जयपुर फुट एक ऐसा करिश्मा है जिसने लाखों अक्षम लोगों को उनकी दुर्दशा से बाहर खींच लिया है। लेकिन इसके निर्माताओं पर अब इसे और आगे ले जाने वाले सुधारों की जिम्मेदारी है।
जयपुर फुट (Jaipur foot)को आज ऊंचाईयों पर ले जाने में सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारी देवेन्द्र राज मेहता का अभूतपूर्व योगदान है। वे विगत 40 वर्षों से भगवान महावीर विकलांग सेवा समिति के माध्यम से अपने पैर गंवा चुके लोगों को ’जयपुर फुट’ का सहारा दे रहे हैं। अपने सेवा काल में उत्कृष्ट कार्यों से अपनी अलग छवि निर्मित करने वाले मेहता जब यहां मालवीय नगर स्थित भगवान महावीर सेवा समिति के ऑफिस आते हैं तो अपनी पानी की बोतल साफ लाते हैं। उनकी सादगी और अच्छाई ने उन्हें अपाहिजों का माई-बाप बना दिया है।
उनके कमरे में दो लम्बी टेबल एक-दूजे से लगकर रखी होती हैं, इनके आसपास पांच-छह कुर्सियां जमी होती हैं। ऑफिस आने के बाद मेहता अपना लेपटॉप चैक करते हैं और उनके सचिव मेल के जरिए जरूरी सूचनाएं एकत्र करने में उनकी मदद करते हैं। रोजाना की दिनचर्या में एक स्थान उनके पालतू कुत्ते का भी है। ऑफिस में जैसे ही मेहता आते हैं, कुत्ता सतर्क हो जाता है और बड़े उत्साह से उनकी चेयर के पास आकर अपनी अधीरता जाहिर करता है, वे कुर्सी पर आराम से बैठे अपने प्यारे कुत्ते को सहलाते हैं और प्यार करते हैं। इसके बाद मेहता टेबल पर पड़े जरूरी कागजातों और लिफाफों को गौर से पढ़ने का कार्य में तल्लीनता से जुट जाते हैं, वे ’जयपुर फुट’ के कार्य में साथ देने वाले दानदाताओं, भागीदारों, स्थानीय प्रशासन और सरकार के प्रस्तावों की जांच करते हैं।
कुछ पलों के अंतराल से उनके ऑफिस में लोगों का एक समूह उमड़ता है। उनमें से किसी को न तो यह फुरसत है कि दरवाजा खटखटा कर ऑफिस में प्रवेश करें और ना ही यहां इसकी कोई जरूरत है। ये सब जरूरतमंद लोग हैं। मेहता हर व्यक्ति से बड़े आराम से बात करते हैं, उसकी जरूरत का आंकलन करते हैं, कोई सलाह-सुझाव देते हैं और फिर अपने स्टाफ में से किसी को बुलाकर व्यक्ति की मदद करने का निर्देश दे देते हैं।
अगर आप उनके ऑफिस जाकर उनसे मिलें तो कृपया चाय-कॉफी या नाश्ते का इंतजार ना करें। इसका कारण यह नहीं कि मेहता अतिथि सत्कार करना नहीं जानते। बल्कि वे विनम्रता से आपसे माफी मांगते हुए कहेंगे कि मैं आपकी सेवा नहीं कर पाऊंगा क्योंकि यहां आने वाला एक-एक रुपया उन गरीबों का है जो ’जयपुर फुट’ के लिए यहां आते हैं। भगवान महावीर विकलांग सेवा समिति के संस्थापक और मुख्य संरक्षक मेहता आपसे यह भी कहने से नहीं चूकेंगे कि हम हमारे बोर्ड की मीटिंग में भी तब तक चाय-कॉफी नहीं पीते जब तक कोई डायरेक्टर उसे स्पोंसर नहीं करता। उन्हीं की बात को आगे बढ़ाते हुए उनका कोई साथी कहेगा कि लागत में कटौती करने के लिए हम पानी भी अपने घर से ही लाते हैं। आपको यह सब अजीब लगे। लेकिन इसी ईमानदारी और निष्ठा ने विकलांगों के लिए जयपुर फुट को जीवन का आधार बना दिया है।
पिछले 38 वर्षों में उनकी इस कंजूसी का ही नतीजा है कि भगवान महावीर विकलांग सेवा समिति ने 1 लाख तीस हजार लोगों को ’जयपुर फुट’ निशुल्क लगाकर अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाया है। अपने इसी भाव और सादगी से मेहता कई उद्यमियों को आसानी से इस पुनीत कार्य में योगदान करने के लिए राजी भी कर लेते हैं।
आपने कभी प्रबंधन की किताबें पढ़ी हों तो आपको मालूम होगा कि एक संगठन के कुशल संचालन के लिए सबसे अच्छा तरीका है इसे साधारण बनाए रखना। लेकिन उद्यमी के लिए यह कठिन हो सकता है लेकिन डॉ. मेहता इसे बड़े आराम से ऊंचाईयों तक ले जाने में सक्षम हैं।
आज के युग में जहां इलाज और मेडिकल सुविधाएं बहुत महंगी हो गई हैं, ऐसे में जयपुर फुट गांधीवादी मितव्ययी इंजीनियरिंग का अनोखा उदाहरण है। प्रख्यात वैज्ञानिक आरए माशेलकर के ये शब्द इस बात को और पुष्ट करते हैं कि नैना कार की प्रौघोगिकी और कीमत से उपभोक्ताओं को पिरामिड के आधार पर लाया जा सकता है। एक अमरिकी उद्यमी और वैज्ञानिक आर्मंड न्यूकरमेंस का कहना है कि दुनिया में सबसे ठोस वह धरातल है जहां दया है। निश्चय ही भगवान महावीर विकलांग सेवा समिति का आधार मानवीय मूल्यों के कारण बहुत ठोस हो गया है। लेकिन यह सब कुछ सहज में संभव नहीं हो गया है। इसके पीछे डॉ डीआर मेहता जैसे लोगों का सारा जीवन झौंक दिया गया है। ये अलग बात है कि अपने संघर्षों और मेहमत को इस तरह हाईलाइट नहीं करते जिस तरह आज की युवा पीढी तीतर मार कर भी अखबारों की सुर्खियां बन जाना चाहती है। अहम सवाल यह है कि क्या आज ऐसा कोई है जो मेहता का स्थान ले सके और उनके जैसी उच्च भावना से सारा जीवन त्याग के हवाले कर इस नेक काम में झौंक दे? वह भी बिना किसी आर्थिक सुरक्षा की गारंटी लिए?
देश के सबसे बड़े संगठन टाटा के ट्रस्ट सदस्य तसनीम राजा का कहना है कि जयपुर फुट का अजूबा दोहराया नहीं जा सकता, क्योंकि उसके पीछे एक आदमी के जीवनभर के जुनून की कहानी है। न्यूकरमेंस इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि एक व्यक्ति के कद ने महावीर विकलांग सेवा समिति जैसा करिश्मा रच दिया है, इस पर आने वाले समय में विश्वास कर पाना बेहद कठिन होगा।
विकलांगों के लिए आखिरी उम्मीद और मसीहा के कद तक पहुंच चुके डॉ डीआर मेहता की उम्र 75 पार कर गई है। हालांकि उन्हें सरकार की तरफ से आर्थिक योगदान प्रतिवर्ष 15 करोड रुपए मिल रहा है। लेकिन जिस प्रकार रोगियों की संख्या और उम्मीदें बढ़ी हैं उसे देखते हुए यह बजट मांगों की तुलना में एक तिहाई ही है। ’जयपुर फुट’ की मांग दुनियाभर में है। दुनियाभर से विकलांग यहां बैसाखियों पर आते हैं और और अपने पैरों पर चलकर जाते हैं। मांग लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन अर्थ अब समस्या बनकर सामने आ रहा है। क्या इतने बड़े संगठन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाया जा सकता है? सरकार और प्रशासन की इच्छाशक्ति ही काफी नहीं है, डॉ मेहता जैसे निष्ठावान लोगों की आज कमी हो गई है। लेकिन उनके जीते जी अगर इस संगठन को आर्थिक रूप से और मजबूत किया जा सके तो यह डॉ मेहता को उनके संपूर्ण जीवन का सुखद पारितोषिक होगा। पिछले तीन साल में यहां आने वाले रोगियों की संख्या 60,000 का आंकड़ा पार कर गई है। इन रोगियों में भारत और भारत के बाहर के विकलांग भी शामिल हैं। जयपुर फुट को अंतर्राष्ट्रीय पहुंच में लाने के लिए बड़े पैमाने पर धन और साथ की जरूरत है।
न्यूकरमेंस का सुझाव है कि विश्व भर में लोकप्रिय हो चुके जयपुर फुट को अब विकलांगों को निशुल्क लगाना बंद कर देना चाहिए। बल्कि इसकी लागत को देखते हुए कम से कम 2500 रुपए रोगियों से वसूलने चाहिए। हालांकि इस उत्पाद को सशुल्क लगाना आरंभ करने से मेहता अपने कार्यक्रम को आगे तक ले जाने में कुछ हद तक सफल होंगे। लेकिन डॉ मेहता इस कल्याणकारी योजना का व्यावसायीकरण नहीं करना चाहते। यह सत्य है कि रेडक्रॉस और यूएसएड जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ भागीदारी बढ़ाने के मामले में जयपुर फुट की क्वालिटी का मुद्दा कमजोर कड़ी साबित हुआ है। किंतु एक सच यह भी है कि लगातार लोकप्रिय हो रहे इस ब्रांड की वैश्विक ब्रांडिंग के लिए सरकार और संगठनों को आगे आकर विकलांगों की सेवार्थ इस संगठन के हाथ मजबूत करने चाहिएं।
अगले साल ’नया जयपुर फुट’
अगले साल के अंत तक विकलांग लोगों के लिए वजन में हल्का, अधिक मजबूत और पैर की चमड़ी के समान जयपुर फुट उपलब्ध होगा। इसकी दो क्लिनिकल ट्रायल हो चुकी है। तथा तीसरी ट्रायल के बाद संतोकबा दुर्लभजी अस्पताल में नया जयपुर फुट के नाम से मिलेगा। 11 मार्च को यूएसए की टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी के मैकेनिकल एवं बायोमेडिकल इंजीनियर की 11 सदस्यीय टीम ने लैब में बनाए हुए फुट का प्रजेंटेशन दिया। डॉ पीके सेठी रिहैबिलिटेशन जयपुर लिंब ट्रेनिंग सेंटर के डॉ अनिल जैन ने बताया कि रिसर्च लगभग पूरा हो चुका है।