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गागरोन दुर्ग : झालावाड़

गागरोन दुर्ग : झालावाड़ (Gagron Fort : Jhalawar)

राजस्थान दुर्गों का राज्य है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि रियासतों ने संकट काल में अपनी प्रजा को शत्रुओं से बचाने के लिए दुर्गों का निर्माण किया। रियासत पर जब संकट आता था तो पूरा नगर इन दुर्गों में शरण लेता था। यहां अनाज के भंडार और पर्याप्त जलाशय होते थे। एक साथ हजारों लोगों के कई महीनों तक ठहरने की व्यवस्था होती थी। सुरक्षा प्रमुख मुद्दा होता था इसलिए अधिकतर ये दुर्ग पहाड़ियों पर बनाए गए। लेकिन जहां पहाड़ियां नहीं थीं वहां सुरक्षा के अन्य उपाय भी अपनाए गए। कुछ दुर्ग सपाट रेगिस्तान में बने, कुछ घने जंगलों के बीच और कुछ जल के बीचों बीच, ऐसा इसलिए किया गया कि शत्रु सेनाओं को इन पर चढ़ाई करने में दिक्कतों का सामना करना पड़े। ऊंची और मजबूत प्राचीरें तथा विशाल द्वार इन दुर्गों की पहचान हैं। झालावाड़ का गागरोन किला जल-दुर्ग का बेहतरीन उदाहरण है।

अहू और कालीसिंध का संगम

गागरोन किला झालावाड़ से लगभग दस किमी की दूरी पर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसका निर्माण अहू और कालीसिंध नदियों के संगम पर किया गया था। यह दुर्ग झालावाड़ तक फैली विंध्यालच की श्रेणियों में एक मध्यम ऊंचाई की पठारनुमा पहाड़ी पर निर्मित है। दुर्ग 722 हेक्टेयर भूमि पर फैला हुआ है। गागरोन का किला जल-दुर्ग होने के साथ साथ पहाड़ी दुर्ग भी है। इस किले के एक ओर पहाड़ी तो तीन ओर जल घिरा हुआ है। किले के दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं। एक द्वार नदी की ओर निकलता है तो दूसरा पहाड़ी रास्ते की ओर। किला चारों ओर से ऊंची प्राचीरों से घिरा हुआ है। दुर्ग की ऊंचाई धरातल से 10-15 से 25 मीटर तक है। किले के पृष्ठ भाग में स्थित ऊंची और खड़ी पहाड़ी ’गिद्ध कराई’ इस दुर्ग की रक्षा किया करती थी। पहाडी दुर्ग के रास्ते को दुर्गम बना देती है।

एकता का प्रतीक

इस अभेद्य दुर्ग की नींव सातवीं सदी में रखी गई और चौदहवीं सदी तक इसका निर्माण पूर्ण हुआ। यह दुर्ग हिन्दू मुस्लिम एकता का खास प्रतीक भी है। यहां मोहर्रम के महीने में हर साल बड़ा आयोजन होता है जिसमें सूफी संत मीठेशाह की दरगाह में दुआ करने सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम एकत्र होते हैं। वहीं मधुसूदन और हनुमान मंदिर में भी बड़ी संख्या में हिन्दू माथा टेकते हैं। इसके अलावा यहां गुरू रामानंद के आठ शिष्यों में से एक संत पीपा का मठ भी है। 

मौत का किला

खास बात यह है कि इस किले का इस्तेमाल अधिकांशत: शत्रुओं को मृत्युदंड देने के लिए किया जाता था। गागरोन के किले का स्थापत्य बारहवीं सदी के खींची राजपूतों की डोडिया और सैन्य कलाओं की ओर इंगित करता है। प्राचीरों के भीतर स्थित महल में राजसभाएं लगती थी और किनारे पर स्थित मंदिर में राजा-महाराजा पूजा उपासना किया करते थे। दुर्ग में अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में झाला राजपूतों के शासन के समय के बेलबूटेदार अलंकरण और धनुषाकार द्वार, शीश महल, जनाना महल, मर्दाना महल आदि आकर्षित करते हैं। यहां उन्नीसवीं सदी के शासक जालिम सिंह झाला द्वारा निर्मित अनेक स्थल राजपूती स्थापत्य का बेजोड़ नमूना हैं। इसके अलावा सोलवहीं सदी की दरगाह व अठारहवीं सदी के मदनमोहन मंदिर व हनुमान मंदिर भी अपनी बनावट से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। राज्य के अन्य किलों की भांति गागरोन किले में भी अनेक स्मारक, जलाशय, कुएं, भंडारण के लिए कई इमारतें और बस्तियों के रहने लायक स्थल मौजूद हैं।

आकर्षण

गागरोन का किला अपने प्राकृतिक वातावरण के साथ साथ रणनीतिक कौशल के आधार पर निर्मित होने के कारण भी विशेष स्थान रखता है। यहां बड़े पैमान पर हुए ऐतिहासिक निर्माण और गौरवशाली इतिहास पर्यटकों का विशेषरूप से ध्यान आकर्षित करते हैं। दुर्ग में गणेश पोल, नक्कारखाना, भैरवी पोल, किशन पोल, सिलेहखाना का दरवाजा आदि किले में प्रवेश के लिए महत्पवूर्ण दरवाजे हैं। इसके अलावा दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जनाना महल, मधुसूदन मंदिर, रंग महल आदि दुर्ग परिसर में बने अन्य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल हैं। किले की पश्चिमी दीवार से सटा सिलेहखाना उस दौर में हथियार और गोलाबारूद जमा करने का गोदाम था।

एक तरफ गिद्ध कराई की खाई से सुरक्षित और तीन तरफ से कालीसिंध और अहू नदियों के पानी से घिरे इस दुर्ग की खास विशेषता यह है कि यह दुर्ग जल की रक्षा भी करता रहा है और जल से रक्षित भी होता रहा है। यह एक ऐसा दुर्लभ दुर्ग है जो एक साथ जल, वन और पहाड़ी दुर्ग है। दुर्ग के चारों ओर मुकुंदगढ रेंज स्थित है।

गौरवमयी इतिहास

गागरोन का किला अपने गौरवमयी इतिहास के कारण भी जाना जाता है और उल्लेखनीय स्थान रखता है। यह दुर्ग खींची राजपूत क्षत्रियों की वीरता और क्षत्राणियों की महानता का गुणगान करता है। कहा जाता है एक बार यहां के वीर शासक अचलदास खींची ने शौर्य के साथ मालवा के शासक होशंग शाह से युद्ध किया। दुश्मन ने धर्म की आड में धोखा किया, और कपट से अचलदास को हरा दिया। तारागढ़ की दुर्ग में राजा अचलदास के बंदी बनाए जाने से खलबली मच गई। राजपूत महिलाओं को प्राप्त करने के लिए किले को चारों ओर से घेल लिया गया। लेकिन क्षत्राणियों ने संयुक्त रूप से जौहर कर शत्रुओं को उनके नापाक इरादों में कामयाब नहीं होने दिया। इस तरह यह दुर्ग राजस्थान के गौरवमयी इतिहास का जीता जागता उदाहरण है।

कैसे पहुंचें गागरोन दुर्ग

झालावाड दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में मावला के पठार में स्थित मध्यप्रदेश के बॉर्डर से लगा जिला है। यह कोटा शहर से 88 किमी की दूरी पर है। गागरोन दुर्ग पहुंचने के लिए कोटा से झालावाड़ के लिए अच्छा सड़क मार्ग है और पर्याप्त मात्रा में बसें उपलब्ध हैं। कोटा डेयरी पार करने के बाद यहां से रोड पर ’टी’ प्वाइंट है। बायें हाथ का रास्ता झालावाड़ की ओर जाता है और दायें हाथ का रास्ता रावतभाटा की ओर। झालावाड़ से गागरोन दुर्ग की दूरी 10 किमी के करीब है। झालावाड़ से गागरोन के लिए ऑटो या टैक्सी का प्रबंध किया जा सकता है।


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