- -खूबसूरत लोकेशंस के कारण फिल्मकारों की पहली पसंद
- -कई गीतों को खूबसूरत बनाया
- -बॉलीवुड का खास सेट है जयपुर
जयपुर शहर। बस, जिन नजरों से देखा गया, उन्हीं में शुमार हो गया। ताजिन्दगी दिल में रहा। कितनी ही दफे जयपुर को कैमरे की नजर से देखा गया। कितनी ही बार कैनवास पर उकेरा गया। जयपुर की खूबसूरती है कि दिन-ब-दिन बढ़ती ही जाती है। इन्द्र भी स्वर्ग को जयपुर जैसा ना पाकर मन ही मन रश्क करता होगा।
क्या आप जानते हैं इस खूबसूरत गुलाबी शहर जयपुर ने कितनी दफा बॉलीवुड की फिल्मों के गीतों और दृश्यों को अपनी मौजूदगी से खुशनुमा बनाया है। आईये, आज इन्हीं बिन्दुओं को याद करते हैं, जब हिन्दी फिल्मों और उनके गीतों में जयपुर एक प्रभावी किरदार के रूप में नजर आया है।
जहां डाल-डाल पर-
लगभग हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर एक गीत आपने जरूर सुना होगा-’जहां डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा, वो भारत देश है मेरा’। वर्ष 1965 में बनी इस फिल्म ’सिकन्दर-ए-आजम’ के मुख्य कलाकार पृथ्वीराज कपूर पर फिल्माए इस गीत का फिल्मांकन सिटी पैलेस में किया गया। मोहम्मद रफी की रेशमी आवाज से सजे इस गीत के बोल के अनुसार निर्देशक को समृद्ध भारत की तस्वीर दिखानी थी, और उनकी नजर में जयपुर से समृद्ध कोई शहर नहीं था। इस तरह बॉलीवुड ने भी जयपुर को सोने की चिडि़या महसूस किया और दिखाया है। गीत का फिल्मांकन जयपुर के सिटी पैलेस में किया गया। गीत में राजा के किरदार में पृथ्वीराज ने सही मायनों में जयपुर की समृद्धि को परिभाषित किया। गीत में सिटी पैलेस का लगभग हर हिस्सा दिखाया गया। गीत की शुरूआत ही महल के बरामदे से पृथ्वराज कपूर के निकलने से होती है। इसके बाद सिटी पैलेस के सामने गार्डन में पानी के फव्वारों और पार्श्व में सिटी पैलेस दिखाया गया। गीत में सिटी पैलेस के सर्वतोभद्र चौक में सेना का मार्च भी प्रभावी रूप से दर्शाया गया।
जब प्यार किया तो डरना क्या-
इश्क की खुमारी को बेबाकी से बयां करता मुगले आजम फिल्म का यह गीत वर्ष 1960 में बच्चे-बच्चे की जुबान पर छा गया। नौजवानों पर तो गीत का असर सिर चढ़कर बोला। गीत में फिल्म के निर्देशक के आसिफ ने आमेर के शीशमहल को बखूबी इस्तेमाल किया। दरअसल प्यार की हरसू मौजूदगी को दिखाने के लिए आसिफ ने आमेर दुर्ग के शीश महल की छतों और दीवारों पर सजे हजारों उत्तल शीशों में मधुबाला को दर्शाया। पूरे गीत में जयपुर की शोभा इस कदर हावी रही कि पचास साल बाद इस फिल्म को रंगीन करके प्रस्तुत किया गया। और रंगीन होने के बाद इस गीत में शीशमहल का जादू हर नजर पर छा गया। लता की मखमली आवाज, मधुबाला का मादक सौन्दर्य और आमेर का शीशमहल, अपने अपने क्षेत्र के इन शिखरों ने आज भी गीत को यादों में ताजा रखा है।
जब जयपुर से निकली गड्डी-
1992 में आई एक फिल्म ’गुरूदेव’ के एक गीत ’जयपुर से निकली गड्डी दिल्ली चली हल्ले हल्ले’ तो आपको याद ही होगा। ऋषि कपूर और श्रीदेवी पर फिल्माए इस चुहलबाजी भरे गीत के बोल लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने। यह गीत आशा भोसले और शैलेन्द्र सिंह ने गाया था। गीत का सुनकर जयपुर के गीतकार इकराम राजस्थानी का प्रसिद्ध गीत ’चला चला रे डिरेवर गाड़ी होले होले’ याद आ जाता है। गीत के माध्यम से बरबस ही जयपुर से दिल्ली के सुहाने सफर का अंदाजा हो जाता है। यही सफर बारिश के दिनों में हो तो क्या बात है।
हिट है जयपुर की चोली-
जयपुर के परिधानों की लोकप्रियता को दर्शाते एक गीत पर गौर कीजिए। 1973 में आई फिल्म गहरी चाल के नायक जीतेन्द्र और नायिक हेमा मालिनी पर छेड़छाड़ भरे अंदाज में फिल्माए इस गीत में नायक नायिका को जयपुर की चोली दिलाने का आश्वाासन दे रहा है। गौरतलब है कि जयपुर का घाघरा चोली दुनियाभर में मषहूर है और जयपुर से बड़ी मात्रा में यहां का ट्रेडिशनल परिधान एक्सपोर्ट होता है। आशा भोसले और किशोर की आवाजों से सजा यह गीत सुनिए और जानिये जयपुर की चोली इतनी प्रसिद्ध क्यूं है।
सुन-सुन क्या बोले बच्चन-
हाल ही वर्ष 2012 में निर्देशक रोहित शेट्टी ने अपनी हास्य फिल्म ’बोल बच्चन’ की लगभग पूरी शूटिंग जयपुर और आसपास के इलाकों में की। शेट्टी को जयपुर की लोकेशन इतनी पसंद आई कि उन्होंने अजय देवगन, अभिषेक बच्चन और असिन जैसे स्टार्स के साथ लम्बे अरसे जयपुर में रहकर इस फिल्म को कम्पलीट किया। जयपुर के आमेर महल, नारायण निवास, आमेर की गलियां, नाहरगढ़ और सिटी पैलेस को बहुत ही खूबसूरती के साथ दिखाया गया है। इसके अलावा चौमूं पैलेस, महाबलेश्वर और चोखी ढाणी में भी कुछ हिस्से फिल्माए गए। दरअसल जयपुर एक बना बनाया भव्य सेट है। फिल्मों के लिए जयपुर की लोकेशन, यहां का ट्रेडिशन और किफायत हमेशा निर्देशकों को आकर्षित करती रही है। जयपुर की लोकेशन पर फिल्म या गीत फिल्माने का एक फायदा यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय दर्शक भी पर्यटन के लिए फिल्मों में दर्शायी लोकेशंन की तरफ आकर्षित होते हैं। इससे पर्यटन को बढावा मिलता है।
आमेर महल का वीर-
बॉलीवुड के मोस्ट वांटेड सलमान का जयपुर से गहरा नाता रहा है। वे जयपुर आते रहते हैं, ये अलग बात है कि स्कैण्डल्स ने उनका दामन पकड़ा छोड़ा और फिर पकड़ा है। एक फिल्म के दौरान राजस्थान सरकार में पर्यटन मंत्री रही बीना काक से सलमान बेटे की तरह जुड़ गए। पारिवारिक संबंध भी गहराए। और इस तरह सलमान का जयपुर से नाता जुड़ गया। सलमान ने करण-अर्जुन, हम साथ-साथ हैं सहित बहुत सी फिल्मों की शूटिंग जयपुर के आसपास की। लेकिन वीर एक भव्य बजट की फिल्म थी। वीर में जैकी श्राफ, मिथुन चक्रवर्ती और सलमान जैसे कलाकारों के बीच जयपुर थिएटर के भी चेहरे देखने को मिले। आमेर महल में की गई शूटिंग ने फिल्म में भव्यता भी डाली और जान भी। फिल्म के आमेर वाले कुछ दृश्यों की तुलना हॉलीवुड की फिल्म ग्लेडिएटर से की गई। आमेर महल के जलेब चौक के दृश्यों ने दुनियाभर के दर्शकों का दिल जीत लिया। लेकिन शूटिंग के दौरान महल की सीढि़यों का कुछ हिस्सा ढ़हने से फिल्म विवादों में घिर गई और मामला कोर्ट तक पहुंच गया।
जयपुर, ज्वैलरी और जोधा अकबर-
जोधा अकबर निर्देशक आशुतोष गोवारीकर की भव्य फिल्म थी। आषुतोष परफेक्शन पर बारीक नजर रखते हैं। फिल्म निर्माण से पूर्व उन्होंने जयपुर के इतिहास और मुगल बादशाहों से जयपुर के कछवाहा राजाओं के रिश्तों पर काफी रिसर्च किया। कहा जा सकता है कि फिल्म का मुख्य किरदार जयपुर था। जयपुर के इतिहास को खूबसूरती से बांधकर उसे फिल्म के रूप् में प्रस्तुत कर गोवारीकर ने दुनियाभर में अपनी पीठ तो थपथपाई ही, साथ ही जयपुर की संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपराओं, खान-पान, वेशभूषा और परंपरागत आभूषणों को भी बेहतरीन दृश्यों के रूप् में सुनहरे परदे पर प्रस्तुत किया। फिल्म में ऐश्वर्या राज और ऋत्विक रोशन जैसे मंझे हुए कलाकारों ने जयपुर की खूबसूरत परंपराओं और इतिहास को नायाब ढंग से परदे पर जिया। फिल्म में जयपुर थिएटर के कलाकारों ने भी संक्षिप्त लेकिन प्रभावी भूमिकाओं में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। समग्र रूप् में यह फिल्म जयपुर के हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का नायाब नमूना थी।
भूल भुलैया-
जयपुर की खबसूरत लोकेशंस में बनी फिल्मों में हिन्दी फिल्म भूलभुलैया का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। विज्ञान और तंत्र-मंत्र के मिले-जुले मसालों से एक स्वादिष्ट सामग्री पेश करती इस मनोरंजक फिल्म में अक्षय कुमार और शाईनी आहूजा के अलावा विद्या बालन और अमीषा पटेल ने भी भूमिकाएं निभाई। फिल्म में शाईनी का राजपरिवार का सदस्य दिखाया गया, वहीं उनकी पत्नी की भूमिका में विद्या को मानसिक रोगी पेश किया गया। फिल्म की शूटिंग का अधिकांश हिस्सा सिटी पैलेस में फिल्माया गया। मनोरोग से जुड़े भ्रमों और चिकित्सा पद्धतियों के विभिन्न तरीकों को रोचक कहानी में प्रस्तुत कर फिल्मकार ने जयपुर की अनेक लोकेशंन का इस्तेमाल बखूबी किया। जैसे आमेर के जलाशय के आसपास गांव का मुख्य रास्ता और वहां साधुओं का डेरा दिखाकर फिल्म को दृश्यात्मकता दी गई। फिल्म के गीतों में भी जयपुर की यह भव्यता बहुत खूबसूरत लगी। दरअसल, रोग या प्रेतबाधा के द्वंद्व में फंसी यह फिल्म जयपुर की लोकेशन पर ही फिट बैठती है। गौरतलब है कि जयपुर के दुर्ग नाहरगढ़ के बारे में भी प्रेतबाधा जैसी कहानियां कही जाती हैं। किंवदंति है कि नाहरगढ़ दुर्ग के निर्माण के समय इसका नाम सुदर्शन गढ़ रखा गया था। यहां के जंगलों में नाहरसिंह भोमिया नामक राजपूत की आत्मा ने दुर्ग के निर्माण कार्य में खलल डाला। तांत्रिकों ने जब आत्मा को मनाया और उनकी इच्छा पूछी तो उसने कहा यह मेरा इलाका है, यहां जो भी होगा मेरे नाम से होगा। इस तरह सुदर्शनगढ़ का नाम नाहरगढ़ कर दिया गया और वहां भोमियाजी का स्थान भी बनाया गया। जयपुर को जानने वाला हर शख्स सिनेमाई भ्रमों में भी अतीत देख लेता है।
मंजिल से बेहतर लगने लगे हैं ये रास्ते-
’जब वी मेट’ याद होगी आपको। शाहिद और करीना की स्वीट जोड़ी का जादू और कहानी की रोचकता ने सभी का दिल जीत लिया था। फिल्म के एक बहुत खूबसूरत रोमांटिक गीत
’हम जो चलने लगे, चलने लगे हैं ये रास्ते’ के फिल्मांकन के लिए फिल्मकार के जेहन में खूबसूरत रास्तों की तलाश थी। जयपुर की कुछ लोकेशंस को इन रास्तों के रूप में फिल्माया गया और वाकई, गीत के बोलों की जो मांग थी, वह चरितार्थ हुई। रास्ते मंजिल से बेहतर हो गए। फिल्मकार ने गीत में सिटी पैलेस के मुबारक महल चौक को गांव के एक चौक की तरह दिखाया और वहां राजस्थानी परिधान में सजे कुछ ग्रामीणों की मौजूदगी भी दिखाई। मंजिल की तलाश में शाहिद और करीना एक ग्रामीण की साईकिल लेकर भागते हैं। दृश्य की खूबसूरती ने इस शरारती चुहलबाजी को और भी खूबसूरत बना दिया।
रंग दे बसंती-
युवा सोच को नए सरोकार देती आमिर खान की फिल्म ने दुनियाभर के आलोचकों का ध्यान खींचा। फिल्म के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से और एक खास गीत ’मस्ती की पाठशाला’ का फिल्मांकन नाहरगढ़ और आस-पास के इलाकों में किया गया। फिल्म में दृश्य काफी प्रभावी रहे। खासतौर से मस्ती की पाठशाला युवाओं के सिर चढ़कर बोली। गीत के ये दृश्य नाहरगढ़ स्थित बावड़ी और ओपन थिएटर में फिल्माए गए। कुछ दृश्य नाहरगढ़ प्राचीर और पड़ाव रेस्टोरेंट पर भी फिल्माए गए। लोकेशंन ने गीत और फिल्म में चार चांद लगा दिए।