कभी कभी अतीत हवाओं के बरकों पर अनगढ़ लिपि में अजीबोगरीब दास्तान लिख जाता है, जो न वर्तमान के समझ आती है और न भविष्य के। भानगढ़ ऐसी ही लिपि में लिखा गया इतिहास है, जिसमें कुछ सच्चाई है और ज्यादा किस्से। अतीत के विनाशकारी सायों से अपनी जर्जर देह वर्तमान की दहलीज तक घसीट कर लाया भानगढ़ आज मौन है, बिल्कुल स्तब्ध। लेकिन कहानियां चुप नहीं होती। इस खंडहर शहर का हर पत्थर हकीकत जानता है लेकिन उसके पास जुबान नहीं। और जिनके पास जुबान हैं उनकी आंखें अतीत के बंद कमरों में झांक नहीं सकती।
भानगढ़- कहां
राजपूती आन बान और शान के स्थान राजस्थान के उत्तर-पूर्वी सघन वन-क्षेत्र सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान के दक्षिणी छोर पर अरावली की पहाडि़यों के बीच है एक पूरा का पूरा खण्डहर शहर। कहने को यहां बाजार, गलियां, हवेलियां, महल, कूएं-बावडि़यां, बाग-बगीचे सब हैं लेकिन सब के सब खंडहर। जैसे एक ही रात में सब कुछ उजड़ गया हो। पूरे शहर में एक भी घर या हवेली ऐसी नहीं जिसपर छत हो। लेकिन मंदिरों के शिखर आत्ममुग्ध खड़े दिखाई देते हैं। हर दीवार में पड़ी तरेड़ें अतीत के भयावह पंजों से खंरोची हुई लगती है। विनाश के इन्हीं चिन्हों ने सदियों से यहां की हवाओं में एक अफवाह घोल रखी है। यही कि यह स्थान शापित है और यहां भूत-पिशाचों का वास है।
भानगढ़- शानदार पर्यटन स्थल
स्थानीय लोगों में अब भी यही धारणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है, लेकिन जब हमारी टीम ने भानगढ़ का दौरा किया तो जाना यह शानदार स्थल पर्यटन की दृष्टि से बेहद खूबसूरत जगह है और इसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के तौर पर बढ़ावा देना चाहिए। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अरावली की गोद में सोया यह शहर महत्वपूर्ण है ही साथ ही फोटोग्राफी के शौकीन लोगों के लिए भी यहां के खंडहर और प्राकृतिक वातावरण बेमिसाल है। यहां के बारे में जाना, देखा और जैसा महसूस किया वह आपके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं। सार यह है कि यहां आईये, भानगढ़ विजिट कीजिए, जब लौटेंगे तो एक खूबसूरत याद स्मृतियों में शामिल होगी और भ्रम के भूत भाग जाएंगे।
जयपुर आगरा रोड पर 55 किमी की दूरी पर दौसा जिले से उत्तर की ओर एक सड़क अजबगढ़ भानगढ़ की ओर जाती है। लगभग 25 किमी के सफर के बाद इस रास्ते पर गोला का बास से पश्चिम की ओर कुछ किमी एक सड़क भानगढ़ की ओर जाती है। अरावली की पहाडि़यों से घिरे भानगढ़ में प्रवेश का मार्ग पूर्व में हनुमान गेट से है। यह प्रवेश द्वार शहर की किलेबंदी के लिए की निर्मित की गई प्राचीर का प्रमुख दरवाजा है। उत्तर से दक्षिण की ओर फैली इस प्राचीर मे कुल पांच दरवाजे हैं। जिन्हें दिल्ली गेट, फुलवारी गेट, हनुमान गेट, अजमेरी गेट और लाहौरी गेट के नाम से जाने जाते हैं।
भानगढ़ मे मुख्य प्रवेश हनुमान गेट से होता है। गेट के दोनो ओर यहां चौकीदारी की बैरकनुमा कोठरियां हैं। गेट के दाहिनी ओर हनुमानजी का प्राचीन मंदिर और तिबारियां है। सामने एक पत्थर की सड़क जौहरी बाजार से होती हुई महल के महल परिसर के द्वार तक जाती है। हनुमान गेट के पास ही पुरातत्व विभाग की ओर से महल परिसर और कस्बे के नक्शे का शैलपट्ट लगाया हुआ है। पट्ट पर कस्बे और महल परिसर में स्थित सभी मुख्य स्थानों का विवरण दिया गया है।
भानगढ़ में महल, प्राचीर, पोल, बाजार, हवेलियां, मंदिर, शाही महल, छतरियां, मकबरे आदि दर्शनीय हैं। गोपाीनाथजी, सोमेश्वरजी, केशोरायजी, मंगलादेवी यहां के मुख्य मंदिर हैं। कस्बे की प्राचीर से बाहर एक भव्य मकबरा और दो बावडि़यां, एक छतरी और पहाड़ी के शीर्ष पर वॉच टॉवर है। तीन तरफा प्राचीर के अंदर कस्बा क्षेत्र में मोड़ों की हवेली, जौहरी बाजार, मंगला देवी मंदिर, केशोरायजी का मंदिर, हनुमान मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, गोपीनाथजी मंदिर, वेश्याओं की हवेली, पुरोहितजी की हवेली, गणेश मंदिर, तिबारियां, स्नान कुण्ड, कुए, गार्डन एरिया और भवनों के भग्न अवशेष हैं। महल परिसर के अंदर केवड़ा बाग, चार मंजिला इमारत और मुख्य महल हैं।
Video: Bhangarh
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भानगढ़ का इतिहास-
भानगढ़ का महल आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया। भगवंत दास ने पूरी नगर योजना के साथ इस शहर का निर्माण कराया। बाद में 1605 तक माधोसिंह ने यहां आकर अपना राज जमाया और भानगढ़ को राजधानी बना लिया। राजा मानसिंह के भाई माधोसिंह अकबर के दरबार में दीवान के ओहदे पर थे। माधोसिंह के तीन पुत्र थे। तेजसिंह, छत्रसिंह और सुजानसिंह। माधोसिंह के बाद छत्रसिंह भानगढ़ के शासक बने। सन 1630 में एक युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में ही छत्रसिंह की मृत्यू हो गई। शासकहीन भानगढ़ की रौनक घटने लगी। तत्पश्चात छत्रसिंह के पुत्र अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही नया नगर बसाया और वहीं रहने लगा। यह नगर अजबगढ़ था। लेकिन अजबसिंह का पुत्र हरिसिंह भानगढ़ में ही रहा। मुगलों के बढ़ते प्रभाव के चलते संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगजेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुगलों के कमजोर पड़ने पर सवाई जयसिंह ने सन 1720 में इन्हें मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया और भानगढ़ को अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी की कमी के चलते यह शहर आबाद नहीं रह सका और 1783 के अकाल ने महल को पूरी तरह उजाड़ दिया। साथ ही वक्त की मार ने इसकी शक्ल भूतहा कर दी।
भानगढ़ – किंवदंतियां
भानगढ़ को भूतहा रूपाकार देने में वक्त के साथ-साथ इस महल से जुड़ी किंवदंतियां और लोक-कहिन भी हैं। स्थानीय क्षेत्रवासी और आस-पास के इलाके के लोग अपने बुजुर्गों द्वारा बताए सच्चे-झूठे अनुभवों को सत्य कथाओं की तरह प्रचारित करते हैं। इससे लोगों में डर के साथ-साथ भानगढ़ के लिए आकर्षण भी पैदा होता है। इन किंवदंतियों को स्थानीय लोगों ने इतना पुख्ता कर दिया है कि राजस्थान में ’भूतों का भानगढ़’ नाम से एक राजस्थानी फिल्म का प्रदर्शन भी हो चुका है।
तंत्रिक सिंघिया का शाप-
एक किंवदंति के अनुसार अरावली की इन्ही पहाडि़यों में सिंघिया नाम का तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र और टोटकों के लिए जाना जाता था। कहते हैं वह मन ही मन भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती को चाहने लगा और राजकुमारी को प्राप्त करने की कोशिशें करने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने सिर में लगाने वाले तेल को अभिमंत्रित कर दिया। कहा जाता है कि रत्नावली भी तंत्र-मंत्र और टोटके करना जानती थी। उसने अपनी शक्ति से तेल के टोटके को पहचान लिया और तेल एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया। उसने शिला से कुचलकर मरने से पहले एक और तंत्र किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। चट्टान ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाजारों और घरों को खण्डहर में तब्दील कर दिया। लेकिन मंदिरों और धार्मिक स्थानों पर तांत्रिक का तंत्र नहीं चला और मंदिरों के शिखर ध्वस्त होने से बच गए।
आस-पास के लोग अब भी यही मानते हैं कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहां उन लोगों की आत्माएं विचरण करती हैं।
इस किंवदंति ने स्थानीय तांत्रिकों को भी यहां तंत्र-कर्म करने के लिए उकसाया। और पुरातत्व विभाग के संरक्षण से पूर्व यहां महल के अंदर तांत्रिक क्रियाएं होने के प्रमाण मिलते हैं।
भानगढ़ – वर्तमान खूबसूरती
पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपने अधीन लेकर महल और इसके अवशेषों का संरक्षण किया है। वर्तमान में भानगढ़ पर्यटन का खूबसूरत केंद्र बन चुका है। तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियां और अवशेष दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बायें हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है जिसके दोनो ओर दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें हैं, इस बाजार को जौहरी बाजार का नाम दिया गया है। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं जो सोलहवीं सदी की नागर शैली में बने दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाजार के ही दाहिनी तरफ मोड़ों की हवेली, हनुमान मंदिर, तिबारियां और पहाड़ी पर वॉच टॉवर छतरी नजर आती है। जबकि बायें हाथ की ओर अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंदिर, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली आदि दिखाई पड़ते हैं। जौहरी बाजार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है जिसके दोनो ओर घनी वृक्षावली है। यहां के वृक्ष भी रहस्यमयी ढंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है जिसके भीतर दूर महल तक ऊंचे-नीचे ढलानों पर शानदार बाग और मंदिर, हवेलियां, कुंड आदि नजर आते हैं। त्रिपोलिया गेट से अंदर दाहिने हाथ की ओर एक ऊंचे चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है, पास ही सामंतों की बड़ी हवेलियां भी हैं। महल तक की पगडंडी के बायें हाथ की ओर सोमेश्वर मंदिर और दो कुंड हैं जहां वर्षभर पहाड़ों से जलधारा आकर मिलती है। महल के मुख्यद्वार से अंगे्रजी के ’जेड’ आकार का रास्ता महल के अहाते में जाता है। मुख्यद्वार के बायें हाथ की ओर केवड़ा बाग है।
कहा जाता है यह महल सात मंजिला था लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व मे हैं और छत पर बने भवन और परिसर भी खंडित हैं, जबकि महल के निचले बरामदों और कक्षों में अब भी चमगादड़ों का राज है।
कहानियां अपनी जगह हैं। भानगढ़ को उसकी किस्मत ने उजाड़ बनाया। लेकिन भानगढ़ अपने आप में सोलहवीं सदी में इतिहास की हलचल और उथल-पुथल को समेटे हुए है। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इसके अतीत को जानने और निष्कर्ष निकालने पर कार्य कर रहा है। यहां भानगढ़ में पर्यटन विभाग या पुरातत्व विभाग का कोई ऑफिस नहीं है। लेकिन यहां रह रहे चौकीदारों का कहना है कि हम रात-दिन यहीं रहते हैं। हमें ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है जिससे यह लगे कि भानगढ़ में किसी प्रकार का डर है। उन्होंने माना कि यहां जंगली जानवरों का डर है इसलिए रात्रि के समय वे पहरे पर कम ही निकलते हैं। सरकार ने भी डर जैसी चीज सिरे से खारिज की है।
खूबसूरती को लेकर ’नजर लगने’ का डर सबके जेहन में होता है। लेकिन भानगढ़ से जुड़ा डर ही इसकी खूबसूरती है और डर को नजर नहीं लगती। यही कारण है उजाड़ होकर भी भानगढ़ अपने रहस्यों और खूबसूरती से स्थानीय पर्यटकों के साथ साथ दूर-दराज के सैलानियों और विदेशी पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए पुरातत्व विभाग को धन्यवाद ज्ञापित किया जाना चाहिए। बारिश के मौसम में यहां मूव किया जा सकता है। और यह कहने की आवश्यकता नहीं कि भानगढ़ अपने संपूर्ण रूप में अपने आप को दिलों में काबिज करने की क्षमता रखता है, वह आप स्वयं महसूस करेंगे
आशीष मिश्रा
पिंकसिटी डॉट कॉम
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