राजस्थान के नृत्य (Dance in Rajasthan)
दुनिया के हर कोने में एक अलग कला और अलग संस्कृति है। विश्व के किसी भी समुदाय विशेष का रहन सहन, पहनावा, खान-पान, बोल-चाल, विचार और अभिव्यक्ति के तरीके अलग होते हैं। यही संस्कृति होती है। किसी संस्कृति का सबसे मनमोहक प्रदर्शन होता है उसके नृत्य में। दुनिया में शायद ही कोई ऐसी सभ्यता और संस्कृति हो जिसमें नृत्य ना हों। विभिन्न अवसरों पर संस्कृतियां अपने पारंपरिक नृत्य में खुशी का इजहार करती हैं। कहीं कहीं दुख प्रकट करने के लिए नृत्य किए जाते हैं।
इस मामले में भारत एक अजूबा देश माना जा सकता है।कला के मामले में भारत सबसे समृद्ध देशों की सूची में अग्रणी है। देश के हर हिस्से में खूबसूरत संस्कृतियां अपनी परंपराओं का बखूबी निर्वहन कर रही हैं। देश में राजस्थान ही ऐसा प्रदेश है जिसके हर हिस्से में एक अलग संस्कृति है और उनके नृत्यों में उन संस्कृतियों की खूबसूरत झलक देखने को मिलती है।
राजस्थान का हर हिस्सा एक खूबसूरत संस्कृति से ओत-प्रोत है और वैश्विक स्तर पर प्रदेश का हर नृत्य बहुत पसंद किया जाता है। राजस्थान के विभिन्न अंचलों में किस तरह का नृत्य किया जाता है। वह किसी खास संस्कृति का कैसे प्रतिनिधित्व करता है। आइये, इस पृष्ठ से जानें, राजस्थान के विभिन्न नृत्यों के बारे में-
चरी
राजस्थान के अजमेर-किशनगढ़ क्षेत्र में गुर्जर समुदाय की महिलाओं द्वारा चरी नृत्य किया जाता है। चरी एक पात्र होता है। यह आमतौर पर पीतल का होता है और मटके के आकार का होता है। चूंकि इस नृत्य में चरी का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे चरी नृत्य के नाम से जाना जाता है। खास बात ये है कि नृत्यांगनाएं इन चरियों में आग जलाकर सिर पर रखकर नृत्य करती हैं। अमूमन यह नृत्य रात के समय बहुत खूबसूरत लगता है। नृत्य की कुछ खास भंगिमाएं नहीं होती लेकिन सिर पर जलती हुई चरी रखकर उसका बैलेंस बनाए रखकर नाचना अपने आप में अद्भुद है। ये नर्तकियां घूमर नृत्य की तरह नाचती हैं। डांस में ढोल, थाली और बंकिया का इस्मेमाल किया जाता है। पारंपरिक तौर पर यह नृत्य देवों के आव्हान के लिए किया जाता है, इसीलिए इसे ’स्वागत नृत्य’ के रूप में भी जाना जाता है। नृत्य करते समय गुर्जर नर्तकियां नाक में बड़ी नथ, हाथों में चूडे़ और कई पारंपरिक आभूषण जैसे हंसली, तिमनियां, मोगरी, पंछी, बंगड़ी, गजरा, कड़े, करली, थनका, तागड़ी आदि पहनती हैं। मूल पोशाक घाघरा चोली होती है।
घूमर
घूमर नृत्य की मौलिक शुरूआत राजस्थान के दक्षिणी इलाकों में बसी भील जाति ने किया। घूमर नृत्य आज राजस्थान के उत्तरी इलाकों में भी किया जाता है। घूमर देश विदेश में राजस्थान की पहचान बन गया है। घूमर का अर्थ है घूमकर नाचना। नृत्य में महिलाएं अस्सी कली का घाघरा पहन कर गोलाकार घूमते हुए यह डांस करती है। अपनी मोहक अदाओं से यह नृत्य सभी का दिल जीत लेता है। राजस्थान के लोक कलाकार समय समय पर घूमर नृत्य का प्रदर्शन देश विदेश में करते रहते हैं। नृत्य के दौरान महिलाओं और पुरूषों का एक दल गायन करता है। रंग बिरंगी राजस्थानी पोशाक और आभूषणों से सजी महिलाएं घूमर नृत्य करते हुए बहुत आकर्षक लगती हैं। नृत्य के दौरान देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। यह नृत्य स्थानीय जातियों द्वारा शादी विवाह और शुभ अवसरों पर किया जाता है। जयपुर में तीज और गणगौर के अवसरों पर घूमर नृत्य खास तौर से किया जाता है।
कालबेलिया
कालबेलिया राजस्थान की सपेरा जाति है। राजस्थान में जहां जहां सपेरा जातियां बसी हुई थी वहां यह शानदार डांस किया जाता था। धीरे धीरे कालबेलिया ने अपनी पोशाक और नृत्य के अनूठे तरीके के कारण पहचान बना ली। आज विश्वभर में कालबेलिया के प्रसंशक है। नृत्यांगनाओं में गजब का लोच और गति दर्शकों को मोहित कर देती है। यह नृत्य मूल रूप से महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। नृत्य के दौरान काला घाघरा चुनरी और चोली पहनी जाती है। पोशाक में बहुत सी चोटियां गुंथी होती हैं जो नृत्यांगना की गति के साथ बहुत मोहक लगती हैं। तीव्र गति पर घूमती नृत्यांगना जब विभिन्न भंगिमाएं करती हैं तो दर्शक वाह कह उठते हैं। कलबेलिया की प्रसिद्ध नृत्यांगना गुलाबो कई देशों में इस नृत्य का प्रदर्शन कर चुकी है। नृत्य के दौरान बीन और ढफ बजाई जाती है। लोककलाकार सुरीली आवाज में गायन भी करते हैं।
भवई
भवई पश्चिमी राजस्थान में किया जाने वाला एक ’स्टंट नृत्य’ है। मुख्य रूप से यह नृत्य जाट, भील, रैगर, मीणा, कुम्हार व सपेरा जातियों द्वारा किया जाता था। यह नृत्य भी महिलाओं द्वारा किया जाता है। नृत्य के दौरान नृत्यांगना द्वारा कई हैरतअंगेज स्टंट करके दिखाए जाते हैं। यही इस नृत्य कला की खूबसूरती है। कई बार दर्शक नृत्य देखते हुए दांतों तले अंगुली दबा लेते है। नृत्य में कलाकार तलवार की धार पर नाचते हैं तो कभी पीतल के थाल के किनारों पर। अपने हाथों को लहराते हुए गिलास पर डांस पेश करते हैं तो कभी सिर पर एक साथ कई मटके रखकर नृत्य किया जाता है। नृत्य में गीत और पखावज की खास भूमिका होती है। वाद्यों में ढोलक, झांझर, सारंगी और हारमोनियम का इस्तेमाल किया जाता है।
राजस्थानी नृत्य संस्कृति विराट है और और दुनिया में कहीं अन्यत्र इतनी समृद्ध परंपराएं नहीं देखी जाती। राजस्थान के लोग अपनी परंपाराओं और संस्कृति से बेहद प्यार करते हैं और उन्हें बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। राजस्थान के लोग अपनी इस रंग बिरंगी संस्कृति पर बहुत गर्व भी करते हैं। करें भी क्यूं ना। राजस्थान की संस्कृति ने ही इस रेतीले राज्य को विश्व भर में अनूठी पहचान दिलाई है। जिसमें सबसे बड़ा योगदान है इन लोकनृत्यों का।
सोनल मानसिंह की डांस परफोर्मेंस
जयपुर के महाराणा प्रताप सभागार में बुधवार 22 मई को प्रख्यात कथक नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियों से समां बांध दिया। वे यहां श्रुतिमंडल की ओर से आयोजित आठवें रघु सिन्हा स्मृति समारोह में प्रस्तुति देने आई थी। प्रस्तुति के दौरान वे तल्लीनता से मंच पर बैठी और उपस्थित लोगों को देवी की महिमा और उनके विविध रूपों पर किस्सागोई शैली में विचार रखे। अपनी प्रस्तुति ’श्रंगार लहरी’ में उन्होंने देवी के विविध रूपों और घटनाओं को दंत कथाओं, काव्य, दोहे, शेरो शायरी के माध्यम से एकता के सूत्र में पिरोया। उन्होंने ब्रह्मांड में व्याप्त ऊर्जा को देवी का रूप देते हुए चंडी, चामुंडा, अंबा, जगदंबा, सती, सुंदरी, उमा, गौरी, मंगला, विमला, कमला, कामाक्षी, सरस्वती और निर्भया के रूपों का वर्णन किया। उन्होंने कथाओं के साथ साथ भाव-मुद्राएं भी दर्शाई, महिषासुर मर्दिनी के रूप को सोनल मानसिंह ने रोचकता से पेश किया।
80 कली का घाघरा कौनसे नृत्य में पहना जाता हैं