इतिहास-
कछवाहा वंश के राजाओं की राजधानी जब आम्बेर थी, तब अरावली पहाडियों से घिरे इस हिस्से में प्राकृतिक सौंदर्य पसरा पड़ा था। बारिश में नाहरगढ़ पहाड़ियों और किलागढ़ की पहाड़ियों से पानी बहकर इस हिस्से में जमा होता था और गर्भावती नदी में मिलता था। बाद में राजधानी के लिए जलापूर्ति और जलप्रबंधन योजना के तहत यहां मानसागर बांध बनवा दिया गया। कहा जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ के बाद अपनी रानियों और पंडितों के साथ अवभ्रत स्नान करने के लिए महाराजा जयसिंह द्वितीय ने यहां महल का निर्माण कराया। इसका निर्माण राजपूत और मुगल शिल्प शैली के आधार पर किया गया । चारों ओर से पानी से घिरा होने के कारण इसकी पहचान जलमहल के रूप में हुई। बाद में यह स्थल राजा महाराजाओं की पसंदीदा आरामगाह बन गया। वर्तमान में इसे स्वर्ग सी आभा देने के पीछे जलतरंग द्वारा की गई असीम इच्छाशक्ति और विशेष कारीगरों द्वारा दिन-रात की गई अथक मेहनत है। मानसागर झील का विस्तार वर्तमान में साढे 23 वर्ग किलोमीटर और अधिकतम गहराई साढे चार मीटर तक है।
पुनर्जन्म और भी खूबसूरत-
जल के बीच स्थित महलों में सबसे खूबसूरत इमारत जलमहल अपने निर्माण के तीन सौ साल तक इतिहास का खूबसूरत प्रमाण रही लेकिन इसका कायाकल्प उसी खूबसूरती को बरकरार रखने और बढ़ाने का जिम्मा लिया जलतरंग ने। जलतरंग द्वारा किए गये कार्य और प्रयास सराहनीय हैं। मानसागर झील के चारों ओर खूबसूरत पाल का निर्माण किया गया है। पाल के शिल्प में भी जयपुर की परंपरागत शिल्प शैली का विशेष खयाल रखते हुए इसे लाल पत्थरों से बनाया गया है। इस पाल का एक सिरा जलमहल रोड की ओर और दूसरा सिरा मानसागर झील से लगता हुआ है। मानसागर झील के पानी को साफ रखने के लिए वाटर ट्रीटटमेंट सिस्टम अपनाया गया है और पक्षी विहार को बढ़ावा देने के लिए पांच नेस्टिंग आईलैण्ड्स बनाए गए हैं। झील की पाल पर हरियाली को बढ़ावा देने के लिए वटवृक्ष और पीपल के पेड़ क्रेन की सहायता से भी लगाए गए थे। इसके अलावा पानी में मौजूद जैविक अपशिष्टों और स्मैलिंग को दूर करने के लिए विशेष मछलियां डाली गई हैं। महल तक पहुंचने वाली नौकाओं को भी राजपूत शैली में तैयार किया गया है। महल के रंग-रोगन से लेकर भीतर किए गए हर कार्य में बारीक से बारीक बातों, जयपुर की परंपराओं और इतिहास का विशेष खयाल रखा गया है। अपने नए आवरण में जलमहल और भी खूबसूरती के साथ उभरकर आया है। कहा जा सकता है कि जलमहल का यह नया रूप इसकी खूबसूरती को बनाए रखते हुए इसमें चार चांद लगाता है।
जलमहल की भीतरी खूबसूरती-
इस चौरस महल का ग्राउंड फलोर जल के भीतर स्थित है। मजबूत नीवों पर खडे इस महल के चारों ओर तिबारियां बनी हुई हैं जो कि मानसागर झील की ओर खुलती हैं। ये तिबारियां भीतरी गलियारों से आपस में जुडी हुई हैं। महल के भीतरी मुख्य कक्ष की दीवारों पर नए सिरे से किया गया नक्काशी का कार्य बहुत ही कुशल कारीगरों ने बारीकी से उकेरा है। दीवारों पर बने भित्तिचित्र इतिहास का आईना पेश करते हैं जिनमें राजसी ठाठ-बाट, रंग-आनंद भोग-विलास और जीवनचर्या के सुखद क्षण जयपुर की परंपरागत चित्र शैली में उकेरे गए हैं। दीवारों और छतों पर किया गया यह काम सोने-चांदी के पात्रों पर की गई नक्काशी से कम नहीं है। कुछ दीवारों छतों पर बेल बूटे उकेरने के लिए 22 कैरेट तरल गोल्ड का भी इस्तेमाल किया गया है। भीतरी अहाते में पुरामहत्व की चीजोंको संग्रहीत किया गया है। महल का यह भीतरी भाग परंपरागत राजसी शैली का नायाब नमूना है और हर चीज की सुसज्जा शाही ठाठ को ध्यान में रखकर ही की गई है। छतों के झूमर हों या लैम्प, या फिर दरवाजों पर की गई बारीक कारीगरी, हर जगह कला की तन्मयता नजर आती है।
टैरेस गार्डन-चमेली बाग
दूसरे तल से छत पर पहुंचने पर और भी खूबसूरत नजारा दिखाई देता है। महल की छत पर हरा भरा टैरेस गार्डन बना हुआ है। जिसे चमेली बाग के नाम से जाना जाता है। चमेली बाग से उत्तर की ओर आमेर घाटी का प्रवेशद्वार तथा अरावली की हरी-भरी पहाडियां नजर आती हैं तो दक्षिण में दूर तक फैला हुआ जयपुर शहर, पूर्व में किलागढ की पहाडियां हैं तो पश्चिम में नाहरगढ का अदभुद नजारा। महल के चारों कोनों में छतरियां बनी हुई हैं जो दीवार के सिरों से कुछ बाहर झील की ओर निकली हुई हैं, इससे न केवल झील का ज्यादातर नजारा दिखाई देता है बल्कि महल के दो तरफ की तिबारियां और दीवारें भी सहजता से दिखाई पडती हैं। निचले तल से छत पर आने के लिए मुंडेरों के बीचोंबीच चार बारादरियां भी है जो सीढियों को कवर करती हैं। इन छतरियों और बारादरियों का शिल्प विधान भी पर्यटकों को अपने कैमरे क्लिक करने के लिए मजबूर कर देता है। महल की छत पर बनी इन बारादरियों और छतरियों को जोडती हुई पत्थर की जाली युक्त छोटी मुंडेरें भी आकर्षक हैं। चमेली बाग का ज्यादातर हिस्सा मार्बल से बना हुआ है। यह बाग चार वर्गाकार भागों में बंटा हुआ है और बीच का केंद्रीय हिस्सा गोलकार है। बाग के हर वर्ग के साथ बीच तक पहुंचने के लिए पथ बने हुए हैं। बाग में दूब और फूलों के पौधों के अलावा बडे छांवदार वृक्ष भी जलमहल को फेंटेसी रूप प्रदान करते हैं।
सूर्यास्त के समय आकाश की अरुणाई जब मानसागर में सिंदूरी रंग उडेलती है तो जलमहल की तिबारी से वो नजारा इतनी कशिश पैदा करता है कि स्वर्ग में बैठे देवताओं को भी जलमहल से रंज हो जाए। और रंज हो भी क्यूं ना, आखिर जो नजारा जयपुर की किस्मत में है वो स्वर्ग के नसीब में भी कहां।
आशीष मिश्रा
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