यह एक ऐसी दिलेर और महान औरत की सच्ची कहानी है जिसने अपने हक के लिए अनवरत लड़ाई लड़ी। यह जंग सिर्फ रिसायतों के लिए मैदान पर लड़ी जाने वाली लड़ाई ही नहीं थी। यह जंग रिश्तों की भी और अपने अधिकारों की भी। आजादी से कई सदियों पूर्व अखंड भारत में एक ऐसी मुस्लिम साम्राज्ञी पैदा हुई जिसे हिंदुस्तान की पहली महिला शासक होने का गौरव भी है, वह थी सल्तनत-ए-हिंद रजिया सुल्ताना।
रजिया सुल्ताना का जन्म 1205 ईस्वी में हुआ था। वह न केवल हिंदुस्तान बल्कि दक्षिण भारत की सबसे पहली और महान महिला शासक थी। सुल्तान इल्तुतमिश ने अपनी बेटी को बड़े लाड़ प्यार से पाला था। बचपन से ही रजिया कुशल योद्धा, उत्कृष्ट घुड़सवार, शानदार तलवारबाज, रणनीतिकार, चतुर, वीर और योग्य नौकरशाह थी। जिस कालखंड में मुस्लिम औरतों को हरम की वस्तु समझा जाता था और उन्हें जंगों के बाद बंदी बनाकर खरीदा बेचा जाता था उस दौर में इस मुस्लिम महिला ने अपने आप को युद्धों के लिए प्रशिक्षित किया और सेनाओं का मार्गदर्शन करना सीखा। हालांकि वह बचपन से किसी मुल्क की सुल्तान नहीं बनाना चाहती थी लेकिन उसका कौशल रजिया के काम आया और एक दिन वह हिंदुस्तान की पहली महिला सम्राट बन गई। रजिया का शासन प्रबंध, उसकी वीरता व युद्ध कौशन इतना प्रभावी था कि आज भी उसके किस्से अमर हैं। वह आज की महिलाओं के लिए कभी न मिटने वाला प्रेरणा पुंज साबित हुई है। उसने अपने बाद की सभी सदियों में महिलाओं को अपने हक के लिए जीने मरने के लिए आंदोलित किया है।
रजिया : प्राचीन युग की महान सुल्तान
ईस्वी सन 1236 से 1240 के बीच रजिया सुल्तान हिन्दुस्तान में दिल्ली के तख्त की ताज रही। इन चार सालों में ही उसने अपनी वीरता और बल से इतिहास में अपना उच्च स्थान अंकित कर दिया। एक महिला के तौर पर उसका सुल्तान होना इसलिए भी मायने रखता है कि वह हिंदुस्तान की पहली और आखिरी महिला सुल्तान रही। महिला होने के कारण ही उसे सुल्तान के स्थान पर सुल्ताना पुकारा गया था। लेकिन यह सुल्ताना किसी भी मामले में हिंदुस्तान के सुल्तानों से कम नहीं थी। रजिया न केवल मुगल शासन में बल्कि किसी भी तरह की व्यवस्था में हिंदुस्तान पर शासन करने वाली एकमात्र महिला है। हालांकि इतिहास के पन्नों में कुछ और ऐसी महिलाओं का जिक्र मिलता है जिन्होंने अपनी रियासतों की गद्दी को संभाला। लेकिन पुरुष प्रधान समाज और इतिहास के कलमकारों ने उनका नाम कहीं ढक-छुपा दिया। या फिर उन्हें किसी राजा या सुल्तान की पत्नी के तौर पर ही देखा गया। लेकिन रजिया सुल्ताना ने अपने दम पर यह उपाधि कमाई, सुल्ताना की उपाधि।
रजिया सुल्ताना की प्रशासनिक ताकत
जाहिर है कि दिल्ली के शासक इल्तुतमिश की पुत्री होने के नाते उसे शासनिक प्रशासनिक व्यवहार व सीखें विरासत में मिल गई थी। लेकिन रजिया ने अपनी कुशलता से तत्कालीन जटिल शासकीय व प्रशासकीय व्यवहार को आसान बना दिया। एक दमदार शासक होने के साथ साथ वह प्रभावी प्रशासक भी थी। सिर्फ सभाओं में ही नही, रजिया ने जंग के मैदानों में भी अपनी ताकत का लोहा मनवाया था। वह सेना का नेतृत्व करते हुए शत्रुओं का दमन करने में भी सक्षम थी। रजिया ने एक लड़की होकर भी कभी नारीसुलभ संकोच नहीं किए और हमेशा सैन्य पोशाक धारण किया कर पुरूषों की भांति सभाओं का संचालन किया करती थी। न्याय की गद्दी पर बैठकर अदालतों की कार्रवाई को अंजाम दिया करती थी और घोड़े पर बैठकर कर राज्य का दौरा किया करती थी। रजिया के दक्ष प्रशासकीय व्यवहार और शासकीय गुणों के कारण उसके पिता सुल्तान इल्तुतमिश का विश्वास रजिया पर काफी हद तक बढ़ गया। इल्तुतमिश साम्राज्यविस्तार व अन्य कारणों से प्राय: दिल्ली से बाहर ही रहते थे। ऐसे में जब भी वे बाहर जाते तो अपनी बेटी को दिल्ली के तख्त की जिम्मेदारी सौंपकर जाते। उनके पीछे से रजिया शासन प्रशासन को बखूबी संभालती थी। जल्दी ही उसने लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली। सुल्तान इल्तुतमिश ने रजिया की खूबियों से प्रभावित होकर उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। दुर्भाग्यवश इल्तुतमिश की मौत हो गई और यहीं से रजिया के संघर्ष के दिन शुरू हो गए। इल्तुतमिश के उत्तराधिकार के मुताबिक रजिया को दिल्ली का तख्त संभालना था लेकिन यह उसी के भाई और इल्तुतमिश के पुत्र रुक्नुद्दीन फिरोज को नागवार गुजरी और उसने अपने कुछ वफादार साथियों से मिलकर धोखेबाजी से दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया। उसने लगभग सात महीने दिल्ली पर शासन किया। दिल्ली से निष्कासित रजिया ने बाहर से जनता का समर्थन जुटाया और अपनी ताकत बढ़ाने में लगी रही। उसने 1236 को फिरोज को युद्ध में हरा दिया और दिल्ली की सत्ता पर फिर से काबिज हो गई।
एक शासक के तौर पर रजिया
रजिया सुल्ताना एक साधन संपन्न सम्राट थी। उसने मुल्क के लिए श्रेष्ठ नियमों और विनियमों का निर्माण किया। उसकी इच्छा एक लोककल्याणकारी राज्य स्थापित करने की थी। पिता के शासनकाल के दौरान और अपने शासन के चार साल में उसने कूओं, बावड़ियों, सड़कों, पुस्तकालयों, अनुसंधान केंद्रों और विद्यालयों का निर्माण कराया। उसने व्यापार बढाने के लिए यातायात के साधनों को बढाने के लिए मार्गों का निर्माण और विकास कराया। कला और संस्कृति के लिए भी उसने बहुत प्रयत्न किए। उसने समय समय पर प्रतिभावान कलाकारों, संगीतकारों और कवियों का शासकीय सम्मान किया।
धर्म के प्रति रजिया की सोच
रजिया सुल्तान मुस्लिम धर्म के प्रति कट्टर नहीं थी। एक कुशल शासक की तरह उसे सभी धर्मों पर विश्वास था और वह सभी धर्मों को मानती भी थी। कहा जाता है कि हिन्दू धर्म के प्रति उसकी अति आस्था ने मुस्लिम विद्धानों में उसके प्रति रोष पैदा कर दिया था। रजिया सुल्तान ने कई भाषाओं में कुरान का अनुवाद करायां इसके अलावा कई सामुदायिक पुस्तकालयों का निर्माण भी कराया। साथ ही उसने दर्शन, विज्ञान, साहित्य और खगोल विज्ञान के क्षेत्र भी उल्लेखनीय योगदान दिया। उसने अनेक हिंदू दर्शन ग्रंथों का अध्ययन किया और शैक्षणिक संस्थानों में सभी धर्मों के ग्रंथों और उपदेशों को शामिल किया। वह एक धर्मनिरपेक्ष शासक थी।
अभिजात वर्ग के साथ संघर्ष
रजिया सुल्तान को एक महिला शासक होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा। तुर्की अभिजात वर्ग उसका शत्रु बन बैठा। मुस्लिम महिलाओं को इतनी आजादी नहीं थी। वह सदैव एक पुरुष के नियंत्रण में रहने के लिए ही बाध्य थी। इसलिए तुर्की अभिजात वर्ग उससे खफा था। लेकिन एक तुर्की सिपाही जलालुद्दीन याकूत पर रजिया को काफी भरोसा था। याकूत रजिया का इथियोपियाई दास था। कहा जाता है कि रजिया याकूत से प्रेम करती थी। उसने अपने निजी सहायक के तौर पर याकूत को नियुक्त किया था। याकूत के साथ संबंधों को लेकर भी मुस्लिम अभिजात वर्ग में रजिया को लेकर काफी रोष था। मुस्लिम समाज एक महिला का दिल्ली के तख्त पर आसीन होना भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। आखिर रजिया को इन्हीं सब कारणों से अपनी गद्दी गंवानी पड़ी। 1239 में वह लाहौर में उठी एक बगावत को दबाने की कोशिशों में जुटी थी। उधर, दिल्ली में उसके पीछे से तख्त के मंत्री और सिपहसालार रजिया के भाई बहराम से मिल गए और उसे तख्त पर आसीन कर सुल्तान घोषित कर दिया। दिल्ली पर फिर से कब्जा करने के लिए रजिया ने मलिक अल्तूनिया से विवाह कर दिया। वह सिंध प्रांत में अपनी धाक रखता था। रजिया, मलिक व उनके साथियों ने दिल्ली पर आक्रमण की तैयारी की। इसी संघर्ष में 13 अक्टूबर 1240 को बहराम की सेना ने रजिया और मलिक की हत्या कर दी।
रजिया की मजार
रजिया की मजार को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं है। रजिया सुल्ताना की मजार पर दिल्ली, कैथल एवं टोंक अपना अपना दावा जताते आए हैं। लेकिन वास्तविक मजार पर अभी फैसला नहीं हो पाया है। वैसे रजिया की मजार के दावों में अब तक ये तीन दावे ही सबसे ज्यादा मजबूत हैं। इन सभी स्थानों पर स्थित मजारों पर अरबी फारसी में रजिया सुल्तान लिखे होने के संकेत तो मिले हैं लेकिन ठोस प्रमाण नहीं मिल सके हैं। राजस्थान के टोंक में रजिया सुल्तान और उसके इथियोपियाई दास याकूत की मजार के कुछ ठोस प्रमाण मिले हैं। यहां पुराने कबिस्तान के पास एक विशाल मजार मिली है जिसपर फारसी में ’सल्तने हिंद रजियाह’ उकेरा गया है। पास ही में एक छोटी मजार भी है जो याकूत की मजार हो सकती है। अपनी भव्यता और विशालता के आकार पर इसे सुल्ताना की मजार करार दिया गया है। स्थानीय इतिहासकार का कहना है कि बहराम से जंग और रजिया की मौत के बीच एक माह का फासला था। इतिहासकार इस एक माह को चूक वश उल्लेखित नहीं कर पाए और जंग के तुरंत बाद उसकी मौत मान ली गई। जबकि ऐसा नहीं था। जंग में हार को सामने देख याकूत रजिया को लेकर राजपूताना की तरफ निकल गया। वह रजिया की जान बचाना चाहता था लेकिन आखिरकार उसे टोंक में घेर लिया गया और यहीं उसकी मौत हो गई।
रजिया सुल्ताना और भारतीय सिनेमा
भारतीय सिनेमा ने रजिया सुल्ताना को एक बहादुर शासक के तौर पर स्थापित किया है। साथ ही किंवदंतियों को कहानी में पिरोकर एक रोचक कथा भी गढ़ दी गई है। एक पुरानी हिंदी फिल्म रजिया सुल्तान में हेमा मालिनी ने रजिया की भूमिका निभाई है और याकूत की भूमिका में धर्मेंद्र हैं। फिल्मकार कमाल अमरोही ने इसका निर्देशन किया था और यह फिल्म 1983 में प्रदर्शित की गई थी। यह फिल्म काफी लोकप्रिय भी हुई थी। रजिया की शूरवीरता और प्रेम कर अनगिनत गीत भी रचे गए हैं।
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