हवामहल का संग्रहालय काफी लम्बे समय से बंद है। हवामहल के पास ही सिरहड्योढी दरवाजे के पास स्थित पुरानी विधानसभा ’मानसिंह टाउन हॉल’ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का म्यूजियम बनाने की तैयारी जोर शोर से चल रही है। यह म्यूजियम आरंभ होने के बाद तो हवामहल म्यूजियम के दुबारा आरंभ होने की संभावना बिल्कुल समाप्त हो जाएगी। काफी अरसे से बंद पड़े हवामहल म्यूजियम से बहुत सारी पुरा सामग्री तो शहर के विभिन्न म्यूजियम में स्थानांतरित कर दी गई है। कुछ सामग्री यहां वक्त की धूल खा रही है। उम्मीद है, शीघ्र ही मानसिंह टाउनहॉल संग्रहालय आरंभ होगा और हवामहल म्यूजियम में रखी पुरा सामग्री को यथोचित सम्मान मिलेगा। आइये जानते हैं कि हवामहल म्यूजियम ने अपने अंदर किन किन पुरा सामग्रियों को पनाह दी है-
सांस्कृतिक संपदा के नजरिये से राजस्थान अत्यंत समृद्ध प्रदेश है। इस राज्य की विरासतों का लोहा यूनेस्को ने भी माना है। हाल ही यूनेस्को ने राजस्थान के छह दुर्गों को विश्व विरासत का दर्जा दिया है। अब जंतर मंतर और घना को मिलाकर यहां आठ विश्व विरासत हो गई हैं। दुनियाभर के संस्कृतिप्रेमियों की नजर अब राजस्थान की विरासतों की ओर है।
राजस्थान की विरासतों का प्रदर्शन संग्रहालयों के माध्यम से किया गया है। राजस्थान के कुछ राजकीय संग्रहालय महत्वपूर्ण स्मारकों के अंदर बनाए गए हैं। राजकीय संग्रहालय हवामहल एक महत्वपूर्ण स्मारक के अंदर स्थित प्राचीन ढूंढाड़ प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का एक अन्यतम संग्रहालय था। फिलहाल यह बंद कर दिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर जयपुर का हवामहल राजस्थान के प्रतीक के रूप में विख्यात है। जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने हवामहल का निर्माण 1799 में उस्ता लालचंद की देखरेख में कराया था। हवामहल का पिछला भाग जो सिरहड्योढी बाजार और माणकचौक या बड़ी चौपड की ओर मुख्यमार्ग पर पूर्व दिशा में झांकता है, अधिकांशत: कलात्मक सैंकड़ों झरोखों से सुसज्जित है। यह भारतीय फारसी मिश्रित शैली में बना हुआ शानदार स्मारक है।
हवामहल का मुख्य प्रवेशद्वार माणक चौक अथवा बड़ी चौपड़ से त्रिपोलिया की ओर चलने पर दाहिने हाथ पर एक द्वार के अंदर से है। इस द्वार में प्रवेश करने पर पहले दाहिने हाथ पर हवामहल के समकालीन निर्मित और कभी हवामहल के मुख्य भाग में जुडे रहे महल भाग में राज्य आयुर्वेद विभाग के उपनिदेशक का कार्यालय है। इसी श्रंखला में दूसरा बडा प्रवेशद्वार है जिसके बिल्कुल सामने वर्तमान राज्य पुलिस मुख्यालय व पुलिस महानिदेशक का कार्यालय है। हवामहल के पश्चिमी मुख्यद्वार को आनंदपोल और दूसरे चौक के द्वारपालों युक्त द्वार को गणेशपोल के नाम से जाना जाता है। मुख्यद्वार आनदं पोल में प्रवेश करते ही बायें हाथ की तरफ हवामहल के प्रवेश तथा कैमरा शुल्क प्राप्ति का राज्स्व कक्ष है।
प्रथम चौक को पार करने गणेश पोल से प्रवेश करते हुए दूसरे मुख्य व बड़े चौक को पार करके मध्यम फव्वारों युक्त संगमरमर का एक बड़ा हौज है। इसी चौक के दक्षिण में महाराजा सवाई प्रताप सिंह के निजी उपयोग में रहा प्रताप मंदिर कक्ष है जिसमें वर्तमान में ढूंढाड प्रदेश की शिल्प व तक्षण कला की पाषाण प्रतिमाएं और अन्य पुरातत्व सामग्री प्रदर्शित थी।
चौक के उत्तर दिशा में मूलत: रसोड़ा अथवा भोजनशाला कक्ष रहे भाग में ढूंढाड क्षेत्र की प्रतिनिधि चित्रकला व हस्तशिल्प का प्रदर्शन किया गया था। पूर्वाभिमुख पांच मंजिल के मुख्य भवन के भूतल स्थित शरदमंदिर कक्ष में पूर्व जयपुर राज्य के प्रमुख महाराजाओं और मूर्धन्य प्रतिष्ठित नागरिकों के चित्रों को प्रदर्शित किया गया था। इसके ऊपर की मंजिलें क्रमश: रत्न मंदिर, विचित्र मंदिर, प्रकाशमंदिर, हवामंदिर तथा उत्तर पूर्व कोने पर बनी खुली छतरी जो पुरानी शिकार ओढी थी, स्मारक के रूप में दर्शनीय हैं।
हवामहल के इस विश्वविख्यात स्मारक में प्राचीन ढूंढाड क्षेत्र की पुरा कला संपदा संग्रहालय का लोकार्पण व उद्घाटन 23 दिसंबर 1983 को को हुआ था। प्रतापमंदिर के बार्ह्य भाग में स्थित मूर्तिकक्ष में ढूंढाड क्षेत्र की आभानेरी से प्राप्त स्कंद कार्तिकेय, महिषासुर मर्दिनी तथा रावण अनुग्रह मूर्ति, नहरड से प्राप्त जैन तीर्थंकर सुमतिनाथ, सांभर से प्राप्त वामन अवतार आदि पाषाण प्रतिमाएं रखी गई थी। इनमें से अधिकतर मूर्तियों को अल्बर्ट हॉल स्थानांतरित कर दिया गया है। ये मूर्तियां ढूंढाड क्षेत्र के शिल्प और तक्षण कौशल की अप्रतिम उदाहरण हैं। प्रताप मंदिर के आंतरिक मुख्यकक्ष में गणेश्वर, जोधपुरा, बैराठ, रैढ, सांभर और नगर आदि के प्राचीन पुरातात्विक स्थलों के सर्वेक्षण और उत्खनन से प्राप्त विभिन्न पाषाण, ताम्र और लोहे के उपकरणों, मृदुपात्रों, मूर्तियों का डिस्प्ले किया गया था।
प्रतापमंदिर के अंदर दक्षिण पूर्व कोने के स्थित एक छोटे कक्ष में ढूंढाड क्षेत्र के शिलालेख व अभिलिखित ताम्रपत्रों और सिक्कों का प्रदर्शन था। बैराठ से प्राप्त तीसरी सदी पूर्व के अशोक के शिलालेख, विक्रम संवत 284 और 335 का बरनाला स्तूप स्तंभ, दसवीं सदी का चाकसू अभिलेख, सन 1363 का फारसी और देवनागरी लिपि में द्विभाषीय शिलालेख, आमेर के राजा मानसिंह का जमवारामगढ़ से प्राप्त संवत 1669 का शिलालेख और प्रतिहारकालीन बघाल का ताम्रपत्र आदि लिपि, भाषा, इतिहास, संस्कृति, समाज व परंपराओं के महत्वपूर्ण अभिलिखित साक्ष्य इस म्यूजियम के खास आकर्षण थे। इसी कक्ष में छठी सदी से पूर्व से दूसरी सदी पूर्व के बीच प्रचलित रहे आहत सिक्कों, विराटनगर से प्राप्त यूनानी सिक्के, स्थानीय मालव और यौधेय गणराज्यों के सिक्के, खेतड़ी व जमवारामगढ से प्राप्त कुषणकालीन सिक्के, टोंक जिले से प्राप्त गुप्तकालीन सिक्के, सैसैनियन वंश के द्रम्भ सिक्के, चौहान राजाओं और जयपुर राज्य के कछवाहा शासकों द्वारा प्रचलित सिक्कों का भी डिस्प्ले किया गया था जिसके माध्यम से इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, राजनीतिक उथल-पुथल, व्यापारिक गतिविधियों के ऐतिहासिक कालक्रम का आभास होता था।
उत्तर दिशा में स्थित रसोड़ा या भोजनशाला में चित्रकला एवं हस्तशिल्प दीर्घा में जयपुर शैली के लघुरंग चित्रों, जयपुर की प्रसिद्ध नीलवर्ण मृदपात्र कला, काष्ठ तक्षण कला, पीतल व धातु की अलंकृत बड़े आकार की सजावटी ढालों, पारंपरिक, आभूषणों, अस्त्रों शस्त्रों आदि का डिस्प्ले था जिसके माध्यम से ढूंढाड क्षेत्र के हस्तशिल्पियों का उच्चकोटि का कौशल प्रदर्शित किया गया था। शरदमंदिर कक्ष में जयपुर नगर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह तथा उनके बाद जयपुर नगर और पूर्व कछवाहा राज्य में महत्पवूपर्ण योगदान करने वाले महाराजाओं सवाई प्रतापसिंह, सवाई रामसिंह, सवाई मानसिंह द्वितीय के छायाचित्र लगे हुए थे। इन्हीं के साथ जयपुर और राजस्थान के ख्यातनाम व्यक्तित्वों की प्रतिमाओं और छायाचित्रों को प्रदर्शित किया गया था। इनमें विद्याधर चक्रवर्ती, रत्नकर पौंडरीक, कवि पद्माकर, पंडित टोडरमल, विद्यावाचस्पिति मधुसूदन ओझा, स्वामी लक्ष्मीराम, उस्ताद बहराम खां डागर, मिर्जा इस्माइल, सेठ जमलालाल बजाज और अर्जुन लाल सेठी जैसे महान व्यक्तित्व शामिल थे। संग्रहालय में राजस्थान से हडप्पाकालीन सभ्यता के प्रमुख केंद्र कालीबंगा (हनुमागढ) से प्राप्त योग मुद्रा में नग्न पुरूष की ताम्र प्रतिमा के अलावा गलता के जलकुंड की सफाई से प्राप्त पाषण व धातु की अनेक प्रतिमाएं तथा ज्योतिष यंत्र भी यहां संग्रहीत थे।
हवामहल म्यूजियम अपने आप में एक विशिष्ट म्यूजियम रहा। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते इसे कायम नहीं रखा गया और आखिर इसे बंद करना पड़ा। फिलहाल सबकी नजर मानसिंह टाउनहॉल में बन रहे अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम पर है। यह म्यूजियम तैयार होने के बाद जयपुर में वैश्विक स्तर के दो म्यूजियम हो जाएंगे।
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