जयपुर पर्यटन Hindi

जयपुर की प्रसिद्ध हस्तकलायें

राजस्थान की राजधानी जयुपर अपने आप में अनूठा शहर है। यह शहर विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी है। यहाँ की प्रत्येक चीज दर्शनीय है। विभिन्न कलाओं में यह सर्वप्रथम है। जैसे : चित्रकला, शिल्पकला, वास्तुकला, हस्तकला आदि जयपुर की विभिन्न कलाओं में हस्तकला का अपना अलग ही स्थान है। आज जयपुर में छोटी-छोटी मूर्तियों से लेकर लाख की चूड़ियाँ, जूतियाँ, लकड़ी के खिलौने, सजावटी सामान, हमारे यहाँ की हस्त कला को समृद्ध किये हुए है। सलमा सितारे का काम, पेचवर्क की चद्दरें, सूट दरियाँ बनाने का काम यहाँ बड़े पैमाने पर होता है। सांगानेरी छपाई का काम सांगानेर में बहुतायत से होता है।

‘‘सवाई मानसिंह संग्रहालय’’ में ईसवी 1799 का छपा हुआ एक साफा रखा हुआ है। जो सांगानेरी छपाई से युक्त है। 
जयपुर में हस्तकलाओं के विभिन्न उत्पाद-

उत्पाद

हस्तकला की जानकारी

कठपुतली जयपुर में कठपुतलियां प्रमुख हस्तकलात्मक उत्पाद हैं। यहां बड़े पैमाने पर कठपुतलियों का निर्माण किया जाता हैं। कठपुतली कारीगर इन्हें लकड़ी और कपड़े से तैयार करते हैं और फिर इन्हें ठेठ राजस्थानी परिधान से सजाया जाता है। कठपुतलियों को डोरियों से नचाकर मनोरंजन करने की कला यहां सदियों पुरानी है। जयपुर भ्रमण के लिए आने वाले पर्यटक कठपुतलियां खरीदने में दिलचस्पी भी दिखाते हैं।
स्टेशनरी जयपुर की स्टेशनरी का सामान भी हस्तकला में शामिल है। यहां हैंडमेड पेपर तैयार किया जाता है जो सांगानेर में बहुतायत से तैयार किया जाता है। पर्यावरण के अनुकूल होने के साथ साथ यह दिखने में खूबसूरत होता है। इसके अलावा भी लाख के पेन, फाइलें, फोल्डर्स और होल्डर्स भी यहां बड़े पैमाने पर हाथों से तैयार किए जाते हैं।
गृहसज्जा जयपुर में गृहसज्जा से जुड़ा सामान भी दस्तकारों द्वारा बड़ी मात्रा में तैयार किया जाता है। जैसे-वंदनवार, हैंगर, पत्र-मंजूषा, रंगीन छतरियां, कपड़े के झूमर और लैम्प इत्यादि। घर सजाने के लिए यहां बांस से बनाई बहुत सी चीजें बहुत खूबसूरत और सस्ती उपलब्ध हो जाती है। इन्हें घर में सजाने से न केवल खूबसूरती बढ़ती है बल्कि राजस्थानी संस्कृति की झलक भी दिखाई देती।
मुखौटे जयपुर में विभिन्न प्रकार के मुखौटे भी तैयार किए जाते हैं। यहां मिट्टी, कपड़े और कागज से सजावटी मुखौटे तैयार किए जाते हैं। धातु से भी मुखौटे तैयार करने की परंपरा है। मिट्टी के मुखौटे प्राय: घरों को नजर लगने से बचाने के लिए तैयार किए जाते हैं।
गुलदान जयपुर में कलात्मक गमले और गुलदान भी बनाए जाते हैं। सड़क के किनारे मिट्टी से बने सुंदर गमले देखे जा सकते हैं। वही हस्तकलाओं की गैलरियों में चीनी मिट्टी, प्लास्टर ऑव पेरिस और मिट्टी से बने सुंदर और कलात्मक गुलदस्ते और गुलदान यहां बड़ी मात्रा में बनाए जाते हैं। चीनी मिट्टी के गुलदानों पर कलात्मक और रंगात्मक कारीगरी भी की जाती है। ब्लू पॉटरी में ये पॉट प्राय: दिखाई देते हैं।
पाकशाला पात् जयपुर के रसोईघरों में लजीज व्यंजनों की शोभा भी प्राय: कलात्मक पात्र ही बढ़ाते हैं। जयपुर में पानी के घड़े, सुराहियां, मग, तवे, सकोरे, कटोरदान आदि पात्र कलात्मक ढंग से दस्तकारों द्वारा निर्मित किए जाते हैं। पर्यटक यहां की बैडशीट, पिलोकवर आदि जरूर खरीदते हैं।
ब्लूपॉटरी – जयपुर की हस्तकला में ब्लूपॉटरी काफी प्रसिद्ध है। चीनी मिट्टी के बर्तनों पर क्वाट्र्ज के रंगीन पाउडर से जो सजावट की जाती है। वह ब्लू पॉटरी के नाम से जानी जाती है। जब यही काम टाइल पर किया जाता है, तो इसे ब्लूटाइल  कहा जाता है। इस कला में नीले रंग को विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन आजकल पीला, हरा, हल्का भूरा, और गहरा भूरा रंग भी काम में लिया जाता है। ब्लू पॉटरी की विभिन्न प्रदर्शनियाँ जयपुर के विभिन्न स्थानों पर लगाई जाती है। जहाँ सभी लोग इसका लाभ उठा सकते है। विभिन्न स्थानों में प्रसिद्ध स्थान बिड़ला ऑडीटोरियम, जवाहर कला केन्द्र आदि है। ब्लू पॉटरी का प्रयोग  बड़े-बड़े होटलों और घरों की बैठकों को सजाने में किया जाता है। ब्लूपॉटरी में फूलदान, गमले, सुराहियाँ, लैम्प, मटकियाँ व अन्य कलात्मक आकृतियों की सामग्री पर अलंकरण किया जाता है।
लाख की चूड़ियाँ – हस्तकला में ही लाख की चूड़ियों का कार्य भी आता है। जयपुर की लाख से बनी चूड़ियाँ सारे देश-विदेश में जाती है। लाख से बनी चूड़ियों का कार्य जयपुर शहर के त्रिपोलिया बाजार व मनिहारों की गली के आस-पास होता है। अब यह काम अधिकत्तर घरों में भी किया जाता है। इस कार्य को करने वाली अधिकत्तर मुस्लिम महिलाएँ है। वे इस कार्य को बहुत बारीकी से करती है। कटाई-छटाई की जाती है। इससे बनी चूडियों की कीमत 20 रूपयें से लेकर 2000 तक है। सोने से बनी चूड़ियों में भी लाख का काम किया जाता है। पहले लोग लाख की मणियाँ बनाते थे फिर उसके हार बनाते थे। इस कारण वे ‘मणिहार’ कहलाते थे। अब मणियों के स्थान पर लाख की चूड़ियाँ ही बनती है। यही कारण है कि इसे ‘लाखेरी’ की कला तथा इस काम को करने में लगे लोगों को ‘लखारा’ कहा जाता है। लाख से बनी लाल व हरें रंग की चूड़ियाँ विभिन्न त्यौहारों व अवसरों पर पहनी जाती है। जैसे : तीज, विवाह, जन्मोत्सव अवसरों पर। इन चूड़ियों की माप भी अलग-अलग साईज में होती है। जैसे : पौने तीन, दो छ:, दो तीन आदि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि खराब होने के बाद इसे पुन: ठीक किया जा सकता है। नगीने निकल जाने के बाद पुन: चिपकाये जा सकते है। 
बंधेज – हस्तकला में ही बंधेज का अपना अलग ही स्थान है। बंधेज की साडियाँ, सूट, चुन्नियाँ जयपुर में कॉफी प्रचलित है। यह काम भी जयपुर में बहुतायत से होता है। छपाई करने के लिए पहले डिजाइन को इच्छानुसार कपड़े पर उतारा जाता है। फिर उंगली पर लोहे का खोल पहनकर कपड़े के डिजाइन वाले भाग को नोक पर उभार लिया जाता है। फिर उस भाग पर राल तथा मिट्टी में भिगोये डोरे लपेटे जाते है। यह काम बड़ी बारीकी से किया जाता है। यह डोरा इसलिए लपेटा जाता है कि जब कपड़े को रंग के घोल में डाला जाए तो डोरे के भीतर सुरक्षित कपड़े तक रंग नहीं पहुँच पाए। जयपुर में आजकल बंधेज का प्रचलन बहुत हो गया है। विदेशी लोग भी यहाँ से बनी बंधेज के विभिन्न परिधान खरीद कर ले जाते है। बंधेज में सभी रंग व डिजाइन उपलब्ध होने के कारण ये अन्य कपड़ों से हटकर ही लगता है। जयपुर में इसके विभिन्न स्थान है। जैसे : हवामहल के आस-पास की दुकानों में यह आसानी से मिल जाती है। सूती के अलावा सिल्क में भी उपलब्ध है। जयपुर के प्रसिद्ध शोरूमों में भी यह उपलब्ध है, जैसे – रूपलक्ष्मी, नवनीत साड़ी सेन्टर, राणा साड़ीज आदि। परिधानों के अतिरिक्त जयपुरी बंधेज की पगडियाँ भी कॉफी प्रचलित व प्रसिद्ध है। जो कि विवाह आदि अवसरों में पहनी जाती है। पहले ये पगडि़याँ विशेष रूप  से गुलाबी रंग की होती थी। आजकल इनका स्थान बंधेज ने ले लिया है। 
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