जयपुर पर्यटन Hindi

शिला देवी मंदिर, आमेर

आमेर का शिला देवी मंदिर

आमेर जयपुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। जयपुर-आमेर के बीच में नियमित बससेवा एवं सिटी सेवा है। टैक्सी, टेम्पो ऑटोरिक्शा आदि भी चलते है। जिस समय राजा जयसिंह ने जयपुर बसाया उस समय जयपुर और आमेर के बीच लगभग 10 किलोमीटर की दूरी थी। किन्तु आबादी बढ़ने के साथी ही यह दूरी समाप्त हो गई है। आमेर का पुराना नाम अम्बावती था। आमेर का राज-प्रासाद 1600 ईसवी में राजा मानसिंह ने बनवाया था। इसमें कुछ भवन मिर्जाराजा जयसिंह प्रथम ने भी बनवायें। मोहन बाड़ी के कोने पर शिलादेवी का प्राचीन मंदिर है। मंदिर का मुख्य द्वार चाँदी का बना हुआ है, जिस पर नवदुर्गा, शैलपुत्री ब्रह्यचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्ममाण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धि दात्री के चित्र अंकित है। दस महाविद्याओं के रूप में काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, घूमावती बगलामुखी श्री मातंगी और कमलादेवी को भी चित्रित किया गया है।
दरवाजे के ऊपर लाल पत्थर की गणेश मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर में प्रवेश करने पर द्वार के सामने झरोखे के अन्दर चांदी का नगाड़ा रखा हुआ है, जिसे आरती के समय प्रात: व सायं बजाया जाता है। आगे मंदिर में दायी ओर महालक्ष्मी व बाई और महाकाली के काँच में बने चित्र है।
सामने जो मूर्ति है। वह शिलादेवी के रूप में प्रतिष्ठित अष्ट भुजाओं वाली दुर्गा की मूर्ति है। जिसे महाराजा मानसिंह प्रथम 16वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रदेश के पूर्वी भाग से लाए थे। एक मान्यता के अनुसार यह माना जाता है कि यह मूर्ति समुद्र में पड़ी हुई थी और राजा मानसिंह इसे समुद्र में से निकालकर लाये थे। यह मूर्ति शिला के रूप में ही थी और काले रंग की थी। राजा मानसिंह ने इसे आमेर लाकर विग्रह शिल्पांकित करवारकर प्रतिष्ठित करवा दिया। पहले यह मूर्ति पूर्व की ओर मुख किये हुए थी। जयपुर नगर की स्थापना किए जाने पर इसके निर्माण में अनेक विघ्न उत्पन्न होने लगे। तब राजा जयसिंह ने अनुभवी पण्डितों की सलाहनुसार मूर्ति को उत्तराभि मुख प्रतिष्ठित करवा दिया। जिससे जयपुर के निर्माण में कोई अन्य विघ्न उपस्थित न हो। क्योंकि मूर्ति की दृष्टि तिरछी पढ़ रही थी। इस मूर्ति को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित करवाया गया है, जो उत्तराभि मुखी है। यह मूर्ति काले चमकिले पत्थर की बनी है और यह एक पाषाण शिला खण्ड पर बनी हुई है। शिला देवी की यह मूर्ति महिषासुर मंदिनी के रूप में प्रतिष्ठित है। यह मूर्ति सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से आच्छादित रहती है। जिससे सिर्फ मूर्ति का मुहँ व हाथ ही दिखाई देते है। मूर्ति में देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिनें हाथ के त्रिशूल से मार रही है, इस प्रकार की है। इसलिए देवी की गर्दन दाहिनी ओर झुकी हुई है। इसी मूर्ति के ऊपरी भाग में बाएं से दाएं तक अपने वाहनों पर आरूढ़, गणेश, बह्मा, विष्णु, शिव व कार्तिकेय की सुन्दर किन्तु छोटे आकार की मूर्तियां भी बनी हुई है। यह मूर्ति चमत्कारी मानी जाती है। शिला देवी की बायीं ओर अष्टदातु की हिंगलाज माता की मूर्ति भी बनी हुई है। यह मूर्ति कछवाहा राजाओं से पूर्व आमेर में शासन कर रहे मीणा राजाओं के द्वारा ‘‘ब्लूचिस्तान’’ से लायी गयी थी। दायीं ओर गणेश की मूर्ति भी है। मन्दिर के सामने के कक्ष में सिढ़ी से नीचे उतरकर नवरात्रों में नवरात्र स्थापन (कलश स्थापना) भी की जाती है। इस मन्दिर में सम्पूर्ण कार्य संगमरमर द्वारा बनवाया गया है। जो महाराज सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906 में करवाया था। पहले यह चूने का बना हुआ था। इस मन्दिर की विशेषता है, कि यहाँ प्रतिदिन भोग लगने के बाद ही पट्ट खुलते है। यहाँ विशेष रूप से गुजियां व नारियल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। यहा वर्ष में दो बार चैत्र और आश्विन के नवरात्र में मेला लगता है। माता का विशेष श्रंगार किया जाता है। सभी आने वाली भक्तों के लिए दर्शन की विशेष सुविधा का प्रबन्ध किया जाता है। सभी भक्त पक्तिंबद्ध होकर अपनी बारी-बारी से दर्शन करते है। भीड़ अधिक होने पर महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग-अलग पंक्तियां बनाकर दर्शन का प्रबन्ध किया जाता है। मन्दिर की सुरक्षा का सारा प्रबन्ध पुलिस अधिकारियों द्वारा किया जाता है। शिलादेवी मन्दिर में दर्शन के बाद बीच में भैरव मन्दिर बना हुआ है। जहाँ माँ के दर्शन के बाद भक्त भैरव दर्शन करके अपनी यात्रा को सफल बनाते है। मान्यता के अनुसार माँ के दर्शन तभी सफल होते है, जब वह भैरव दर्शन करके नीचे उतरता है। क्योंकि भैरव का वध करने पर भैरव ने अन्तिम इच्छा में माँ से यह वरदान मांगा था कि आपके दर्शनों के उपरान्त मेरे दर्शन भी भक्त करें ताकि माँ के नाम के साथ भैरव का नाम भी लोग याद रखे। और माँ ने भैरव की इस इच्छा को पूर्ण कर उसे यह आर्शीवाद प्रदान किया था। जयपुर वासियों के लिए व पर्यटकों के लिए यह मन्दिर दर्शनीय और प्रसिद्ध है।

Tags

About the author

Pinkcity.com

Our company deals with "Managing Reputations." We develop and research on Online Communication systems to understand and support clients, as well as try to influence their opinion and behavior. We own, several websites, which includes:
Travel Portals: Jaipur.org, Pinkcity.com, RajasthanPlus.com and much more
Oline Visitor's Tracking and Communication System: Chatwoo.com
Hosting Review and Recommender Systems: SiteGeek.com
Technology Magazines: Ananova.com
Hosting Services: Cpwebhosting.com
We offer our services, to businesses and voluntary organizations.
Our core skills are in developing and maintaining goodwill and understanding between an organization and its public. We also conduct research to find out the concerns and expectations of an organization's stakeholders.

Add Comment

Click here to post a comment

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

%d bloggers like this: