कुम्भलगढ़ दुर्ग : राजसमन्द (Kumbhalgarh Fort : Rajsamand)
राजस्थान ने सदैव दुर्गकला की परंपरा निबाही है। दुर्गों का निर्माण देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार किया जाता था। पुराणों और आख्यानों में प्रजा की रक्षा करना राजा का परम धर्म बताया गया था। इसलिए दुर्ग का निर्माण करारा हर शासक का दायित्व हुआ करता था। कौटिल्य ने अपने ग्रन्थ अर्थशास्त्र में छह प्रकार के दुर्गों का जिक्र किया है, इनमें औदिक दुर्ग, गिरि दुर्ग, धन्वन दुर्ग, वन दुर्ग प्रमुख हैं। राजस्थान में सभी प्रकार के दुर्गों के उदाहरण मिलते हैं।
कुंभलगढ : महादुर्ग
कुंभलगढ़ दुर्ग राजस्थान ही नहीं बल्कि देश के सभी दुर्गों में विशिष्ट स्थान रखता है। कुंभलगढ दुर्ग उदयपुर से 70 किमी की दूरी पर राजसमंद जिले की केलवाड़ा तहसील में स्थित है। समुद्र तल से 1087 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह विशाल और भव्य दुर्ग 30 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। कुंभलगढ दुर्ग मेवाड़ की आन, बान और शान का प्रतीक है। यह दुर्ग महाराणा कुंभा के पराक्रम और वीरता का स्मारक है। कहा जाता है यहां इस दुर्ग से पूर्व सम्राट अशोक के पुत्र संप्रति द्वारा एक भव्य महल बनवाया गया था। उसी के अवशेषों पर इस दुर्ग का निर्माण कराया गया। कुंभलगढ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुंभा ने कराया, यह दुर्ग 1443 में आरंभ होकर 1458 तक पूर्ण हुआ। दुर्ग पूर्ण होने के हर्ष में महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किए थे जिनपर एक ओर दुर्ग का चित्र और दूसरी ओर उनका नाम अंकित था। इस भव्य दुर्ग का निर्माण वास्तुशास्त्र के आधार पर हुआ था, वास्तुकार मंडन की देखरेख में पूरा किला बनवाया गया था। मजबूत निर्माण प्रक्रिया के कारण इसके प्रवेश द्वार, प्राचीरें, जलाशय, संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, इमारतें, भवन, यज्ञ स्थल, वेदियां, स्तंभ और छतरियां आदि आज भी सही सलामत मौजूद हैं।
अजेय दुर्ग
कटार गढ
कुंभलगढ दुर्ग के अंदर एक और दुर्ग है जिसे कटारगढ़ कहा जाता है। यह गढ़ सात विशाल द्वारों व मजबूत प्राचीरों से सुरक्षित है। इस गढ़ के शीर्ष पर बादल महल व सबसे ऊपर कुंभामहल है। महाराणा प्रताप की जन्मभूमि रहे इस दुर्ग को मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी कहा जाता था। महाराणा कुंभा से लेकर महाराणा राजसिंह तक जब भी मेवाड़ पर आक्रमण हुए, राजपरिवार इसी दुर्ग में रहे। इसी दुर्ग के प्रांगण में पृथ्वीराज और महाराणा सांगा का बचपन भी बीता। पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में महाराणा उदयसिंह को छुपा कर पालन पोषण किया। हल्दीघाटी का युद्ध हारने के बाद महाराणा प्रताप भी लंबे समय तक इस दुर्ग में रहे। इस दुर्ग का निर्माण होने के तुरंत बाद से ही इस पर आक्रमण होने लगे लेकिन एक बार को छोड़कर यह दुर्ग अजेय ही रहा।
इतिहास : सुख और दुख
विशाल द्वार
हिन्दू और जैन मंदिर
विजयपोल के पास कुछ भूमि समतल है, यहां कई हिन्दू और जैन मंदिर बने हुए हैं। यहां बना नीलकंठ महादेव मंदिर खूबसूरत नक्काशीदार स्तंभों के लिए जाना जाता है। अतीत के स्थापत्य में अलग और अहम स्थान रखने वाले इस मंदिर के स्तंभ युक्त बरामदों की तुलना यूनानी शैली के स्थापत्य से की जाती है।
यज्ञशालाएं
मामादेव का कुंड
महल के नीचे वाली भूमि पर भालीवान बावड़ी और मामादेव का कुंड स्थित है। महाराणा कुंभा इसी कुंड पर अपने बड़े बेटे ऊदा के हाथों मारे गए थे। इसी स्थान पर मामावट नामक स्थान पर भगवान विष्णु का कुंभास्वामी मंदिर बना हुआ जो वर्तमान में जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। मंदिर के बाहरी परिसर में भगवान विष्णु के अवतार, देवियां, पृथ्वी, पृथ्वीराज आदि की मूर्तियां आज भी इतिहास के स्थापत्य से रूबरू कराती हैं। यहीं पांच शिलाआों पर राणा कुंभा द्वारा खुदवाई गई प्रशस्तियां भी दिखाई देती हैं। इनपर मेवाड़ के राजाओं की वंशावलियां, राजाओं का परिचय और कुछ विजयों का वर्णन किया गया है। राणा रायमल के पुत्र वीर पृथ्वीराज का दाहस्थल भी यहीं बना हुआ है। गणेश पोल के पास गुंबद महल और देवी का स्थान है। महाराणा उदयसिंह की रानी झाली का महल भी यहां से कुछ सीढियां चढकर है।