तीज
जयपुर के प्रमुख उत्सवों में तीज का नाम सबसे पहले आता है। तीज का त्योंहार मानसून के आने पर सावन में मनाया जाता है। अंग्रेजी माह जुलाई अगस्त माह में आने वाला यह पर्व अविवाहित कन्याओं के लिए खास है। इस दिन युवतियां पार्वती मां का व्रत करती हैं और शिव जैसे पति की कामना करती हैं। महिलाएं इस दिन परंपरागत राजस्थानी पोशाक पहनती हैं, हाथों में मेंहदी लगाती है और लोकगीत गाकर खुशियां मनाती हैं। इस अवसर पर महिलाओं को सिंजारा भी मिलता है। तीज के अवसर पर महिलाएं श्रंगार करती हैं। यह श्रंगार की सामग्री नवविवाहित महिलाओं को उनके पति या ससुराल द्वारा भेंट की जाती है। इसे ही श्रंगारा या अपभ्रंश भाषा में सिंजारा कहा जाता है। इस अवसर पर बाजारों में रौनक देखते ही बनती है। कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर के लिए इस दिन उपवास रखती हैं। जयपुर राजपरिवार की ओर से आज भी यह उत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस अवसर पर परकोटा में जनानी ड्योढी से तीज माता की सवारी निकलती है। तीज की शाम को निकलने वाली इस भव्य सवारी को देखने के लिए बड़ी चौपड और हवामहल बाजार में मेला उमड़ पड़ता है। मेला देखने दूर दराज के लोग भी यहां जमा होते हैं। दूसरे दिन बूढी तीज मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भीड़ के कारण जो बच्चे और बुजुर्ग तीज माता की सवारी और मेला नहीं देख पाते उनके लिए बूढी तीज मनाई जाती है। इस दिन बूढी तीज की सवारी भी निकलती है।
गणगौर
जयपुर में गणगौर का मेला भी अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान रखता है। अंग्रेजी महिने मार्च और हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह रंग बिरंगा त्योंहार गणगौर भी महिलाओं का विशेष पर्व है। जयपुर में गणगौर का प्रसिद्ध मेला भी भरता है। इस अवसर पर महिलाएं ईसर और गणगौर की पूजा उपासना करती हैं। ईसर शिव का रूप हैं तो गणगौर पार्वती का। विवाहित महिलाएं इस अवसर पर सिरपर ईसर गणगौर की प्रतिमाएं रखकर सखियों के साथ लोकगीत गाते हुए बाग बगीचों में जाती हैं और तरह तरह के खेल खेलती हैं। इस अवसर पर मिठाई की दुकानों पर घेवर बिकते हैं। घेवर मिठाई जयपुर की संस्कृति का प्रतीक है। गणगौर मेले में गणगौर माता की सवारी भी निकलती है। यह सवारी त्रिपोलिया बाजार से छोटी चौपड़ और गणगौरी बाजार होते हुए चौगान स्टेडियम पहुंचती है। इस भव्य सवारी को देखने के लिए त्रिपोलिया बाजार में विदेशी सैलानियों का हुजूम उमड़ पड़ता है। स्थानीय लोग व दूर-दराज से आए पर्यटक भी सवारी के अवसर पर बिखरे सांस्कृतिक रंग से अभिभूत हो उठते हैं।
शीतलाष्टमी
जयपुर के पास चाकसू कस्बे में शील की डूंगरी पर शीतला माता के मंदिर में शीतलाष्टमी का विशाल मेला भरता है। शीतलाष्टमी होली के बाद मार्च अप्रेल में आती है। शीतलाष्टमी शीतला माता को समर्पित त्योंहार है। माना जाता है शीतला देवी स्मॉल पॉक्स नामक महामारी को नियंत्रित करती है। माता के कोप से ही यह बीमारी होती है। इसलिए इस बीमारी से बचने के लिए ही माता को शीतल यानि बासी भोजन का भोग लगाकर और पूजा उपासना करके मनाया या शांत किया जाता है। हिन्दू आस्था के तहत इस दिन घर में रसोई नहीं बनती और सभी सदस्य पिछले दिन का बासी भोजन करके माता के प्रति अपनी श्रद्धा दिखाते हैं। यह दिवस एक तरह की चेतावनी भी है कि बस इस दिन के बाद बासी भोजन नहीं किया जाए। क्योंकि इसके बाद ग्रीष्म काल शुरू हो जाता है।
संकरांत
इसे मकर संक्रांति भी कहा जाता है यह पर्व भी जयपुर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को सूर्य के मकर राषि में प्रवेश होने पर मनाया जाता है। कहा जाता है कि मकर राशि में सूर्य का प्रवेश करना एक मंगल अवसर होता है इसलिए दान-पुण्य करना चाहिए और पवित्र तीर्थों पर स्नान करना चाहिए। इसी आस्था के तहत हिन्दू धर्मवान लोग मंदिरों गौशालाओं और अन्य स्थानों पर दान-पुण्य करते हैं और गलता तीर्थ पर बड़ी संख्या में स्नान भी करते हैं। इस पर्व की खास मिठाई फिनियां, गुंझिया और तिल के लड्डू होते हैं। जयपुर में मकर संक्रांति की खास पहचान हैं पतंगें। इस अवसर पर अलसुबह से देर रात तक लगभग सारा शहर छतों पर रहता है और पतंगें उड़ाकर खुशी का इजहार किया जाता है। महिलाएं इस दिन खास पकवान बनाकर उत्सव में मिठास भरती हैं। लोग एक दूसरे के घर जाकर बधाईयां देते हैं और पतंगें उड़ाकर खुशी भी बांटते हैं। शहर के चौगान स्टेडियम में इस दिन पतंगोत्सव भी आयोजित किया जाता है। दिल्ली में 15 अगस्त और पंजाब में बसंत पंचमी के अवसर पर पतंगें उड़ाई जाती हैं।
पतंगोत्सव
जयपुर में विदेशी सैलानियों के लिए यह बड़ा और उमंग भरा उत्सव है। पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित होने वाला यह उत्सव प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है। इस अवसर पर जयपुर के पतंगबाज और पतंगसाज बाबू भाई पतंगों से करतब दिखाकर सभी को मुग्ध कर देते हैं। वे दुनिया भर में अपने करतबों का मुजाहिरा कर चुके हैं। पतंगोत्सव में देश और दुनियाभर के पतंगसाज अपनी अपनी विशेष पतंगों के साथ यहां दंगल लड़ते हैं और पुरस्कृत भी होते हैं। दंगल के अलावा भी यहां पतंगों के कई रूप व आकार देखने को मिलते हैं। इस अवसर पर विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में मौजूद होते हैं और पतंगबाजी का लुत्फ उठाते हैं। पहले यह उत्सव परकोटे में स्थित चौगान स्टेडियम में मनाया जाता था। बाद में जलमहल पर इसका आयोजन होने लगा।
विरासत उत्सव
जनवरी से मार्च के बीच जयपुर में विरासत उत्सव का आयोजन किया जाता है। जयपुर विरासत फाउंडेशन की ओर से होने वाले इस आयोजन में अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों के साथ राजस्थानी कलाकार प्रस्तुतियां देते हैं। दुनिया के मानचित्र पर यह उत्सव भी अपना विशेष स्थान बना पाने में सफल हुआ है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल
जयपुर शहर अब साहित्यिक नगरी भी कहलाने लगी है। इसका कारण है 2006 से यहां टोंक रोड स्थित डिग्गी पैलेस होटेल में प्रतिवर्ष आयोजित हो रहा जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल। यह एक अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव है। टीम वर्क ग्रुप की ओर से प्रतिवर्ष जनवरी माह में आयोजित होने वाले इस उत्सव में देश दुनिया के ख्यातनाम साहित्यकार भाग लेते हैं। गत सात वर्षों में लिटरेचर फेस्टीवल ने जयपुर को एक नई पहचान दी है। इस वर्ष जनवरी में आयोजित हुआ यह फेस्टीवल वरिष्ठ साहित्यकार सलमान रूश्दी का इस्लामिक कट्टरपंथियों के विरोध के कारण सुर्खियों में रहा। उत्सव के आयोजक सुजॉय के राय जयपुर की तर्ज पर दिल्ली, मुम्बई और सिंगापुर में भी लिटरेचर फेस्टीवल आयोजित करने की रूपरेखा बना रहे हैं।
जयपुर दिवस समारोह
जयपुर दिवस प्रतिवर्ष 18 नवम्बर को मनाया जाता है। यह उत्सव दो दशक पहले समाजसेवी संस्थाओं ने मिलकर आरंभ किया था। उसके कुछ वर्षों बाद यह नगर प्रशासन की ओर से आयोजित होने लगा लेकिन सरकार की आर्थिक परेशानियों के कारण यह परवान नहीं चढ सका। बाद में प्रमोद भसीन, अमित शर्मा व साथियों ने सरकार को संलग्न करते हुए 2009 में इसे पुन: आरंभ किया।
कथारंग
साहित्य जगत में कथा रंग उत्सव का नाम भी वार्षिक पंचांग में शामिल हो गया है। नवम्बर दिसम्बर में होने वाला यह तीन दिवसीय नाट्योत्सव वरिष्ठ रंगकर्मी, लेखक व नाट्यनिर्देशक अशोक राही की संस्था पीपुल्स मीडिया थिएटर की ओर से आयोजित होता है। यह नाट्योत्सव दुनिया के प्रसिद्ध लेखकों की कहानियों-नाटकों पर आधारित होता है।
लोकरंग
देश की लोक कलाओं व लोक संस्कृतियों को सिंचित करने के लिए जवाहर कला केंद्र की ओर से प्रतिवर्ष यह आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम में 12-13 राज्यों के लोक कलाकार शामिल होते हैं। यह अक्टूबर माह में जवाहर कला केंद्र के मुक्ताकाश मंच पर किया जाता है।
हाथी उत्सव
विदेशी सैलानी जयपुर में हाथी की सवारी को बहुत पसंद करते हैं। जब आप यहां आएं तो हाथी की सवारी का आनंद ले सकते हैं। हाथी उत्सव पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित किया जाता है। मार्च माह में होने वाले इस उत्सव में हाथी विविध करतबों से सैलानियों का मन मोह लेते हैं।
रंग और उत्सव जयपुर की सांस्कृतिक धरोहरें हैं। यहां दीवारों का ही नहीं रहवासियों का दिलों का रंग भी गुलाबी है। हर मौसम में त्योंहार मनाने वाले जयपुर शहर में कहीं भी पर्वों और उत्सवों में भेद नहीं देखा जाता। यहां दीवाली हो या ईद। तीज माता की सवारी हो या ताजियों का जुलूस। लोगों की भावनाएं और उत्साह आपस में गुंथा हुआ दिखाई देता है। विश्वभर में जयपुर को कई नामों से जाना जाता है। जिनमें से एक है-उत्सवों का शहर।
आशीष मिश्रा
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