लैला मजनूं की मजार (The Grave Of Laila Majnu)
लैला और मजनूं को भारतीय रोमियो जूलियट कहा जाता है। प्रेमी जोड़ों को भी यहां लैला मजनूं के नाम से पुकारा जाता है। एक दूसरे के प्रेम में आकंठ डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जान दे दी थी। जमाने की रुसवाईयों के बावजूद सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि दोनो की मजारें बिल्कुल पास पास हैं। राजस्थान के गंगानगर जिले में अनूपगढ से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह मजार लोगों को प्रेम का अमर किस्सा बयान करती प्रतीत होती है। खास बात यह है कि भारत-पाकिस्तान बॉर्डन के नजदीक स्थित यह मजार हिन्दू मुस्लिम और भारत पाकिस्तान के भेद से बहुत ऊपर उठ चुकी है। यहां हिंदू भी आकर शीश नवाते हैं और मुस्लिम भी। भारतीय भी आते हैं और पाकिस्तानी भी। सार यह है कि प्रेम धर्म और देशों की सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त रहा है। आईये, लैला मजनूं की इस मजार के बारे में जानकारी लें-
लैला मजनूं की प्रेम कहानी किसी काल्पनिक कहानी से कम नहीं। लेकिन यह सच है। सदियों से लैला मजनूं की दास्तान सुनी सुनाई जाती है और आज भी यह कहानी अमर है। यह उस दौर की कहानी है जब प्रेम को बर्दाश्त नहीं किया जाता था और प्रेम को एक सामाजिक बुराई की तरह देखा जाता था। लैला मजनूं का प्रेम लंबे समय तक चला और आखिर इसका अंत दुखदायी हुआ। दोनो जानते थे कि वे कभी एक साथ नहीं रह पाएंगे। इसीलिए उन्होंने मौत को गले लगा लिया। एक दूसरे के लिए प्रेम की इस असीम भावना के साथ दोनो सदा के लिए इस दुनिया से दूर चले गए। उनके प्रेम की पराकाष्ठा यह थी कि लोगों के उन दोनों के नाम के बीच में ’और’ लगाना भी मुनासिब नहीं समझा एवं दोनो हमेशा ’लैला-मजनूं’ के रूप में ही पुकारे गए। बाद में प्यार करने वालों के लिए यह बदनसीब प्रेमी युगल एक आदर्श बन गया। प्रेम में गिरफ्तार हर लड़की को लैला कहा जाने लगा और प्यार में दर-दर भटकने वाले आशिक को मजनूं की संज्ञा दी जाने लगी।
राजस्थान में लैला मजनूं का मकबरा
आजादी से पूर्व भारत और पाकिस्तान एक ही थे। यह देश मुस्लिम देशों की सीमाओं से लगा हुआ था। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दो देश बन गए और इन दोनो देशों को परस्पर दुश्मन के तौर पर देखा गया। राजस्थान पंजाब और कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर जिले की अनूपगढ तहसील के करीब है, जहां लैला मजनूं की मजारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के बिजनौर में स्थित ये मजारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर भारत में हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मजार कहते हैं तो हिंदू लैला मजनूं की समाधि।
बिजनौर और जीवंत प्रेम
बिजनौर के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से सिंध प्रांत के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और भारत के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरे। आखिर वे दोनो राजस्थान आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनो के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी। लैला को जब इस बात का पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और वहीं उसने खुदकुशी करके अपनी जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर दर भटनके के बाद वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अपने परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ जान दे देने का फैसला कर लिया था और आत्महत्या कर ली। दोनो के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती है। ग्रामीणों में एक अन्य कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार लैला के धनी माता पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी एक समृद्ध व्यक्ति से कर दी थी। लैला के पति को जब मजनूं और लैला के प्रेम का पता चला तो वह आग बबूला हो उठा और उसने लैला के सीने में एक खंजर उतार दिया। मजनूं को जब इस वाकये का पता चला तो वह लैला तक पहुंच गया। जब तक वह लैला के दर पर पहुंचा लैला की मौत हो चुकी थी। लैला को बेजान देखकर मजनूं ने वहीं आत्महत्या कर अपने आप को खत्म कर लिया।
लैला मजनूं के प्रेम की अनगिनत दास्तानें बिजनौर और पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। कई भाषाओं और कई देशो में लैला मजनूं पर फिल्में और संगीत भी रचा गया है जो अद्भुत तरीके से बहुत सफल हुआ है। शायद ही असल कहानी का किसी को पता हो लेकिन यह सच है कि लैला मजनूं ने एक दूसरे से अपार प्रेम किया और जुदाई ने दोनों की जान ले ली। प्रेम की इस उच्च भावना को नमन करते हुए बिजनौर की इस मजार पर हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है। हर साल 15 जून को लैला मजनूं की मजार पर भरने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तानी प्रेमी युगल आते हैं, प्यार की कसमें खाते हैं और हमेशा हमेशा साथ रहने की मन्नतें मांगते हैं।
सरहदों के पार मान्यता
स्थानीय लोगों में इन दोनों मजारों के लिए बहुत मान्यता है। प्राचीन समय से ही हिंदू इसे पवित्र समाधि स्थल तो मुस्लिम पवित्र मजान मानकर अपनी श्रद्धा जाहिर करते आए हैं। लेकिन दोनो समुदाय ही इन मजारों को लैला मजनूं से जोड़कर देखते हैं और उनके प्रेम को नमन करते हैं। पहले इस मजारों के ऊपर एक छतरी थी। लोगों का कहना है इन मजारों पर उन्होंने कई चमत्कार होते देखे हैं। जो लोग यहां अपना दुख दर्द लेकर आते हैं उनके जीवन में कई अच्छी घटनाएं घटती हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। इसी चमत्कार ने हजारों लाखों लोगों में इन मजारों के प्रति असीम श्रद्धा भर दी है और वे हर साल यहां नियमित रूप से आने लगे हैं। वर्तमान में यहां दोनो मजारें एक दूसरे से सटी हुई दिखाई देती हैं लेकिन ऊपर छतरी कालांतर में हटा दी गई या ढह गई।
इन मजारों की महिमा और भावात्मक प्रेम कहानी की प्रतीकता ने इस स्थान का महत्व बढा दिया है। हालांकि इस छोटे से गांव में रात को रुकने के लिए किसी होटल या सराय की भी व्यवस्था नहीं है फिर भी भारत और पाकिस्तान से बड़ी संख्या में प्रेमी जोड़े और नवविवाहित युगल यहां आते हैं और अपने सफल दाम्पत्य जीवन की कामना करते हैं। स्थानीय ग्रामीणों और आने वाले यात्रियों की मान्यता है कि लैला मजनूं की मजार के दर्शन करने से उनका आने वाला जीवन सुखमय और प्रेममय हो जाएगा। ये लोग मजारों पर चढ़ाने के लिए अकीदत की चादर भी लेकर आते हैं और बैठकर प्रार्थना भी करते हैं। मेले के अवसर पर स्थानीय ग्रामीण यहां आने वाले यात्रियों के लिए भोजन आदि का प्रबंध स्वयं करते हैं। रात में यहां लैला मजनूं के किस्सों पर आधारित गीत और भजनों की महफिल भी जमती है। हालांकि इतिहासकार लैला मजनूं की कहानी की वास्तविकता पर विश्वास नहीं करते और उन्हें काल्पनिक पात्र मानकर खारिज करते हैं लेकिन मजार की यात्रा करने वाले लोगों की भावनाओं पर उनके विश्वास अविश्वास का कोई फर्क नहीं पड़ा है और वे प्रतिवर्ष जून में यहां आयोजित होने वाले दो दिवसीय मेले में हर साल बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं। खास बात यह है कि इस विशाल मेले में सिर्फ हिंदू या मुस्लिम ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में सिख और ईसाई भी शामिल होते हैं। यह पवित्र मजार प्रेम को सबसे बड़े धर्म के रूप में प्रचारित करती है।
कारगिल युद्ध से पूर्व यह स्थान पाकिस्तानी नागरिकों के लिए भी खुला था। लेकिन युद्ध के बाद पाकिस्तानी सीमा के द्वारों को इस स्थान के लिए बंद कर दिया गया है। अतीत के इन महान प्रेमियों को भारतीय सेना ने भी पूरा सम्मान दिया है और बीएसएफ की एक नजदीकी पोस्ट का नाम ’मजनूं पोस्ट’ रखा गया है।
मजारों के लिए सरकारी प्रयास
हालांकि लंबे समय तक ये मजारें स्थानीय ग्रामीणों की देख रेख में ही संभाली गई। लेकिन प्रति वर्ष यहां आने वाले यात्रियों की बढती संख्या देख सरकार ने भी अब इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजना बनाई है। राजस्थान के पर्यटन विभाग ने बिजनौर की मजारों को सुरक्षित रखने और इनकी देखभाल करने का जिम्मा उठाया है। पर्यटन की दृष्टि से इस स्थान पर सुविधाएं जुटाने और क्षेत्र को उन्नत करने के लिए योजना बनाई जा रही है। राजस्थान पर्यटन के निदेशक हनुमान मल आर्य के अनुसार सीमा पर स्थित कई पर्यटन स्थलों का ब्यौरा लिया गया जिसमें लैला मजनूं की मजार भी शामिल है। यहां हिन्दू मालकोट की सीमा चौकी पर सुविधएं बढाने के लिए प्रस्ताव लाया गया है, लैला मजनूं की मजार का संरक्षण करने के लिए भी 25 लाख रूपए स्वीकृत किए गए हैं।
लैला मजनूं की भावात्मक कहानी आज भी राजस्थान के जीवंत इतिहास और संस्कृति का एक गौरवपूर्ण हिस्सा है। आज भी युवा प्रेमी महसूस करते हैं कि यहां आकर कोई रूहानी ताकत उन्हें अपने प्रेम को दृढ करने का हौसला देती है, प्रेम में कुर्बान हो जाने की हिम्मत देती है, प्रेम को सभी भेदभावों और स्वार्थ से ऊंचा उठाकर एक गहरा और पवित्र रिश्ता बनाए रखने की नसीहत देती है। यहां की हवा में कुछ है जो कानों के पास सरसराकर कहती है कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है।