वक्त की खिड़कियों से जयपुर शहर के इतिहास की जानकारी जुटाते-जुटाते एक बात तो साफ हुई कि यह ‘इतिहासो का शहर है। आमेर घाटी पार करने के बाद प्रवेश द्वार के दाहिने घूम से जलमहल झील के सहारे और उससे दूर तक बिखरे शहर के उस नजारे में नजर आती है पुरातन और नवीन के संगम की अनूठी मिसाल। एतिहासिक प्राचीरें तो आसमान छूटे मेट्रो प्रोजेक्ट के पिलर।
इतिहास को अंक में छुपाए शिल्प तो आधुनिकता की छीनी से तराशी अट्टालिकाएं। परकोटे के बरामदों में मसालों की भीनी महक के बीच ही कहीं कोई मॉल भी नजर आएगा। अत्याधुनिक रसोइयों और वैश्विक पकवानों से सजे भोजनालय भी है, तो दाल-बाटी, चूरमे के स्वाद से परिचित कराती चोखी-ढाणी भी। शहर के दो अलग हिस्सों में खड़े अजनबी लोगों से अगर पूछा जाए तो उनमें से एक ‘बाबा आदम के जमाने की अनूठी नगरी बताएगा……. और दूसरा ‘भविष्य की मॉडल सिटी’। सोच रहा हूँ जब मेट्रो ट्रेन चांदपोल से मानसरोवर के बीच ऊँचे ट्रैक से गुजरेगी तो उसकी दोनो तरफ की खिड़किया क्या खूब नजारा पेश करेंगी। एक ओर इतिहास के आईने से झांकता, शान से खड़ा नाहरगढ़ तो दूसरी ओर आधुनिकता के नीले शीशों से निहारता ‘वर्ल्ड ट्रेड पार्क’, है ना अद्भुद ये मंजर। कहीं 200 फुट चौड़ी सड़को के किनारे खड़ी भव्य अट्टालिकाएं ‘इमारते बड़े-बड़े मॉल – तो परकोटे के भीतर प्राचीनता को दर्शाती सड़के, एक दूसरे को समकोण पर काटती है, किसी गली में आप उलझ नहीं पाऐगे। कहीं से भी मुख्य सड़क पर आए जाएगे। हर सड़क दो भागों में विभक्त है। दोनो ओर बड़ी-बड़ी हवेलियां, बरामदे, उसके नीचे दुकाने सब गेरूए रंग में पुते हुए प्राचीन भव्यता को दर्शाते है। सारी दीवारे एक ही डिजाइन में बनी है।
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