जयपुर Hindi

जवाहर कला केंद्र (Jawahar Kala Kendra)

Jawaher Kala Kendraजयपुर को ‘सिटी ऑफ आर्ट्स' भी कहा जाता है। वास्तव में जयपुर समृद्ध कलाओं का शहर है। एक कहावत है-यथा राजा तथा प्रजा। जयपुर के राजाओं को कला की कद्र भी थी और परख भी। यही कारण है जयपुर एक ऐतिहासिक कलात्मक नगरी है। यह कला पत्थरों, मीनारों और दीवारों तक ही सीमित नहीं है। जयपुर की हवा में घुल गई है। और सांसों के साथ जयपुरवासियों के दिल में उतर गई है। कला की कद्र की राजसी परंपरा आज भी कायम है। और विभिन्न कलाओं को पनाह देकर सिर आखों पर बिठाने का मुकाम है-जवाहर कला केंद्र।

जयपुर के व्यस्ततम मार्गों में से एक जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर राजस्थान विश्वविद्यालय से दक्षिण की ओर गांधी सर्किल से आगे दाहिने हाथ की ओर जवाहर कला केंद्र का भव्य परिसर है। कलाओं को सिंचित करने वाली यह इमारत स्वयं कला का बेहद उम्दा नमूना है। वर्तमान में इस केंद्र का चप्पा-चप्पा कलाकारों की मौजूदगी से आबाद रहता है। कभी यहां के कॉफी हाउस में आईये, आपको कॉफी में भी कला की महक और स्वाद महसूस होगा।

जवाहर कला केंद्र में एक साथ कई कलात्मक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यह राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थानी कला और शिल्प के संरक्षण के उद्देश्य से निर्मित कराया गया था। जवाहर कला केंद्र में आठ ब्लॉक में ऑफिस, आवास, विविध संग्रहालय, थिएटर, सभागार, पुस्तकालय, आर्ट गैलरियां, कला स्टूडियो, ओपन थिएटर, कैफेटेरिया, गार्डन, शिल्पग्राम आदि बनाए गए हैं। यहां दो स्थायी दीर्घाएं हैं और तीन अन्य दीर्घाओं में समय-समय पर कला प्रदर्शनियां लगती हैं। जवाहर कला केंद्र स्वयं कई कार्यक्रमों का आयोजन करता है और साप्ताहिक कार्यक्रम शुक्रवार, शनिवार और रविवार को आयोजित किए जाते हैं जिनमें कलाप्रेमी बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं। केंद्र की ओर से प्रतिवर्ष राष्ट्रीय स्तर के क्राफ्ट मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं कला प्रोत्साहन कार्यक्रम भी किए जाते हैं।

जवाहर कला केंद्र की इमारत वर्ष 1991 में बनकर तैयार हुई। इसका डिजाईन प्रख्यात वास्तुकार चाल्र्स कोरिया ने वर्ष 1986 में बनाया था। जयपुर की नागर शैली और भवन निर्माण योजना को ध्यान में रखकर ही चाल्र्स ने इमारत के निर्माण, शैली और भित्तिचित्रों में स्थानीय परंपराओं का निर्वहन किया।

जयपुर को वास्तु के आधार पर नौ खण्डों में बसाया गया था। ये नौ खण्ड नौ ग्रहों के प्रतीक थे। जवाहर कला केंद्र में भी इसी नवखण्डीय वास्तु को अपनाते हुए नौ चौकों को मिलाकर परिसर की रचना की गई जिनमें एक वर्ग भाग को खुला छोड़ दिया गया। जवाहर कला केन्द्र चार परिसरों से मिलकर बना है। इसके उत्तरी खुले भाग में शिल्पग्राम है। एक परिसर में थिएटर की इमारत बनाई गई है, थिएटर के दक्षिणमुखी द्वार के सामने पुस्तकालय और वाचनालय भवन है तथा थिएटर एवं पुस्तकालय के बीच जवाहर कला केंद्र के मुख्य परिसर का द्वार है।

थिएटर में रंगायन और कृष्णायन सभागार हैं। भीतरी परिसर में मुक्ताकाशीय मंच स्थित है।

कला की इस भव्य पनाहगाह का आगाज 8 अप्रैल 1993 को हुआ। जवाहर कला केन्द्र में निरंतर शास्त्रीय और लोक परम्पराओं से संबंधित कार्यक्रम होते रहे हैं। किशोर से व्यस्क हो चुका जवाहर कला केंद्र अब इतना सक्षम हो चुका है कि प्रतिवर्ष राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय लोक कार्यक्रमों का आयोजन कर सके और उन्हें सफलतापूर्वक संचालित कर सके। यहां अब हर मौसम में राष्ट्रीय स्तर के विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें बड़ी संख्या में कलाप्रेमी मौजूद होते हैं। आम तौर पर यहां नाटक, सेमिनार, संगोष्ठियां, पेंटिंग प्रदर्शनी व गायन-वादन के कार्यक्रम होते रहते हैं। इनके इतर विभिन्न अवसरों पर विशेष सामूहिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इनमें शिल्पग्राम में विभिन्न क्राफ्ट मेलों, पुस्तक मेलों, राजस्थानी लोकरंगों व हस्तशिल्प कार्यक्रमों का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है। वहीं रंगायन एवं कृष्णायन सभागारों में समय समय पर महत्वपूर्ण सेमिनार, चर्चाएं, फिल्म एवं नाटकों का प्रदर्शन किया जाता है। रंगायन सभागार में हर शुक्रवार फ्राईडे थिएटर का आयोजन किया जाता है। जवाहर कला वर्तमान में न केवल जयपुर और राजस्थान बल्कि भारत और विश्व की संस्कृतियों के मेल-जोल का स्थल बन गया है। कलाप्रेमी जेकेके के इस रूप को पसंद भी कर रहे हैं।

जवाहर कला केंद्र की डिजाईन भारतीय ज्योतिष की अवधारणा पर की गई है। विभिन्न ब्लॉक्स में विभाजित जवाहर कला केंद्र का हर भाग एक ग्रह की विशेषता को दर्शाता है। यह ज्योतिषीय गणना यहां दीवारों पर की गई पेंटिंग्स में भी नजर आती है।

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जवाहर कला केंद्र का पुस्तकालय गुरू अर्थात ब्रहस्पति का मूल केंद्र है, ब्रहस्पति ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है। चंद्र के स्थान में स्थित कॉफी हाउस की दीवारों पर विस्तृत चित्रों के माध्यम से खगोल विज्ञान के पहलुओं को चित्रित किया गया है। जवाहर कला केंद्र में केंद्रीय गुम्बद पर किया गया भित्तिचित्र कार्य आगन्तुकों और पर्यटकों को विशेष रूप से प्रभावित करता है।

जवाहर कला केंद्र परिसर में ही एक बड़े मैदान में राजस्थान के विभिन्न अंचलों की पहचान को समेटने के उद्देश्य से यहां शिल्पग्राम विकसित किया गया है। शिल्पग्राम में राजस्थान के विभिन्न अंचलों में बने घरों के खूबसूरत मॉडल यहां बनाए गए हैं जिन्हें देखकर एक ढाणी होने का आभास होता है। शिल्पग्राम में मारवाड़ी, मेवाड़ी, हाडौती, शेखावाटी, ब्रज, आदिवासी और रेगिस्तानी संस्कृतियों के प्रतीक घरों को देखना अपने आप में संपूर्ण राजस्थान को एक साथ देखने जैसा है। शिल्पग्राम में समय समय पर विभिन्ना शिल्प मेलों, पुस्तक पर्व, लोकरंग व अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। यहीं इन झोंपडियों के बीच एक रेस्टोरेंट भी है जो बिल्कुल राजस्थानी अंदाज में भोजन करने का उपयुक्त स्थल है।

जयपुर में रहकर यदि आप जवाहर कला केंद्र से नहीं जुड़े हैं और यहां आकर सांस्कृतिक और लोक रंगों का लुत्फ यदि आपने नहीं उठाया है तो जयपुर की परंपराओं की अमृतधारा आपके इर्द-गिर्द से निकल रही है पर आप उसमें डुबकियां लगाने से वंचित हैं।

भोपाल के भारत भवन से ली प्रेरणा

जयपुर के जवाहर कला केंद्र में कलाओं को विजुअल आर्ट के जरिए बढावा देने के लिए जवाहर कला केंद्र परिसर में भोपाल के भारत भवन की तर्ज पर दीर्घाएं बनाई गई। जवाहर कला केंद्र के ग्राफिक स्टूडियो में लकड़ी, पत्थर और स्किन प्रिंट का काम होता है, फोटोग्राफी व स्कल्पचर स्टूडियो फिलहाल बंद हैं, सुरेख, सुदर्शन, सुकृति, चतुर्दिक, पारिजात 1 व 2  में समय समय पर पेंटिंग और कला प्रदशर्नियां लगती हैं, स्फटिक गैलरी के जवाहर कला केंद्र की अपनी कलाकृतियों का संग्रह किया गया है। परिसर के इन सभी भवनों में यह वीजुअल आर्ट 1993 में ही कार्य प्रक्रिया में आ गई थी।

कला और कलाकार से जुड़ाव

जवाहर कला केंद्र से अब तक अपनी आर्ट के जरिये देश के नामी कलाकार  जुड चुके हैं। इनमें ज्योति भट्ट, अनुपम सूद, जय जरोटिया, मोती जरोटिया, रिन्नी और पीडी धुमाल ग्राफिक आर्टिस्ट थे। अंजनी रेड्डी, जगदीश चंद्र, पीएन चोयल आदि चित्रकार थे। सरबती राय चौधरी, बलवीर सिंह कट, रोबिन डेविड, सीपी चौधरी, ज्ञानसिंह आदि मूर्तिकार थे। जवाहर कला केंद्र में शिल्पग्राम के पास बगीचे में रखे काले पत्थर के स्कल्पचर कोरिया, जापान और दिल्ली के कलाकारों ने बनाए थे। इन्हें यहां राजस्थान ललित कला अकादमी के सहयोग से रखवाया गया था। यह काला पत्थर कोटपूतली के पास भैंसलाना की खदानों से प्राप्त किया गया था।

प्रमुख  प्रदर्शनियां

जवाहर कला केंद्र में कई नामचीन प्रदर्शनियां लग चुकी हैं। इनमें वर्ष 2000 में केंद्रीय ललित कला अकादमी की राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी, 2011 में वेल्स राजस्थान एक्सचेंज एग्जीबीशन, पिंकसिटी आर्ट प्रोजेक्ट और धोरां सूं आदि का प्रदर्शन किया गया था।

पहला स्कलप्चर कैंप

जवाहर कला केंद्र में पहला स्कल्पचर कैंप 1993 में लगा। इस प्रमुख शो में रामगोपाल विजयवर्गीय का रेट्रोस्पेक्टीव, देवकीनंदन शर्मा की सोलो, उषा रानी हूजा की मूर्तिकला का प्रदर्शन किया गया था। यहां दृश्य कला विभाग के पहले निर्देशक धर्म रत्नम रहे थे।

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  • ’एक शाम शहनाज के नाम’

    आबशार संस्था की ओर से जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में शनिवार को ’एक शाम शहनाज के नाम’ कार्यक्रम हुआ। इसमें वेस्ट बंगाल उर्दू अकादमी की चेयरपर्सन शहनाज नबीने अपनी नज्मों और गजलों का पाठ किया। शहनाज ने ’बस एक मैं आजिज बयां क्य क्या कहूं, कैसे कहूं, चुप रहूं वो मेरी चुप में रोशन है’, ’न खिलने की ख्वाहिश, न खुश्बू का लहका, न रंगों की चाहत, भंवरों का चस्का’, ’उबल उबल के दूध के सारे ताल तलैया सूख गए, उसकों कहां अब ढूंढूं मैं, मिला नहीं वो बिछड़ गया’ सुनाकर दाद पाई। कार्यक्रम की अध्यक्षता शीन काफ निजाम ने की।

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