रोमांचक सफर-
अरावली की वनक्षेत्र के घिरी पहाड़ी पर सीना तान कर खड़े दुर्ग नाहरगढ़ की यात्रा जयपुर की सबसे एडवेंचरस यात्राओं में से एक है। परकोटा से उत्तर की ओर आमेर रोड पर आमेर घाटी से लगभग 10 किमी जंगल और पहाड़ी रास्ते पर सर्पीली घुमावदार सड़क से नाहरगढ़ पहुंचा जाता है। नाहरगढ और जयगढ़ आपस में सड़क मार्ग से जुड़े हुए हैं। आमेर घाटी से कुछ किमी घुमावदार पहाडियों से गुजरने पर एक तिराहा आता है जहां से एक रास्ता नाहरगढ़ की ओर जाता है और एक रास्ता जयगढ़ की ओर। आमेर घाटी से नाहरगढ़ की चढ़ाई चढ़ते हुए आमेर, जलमहल और जयपुर शहर के नजारे दिलो दिमाग पर छा जाते हैं। घने जंगलों के बीच पहाड़ी के शीर्ष पर यह कुछ किमी का सफर लम्बे समय तक स्मृति में रहता है। यहीं रास्ते में प्रसार भारती का गगनचुम्बी टॉवर भी नजर आता है। यह टॉवर भी जयपुर शहर के नजारों में शामिल हो चुका है। इसी रास्ते पर चलते हुए गैटोर के निचले हिस्से और गढ़ गणेश मंदिर भी आंखों को सुहाते हैं। बारिश के मौसम में यहां अच्छी खासी हरियाली होती है लेकिन मार्ग संकडा और खतरनाक है, इसलिए वाहन चलाते समय बहुत ज्यादा सावधानी रखना जरूरी है। जंगल का इलाका पार करने के बाद एक त्रिपोल से नाहरगढ़ दुर्ग में एंट्री होती है। यहीं से एंट्री के लिए टिकिट प्राप्त किया जा सकता है।
पहाड़ी की शिखाओं पर पहुंचने पर सड़क से जयपुर और आमेर के भव्य नजारे आपके दिलो दिमाग पर छा जाएंगे। सावन भादो के बरसाती मौसम में यह यात्रा जितनी सुखद हो सकती है उतनी ही खतरनाक भी। जयपुर के युवा बड़ी तादाद में बारिश के मौसम में यहां लांग ड्राइव एंजोय करने आते हैं। नाहरगढ़ पहुंचने वाला रास्ता जितना सुरम्य है उतना ही भव्य है पहाड़ी पर बना यह शानदार दुर्ग।
इतिहास
इतिहास में समय-समय पर नाहरगढ़ ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। चाहे फिर वो अपनों की सुरक्षा का जिम्मा हो या गैरों की रक्षा की चिंता। देशभर में 1857 की क्रांति की लहर थी। लोगों का खून उबल रहा था। जगह-जगह गोरों और उनके परिवार पर हमले हो रहे थे। तात्कालीन महाराजा सवाई रामसिंह को अपनी रियासत में रह रहे यूरोपीय लोगों, ब्रिटिश रेजीडेंट्स और उनके परिवारों की सुरक्षा का खयाल था। उन्होंने इलाके के सभी गोरों और उनके परिवारवालों को सकुशल नाहरगढ़ भिजवा दिया और अपने अतिथि धर्म का पालन किया।
संपूर्ण रूप से देखा जाए तो नाहरगढ़ का निर्माण एक साथ न होकर कई चरणों में हुआ। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने इसकी नींव रखी, प्राचीर व रास्ता बनवाया, इसके बाद सवाई रामसिंह ने यहां 1868 में कई निर्माण कार्य कराए। बाद में सवाई माधोसिंह ने 1883 से 1892 के बीच यहां लगभग साढ़े तीन लाख रूपय खर्च कर महत्वपूर्ण निर्माण कराए और नाहरगढ़ को वर्तमान रूप दिया।
महाराजा माधोसिंह द्वारा कराए गए निर्माण में सबसे आलीशान इमारत है-माधवेन्द्र महल। वर्तमान में जो दो मंजिला इमारत जयपुर शहर के हर कोने से दिखाई देती है वह माधवेन्द्र महल ही है। असल में यह महल महाराजा माधोसिंह ने अपनी नौ रानियों के लिए बनवाया था। महल में एक मुख्य राजकक्ष है जो सभी नौ महलों से एक गलियारे के साथ जुड़ा है। नाहरगढ़ का दुर्ग लम्बे समय तक जयपुर के राजा-महाराजाओं की आरामगाह और शिकारगाह भी रही।
इसके अलावा 1944 तक नाहरगढ़ जयपुर की टाईम मशीन भी रहा। जंतर मंतर के सम्राट यंत्र से धूप घड़ी द्वारा वक्त का आंकलन किया जाता और फिर नाहरगढ़ से तोप चलाकर वक्त का इशारा किया जाता था। बुजुर्ग लोग कहते हैं कि जयपुर के दरवाजे सुबह इस तोप की आवाज के साथ खुलते थे और शाम तो समय के इसी इशारे पर बंद हो जाते थे। नाहरगढ़ की खूबसूरती बॉलीवुड को भी अपनी ओर खींचती रही है और यहां फिल्मों की शूटिंग भी हुई हैं। इनमें आमिर खान कृत ’रंग दे बसंती’ में नाहरगढ़ में बावड़ी और ओपन थिएटर में फिल्माए गए दृश्यों ने सभी का मन मोह लिया।
Video: नाहरगढ़ दुर्ग
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सुरक्षा का सुदर्शन
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p style=”text-align:justify;”>कछवाहा राजाओं की प्राचीन रियासत आमेर की सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए महल और दुर्गों की एक श्रंख्ला अरावली की पहाडियों पर रची गई। इनमें आमेर का महल, जयगढ़ दुर्ग और नाहरगढ़ दुर्ग शामिल हैं। यह त्रिश्रंख्ला आमेर का सुरक्षा चक्र थी। इनमें नाहरगढ़ का विशेष महत्व था। कछवाहा राजाओं की राजधानी जब आमेर से स्थानांतरित होकर जयपुर आ गई तब जयपुर की सुरक्षा में नाहरगढ़ का दर्जा पहले स्थान पर आ गया। भारत की वीरांगना धरती राजस्थान की राजधानी जयपुर में अरावली की पश्चिमी पहाड़ी पर स्थित इस विशाल दुर्ग के चारों ओर मजबूत प्राचीर है जो शहर के लगभग हर कोने से दिखाई देती है। इसी प्राचीर के सुरक्षा घेरे में माधवेन्द्र महल हैं। प्राचीर के साथ ही भोमियाजी का मंदिर भी है।
मुख्य आकर्षण-
कई वर्ग किमी में फैले इस दुर्ग में मुख्य इमारत माधवेन्द्र महल है जिसमें नौ रानियों के महल बने हुए हैं, इसके अलावा राजसैनिकों के कक्ष, कैफेटेरिया, बावड़ी, ओपन थिएटर, पड़ाव रेस्टोरेंट आदि नाहरगढ़ के ही हिस्से हैं। माधवेन्द्र महल और कैफेटेरिया के पिछले हिस्से जयपुर शहर के लगभग हर कोने से नजर आते हैं। यहां पड़ाव रेस्टोरेंट, बावड़ी और ओपन थिएटर आदि अन्य इमारतें पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करती हैं। रात में जब नाहरगढ़ किले की प्राचीर से माधवेन्द्र महल पर पीली रोशनी बिखरती है तो दूर से ऐसा लगता है जैसे आकाश में कोई महल बादलों की सैर कर रहा है। जयपुर की कल्पना नाहरगढ़ के बिना नहीं की जा सकती।
सुदर्शनगढ़ से बना नाहरगढ़
अपनी खूबसूरत बनावट के कारण इस दुर्ग का वास्तविक नाम सुदर्शनगढ़ रखा गया था। लेकिन फिर इसे नाहरगढ़ नाम दिए जाने के पीछे कई लोक-कहिन प्रचलन में हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नाहरगढ़ का यह दुर्ग जयपुर के राजा महाराजाओं की शिकारगाह रहा था। साथ ही यह पहाड़ी जयपुर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थी इसलिए यहां बाघों की उपस्थिति को बढ़ावा दिया गया। दूसरी किंवदंति यह है कि इस पहाड़ी क्षेत्र में नाहरसिंह भोमिया नामक राजपूत की आत्मा का वास था। जब सुदर्शनगढ़ का निर्माण चल रहा था आत्मा ने निर्माण कार्य में विध्न डाले। तब तांत्रिक विधियों से आत्मा का आव्हान किया गया और उससे उसकी इच्छा के बारे में पूछा गया। उसकी इच्छा थी कि उसके इलाके में जो कुछ बने उसके नाम से ही बने। सुदर्शनगढ़ का नाम बदल कर नाहरगढ़ रखने की घोषणा की गई तब कार्य में बाधाएं आना भी बंद हो गई। इस प्रकार सुदर्शनगढ़ का नाहरगढ़ के नाम से जाना-पहचाना गया और विश्वभर में इसकी ख्याति भी इसी नाम से हुई।
नाहरगढ़ को टाईगर फोर्ट भी कहा जाता है। नाहर का अर्थ टाईगर ही होता है। लोक-कहिन है कि आमेर रियासत की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए विशाल वन क्षेत्र को कवर करते हुए पहाड़ी जंगलों में टाईगर्स की उपस्थिति को बढ़ावा दिया गया। रियासत के राजा-महाराजा आखेट के लिए प्राय: इन जंगलों में आते थे। साथ ही युद्ध आदि में पहाड़ी से दक्षिण दिशा से आने वाले दुश्मन पर आसानी से नजर भी रखी जा सकती थी।
अठारहवीं सदी में आधुनिकता-
एक गलियारा, नौ महल-
कैफेटेरिया और पड़ाव
माधवेन्द्र महल के मुख्य द्वार के साथ ही स्लोप नुमा एक रास्ता कैफेटेरिया में जाता है। यह नाहरगढ़ स्थित कॉफी शॉप है जहां आप बैठा ठण्डा गर्म पी सकते हैं और अपनी थकान उतार सकते हैं। कैफेटेरिया में अलग से प्रवेश शुल्क निर्धारित किया गया है। यहां आप जयपुर की ओर झांकती खिड़की के करीब बैठकर शहर का बर्ड्स व्यू देखते हुए चाय कॉफी की चुस्कियां ले सकते हैं। कैफेटेरिया परिसर में ही जनसुविधाएं भी मौजूद हैं।
पड़ाव रेस्टोरेंट माधवेन्द्र महल से कुछ कदम की दूरी पर पश्चिम में पहाड़ी ढलान पर है। यहां आप पेट पूजा तो कर ही सकते हैं साथ ही शाम का खूबसूरत नजारा भी देख सकते हैं। दुनिया के बेहद शानदार सूर्यास्त स्थलों में पडाव का नाम भी जुडा है। अस्ताचल का सिंदूरी आंचल, बादलों को छूने का एहसास और बहुत नीचे दूर तक धुंध से घिरा नजर आता है अपना गुलाबी शहर जयपुर।
बावड़ी और ओपन थिएटर-
माधवेन्द्र महल के सामने स्थित बावड़ी महल के हार्वेस्टिंग सिस्टम से जुड़ी है। बावड़ी की सोपान व्यवस्था अपने आप में लुभावनी है। उस दौर की बावडियों में जहां प्राय: साधारण चोकोर सीढियां दिखाई देती है। वहीं इस बावड़ी के तीन ओर की सीढियां लहरदार प्रारूप में हैं और ऊपर से देखने पर दिलचस्प नजारा पेश करती हैं। अपनी इसी खूबसूरती के चलते इस बावड़ी ने बॉलीवुड को भी प्रभावित किया है और फिल्म रंग दे बसंती के कुछ दृश्यों और ’मस्ती की पाठशाला’ गीत का फिल्मांकन यहीं किया गया। नाहरगढ़ किले के मुख्य दरवाजे के बाहर जाते समय बायें हाथ की तरफ प्राचीर के साथ ओपन थिएटर भी है। अपने समय का यह जयपुर का पहला मुक्ताकाशीय मंच था। यहां राजा महाराजाओं और ब्रिटिश परिवारों के लिए मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे।
जयपुर का विहंगम दृश्य-
वर्तमान में पुरातत्व विभाग द्वारा दुर्ग के कुछ हिस्सों को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर संरक्षित किया है। वर्तमान में यह दुर्ग जयपुर राजघराने की अधिकृत संपत्ति है। अगर आप जयपुर की विजिट कर रहे हैं तो नाहरगढ दुर्ग के बिना यह विजिट अधूरी है। नाहरगढ़ की सशुल्क विजिट सुबह 9 से शाम साढ़े 4 बजे तक की जा सकती है। तस्वीरों में तो आपने जयपुर से नाहरगढ़ और नाहरगढ़ से जयपुर का नजारा कई मर्तबा देखा होगा लेकिन जब अपनी आंखों से इसे देखेंगे तो यकीनन कुछ नजारे हमेशा के लिए आंखों से दिल में कैद कर लेंगे।
आशीष मिश्रा
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पिंकसिटी डॉट कॉम
नेटप्रो इंडिया
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Nahargarh Fort Gallery
Nahargarh Fort is located on the sheer rugged ridge of Aravali Hills in Jaipur in Rajasthan.