VASTRA – 2012
जयपुर, 23 नवंबर। वक्त आ गया है कि उद्योग क्षेत्र पर्यावरण कानूनों पर अमल की पहल स्वेच्छा से करे, न कि कानूनी कार्रवाई के डर से। राजस्थान राज्य प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव डा. डी.एन पांडेय ने यह कहा।
शुक्रवार को यहां सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में वस्त्रा 2012 के दौरान ‘वस्त्र उद्योग के पर्यावरण संबंधी मुद्दे’ विषय पर आयोजित एक गोष्ठी में पांडेय ने कहा कि वर्तमान में लोग कानूनी बाध्यता के कारण पर्यावरण कानूनों पर अमल करते हैं, न कि पर्यावरण की स्थिति से चिंतित होकर। उन्होंने कहा कि जब देश के विभिन्न राज्यों में प्रदूशण नियंत्रण बोर्डों की स्थापना की गई थी तो पर्यावरण को लेकर अपेक्षाएं अलग थीं। उन्होंने कहा, ‘‘अब समय बदल गया है। अब हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो वास्तव में धरती की रक्षा को लेकर चिंतित है और जो पर्यावरण की रक्षा की स्वैच्छिक पहल कर रही है।’’
उन्होंने कहा कि इस स्व-नियमन से भारी बचत होगी। उदाहरण के लिए, भीलवाडा स्थित उद्योगों ने जल के 80 फीसदी तक पुन: इस्तेमाल में आसानी से कामयाबी हासिल कर ली है। उन्होंने कहा, ‘‘वर्तमान में वे जल का 50 फीसदी तक पुन: इस्तेमाल कर रहे हैं और टैंकरों से जल खरीदने के लिए रुपये का भुगतान कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि उत्पादन प्रक्रिया में पानी का पुन: इस्तेमाल कर आसानी से इस पैसे की बचत की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि दुनिया भर के खरीददार भी ऐसे उत्पादकों को ही पंसद करते हैं जो पर्यावरण संबंधी दिषा-निर्देषों का पालन करते हैं। उन्हें उद्योगों से अपषिश्ट पैदा होने के स्तर को शून्य पर लाने की वकालत की। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन, मुझे उम्मीद है कि उद्योग क्षेत्र इससे पहले खुद ही यह कार्य पूरा कर लेगा।’’
उन्होंने उद्योग क्षेत्र से अपील की कि वह अपने उत्पादों के उत्पादन में देश में मौजूद विशाल ज्ञान आधार का इस्तेमाल करे। उन्होंने कहा, ‘‘प्राचीन काल से ही हमारे देष में संगानेरी प्रिंट, टाई एवं रंग, ब्लॉक प्रिंटिंग और वनस्पति रंगों को संरक्षित किया जाता रहा है। अगर इन्हें ठीक से प्रोमोट किया जाए तो विदेशों में भी इन्हें काफी लोकप्रिय बनाया जा सकता है।’’
इस प्रदर्शनी के दूसरे दिन क्रेताओं और विक्रेताओं को कारोबारी गतिविधियों में व्यस्त देखा गया। विक्रेताओं ने ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नायाब ढंग से अपने स्टॉलों की सजावट की है और रंग-बिरंगे उत्पाद प्रदर्षित किए हैं। अधिकांश कारोबारियों को खरीदारों की कतारों से निपटने में मशगूल पाया गया। इनमें जानकारी चाहने वाले लोगों की तादाद भी बड़ी है।
रीको के प्रबंध निदेशक नवीन महाजन ने कहा कि यहां उपस्थित विक्रेता समुदाय वाकई में बहुराष्ट्रीय है। उन्होंने कहा कि इसमें विकसित एवं विकासशील दोनों तरह के देशों के भागीदार शामिल हैं।
वस्त्रा 2012 में 60 देषों के 350 से अधिक विक्रेता भाग ले रहे हैं। ये अर्जेंटीना, ग्रीस, श्रीलंका, बांग्लादेश, डेनमार्क, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका, चीन आदि से हैं।
अर्जेंटीना की कंपनी एम/एस कालेल की मारियाजमेना मार्सग्ला ने कहा, ‘‘यहां विविध तरह के उत्पाद उपलब्ध हैं और मैं भारत से रेडीमेड परिधान ले जाना चाहूंगी।’’ कुछ भारतीय उत्पादकों से मिलने के बाद उन्होंने अपना अनुभव बांटते हुए कहा, ‘‘मेरा मानना है कि चीनी बाजार की तरह ही भारत का बाजार भी अच्छा है और कुछ मायने इससे बेहतर भी है।’’
वस्त्रा फैशन शो कांच और धागे की बारीक जरदोजी (सेक्विन) से युक्त वस्त्रों एवं परिधानों, जो शेखावटी भित्तिचित्रों से प्रेरित है, भारतीय फैब्रिक में तैयार पष्चिमी शैली के परिधानों एवं धमकदार संगीत से लोगों को प्रभावित कर रहा है। विभिन्न कंपनियों को रैंप पर अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने का तय समय दिया गया है। इस मौके पर बड़े स्क्रीनों पर इन कंपनियों के नाम एवं पते दिखाए जा रहे हैं।
जिन कंपनियों ने इसमें भाग लिया, उनमें महाराणा ऑफ इंडिया, अहूजा ओवरसीज, आर्क एकेडमी, शिल्पा और रतन ग्लिटर इंडस्ट्रीज प्रमुख हैं। रतन ग्लिटर के उत्पाद अनूठे हैं, क्योंकि वे शुद्ध चांदी के हैं।
रतन ग्लिटर इंडस्ट्रीज के एमडी परेश शाह ने कहा, ‘‘हम सिल्वर सेक्विन बनाने वाले दुनिया की एकमात्र कंपनी हैं।’’ इस कंपनी के उत्पादों ने विदेशी ग्राहकों को काफी आकर्षित किया है। एक और खास आकर्षण था आर्क एकेडमी के छात्रों द्वारा तैयार संग्रह जो राजस्थानी हवेलियों के भित्तिचित्रों से प्रेरित है।
रंग-बिरंगे पैटर्नों में विदेशी स्टाइल के विशुद्ध सूती परिधान भारतीय परंपराओं एवं पाश्चात्य संवेदनाओं के मिश्रण नजर आए।
Add Comment