जयपुर महलों, जलाशयों और बाग-बगीचों से समृद्ध शहर है। यहां की सुंदरता सिर्फ पत्थरों और वनस्पतियों तक सीमित नहीं है। बल्कि कण-कण सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। गोया इंसान और जड़ तत्व मिलकर जयपुर के जीवित शरीर का निर्माण करते हैं। कहा जा सकता है कि ईमारतें और बाग-बगीचे जयपुर का शरीर हैं और संस्कृति व उत्सव जयपुर की आत्मा।
जयपुर के प्रमुख बाग-बगीचों में कनक वृंदावन घाटी प्रमुख है। जलमहल के उत्तर में भगवान कृष्ण के मंदिर के पास आमेर घाटी से लगी वैली में कनक वृंदावन गार्डन जयपुर स्थापन के समय विकसित किया गया। आमेर घाटी से जयपुर की ओर आने वाले यात्रियों को मोड़ पर जो फूलों की घाटी नजर आती है वही कनक वृंदावन है। सावन भादो के बरसाती मौसम में यहां लोग सपरिवार आकर पिकनिक मनाते है। पूरी घाटी में फैला यह खूबसूरत गार्डन यहां आने वालों का मन मोह लेता है। यह गार्डन नवविवाहित जोड़ों और प्रेमी-युगल के लिए सैर सपाटे का पसंदीदा स्थल है।
कनक वृंदावन घाटी का यह नाम जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह ने दिया था। भगवान गोविंद के विग्रह तुर्क आक्रान्ताओं से बचाकर जब जयपुर लाए गए तो महाराजा ने यहां दर्भावती के किनारे अश्वमेघ यज्ञ कर भगवान की प्रतिमा को एक भव्य मंदिर बनवाकर स्थापित किया। चूंकि विग्रह वृंदावन के उपवनक्षेत्र से लाए गए थे इसीलिए इस पूरे इलाके को कनक वृंदावन नाम दिया गया। आज भी यह भव्य मंदिर यहां स्थित है। भव्य हवेलीनुमा मंदिर के किनारों पर छतरियां हैं।भीतर विशाल चौक, जगमोहन और गर्भगृह हैं। गर्भग्रह में किया गया काच का बारीक काम मन मोह लेता है। वहीं दीवारों पर पन्नीकारी और पेंटिंग्स भी बहुत खूबसूरत हैं। रात्रि में रोशनी में नहाया यह स्थल और भी खूबसूरत लगता है।
यहां आने के लिए जयपुर शहर और आमेर से खूब साधन मिल जाते हैं। शहर के बड़ी चौपड़ इलाके से यहां लोफ्लोर बसें, मिनी बसें मिल जाती हैं वहीं ऑटो टैक्सी की व्यवस्था भी मिल जाती। जल महल के थोड़ा आगे जाने पर एक रास्ता आमेर घाटी की ओर जाता है जबकि एक रास्ता दायें हाथ की ओर मुड़ता है। यह रास्ता कृश्ण मंदिर, कनक बाग और कनक वृंदावन घाटी की ओर जाता है।
कनक वृंदावन की सबसे खूबसूरत विशेशता यह है कि यह गार्डन समतल न होकर पहाड़ की घाटी में विकसित किया गया है। इसलिए यहां वन-क्षेत्र भी गार्डन में ही सम्मलित दिखाई पड़ता है। घाटी के उत्तर पूर्व से जा रही सड़क के साफ फूलों की बेलें इसकी दीवार का भी काम करती हैं और खूबसूरती भी बढ़ती हैं। धोक और कदम्ब के वृक्षों के झुरमुट मन मोह लेते हैं। नीलकंठ और किंगफीशर जैसे पक्षियों की यह पसंदीदा जगह रही है।
बाग के उत्तर में आमेर घाटी स्थित जयपुर का प्रवेशद्वार दिखाई देता है इसके अलावा पूर्व और पश्चिम में अरावली की सुरम्य पहाडि़यां स्थित हैं। वहीं दक्षिण में कृष्ण मंदिर कनक बाग और जलमहल नजर आते हैं।
पूर्व में इस घाटी में एक मार्ग भी बना हुआ था। यह हाथी मार्ग था। घाटी से होकर जयपुरकी ओर आने वाले हाथी यहां बने कच्चे रास्ते से घाटी उतरा करते थे।
कनक घाटी में पहले प्रवेश शुल्क नहीं था लेकिन यहां आने वाले स्थानीय पर्यटकों की संख्या बढ़ने और रखरखाव के चलते टिकट से एंट्री की व्यवस्था कर दी गई। वर्तमान में कनक वृंदावन में टिकट से प्रवेश की व्यवस्था है।
280 साल पहले विकसित कह गई कनक वृंदावन की खूबसूरत घाटी में आज भी आर्टीफीशियल झरने, ताल, और ढलवां दालान के साथ कृश्ण और गोपियों की नृत्य करते हुए बहुत सारी मूर्तियां मन मोह लेती हैं। एक बार देखने पर तोे ऐसा ही लगता है कि साक्षात भगवान कृश्ण गोपियों के साथ कुंजों में रास रचा रहे हैं। पर्यटक इन मनमोहक मूर्तियों की तस्वीरें लेते हैं।
सावन भादो के बरसाती मौसम में जब यहां खूब हरियाली होती है तो पर्यटकों की संख्या भी बढ़ जाती है और पूरी घाटी में महिलाओं और युवतियों के झुण्ड दिखाई देते हैं। तीज और गणगौर जैसे उत्सवों पर भी ऐसी ही स्थिति होती है। जगह जगह महिलाएं गोला बनाकर खेल खेलती हैं, नाच गान करती हैं, लोक गीत गाती हैं और घर से लाया भोजन करती हैं। कनक वृंदावन बाग मयूरों की उपस्थिति के कारण भी खूबसूरत लगता है। घाटी में अब मयूरों की संख्या कम हो गई है लेकिन कुछ दशकों पहले आमेर घाटी सैकड़ों की संख्या में मयूरों की मधुर ध्वनि से गुंजायमान रहती थी। परिवारों के लिए आज भी यह पुराना गार्डन पहली पसंद हैं। बच्चों के यहां के ढलाननुमा क्षेत्र पसंद आते हैं तो युवतियों का झुरमुटों में लगे झूले।
वर्तमान में जलमहल पर गार्डन और चौपाटी विकसित होने से भी कनक वृंदावन में स्थानीय पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है। कनक वृंदावन घाटी प्रतिदिन सुबह 8 से शाम 5 बजे तक सैर के लिए खुली होती है।
जयपुर में बाग बगीचों की परंपरा तभी से है जब जयपुर से पहले आमेर अस्तित्व में था। आमेर महल के नीचे बनी केसर क्यारी इसका बात का प्रतीक है। कनक वृंदावन के अलावा जयपुर में चंद्रमहल के सामने राजपरिवार का निजी गार्डन है। गोविंददेवजी के पीछे जयनिवास उद्यान है। इसके अलावा सिसोदिया रानी का बाग, परियों का बाग, रामनिवास बाग आदि जयपुर के पुराने गार्डन हैं तो मयूर गार्डन, स्मृति वन, जवाहर सर्किल और सेंट्रल पार्क नए बगीचे हैं। बाग-बगीचे जयपुर की संस्कृति से गहराई से जुड़े हैं।
आशीष मिश्रा
पिंकसिटी डॉट कॉम
रोप वे को कलैक्टर की मंजूरी
जयपुर में कनकघाटी-जयगढ़ रोपवे प्रोजेक्ट को कलेक्टर से एनओसी मिल गई है। अब जेडीए वन विभाग के समक्ष इस अनपत्ति प्रमाणपत्र के सहारे प्रोजेक्ट की फाइल रखेगा। पिछले कई साल से जेडीए का रोप वे प्रोजेक्ट अटका हुआ था। छह माह से कलेक्टर के पास अनुसूचित जाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 एवं नियम 2008 की पालना को लेकर फाइल अटकी हुई थी। रोप वे के तहत 200 मीटर ऊंचाई तक रोप वे ट्रॉली चलाई जाएगी।