ट्रस्ट की स्थापना करने जा रहा है। जो भूवैज्ञानिक संभावित क्षेत्रों में दुर्लभ पृथ्वी तत्व, प्लेटिनम, कीमती धातुएँ, सोना और चाँदी, बेस मेटल और औद्योगिक, आयामी और सजावटी खनिजों के एक्सप्लोरेशन और दोहन के लिए कार्य करेगा।
सचिव, खान और पेट्रोलियम, श्री दिनेश कुमार ने हितधारकों से कहा कि राजस्थान का खान विभाग इस मुद्दे को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है और सरकार समयबद्ध कार्यान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है।
श्री गौरव गोयल, निदेशक खान और भूविज्ञान, ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में पाए गए इतने गहरे खनिज भंडारों पर देश में पहली बार एफ-एक्सिस और ई-एक्सिस पर अन्वेषण प्रस्तावित किया जा रहा है। यह देश में साल्ट बेड डिपॉजिट के दोहन के लिए सॉल्यूशन माइनिंग प्रौद्योगिकी के उपयोग का पहला उदाहरण होगा। उन्होंने यह भी बताया कि जीएसआई द्वारा सतीपुरा ब्लॉक में अन्वेषण पूरा कर लिया गया है और एमईसीएल द्वारा लखासर ब्लॉक को जल्द ही पूरा किया जाएगा। इसलिए, इस प्रस्तावित अध्ययन के समापन के बाद, राज्य सरकार के पास तत्काल नीलामी के लिए दो ब्लॉक होंगे। जीएसआई और एमईसीएल द्वारा कई अन्य ब्लॉकों में अन्वेषण की प्रक्रिया में हैं, जो अन्वेषण के बाद नीलामी के लिए भी उपलब्ध होंगे।
बैठक में एमईसीएल के सीएमडी डॉ. रंजीत रथ ने सॉल्यूशन माइनिंग तकनीक के क्षेत्र में विभिन्न विकासों के बारे में बताया और राजस्थान के नमक आधारित भंडार में इस तकनीकी की उपयोगिता के बारे में विचार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि राजस्थान में साल्ट बेड डिपॉजिट के लिए एमईसीएल अच्छी तरह से तैयार है और समय पर व्यवहार्यता अध्ययन के लिए प्रतिबद्ध है। श्री सोमनाथ मिश्रा, एमडी, आरएसएमएमएल ने हितधारकों को संबोधित करते हुए कहा कि उर्वरक खनिज खनन व्यवसाय (रॉक फास्फेट और जिप्सम) में लगी आरएसएमएमएल देश की एकमात्र कंपनी है और अब यह कंपनी पोटाश खनन को भी आगे बढ़ाने की इच्छुक है।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों खान एवं भूविज्ञान विभाग को राजस्थान में संभावित पोटाश के जमा भंडारों के अन्वेषण और व्यवहार्यता अध्ययन और नीलामी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए निर्देश दिए थे। ताकि इस प्रमुख उर्वरक तत्व में राजस्थान सहित देश आत्मनिर्भर बन सकें वहीं दूसरी तरफ राज्य के युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकें और उद्यमशीलता के नवीन अवसरों के निर्माण की दिशा में हम आगे बढ़ सके।