जयपुर Hindi

चूलगिरी – जैन आस्था का केंद्र

Choolgiri

जयपुर-आगरा रोड पर घाट की गूणी से उतरकर समतल में पहुंचते ही एक ऊंची पहाड़ी प्रहरी की तरह खड़ी दिखाई देती है। यह है चूलगिरी। जैन आस्था का प्रमुख केंद्र। हरी-भरी सीधी खड़ी पहाड़ी पर आडी-तिरछी सीढियां बादलों तक जाती प्रतीत होती है। ऊपर दूर तक दिखाई देता श्वेत संगमरमर से निर्मित भव्य जैन मंदिर अपनी आभा से अभिभूत कर देता है।

मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढीमार्ग भी है और सड़क मार्ग भी। सड़क मार्ग लगभग 5 किमी का है जिससे 10 मिनिट में वाहन से मंदिर पहुंचा जा सकता है। सड़क पर्याप्त चौड़ी है और बसें भी चूलगिरी शीर्ष पर पहुंच जाती हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए छोटे-छोटे घूम वाली 1008 सीढि़यां भी हैं। सीढियों में तीन जगह विश्राम-स्थलियां भी बनी हुई हैं। युवा दर्शनार्थी और पर्यटक इन सीढियों से मंदिर जाने के लिए उत्साहित रहते हैं। खास बात है सीढियों से चढाई के हर स्तर पर पहाडि़यों और क्षेत्र का नजारा अदभुद एवं अलग लगता है।

पहाड़ी मार्ग से मंदिर क्षेत्र तक पहुंचने पर एक भव्य द्वार दिखाई देता है। यह चूलगिरी अतिशय क्षेत्र का प्रवेश द्वार है। संगमरमर की कलात्मक सात छतरियों वाला यह द्वार भव्य और आधुनिक शिल्प का बेहतरीन नमूना है।

 वर्ष 1953 के वैशाख महीने में भगवान पाश्‍र्वनाथ के गर्भकल्याणक दिवस पर जैनाचार्य देशभूषणजी महाराज ने यह पहाड़ी पर तप और आराधना करने का निश्चय किया और इस दुर्गम पहाड़ी के शीर्ष पर साधना कुटीर स्थापित की और इस पहाड़ी को नाम दिया चूलगिरी। आज यही साधना कुटीर श्रीदिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीपाश्‍र्वनाथ, चूलगिरी कहलाती है और देशभर के जैन धर्मावलंबियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

वर्ष 1982 में जैनाचार्य देशभूषणजी महाराज ने मई माह में दूसरा पंचकल्याणक आयोजित किया। जिसमें देशभर से आए श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

आचार्य देशभूषण ने कोथली प्रस्थान से पूर्व यहां एक प्रबंधकारिधि समिति की घोषणा की थी। वर्तमान में यही समिति मंदिर के रखरखाव एवं विभिन्न प्रबंधों की जिम्मेदारी रखती है।

 चूलगिरी में 1966 में भगवान पाश्‍र्वनाथ की मूलनायक खड्गासन प्रतिमा के साथ साथ भगवान महावीर, भगवान नेमीनाथ, चौबीसी एवं यत्रों की प्रतिष्ठा के लिए पंच कल्याणक महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर चूलगिरी में भगवान पाश्‍र्वनाथ की ब्लैकस्टोन की 7 फीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा मूल नायक के रूप में एवं इसके निकट दो अन्य वेदियों में भगवान महावीर और भगवान नेमीनाथ की साढ़े तीन फीट ऊंची पद्मासन श्वेत प्रतिमाएं स्थापना की गई। भगवान पाश्‍र्वनाथ की परिक्रमा में 28 गुमटियों में 24 तीर्थंकरों की पद्मासन प्रतिमाएं एवं चार चरण प्रतिष्ठित किए हैं। विशाल मंदिर परिसर के ही एक कक्ष में देवी पद्मावती की स्थापना की गई है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर में ही बने टांके में हाथ पैर प्रक्षालित कर सकते हैं।

 चूलगिरी मंदिर के महावीर चौक में भगवान महावीर की खड्गासन में श्वेत पाषाण से निर्मित 21 फीट की विशाल प्रतिमा स्थित है जिसके लिए 60 फीट ऊंचा शिखर निर्मित किया गया है। प्रतिमा के पीछे श्रद्धालुओं द्वारा प्रतिमा का अभिषेक करने के लिए एक मंच बनाया गया है।

अभी हाल ही में मंदिर परिसर में चैत्यालय का पुनर्निमाण किया गया है। पहले यहां श्रद्धालुओं के बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं थी, बैठने के लिए पर्याप्त स्थान बनाने हेतु चैत्यालय के बीच के सारे स्तंभ हटाकर खुला भव्य स्थान बनाया गया है।

मंदिर का जिनालय अपनी आभा और वैभव से सभी श्रद्धालुओं और आगंतुकों का मन मोह लेता है। बहुमूल्य रत्नों की प्रतिमाओं को विराजित करने के लिए बने जिनालय में नौ रत्नों और सोने चांदी की प्रतिमाएं दर्शनीय हैं।

मंदिर में चौबीस तीर्थंकरों की पर्वगुफा अपने शिल्प से आगंतुकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। संगमरमर से सुशोभित इस गलियारानुमा गुफा में चौबीस तीर्थंकरों की सवा दो फीट की प्रतिमाएं हैं। इस दीर्घा के मध्य एक अन्य जिनालय में भगवान आदिनाथ, भरत एवं बाहुबलि भगवान की खड्गासान प्रतिमाएं हैं तथा दो शासन देवियों ज्वालामालिनी और चक्रेश्वरी के विग्रह हैं। जिनालय में गुमटियों और पाश्‍र्व दीवारों पर स्वर्ण की मनमोहक कारीगरी की गई है। मंदिर में विशेष आकर्षण है रिद्धि सिद्धिदायक विजय पताका महायंत्र अतिशय। महायंत्र चालीस किलोग्राम ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण किया गया है। मंदिर परिसर के चारों ओर 10 फीट ऊंची दीवार बनी है।

जयपुर शहर व प्रदेश के अन्य हिस्सों से प्राय: जैन धर्मावलम्बी चूलगिरी क्षेत्र में आकर अष्टान्हिका, शांति विधान एवं बड़े स्तर पर विशेष विधानों का आयोजन करते हैं। मंदिर में धार्मिक आयोजनों के लिए पूजा सामग्री, पूजा उपकरण, मण्डप मांडना और विधान संपन्न कराने वाले विद्वान भी उपलब्ध रहते हैं। मंदिर प्रांगण में भगवान पाश्‍र्वनाथ, भगवान नेमीनाथ और भगवान महावीर की वेदियों पर वर्ष 2005 व 2006 में पुन: कलात्मक कार्य किए गए हैं। जिससे वेदियों का शिल्प और भी निखर गया है। पहले यहां वेदियों के सामने खुला चौक था। अब इस चौक को खूबसूरत हॉल में बदल दिया गया है। आस्था के इस पावन स्थल पर हर माह 7-8 विधान गाजे बाजे के साथ सम्पन्न होते हैं।

 मंदिर में बाहर से आने वाले यात्रियों के ठहरने के लिए भी व्यवस्था है। यहां सभी सुविधाओं से युक्त 52 कमरों वाला विश्राम-स्थल देशभूषण निलय है। इस निलय में समय समय पर धार्मिक गोष्ठियों और कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। प्रबंध समिति सशुल्क इसे उपलब्ध कराती है। प्रबंध समिति ने स्वाध्याय के लिए जिनवाणी कक्ष का निर्माण भी यहां किया है। इस कक्ष में जैन धर्म और चूलगिरी क्षेत्र के बारे में प्राचीन और नवीन ग्रन्थ उपलब्ध हैं। मंदिर परिसर में नवनिर्मित प्रवचन हॉल है जहां यहां विहार करने वाले साधु साध्वी प्रवचन आदि करते हैं।

सूर्यास्त से पहले भोजन या जलपान के लिए यहां भोजनालय कक्ष है। इसमें पचास लोग एक बार में भोजन कर सकते हैं। धार्मिक पर्वों अथवा मंदिर में होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों के अवसर पर यहां रसोईयों का प्रबंध किया जाता है। त्यागी व्रतियों के लिए शोध यानि कि आहार बनाने और खाने की व्यवस्था मंदिर परिसर में अलग से एक कक्ष में की गई है।

 ज्ञान, ध्यान व साधना के लिए यहां आधुनिक और वैज्ञानिक स्वरूप सहित इस केंद्र का निर्माण किया गया है। प्रकृति की गोद में बसे इस इस स्थल में यहां साधना करना एक अलग अनुभव होता है। जैन आस्थावान लोग यहां ध्यान साधना के लिए आते हैं। उत्तर भारत के तीर्थ स्थानों में शुमार यह स्थल एक अनुपम साधना केंद्र भी है।

मंदिर में पूजा के लिए स्थायी पूजा योजना लागू है। प्रबंध समिति पूजा के सभी प्रबंध करती है। इसके लिए समिति में 1500 रूपए जमा कराकर पूजा की तिथि ली जा सकती है।

क्षेत्र की सुरक्षा के लिए हाल ही में पूरे मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। सुरक्षातंत्र के तहत 16 सीसीटीवी कैमरों से मंदिर परिसर के हर हिस्से में हो रही गतिविधियों और क्रियाकलापों पर नजर रखी जाती है।

 चूलगिरी तक जयपुर शहर से निजी वाहन या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है। चूलगिरी मंदिर तक मंदिर प्रबंध समिति की ओर से सशुल्क बस सेवा भी उपलब्ध कराई गई है। प्रबंध समिति की ओर से वृद्ध व अशक्तजन के लिए मंदिर के मुख्यद्वार पर व्हीलचेयर की व्यवस्था भी है।

 जैन धर्मावलंबियों के साथ साथ यह स्थान जयपुर-पर्यटन की दृष्टि से भी अहम स्थान रखता है। चूलगिरी की पावन पहाड़ी पर संगमरमर निर्मित अदभुद भवन शिल्प वहां जाने पर स्वर्ग की अनुभूति देता है। मंदिर प्रांगण से अरावली पहाडियों की हरितमा का खूबसूरत नजारा मन को चिर शांति देता है और आस्था में साधना का समावेश करता है।

 आशीष मिश्रा

09928651043

पिंकसिटी डॉट कॉम

नेटप्रो इंडिया

Tags

About the author

Pinkcity.com

Our company deals with "Managing Reputations." We develop and research on Online Communication systems to understand and support clients, as well as try to influence their opinion and behavior. We own, several websites, which includes:
Travel Portals: Jaipur.org, Pinkcity.com, RajasthanPlus.com and much more
Oline Visitor's Tracking and Communication System: Chatwoo.com
Hosting Review and Recommender Systems: SiteGeek.com
Technology Magazines: Ananova.com
Hosting Services: Cpwebhosting.com
We offer our services, to businesses and voluntary organizations.
Our core skills are in developing and maintaining goodwill and understanding between an organization and its public. We also conduct research to find out the concerns and expectations of an organization's stakeholders.

Add Comment

Click here to post a comment

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d