जयपुर Hindi

चांदनी चौक के प्राचीन मंदिर

त्रिपोलिया बाजार स्थित त्रिपोलिया गेट के अंदर चंद्रमहल के दक्षिणी द्वार के सामने एक बड़ा चौक है। इस खुले चौक को चांदनी चौक कहा जाता है। चांदनी का अर्थ रहवास का वह खुला हिस्सा होता है जिसमें धूप, हवा और बारिश आ सकती है।

यह बड़ा आयताकार चौक शहर में आवागमन के लिए राजपरिवार का मुख्य रास्ता है। राजपरिवार के लोग इसी चौक में से होकर त्रिपोलिया दरवाजे से त्रिपोलिया बाजार में निकलते हैं। यही कारण है कि त्रिपोलिया दरवाजे से आम आवाजाही वर्जित है।
चांदनी चौक में बने मंदिरों का निर्माणकाल जयपुर स्थापना के समय का ही है। चांदनी चौक में बने मंदिर अपनी हवेलीनुमा भव्य बनावट के कारण प्रसिद्ध हैं। चौक में मुख्य रूप से तीन मंदिर अपनी भवन निर्माण कला और स्थापत्य से प्रभावित करते हैं। इनमें ब्रजनिधिजी का मंदिर, आनंदकृष्णबिहारीजी का मंदिर और प्रतापेश्वर महादेव का मंदिर शामिल हैं। इन मंदिरों का निर्माण महाराजा प्रतापसिंह के शासनकाल में किया गया था। महाराजा प्रतापसिंह के कार्यकाल में जयपुर की भवन-निर्माण शैली अपने चरम पर थी। इसी शैली का बेजोड़ नमूना हैं ये सभी मंदिर।

ब्रजनिधिजी का मंदिर-

चांदनी चौक में पूर्वमुखी मंदिर ब्रजनिधिजी का है। इसे ब्रजनंदजी का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण राजा प्रतापसिंह ने कराया था। उल्लेखनीय है कि राजा प्रतापसिंह काव्यप्रेमी थे और स्वयं भी काव्य रचना करते थे।
ब्रजनिधि मंदिर की स्थापत्य शैली में दुर्ग के समान ऊंचे भव्य प्रवेश द्वार, ऊंची उठान युक्त आंतरिक पोल, खुला चौक, खुला जगमोहन आदि शामिल हैं। मंदिर के अंत:पुर की बनावट किसी शाही हवेली के रावले जैसी है। मंदिर से जुड़ी किंवदंतियां भी मशहूर हैं। कहा जाता है कि एक रात गोविंददेवजी ने राजा प्रतापसिंह को स्वप्न में दर्शन देकर पृथक मंदिर बनाने की आज्ञा दी। राजगुरूओं से विमर्श कर राजा ने तुरंत मंदिर का निर्माण आरंभ कराया। जब मंदिर का पटोत्सव हुआ तो ब्रजनिधिजी के विग्रह को शहर के मुसाहिब दौलतराम हल्दिया की जौहरी बाजार स्थित हवेली ले जाया गया जहां राधा रानी की मूर्ति के साथ ब्रजनिधिजी का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ। इसके बाद गाजे बाजे के साथ राधा रानी यहां से विदा होकर चांदनी चौक ब्रजनिधिजी के मंदिर पहुंची। कहा जाता है कि दौलतराम हल्दिया ने इस विवाह पर बेटी के ब्याह की तरह दिल खोलकर खर्चा किया। बारात की जोरदार खातिर की गई, शानदार ज्यौणार हुई और बाकायदा बहुत सा दान दहेज देकर राधाजी को विदा किया गया। लम्बे समय तक हल्दिया के वंशजों ने यहां ’तीज का सिंजारा’ भी भेजा।
यह विवाह इतना भव्य हुआ था कि महाराजा प्रतापसिंह ने स्वयं इस पर काव्य रचना की। अपने अंतिम समय में महाराजा प्रतापसिंह ब्रजनिधिजी के चरणों में बने तहखाने में ही विश्राम किया करते थे। वर्ष 1803 में श्रावन मास में राजा प्रतापसिंह का देवलोकगमन हुआ।

आनंदकृष्ण बिहारीजी का मंदिर

ब्रजनिधि मंदिर के ठीक सामने आनंदकृष्ण बिहारीजी का मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा प्रतापसिंह की नवीं पटरानी माजी भटियानी आनंदी बाई ने संवत् 1820 में करवाया था। आनंदी बाई के नाम पर ही मंदिर का नाम ’आनंदकृष्ण बिहारीजी’ पड़ा। मंदिर का चौक ब्रजनिधिजी के मंदिर से छोटा लेकिन जगमोहन यानि मंडप बड़ा है। ब्रजनिधि मंदिर की तरह इस मंदिर की स्थापत्य शैली भी शाही हवेलियों की बनावट जैसी है। मंदिर का मुख्य द्वार भव्य है, भीतर चौक में बायीं ओर भगवान आनंदकृष्ण तथा दायीं और भगवान आनंदेश्वर महादेव के मंदिर हैं। आनंदकृष्ण बिहारीजी के मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों के बारे में यहां के पुजारी पं मातृप्रसाद शर्मा ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एक बार रानी आनंदी को स्वप्न में भगवान कृष्ण ने दर्शन दिए और कहा कि मेरा विग्रह वृंदावन के वनक्षेत्र में एक पेड़ के नीचे रखा है, मुझे यहां बुला लो। रानी ने सपने की बात महाराजा प्रतापसिंह को बताई। राजा ने घुड़सवारों को वृंदावन में ऐसे विग्रह की तलाश में भेजा और वहां भगवान का विग्रह मिलने के बाद गाजे बाजे और शान शौकत से विग्रह को यहां लाकर प्रतिष्ठित किया गया।
संवत् 1849 में माघ कृष्ण की अष्टमी को विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा विधि विधान से की गई। मंदिर के बारे में एक और किंवदंति का जिक्र करते हुए पं शर्मा ने बताया कि विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा के सभी कर्म होने के बाद अंत में नेत्र-मिलन संस्कार किया जाना था। इसके तहत प्राण-प्रतिष्ठित देव प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी को गाय, दर्पण या कंवारी कन्या के सामने खोला जाता था ताकि देव-प्रतिमा के नेत्रों से निकलने वाली दिव्य ज्योति का समाना किया जा सके। महाराजा प्रतापसिंह अतिसार के रोग से पीडि़त थे। वे चाहते थे कि पट्टी वे खोलें और कृष्ण से मोक्ष की प्रार्थना करें। राजमहिर्षियों आज्ञा पाने के बाद राजा प्रताप ने ही विग्रह की पट्टियां खोली और नेत्र-मिलन किया। कहा जाता है उसके बाद राजा प्रतापसिंह का देहावसान हो गया और शहर भर में कल्लाहट मच गई। इस घटना के बाद मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद के सारे कार्यक्रम रद्द कर दिए गए। इसी कारण मंदिर का एक नाम ’कल्लाहट बिहारी’ भी पड़ा।
आनंदकृष्ण बिहारी का मंदिर निम्बार्क संप्रदाय की प्रधान पीठ भी है। गौरतलब है कि महारानी आनंदीदेवी स्वयं निम्बार्क पीठाधीश्वर की शिष्या थीं।
जीर्णोद्धार कार्य

वर्तमान में आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर में देवस्थान विभाग, आमेर विकास प्रधिकरण और पुरातत्व विभाग के संयुक्त सहयोग से जीर्णोद्धार का कार्य किया जा रहा है। जीर्णोद्धार का कार्य बंगाल के कुशल कारीगरों द्वारा किया जा रहा है। निर्माण में परंपरागत निर्माण विधि अपनाई जा रही है इसमें लाल मिट्टी का चूना, कली, गुड़ की लपटी, मेथी, दही आदि का इस्तेमाल किया जा रहा है। पं मातृप्रसाद शर्मा ने बताया कि मंदिर के निर्माण से लेकर अब तक यहां कलश स्थापना यानि जीर्णोद्धार का कार्य नहीं किया जा सका था।

प्रतापेश्वर महादेव मंदिर-

चांदनी चौक के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में प्रतापेश्वर महादेव का मंदिर भी परंपरागत भवन निर्माण विधि व जयपुर स्थापत्य शैली में बना हुआ है। मंदिर के बांयी ओर त्रिपोलिया गेट और दायीं ओर चोहत्तर दवाजा है जो गणगौरी बाजार की ओर जाता है। वैष्णव और शैव भक्ति के प्रति अपनी आस्था को दर्शाने के लिए ही कृष्ण भगवान के मंदिरों के साथ शिव मंदिरों की भी स्थापना की गई थी। आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर के साथ आनंदेश्वर महादेव मंदिर और ब्रजनिधि मंदिर के साथ प्रतापेश्वर महादेव मंदिर स्थापित किए गए। इस मंदिर का निर्माण भी महाराजा प्रतापसिंह ने कराया था। आनंदेश्वर महादेव मंदिर आनंदकृष्ण बिहारी मंदिर के अहाते में ही निर्मित है जबकि प्रतापेश्वर महादेव मंदिर और ब्रजनिधि मंदिर के बीच चोहत्तर दरवाजा स्थित है। मंदिर में महाशिव रात्रि के अवसर पर भव्य सजावट की जाती है।

आशीष मिश्रा
09928651043
पिंकसिटी डॉट कॉम
नेटप्रो इंडिया

Tags

About the author

Pinkcity.com

Our company deals with "Managing Reputations." We develop and research on Online Communication systems to understand and support clients, as well as try to influence their opinion and behavior. We own, several websites, which includes:
Travel Portals: Jaipur.org, Pinkcity.com, RajasthanPlus.com and much more
Oline Visitor's Tracking and Communication System: Chatwoo.com
Hosting Review and Recommender Systems: SiteGeek.com
Technology Magazines: Ananova.com
Hosting Services: Cpwebhosting.com
We offer our services, to businesses and voluntary organizations.
Our core skills are in developing and maintaining goodwill and understanding between an organization and its public. We also conduct research to find out the concerns and expectations of an organization's stakeholders.

Add Comment

Click here to post a comment

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: