18वीं सदी में जयपुर जैसे नियोजित और खूबसूरत शहर की कल्पना करने और उसे साकार रूप देने वाले कछवाहा वंश के राजाओं की दिवंगत आत्माओं का ठौर अगर कहीं है तो वह है गैटोर। गैटोर शब्द हिन्दी में ‘गए का ठौर' कथ्य को प्रतिध्वनित करता है।
नाहरगढ और गढगणेश की पहाडियों की तलहटी में शांत और सुरम्य स्थल पर जयपुर के राजा महाराओं का समाधिस्थल है। यहां जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर आखिरी शासक महाराजा माधोसिंह द्वितीय की समाधियां हैं। हिन्दू राजपूत स्थापत्य कला और पारंपरिक मुगल शैली के बेजोड़ संगम का प्रतीक ये छतरियां अपनी खूबसूरती के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। दिवंगत राजाओं का दाहसंस्कार करने के बाद उस स्थल पर राजा की स्मृति स्वरूप ये समाधियां बनाई गई।सभी समाधियां सबंधित राजा महाराजा के व्यक्तित्व और उनकी पदवी के अनुसार भव्यता के विभिन्न स्तर छूती हैं।
इन छतरियों में सीढीदार चबूतरे के चारों ओर का भाग पत्थर की जालियों से कवर है और केन्द्र में सुंदर खंभों पर छतरियों का निर्माण किया गया है। गैटोर की छतरियां मुख्यत: तीन चौकों में निर्मित हैं। चौक के मध्य भाग में जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह की भव्य छतरी है जो 20 खंभों पर टिकी हुई है। ताज मार्बल से बनी इस सुंदर समाधि के पत्थरों पर की गई शिल्पकारी अद्भुद है। समाधि के चारों ओर युद्ध, शिकार, वीरता और संगीतप्रियता के शिल्प मूर्तमान हैं।
Video: गैटोर
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इसी चौक के बाई ओर राजा सवाई मानसिंह की संगमरमर निर्मित भव्य छतरी है। गौरतलब है कि राजा मानसिंह होर्स पोलो के चैम्पियन थे। इसके अलावा यहां महाराजा माधोसिंह द्वितीय और उनके पुत्रों की भी भव्य समाधियां बनी हुई हैं। यहां से अगले चौक में एक विशाल छतरी भी है। राजपरिवार के तेरह राजकुमारों और एक राजकुमारी की महामारी से एक साथ हुई मौत के बाद यह छतरी उन सभी की स्मृति में बनाई गई। इसी चौक में वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी है। तीसरे चौक में राजा जयसिंह, महाराजा रामसिंह, सवाई प्रतापसिंह और जगतसिंह की समाधियां हैं। राजा जयसिंह की समाधि मकराना मार्बल से बनी है तो राजा रामसिंह की समाधि में खूबसूरत इटैलियन मार्बल प्रयोग किया गया। इन दोनो समाधियों पर की गई शिल्पकारी राजस्थान की पारंपरिक शिल्पकला का अद्भुद नमूना है।
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गैटोर की छतरियों से एक प्राचीर के साथ सीढीदार मार्ग टाईगर फोर्ट की ओर भी जाता है। राजपरिवार के लोग यह मार्ग नाहरगढ से समाधिस्थल तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल करते थे। वर्तमान में गैटोर की छतरियों का रखरखाव और संरक्षण सिटी पैलेस प्रशासन के अधीन है।
यहां इन शाही स्मृतिगाहों तक पहुंचने के लिए आमेर रोड से माउण्टेन रोड के रास्ते पहुंचा जा सकता है। यह रास्ता ब्रह्मपुरी होते हुए गेटोर निकलता है। पर्यटक यहां निजी वाहन या टैक्सी से सुविधायुक्त तरीके से पहुंच सकते हैं। स्थल का भ्रमण करने के लिए 20 रू शुल्क रखा गया है, कैमरे का अतिरिक्त चार्ज भी लिया जाता है।
आप जब भी जयपुर का विजिट करें तो गैटोर की छतरियों का भ्रमण करना ना भूलें क्योंकि ये सभी छतरियां अपने राजपूत और मुगल स्थापत्य कलाओं के अनूठे संगम से आपका मन तो मोहेंगी ही, साथ ही अरावली की इस शांत तलहटी में इस शाही शहर के मूर्धन्य महाराजाओं की आत्माओं की मौजूदगी महसूस कर आप एक यादगार विजिट के साथ लौटेंगे।
आशीष मिश्रा
09928651043
पिंकसिटी डाट कॉम
नेटप्रो इंडिया
महाराजा जयसिंह की छतरी सबसे सुंदर
गैटोर की सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के एक म्यूजियम में रखी गई है। यह छतरी प्रथम चौक के मध्य भाग में स्थित है। बीसी खंभों पर टिकी यह खूबसूरत छतरी चारों ओर से पत्थर की जालियों से घिरी है।