जयपुर का सुप्रसिद्ध बिड़ला मंदिर लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर मोती-डूंगरी, गणेश मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित हे। इस मंदिर का निर्माण गंगा प्रसाद बिड़ला ने करवाया था। इसके निर्माण कार्य में हिन्दुस्तान चैरिटी ट्रस्ट का महत्वपूर्ण योगदान है। यह एशिया का पहला वातानुकूलित मंदिर है। इस मंदिर को देखने के लिए विदेशी लोग अधिक संख्या में आते है, और यहाँ की सुन्दरता को निहारते है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर गणेश जी की सुन्दर प्रतिमा बनी हुई है। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर उसकी दीवारों को देखने पर ऐसा लगता है, जैसे किसी महल में आ गये है और इन्हें बैल्जियम से मँगवाया गया है। इन पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र अंकित किए गए है। इन चित्रों को अंदर और बाहर दोनों तरफ से देखा जा सकता है। मंदिर में ठीक सामने लक्ष्मी और नारायण की मूर्ति की छवि इतनी सुन्दर है कि वे आने वाले सभी दर्शनार्थियों के मन को मोह लेती है। मूर्ति को बहुत की बारीकी व कलाकारी से बनाया गया है। मूर्ति को सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित किया गया है और सिर पर सुन्दर मुकुट धारण करवाया गया है। बृहस्पतिवार को विशेष रूप से पीले वस्त्रों से व ाृंगार से सजाया जाता है। मंदिर में सम्पूर्ण पत्थर संगमरमर का है और वो भी सफेद जो कि दिन में सूर्य की चमकती धूप में चाँदनी के समान लगता है। मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ खड़ी है। इनके दर्शन मंदिर परिसर के बाहर से भी किए जा सकते है। मंदिर के बाहर सीढि़यों के दोनों ओर भगवान को हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए ब्रजमोहन बिड़ला और उनकी धर्म पत्नी की सुन्दर प्रतिमाएँ बनी हुई है। मंदिर में चारों ओर हरियाली के लिए उद्यान बना हुआ है। उद्यान में फैली हरी घास हरी मखमल जैसी लगती है। समय-समय पर इसकी कटाई छटाई की जाती है। इसमें लोगों का प्रवेश निषेध है। दूसरी तरफ बने उद्यान में लोगों के बैठने की व्यवस्था है। यहाँ आने वाले सभी लोग इसमें आ जा सकते है। यहाँ आने जाने व्यक्तियों के लिए पानी की भी उचित व्यवस्था है। जूते चप्पलों की भी विशेष सुविधा है। टोकन देकर उनके जूते-चप्पलों की सुरक्षा की जाती है। गाडि़यों की भी विशेष देखभाल की जाती है। इस कार्य के लिए एक सुरक्षा गार्ड वहीं तैनात रहता है। मंदिर में प्रसाद चढ़ाने का विधान नही है। मंदिर में बैठे पुजारी ही प्रसाद की व्यवस्था करते है। प्रसाद में चावल की फूलियाँ व मीठे इलाइची दाने दिए जाते है। और तुलसीदल मिश्रित चरणामृत दिया जाता है। चंन्दन का तिलक लगाया जाता है। दीवारों पर सभी चित्र खोदकर बनाये गये है, और किसी न किसी झांकी को सरोकार किए गए है। मूर्तियों को छूना संख्त मना है। इसी मंदिर का एक ओर मुख्य आकर्षण है, यहाँ का बीएम बिड़ला संग्रहालय। इस संग्रहालय के माध्यम से देशी और विदेशियों को भारत के औद्योगिक विकास तथा राजस्थानी वेशभूषा के क्रमबद्ध विकास की सजीव झांकी देखने को मिलती है। यहाँ विभिन्न वेशभूषाओं की छपाई, सजावट तथा जरी का काम सभी को आश्चर्य चकित कर देता है। इस संग्रहालय के दो कक्ष है। इसमें बिड़ला परिवार से सम्बन्धित सभी चीजे उपस्थित है। जो उनके विकास की कहानी का परिचय देते है। इसी संग्रहालय में ब्रजमोहन और उनके पुत्र जीपी बिड़ला को औद्योगिक तथा जन कल्याण के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए विभिन्न औद्योगिक संगठनों गणमान्य व्यक्तियों और धर्म गुरूओं द्वारा दिए गए सम्मान एवं अभिनन्दन पत्र भी यहीं उपलब्ध है। जयपुर का यह सबसे भव्य और सुन्दर मंदिर है। यहाँ विदेशी लोग गर्मियों में आते है। मंदिर में आने पर मन शान्त और भाव विभोर हो उठता है।