जयपुर, 12 सितंबर, 2017.
- मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2017 में जोड़े 88 नए प्रावधान, 25 से अधिक प्रावधान सडक सुरक्षा से संबंधित
- सडक सुरक्षा से जुड़े मसलों पर सांसदों ने किया मीडिया प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श
- सडक हादसों के मामले में राजस्थान देश में पांचवें स्थान पर।
- वर्ष 2016 में राजस्थान में 10,456 लोगों ने सडक हादसों में जान गंवाई, जबकि 24, 103 लोग घायल हुए।
- दुनियाभर में हर साल सडक हादसों में मरते हैं 12 लाख से अधिक लोग।
सांसद हरीशचंद्र मीणा और राहुल कस्वां ने देश में तेजी से बढ़ती सडक दुर्घटनाओं पर गंभीर चिंता जताते हुए सरकारी संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं, मीडिया और आम लोगों से आग्रह किया है कि वे इस मसले को प्राथमिकता से लेते हुए दुर्घटनाओं की रोकथाम की दिशा में सामूहिक प्रयास करें।
सडक सुरक्षा के मुद्दे पर जागरूकता फैलाने और सडक परिवहन और सुरक्षा विधेयक को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए कट्स इंटरनेशनल (कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी) की तरफ से मंगलवार, 12 सितंबर को राजधानी जयपुर में आयोजित सांसदों और मीडिया प्रतिनिधियों के बीच विचार-विमर्श सत्र के दौरान उन्होंने यह आग्रह किया।
विचार-विमर्श सत्र के दौरान सांसद हरीशचंद्र मीणा ने कहा कि पूरी दुनिया में युद्ध और आतंकवाद से जुड़ी घटनाओं के दौरान भी इतने लोगों को जान नहीं गंवानी पड़ी है, जितने लोगों ने सडक हादसों में अपनी जान गंवाई है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान सडक सुरक्षा का परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। हालांकि देश में पंजीकृत वाहनों की संख्या बहुत अधिक नहीं है, लेकिन सडक दुर्घटनाओं के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि सडक सुरक्षा का मुद्दा हम सबके लिए प्राथमिकता में होना चाहिए और इस दिशा में लोगों को भी अपना दायित्व समझना चाहिए। उन्होंने कहा कि गांवों और छोटे कस्बों के लोग सडक हादसों के सबसे ज्यादा शिकार होते हैं, लिहाजा इन्हें सडक सुरक्षा के प्रति अधिक शिक्षित और जागरूक करने की जरूरत है।
सांसद राहुल कस्वां ने विचार-विमर्श सत्र में हिस्सा लेते हुए लोगों को सडक सुरक्षा के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता बताई और कहा कि सडक सुरक्षा के लिए सबको मिलजुल कर प्रयास करने होंगे। उन्होंने कहा कि सडक सुरक्षा संबंधी कार्यों के लिए अक्सर बजट की कमी रहती है, लिहाजा इस कमी को दूर करने के लिए जरूरी है कि चालान इत्यादि से एकत्र होने वाली रकम सडक सुरक्षा संबंधी कार्यों पर खर्च की जाए। उन्होंने देश में अधिक संख्या में ड्राइविंग इंस्टीट्यूट खोलने की जरूरत बताते हुए कहा कि सडक हादसों में कमी लाने के लिए जरूरी है कि ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने के काम में सख्ती बरती जाए। साथ ही, पहले से लाइसेंस हासिल कर चुके चालकों को बेहतर प्रशिक्षण भी दिया जाए। सांसद कस्वां ने सडक सुरक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने का सुझाव भी दिया और मीडिया से भी इस दिशा में अपनी सार्थक भूमिका निभाने का आग्रह किया।
कट्स इंटरनेशनल के डायरेक्टर जॉर्ज चेरियन ने इस दौरान मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2017 की विस्तार से जानकारी दी और बताया कि लोकसभा द्वारा पारित इस विधेयक में 88 नए प्रावधान जोड़े गए हैं और इनमें से 25 से अधिक प्रावधान सडक सुरक्षा से संबंधित हैं। उन्होंने बताया कि नए विधेयक में ड्राइविंग लाइसेंस के लिए एक नेशनल रजिस्टर बनाने का प्रावधान है। विधेयक में ड्राइविंग लाइसेंस की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑटोमेटिक बनाने का प्रावधान किया गया है, हालांकि राज्यों ने इस काम के लिए और अधिक समय देने का आग्रह केंद्र सरकार से किया है। डायरेक्टर जॉर्ज चेरियन ने बताया कि मीडिया प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श का उद्देश्य वर्तमान सडक सुरक्षा विधेयक, 2017 के बारे में चर्चा करने के साथ इस बारे में संसदीय स्थायी समिति (पीएससी) से जुड़े सांसदों के अनुभवों को सामने लाना है।
उन्होंने बताया कि दुनियाभर में हर साल सडक हादसों में 12 लाख से अधिक लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इनमें से आधी मौतें असुरक्षित तरीके से सडक पर चलने के कारण होती हैं और इनमें ज्यादातर मोटरसाइकिल सवार, साइकिल सवार और पैदल चलने वाले लोग शामिल हैं। ग्लोबल हैल्थ ऑब्जर्वेटरी (जीएचओ) के आंकड़े बताते हैं कि उच्च आय वाले देशों के मुकाबले कम और मध्यम आय वाले देशों में सडक दुर्घटनाओं की तस्वीर बहुत भयावह है। उच्च आय वाले देशों में प्रति एक लाख की आबादी पर सडक दुर्घटना मृत्यु दर 9.2 है, जबकि कम और मध्यम आय वाले देशों में यह दर 24.1 और 18.4 है।
कट्स इंटरनेशनल के सीनियर प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर मधुसूदन शर्मा और ग्लोबल हैल्थ एडवोकेसी इनक्यूबेटर, नई दिल्ली के कंसल्टेंट नलिन सिन्हा ने भी विचार-विमर्श सत्र में हिस्सा लिया। उन्होंने बताया कि सडक हादसों के मामले में राजस्थान देश में पांचवें स्थान पर है। वर्ष 2016 में यहां 10, 456 लोगों ने सडक हादसों में जान गंवाई जबकि 24, 103 लोग घायल हुए। देशभर का आंकड़ा देखें, तो पिछले साल कुल 1,50,785 लोग सडक हादसों के कारण मौत का शिकार बने, जबकि इस दौरान 4,94,624 लोग हादसों में जख्मी हुए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 में सडक हादसों में 1,41,526 लोगों की मौत हुई और 4,77,731 लोग घायल हुए (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो-2015)। ये आंकड़े भी संभवतः आधे-अधूरे हैं, क्योंकि सडक दुर्घटना से जुड़े सारे मामले पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होते। पिछले दो दशकों के दौरान हमारे देश में हालात और खराब हुए हैं और सडक दुर्घटनाओं के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसका एक कारण सडक पर वाहनों की संख्या में वृद्धि भी हो सकता है, लेकिन मुख्य रूप से इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए समन्वित साक्ष्य-आधारित नीति की कमी के कारण भी ऐसा हो सकता है।
देश में वर्ष 2015 में सडक दुर्घटनाओं की कुल संख्या 501,423 दर्ज की गई, जो वर्ष 2014 के मुकाबले 2.5 अधिक थी। देश में सडक दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। 2015 में सडक हादसों में मरने वालों की संख्या 146,133 तक पहुंच गई, जबकि वर्ष 2014 में सडक हादसों में 139, 671 लोग मारे गए थे।
इसमें भी सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि सडक दुघटनाओं से बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और सडक दुर्घटना के समय वे सबसे असुरक्षित माने जाते हैं। प्रतिदिन 500 से अधिक बच्चे सडक दुर्घटनाओं में जान गंवा बैठते हैं। अर्धविकसित और विकासशील देशों में 95 प्रतिशत सडक दुर्घटनाओं में सर्वाधिक मौतें बच्चों की होती हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (2013) के अनुसार प्रतिदिन 14 वर्ष से कम आयु के 20 बच्चे भारत में सडक दुर्घटनाओं के कारण दम तोड़ देते हैं। वर्ष 2013 में भारत में मोटर वाहन दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मृत्यु में बच्चों की मौत का भाग 6.1 प्रतिशत है। इस स्थिति के लिए वर्तमान सडक सुरक्षा कानून की खामियां भी जिम्मेदार हैं। भारत में सभी दोपहिया वाहन चालकों और वयस्क यात्रियों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य किया गया है, पर बच्चों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। चैपहिया वाहनों में सीट बैल्ट को वयस्कों के लिहाज से डिजाइन किया गया है, जबकि सीट बैल्ट के प्रयोग से 80 प्रतिशत गंभीर चोटों से बच्चों को सुरक्षित किया जा सकता है।
गौरतलब है कि कट्स इंटरनेशनल (कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी) सडक सुरक्षा के मुद्दों पर दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहा है। 2005 के बाद से कट्स ‘पार्लियामेंटेरियन्स फोरम ऑन इकॉनोमिक पॉलिसी इश्यूज’ के माध्यम से सांसदों के साथ मिलकर काम कर रहा है। सडक सुरक्षा के मुद्दे पर फोरम की एक विशेष बैठक 16 नवंबर 2016 को नई दिल्ली में आयोजित की गई थी, जिसमें पार्टी लाइन से ऊपर उठते हुए 9 सांसदों ने हिस्सा लिया था और अपने विचार व्यक्त किए थे।
करीब एक साल पहले, सडक परिवहन और सुरक्षा विधेयक, 2015 संसद में पेश किया गया था। सडक सुरक्षा के मुद्दे से निपटने और नागरिकों की सुविधाओं में सुधार लाने के लिए, सडक परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इसे संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया था और राज्यों के परिवहन मंत्रियों के एक समूह का गठन किया। मंत्रियों के इस समूह ने सिफारिश की कि सडक सुरक्षा और परिवहन परिदृश्य में सुधार के लिहाज से यह जरूरी है कि सरकार वर्तमान मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन के लिए कदम उठाए। 3 अगस्त, 2016 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट की बैठक में इस बिल को मंजूरी दे दी गई है। परिवहन मंत्री ने 9 अगस्त 2016 को संसद में यह विधेयक पेश किया। इसके बाद इस बिल को परिवहन, पर्यटन और संस्कृति पर संसद की स्थायी समिति को भेजा गया। 4 नवंबर 2016 को अन्य हितधारकों के साथ कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी- कट्स का प्रतिनिधिमंडल संसद की स्थायी समिति के समक्ष उपस्थित हुआ और इसने मौखिक रूप से विभिन्न सुझाव ध् सिफारिशें प्रस्तुत की। विभिन्न लोगों और संस्थाओं से मिली टिप्पणियों ध् सुझावों को शामिल करने के बाद पीएससी की रिपोर्ट 8 फरवरी को संसद को सौंपी गई थी, और लोकसभा ने बहस के बाद 10 अप्रैल, 2017 को विधेयक पारित कर दिया था। राज्यसभा में बिल आगामी शीतकालीन सत्र में पारित होने की उम्मीद है।
इसी दिशा में काम करते हुए कट्स की तरफ से इसी साल चित्तौडगढ़ में 9 मई को और 27 जून को धौलपुर में डिविजनल एडवोकेसी मीटिंग आयोजित की गई। जयपुर में 30 मार्च 2017 को रीजनल एडवोकेसी मीटिंग आयोजित की गई और इसी तरह की बैठकें केरल, गुजरात और पश्चिम बंगाल में भी बुलाई गई। और अब इसी क्रम में 12 सितंबर 2017 को जयुपर में सडक सुरक्षा पर मीडिया प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श सत्र का आयोजन किया गया। सांसद हरीशचंद्र मीणा और राहुल कस्वां के साथ बड़ी संख्या में मीडिया प्रतिनिधि भी इस सत्र में शामिल हुए।
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